Wednesday, December 23, 2009

प्रायोगिक गणित के एक संस्थान की कल्पना

 

(एक प्रांत के मुख्यमंत्री को एक अवकाश ग्रहण कर रहे प्रोफेसर द्वारा एक प्रायोगिक गणित और अर्थशास्त्र के संस्थान के लिए दिये जाने वाले प्रेजेंटेशन के लिए लिखे गए एक छोटे से स्लाइडनुमा लेख का अनुवाद)

आज प्रायोगिक और परिकलनात्मक गणित (Applied and Computational Mathematics) सारे शोध के विषयों में से सबसे अधिक अंतर्विषयकrubik_s_cube (interdisciplinary) है. इसमें दैनिक जीवन और वास्तविक दुनिया से जुड़े समस्याओं पर मॉडलिंग, एनालिसिस, एल्गॉरिथ्म विकास और सिमुलेशन शामिल है. केवल विज्ञान और अभियांत्रिकी में ही नहीं बल्कि मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान में भी इन गणितीय तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा है. ऐसा कहा जाता है कि गणित का उपयोग सभी संभव क्षेत्रों में होता है अगर कहीं नहीं हो रहा तो बस कुछ दिनों में ही होने लगेगा. गणित बाकी क्षेत्रों से (में) इस कदर जुड़ा (उलझा) हुआ है कि प्रायोगिक गणित का एक स्वतंत्र पूर्ण विभाग बनाना लगभग असंभव है. एक आदर्श प्रायोगिक गणित का संस्थान ऐसा होगा जो विश्व भर में उद्योगों, सरकारी विभागों और कारोबार से जुड़े वैज्ञानिकों, गणितज्ञों और अभियंताओं के एक बृहत समूह के साथ मिल कर एक दूसरे के लिए काम करे. ये संबंध रोचक और उपयोगी गणित के लिए प्रेरणा का काम करेंगे जो विज्ञान, अभियांत्रिकी और समाज को नयी ऊँचाई पर ले जाने में सक्षम होगा.

एक आदर्श गणित के विभाग में संवादात्मक अंतर्विभागीय शोध (interactive interdepartmental research) के वातावरण को बनाने की क्षमता होनी चाहिए जिससे छात्र अपनी रुचि के हिसाब से विज्ञान, खगोलशास्त्र, वित्त, मानविकी और अन्य विषयों का अन्वेषण कर सकें. यह गणित और उसके प्रयोगों के प्रति प्रेम रखने वालों के लिए एक प्लैटफ़ार्म की तरह होना चाहिए. इन सब के साथ विभाग के पास पूर्वस्नातक छात्रों को वास्तविक दुनिया की समस्याओं को हल करने के लिए उपयुकत गणितीय साधन, पद्धति और रणनीति सिखाने और अभ्यास कराने की क्षमता होनी चाहिए.

गणित विवेचनात्मक तर्क और लीक से हटकर सोचने की क्षमता (critical reasoning and out of box thinking) प्रदान करता है जिसे लगभग हर क्षेत्र में प्रयोग किया जा सकता है. एक पाठ्यक्रम की संरचना ऐसी होनी चाहिए जो शुद्ध गणित में छात्रों को बुनियादी रूप से मजबूत कर सके और पाठ्यक्रम में ऐसे समावेश होने चाहिए जिससे ये सीखा जा सकें कि गणित को कैसे वास्तविक जीवन की समस्याओं को हल करने में उपयोग किया जा सकता है. पाठ्यक्रम के अंत में इन सीखे गए तरीकों के इस्तेमाल के लिए मौके उपलब्ध होने चाहिए जिसमें छात्र अपनी रुचि के हिसाब से चुने हुए क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त कर सके. विशिष्टता के इन विषयों की सूची बहुत लंबी होनी चाहिए जो विभाग में उपलब्ध आधारभूत सुविधाओं और अध्यापक मण्डली पर निर्भर होगा. मोटे तौर पर इसे तीन वर्ग में बांटा जा सकता है सांख्यिकी, शुद्ध एवं प्रायोगिक गणित, सैद्धांतिक संगणना. इनके प्रयोगों की सूची लंबी है जिसे सूचीबद्ध करना संभव नहीं दिखता.

गणित ने लड़ाइयाँ जीती है. गणित की एक शाखा का नाम ‘ऑपरेशनस रिसर्च’ ही इसीलिये पड़ा क्योंकि उसका विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के समय युद्ध रणनीति बनाते समय हुआ. वालस्ट्रीट गणितीय फोर्मूलों पर चलता है, किसी भी नयी दवाई को बाजार में लाना हो या मौसम की भविष्यवाणी करनी हो या फिर नए मौद्रिक नीति की घोषणा करनी हो... गणित के प्रयोगों की सूची कभी नहीं ख़त्म होने वाली.

देश में मौजूदा गणित के विभागों में से कोई भी प्रायोगिक गणित के प्रति ये रवैया नहीं अपनाता. अमेरिका में सांख्यिकीविद् और बीमांकिक श्रेष्ठ नौकरियां मानी जाती है. कुछ पद जहाँ गणितज्ञों की जरूरत होती है:

  • वित्त अभियंता
  • सैद्धांतिक भौतिकशास्त्र
  • परफॉर्मेंस अभियंता
  • सरकारी सांख्यिकीविद्
  • गणितीय परामर्शदाता (जेट इंजिन डिज़ाइन, एयरक्राफ्ट डिज़ाइन, नेटवर्क डिज़ाइन इत्यादि)
  • बीमांकिक
  • बाजार विश्लेषक
  • सुरक्षा विश्लेषक
  • चिकित्सा संबंधी सांख्यिकीविद्
  • सांख्यिकी परामर्शदाता (दवाई संबंधित शोध, कृषि शोध, सामाजिक मुद्दों पर शोध, नीति निर्माण इत्यादि)
  • ऐरोड्यनामिक्स
  • द्रव्य अभियांत्रिकी (फ्लुइड मेकेनिक्स)
  • अर्थशास्त्रीक मॉडलिंग
  • ओप्टीमाइज़ेशन परामर्शदाता
  • मौसम भविष्यवाणी
  • कलनात्मक जीवविज्ञान
  • एनिमेशन और फिल्म निर्माण
  • ...

हमारे देश में एक ऐसे विभाग की जरूरत है जो युवाओं का इन क्षेत्रों से परिचय करा सके. एक ऐसा विभाग जो विश्लेषणतामक निर्णय लेने वाले युवकों को तैयार कर सके. ऐसे विभाग की अध्यापक मण्डली और शोध समूह कुछ ऐसे होने चाहिए:

  • वित्तीय अभियांत्रिकी
  • एकोनोमेट्रिक्स
  • प्रायोगिक सांख्यिकी और प्रायिक कलन (Stochastic Calculus)
  • कोंबिनटोरिक्स (Combinatorics)
  • कम्प्यूटेशनल मोलेक्युलर बयोलॉजी
  • प्रायोगिक अभियांत्रिक गणित/प्रायोगिक ओप्टीमाइज़ेशन
  • ऑपरेशनस रिसर्च
  • सैद्धांतिक कम्प्युटर साइन्स/अलगोरिथ्म्स
  • क्वांटम कम्प्यूटिंग
  • सैद्धांतिक भौतिकी/कंडेंसड मैटर फ़िज़िक्स
  • फ्लुइड ड्यनामिक्स
  • क्रिप्टोलोजी
  • गेम थियोरी
  • इत्यादी...

~Abhishek Ojha~

Tuesday, November 24, 2009

बंद भी खुला भी !

टोपोलोजी की बात शुरू होने के पहले बंद हो गयी. बात प्रस्तावना से आगे बढ़ी ही नहीं. 'शुरू होने से पहले ही बंद...? !' अब बात थी टोपोलोजी की तो ऐसा ही होना था. इससे याद आया एक उदहारण जो उस किताब में है जिसने हमारा और टोपोलोजी का पहला परिचय कराया. जेम्स मुन्क्रेस की किताब 'टोपोलोजी'.Topology Munkres टेक्स्टबुक के रूप में शायद दुनिया के सभी बड़े स्कूलों में उपयोग की जाती है. उदहारण कुछ ऐसा है... एक समुच्चय (सेट) और दरवाजे में फर्क ये है कि दरवाजा एक समय पर या तो खुला रह सकता है या बंद... पर एक समुच्चय खुला (ओपन सेट) भी हो सकता है बंद (क्लोज सेट) भी, और खुला और बंद दोनों हो सकता है ! पहली बार पढ़ा था तो मजा तो आया था. साथ में ये भी लगा था ससुर समुच्चय ना हुआ अजूबा हो गया. वैसे टोपोलोजी अजूबा ही है [बस समझ में आना चाहिए, मुझे बहुत ज्यादा नहीं आता :) एक ईमानदार स्टेटमेंट दे रहा हूँ. अब इंसान एक समय पर ईमानदार और बेईमान दोनों तो नहीं हो सकता !]

टोपोलोजी गणित कि नयी शाखाओं में से है. करीब ९० साल पहले इसे गणित की एक स्वतंत्र शाखा के रूप में पहचान मिली तो इससे जुड़े लगभग सारे महत्तवपूर्ण सिद्धांत पिछले ५० सालों में दिए गए. पर शुरुआत तो कोनिग्स्बर्ग के पुलों वाले सवाल से ही मानी जाती है जिसका  हल अठारहवी सदी में हुआ. इस सवाल की चर्चा अगली पोस्ट में. टोपोलोजी को गणित की कई पुरानी मान्यताओं में क्रातिकारी परिवर्तन लाने के लिए जाना जाता है. और और गणित को सिर्फ 'अंको की भाषा' वाली परिभाषा से बाहर लाकर खड़ा करने में में तो सबसे ज्यादा योगदान टोपोलोजी का ही है. शुरुआत में यह गणित की कुछ शाखाओं से सम्बंधित था और अक्सर इसे ज्यामिति की शाखा समझ लिया जाता था. पर अब स्वतंत्र रूप से टोपोलोजी ने गणित की सभी शाखाओं के अलावा विज्ञान की कई शाखाओं को प्रभावित किया है. मोटे तौर पर टोपोलोजी एक ज्यामितीय 'सोच' है. जिसमें कई वस्तुओँ के सामूहिक ज्यामितीय गुणों का अध्ययन किया जाता है. यह गणित की एक क्वांटीटेटिव  ना होकर क्वालिटेटिव (किसी भी वस्तु के गुण के बारे में अध्ययन से सम्बंधित) शाखा है. इसे इस तरह समझा जा सकता है... इसमें किसी सवाल को हल करने की जगह उसके गुणों का अध्ययन किया जाता है. हल करने की जगह ये देखा जाता है कि हल संभव भी है या नहीं. गणित की कई शाखाओं को एक सूत्र में जोड़ने का श्रेय टोपोलोजी को जाता है. एक ऐसी विचारधारा का विकास जिस पर गणित के कई सिद्धांत आधारित हैं. एक प्रयास जो गणित के अब तक विकसित सिद्धांतों को एक सोच के अन्दर समेट सके.

टोपोलोजी शुद्ध गणित की एक प्रतिष्ठित शाखा है. जिसमें स्वयंसिद्ध परिभाषित किये जाते हैं फिर उनका इस्तेमाल कर प्रमेय, फिर उन्हें साबित किया जाता है. 'किसी भी वस्तु से सम्बंधित सवालों के बारे में एक गुण को लेकर उसे सही या गलत साबित करना' इसी अवधारणा पर टोपोलोजी का विकास हुआ. पहले ऐसे कई सवाल हुआ करते थे जिन्हें हल करने के लिए लोग सदियों तक लगे रहे, बिना ये सोचे कि हल संभव भी है या नहीं ! टोपोलोजी की मदद से ऐसे कई Tropic of Cancerसवाल सहज हुए. कई सवालों के लिए यह साबित किया गया कि इनका हल संभव ही नहीं है तो कई अन्य के लिए ये कि ऐसे कई सवालों का हल एक ही है और इनमें से किसी एक को भी हल किया गया तो सारे हल  हो जायेंगे. टोपोलोजी में मात्रा या परिमाण(क्वांटिटी) मायने नहीं रखते पर उनके गुण मायने रखते हैं.  जैसे पुणे और दिल्ली के बीच में कहीं से कर्क रेखा गुजरती है या नहीं ऐसे सवालों के जवाब टोपोलोजी के दायरे में आयेंगे. कहाँ से गुजरती है ये टोपोलोजी के लिए मायने नहीं रखता.
काश जिंदगी और मानवीय सोच भी गणित की तरह होते और उन्हें एक सूत्र में पिरोया जा सकता ! टोपोलोजी जैसे गणित ज्यादा पढने वाले शायद यही सब सोच कर फिलोस्फर (पागल?) हो जाते हैं.

बस आज के लिए इतना ही अब ये श्रृंखला चालु कर दी है तो ख़त्म भी करूँगा ही. कब और कितने दिनों के अन्तराल पर पोस्ट करूँगा ये मायने नहीं रखता :)

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~Abhishek Ojha~

Thursday, July 9, 2009

गणितीय नेकलेस

पहले तो सोचा कि शीर्षक रखा जाय 'गणितीय हार'। लेकिन फिर लगा की इसका मतलब कहीं 'गणित से हुई हार' या 'गणित की हार' ना निकल जाए। वैसे तो युद्ध में गणित का इस्तेमाल खूब हुआ लेकिन असल में हार-जीत में कितना प्रभावी हुआ इसका ठीक-ठीक हिसाब किसी ने नहीं लगाया। युद्ध में किस तरह इस्तेमाल होता था वो फिर कभी। Fratal_necklace पहले तो आप ये 'हार' देखिये। ये फ्रैक्टल से प्रेरित होकर बनाया गया है। और इसका नाम रखा गया है 'जूलिया नेकलेस'।

फ्रेंच गणितज्ञ गेस्टन जूलिया* के नाम पर। उनके नाम पर गणित में जूलिया समुच्चय (जूलिया सेट) होते हैं जिनका फ्रैक्टल के सिद्धांतों से गहरा नाता है। बात तो टोपोलोजी की करनी थी लेकिन इस हार ने मन मोह लिया तो आज यही सही। यह नेकलेस फ्रैक्टल से प्रेरित है, दिवाली पर मैंने कुछ फ्रैक्टल पोस्ट किए थे 'गणितीय रंगोली' के नाम से। कुछ फ्रैक्टल के चित्र आप वहां देख सकते हैं। फ्रैक्टल का एक महत्वपूर्ण गुण रिपीटेटिव पैटर्न होता है। अर्थात फ्रैक्टल एक छोटा से छोटा हिस्सा भी पूरे हिस्से का एक छोटा रूप होता है।

बुशेरोन कंपनी के लिए डिजाइनर मार्क न्यूसन द्वारा डिजाईन किये गए २००० हीरों और और नीलम जड़े इस हार को बनाने में १५०० घंटे लगे। संभवतः ये बुशेरोन कंपनी द्बारा बनाया गया अब तक का सबसे महंगा नेकलेस है।

~Abhishek Ojha~

*जूलिया पुरूष गणितज्ञ थे।

साभार यहाँ और यहाँ से।

Tuesday, June 30, 2009

टोपोलोजी और फक्का !

पहले परिचय फक्का से. वाक्य प्रयोग के हिसाब से फक्का या तो खाने की चीज होती है या लगने वाली. पर वास्तव में कम से कम खाने की तो नहीं होती ! हमारे कॉलेज में ग्रेडिंग होती है और 'ए' से 'एफ' तक (‘इ’ छोड़कर) ग्रेड मिलते हैं. कॉलेज शब्दावली में इन्हें क्रमशः इक्का, बिक्का, सिक्का, डिक्का और फक्का कहा जाता है. अब तो आप समझ ही गए होंगे फक्का मतलब न्यूनतम ग्रेड अर्थात फेल ! तो ये शब्द खूब इस्तेमाल होता था. वैसे फक्का शब्द का मूल शब्द 'एफ' ग्रेड है या ‘चार अक्षरीय एफ शब्द’ कई चर्चाओं के बाद भी ये अब तक अनजान ही है. विद्वानों में इस पर मतभेद है और जब तक कोई भाषाविज्ञानी इस पर काम नहीं करता हम ये मानते हैं कि फिलहाल दोनों ही संभव है. :)

अब बात टोपोलोजी की. टोपोलोजी गणित की एक मुख्य शाखा है. वैसे नाम सुनकर तो यही लगता है कि कुछ ऐसा गणित होता होगा जिसमें टोपने की कला सिखाई जाती होगी ! टोपने के फोर्मुले ! (अब टोपना क्या होता है ये नहीं पता तो किसी भी कनपुरिये से पूछ लीजिये. मुझे पूरा यकीन है कि से शब्द कैम्पस के बाहर से आया होगा). पर जब पता चला कि टोपोलोजी निर्विवाद रूप से सबसे ज्यादा फक्के लगाने (खिलाने) वाला कोर्स होता है तो लगा कि टोपोलोजी शायद इसलिए कहते होंगे क्योंकि इसमें टोप के भी कोई पास नहीं हो पाता. अक्सर परीक्षा के पहले ये बात उठती… ‘टोपोगे तो किसका?’ एक आध जिनको समझ में आता वो टोपा-टापी से दूर ही रहने वाले विजातीय लोग हुआ करते थे. और हर बार दो तिहाई क्लास फक्का खा जाती. तो गणित नहीं हॉरर हुआ करता था. और भय फर्स्ट इयर से ही चालु हो जाता. अब मध्यकालीन भारत में नादिरशाह आया होगा... तब फ़ोन तो नहीं था फिर भी २-४ गाँव तक आतंक की खबर तो पहुचती ही होगी. वैसे ही भरपूर आतंक हुआ करता टोपोलोजी का भी.

कुल मिला के टोपोलोजी का आतंक और फक्को से बड़ा गहरा नाता रहा है. वैसे अजीब विषय है जिनके नंबर आते हैं उनके पूरे आते हैं और बाकी खाता ही नहीं खोल पाते खोलते भी हैं तो ५-१० से आगे नहीं बढ़ पाते. बीच के नंबर लाने वाले बिरले ही होते हैं. पूरी तरह से से अब्सट्रैक्ट गणित होता है जिनको समझ में आये तो एकदम ही. ना आये तो फिर... !

वैसे एक बार इलाहबाद में स्थित एचआरआई में एक कांफ्रेंस में एक हमउम्र विद्यार्थी से मुलाकात हुई तो उसने बताया 'इस साल तो टोपोलोजी जैसे कुछ स्कोरिंग पेपर थे तो अच्छे नंबर आ गए !' हम तो उसे बड़ी इज्जत कि नजरों से देखे. क्या तेज लड़का है ! फिर उसने बताया '२०-२५ सवाल रट लेने होते हैं और हर साल वही तो आता है पेपर में !'. इससे हमारी उच्च शिक्षा के स्तर का पता चलता है, कितनी मददगार है न !. खैर हमें तो बहुत दुःख हुआ... काश ! हम भी वैसे पास हुए होते. कहाँ हमारे क्लास के रणबांकुरे चौथी बार में पास हुए थे. खैर आपको बता देता हूँ भले किसी लड़की से उसकी उम्र १० बार पूछियेगा किसी आईआईटी कानपुर/दिल्ली में पढ़े इंसान से टोपोलोजी का ग्रेड और कितनी बार में पास हुआ ये मत पूछियेगा. मैं बस इतना बताये दे रहा हूँ कि एक बार में ही पास हो गया था अब ग्रेड तो नहिये बताऊंगा चाहे कुछ भी हो जाए :)

हाँ तो अब मन किया... थोडा आपको बता दिया जाय कि ये चीज क्या होती है ! गणित की इस शाखा और इससे जुड़े कुछ गणितज्ञों के बारे में अगली कुछ कड़ियों में. वैसे एक बात है अगर कोई अच्छा पढाने वाला हो और टोपोलोजी को फील करने वाला इंसान तो फिर ये आनंद की प्राप्ति करने वाला होता है. वैसे मुझे कभी फीलिंग नहीं आ पायी पर कुछ बातें बड़ी रोचक लगी और इससे जुड़े कुछ लोग तो... !

घबराइये नहीं रोचक कहानिया, किस्से और इतिहास ही होगा और आप सब को इक्का तो मिलेगा ही.

~Abhishek Ojha~

Tuesday, June 23, 2009

ब्लॉग्गिंग के खतरे: भाग ५

पिछली पोस्ट से जारी...

कुछ ब्लॉग व्यवसायिक होते हैं, जैसे कम्पनियों के ब्लॉग. उनके लिए अक्सर ये ब्लॉग समस्या कड़ी कर देते हैं. कानूनी अडचनों के अलावा अक्सर आन्तरिक खबर और व्यवसाय की गोपनीयता/रणनीति सार्वजनिक हो जाती है. अगर ऐसी ब्लॉग्गिंग आपका पेशा है तो भाई ये सब तो आप को पता ही होगा ! अगर नहीं है तो हम आपको फोकट में क्यों बताएं :) यहाँ तो हम जैसे टाइम पास ब्लोगरों के लिए बकबक की जा रही है.

तो हम जैसे लोग आप इस बात का ध्यान रखिये... अगर बॉस की बुराई करनी हो, उससे कुछ विवाद चल रहा हो, कुछ आपसी मतभेद या शिकायतें हैं तो उन्हें ब्लॉग से दूर ही रखो तो बेहतर है. नौकरी का खतरा तो वैसे पिछली पोस्ट में आ ही गया था. अगर ज्यादा व्यक्तिगत बातें तलाक करवा दें तो आर्श्चय नहीं ! अरे जब खर्राटे लेने तक से तलाक हो सकता है तो ब्लॉग्गिंग की माया तो… ! हाँ एक बात फिर से कहना चाहूँगा. अगर आपको लगता है कि आपका ब्लॉग बहुत कम लोग पढ़ते हैं तो ये आपकी गलतफहमी है. भले ही बहुत कम लोग पढ़ते हैं पर आप जिसके बारे में लिख रहे हैं उसे तो पता चल ही जाएगा. भले ही वो बुरकीना फासो में रहता हो और उसने हिंदी का नाम भी नहीं सुना हो !

टिपण्णीयों और ब्लॉग पर दिखने वाले विज्ञापनों में अगर अश्लील सामग्री दिखने लगे तो... ? कुछ दिनों पहले रवि रतलामीजी ने इस पर एक पोस्ट लिखा था. और कल ही एक प्रतिष्ठित ब्लोगर के ब्लॉग पर लडकियां उपलब्ध करवाई जा रही थी. तो अब हम क्या कहें !  इसके साथ अगर कोई (स्पैम) टिपण्णी में वायरस या ऐसा ही अश्लील लिंक हो तो आप वहां तक चले ही जायेंगे. अगर वायरस जैसा कुछ हुआ तो क्या-क्या हो सकता है आप जानते ही हैं.

एक रोचक और खतरनाक खतरा है. मुंबई हमलों में खबर आई कि आतंकवादी भीतर बैठे ट्विट्टर पर अपडेट देख रहे हैं. वैसे अपने सजग और बुद्धिमान (?) टेलिविज़न चैनलों के होते हुए उन्हें ये करने की जरुरत पड़ी हो ऐसा लगता तो नहीं. फिर भी ये खतरा तो है ही. और हड़बड़ी में लोकप्रिय होने के लिए लोग धकाधक सनसनी खेज खबरें तो ठेलते ही हैं ! खासकर उन्हें जिन्हें ऐसी खबरें मिलती हैं उन्हें सावधानी तो बरतनी ही चाहिए.

इसके अलावा अगर आपने कुछ विवादस्पद [थोडा ज्यादा सच :)] लिख दिया और दंगे-वंगे हो जाएँ तो बड़ी बात नहीं होगी. इसीलिए शायद कहा जाता है सच और सच के सिवाय कुछ नहीं. ज्यादा और कम सच कुछ नहीं होता या तो सच होता है या झूठ. सच और झूठ बाइनरी है जी… बस ० या १ होता है बीच का नहीं. तो सच से ज्यादा या कम लिखने पर दंगे हो गए तो फिर अब इससे बड़ा खतरा क्या होगा? आप अपने को सच भी साबित नहीं कर पायेंगे जी !

इस पूरी श्रृंखला में छोटे-बड़े जो भी खतरे आये इनमे से ऐसा कोई नहीं जिसे लेकर ब्लॉग्गिंग बंद कर दी जाए. सभी से सावधानी बरतने का संकेत जरूर मिलता है.

और फिर अंत में गोल-गोल घुमने के बाद फिर वही बात जहाँ से चालु हुई थी. ये कोई खतरों की एक्सटेंसिव सूची नहीं है. और असली खतरें तो वो होते हैं जो कोई सोच/देख/गिना नहीं सकता. असली अप्रत्याशित खतरे तो ऐसे होते हैं: 'न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्योलोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव'. नसीम तालेब के ब्लैक स्वान की तरह जब तक कोई काला हंस ना दिख जाए सब यही मान के चलते हैं कि हंस तो बस श्वेत ही होता है ! वैसे ही जब तक पहली बार कोई अप्रत्याशित घटना नहीं हो जाती हमें सब सुरक्षित ही लगता है. वो खतरा ही क्या जिसके बारे में पहले से जानकारी (भ्रम!) हो.

(समाप्त)

~Abhishek Ojha~

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इन खतरों के बीच में गणित खो गया था. गणित की वापसी अगली पोस्ट से...

Thursday, June 4, 2009

ब्लॉग्गिंग के खतरे: भाग ४

पिछली पोस्ट से जारी...

एक गंभीर खतरा है नौकरी जाने का ! अब आप सरकारी नौकरी वाले हैं और वो भी ऐसी मलाई वाली जिसमें कुछ भी करो माफ़ है तब तो ठीक है. वर्ना जरा संभल के. नहीं तो पता चला मंदी से बच गए और ब्लॉग्गिंग ले डूबा ! वैसे ही ब्लॉग्गिंग, ट्विट्टर और फेसबुक ने बहुत लोगों की नौकरी ली है. आप असावधान हुए तो आपको भी ले डूबेंगे उनकी तो अब आदत हो चली है :)

संभवतः यह ब्लॉग्गिंग का सबसे बड़ा खतरा है. हाल ही में किसी ने फेसबुक स्टेटस लगाया कि वो नयी कंपनी ज्वाइन कर रहा है. उसी मेसेज के थ्रेड में किसी के सवाल के उत्तर में उसने लिखा कि ‘काम किसे करना है. हमें तो अनुभव है काम नहीं करने का :)’. बस… नयी कंपनी के किसी अधिकारी ने उसे पढ़ लिया और फिर न इधर के हुए न उधर के. ऐसे ही कोई बीमारी का बहाना बनाकर छुट्टी पर गया और फेसबुक ने नौकरी ले ली.

ये तो ठीक… कई बार जोश में आकर लोग टविट्टरिया/ब्लोगिया देते हैं: 'हमारे ऑफिस में फलां बात की मीटिंग चल रही है' और इसी सिलसिले में कोई गोपनीय बात निकल जाती है. और फिर नतीजा: गुलाबी रशीद थमा दी जाती है. हाल के दिनों में ऐसे खूब मामले हुए हैं. इनकी कोई गिनती तो नहीं है और बीच-बीच में ऐसी खबरें आती रहती हैं. वैसे ये खतरा नया भी नहीं है. किसी महाशय ने तो २००४ में ही ऐसे लोगों की सूची बनानी चालु की थी जो ब्लॉग्गिंग में नौकरी गवां चुके थे. एक हालिया नमूना :cisco_twitter1

cisco_twitter तो अगर आप ऑफिस से ब्लॉग्गिंग करते हैं ऑफिस से जुडी बातों को ब्लॉग पर डालते हैं तो फिर तो... ! मजाक लग रहा हो तो तो लो पढो ये सारे लिंक. हाथ कंगन को आरसी क्या?

CNN Producer Says He Was Fired for Blogging

Beware if your blog is related to work

'Ill' worker fired over Facebook

बढ़ते हैं अगले खतरे की तरफ… किशोरों के लिए ब्लॉग्गिंग के संभावित खतरों में एक की तरफ इंगित करता न्यू हैम्पसायर विश्वविद्यालय के क्राइम्स अगेंस्ट चिल्ड्रेन रिसर्च सेण्टर का यह शोध पत्र है कि क्या ब्लॉग्गिंग किशोरों के ऑनलाइन यौन उत्पीडन का खतरा पैदा कर सकता है? इस शोध के पृष्ट २८९-२९१ पर नतीजो को आप पढ़ सकते हैं. इसे पढ़ कर तो यह जरूरी लगता है कि अवयस्क ब्लोगरों को उचित मार्गदर्शन मिले.

आज की पोस्ट में पढने को बहुत सारे लिंक है इसलिए यहीं विराम लगाते हैं. वैसे कहीं ये मेरी गलतफहमी तो नहीं कि आप लिंक्स पर जाकर पढेंगे ? :)

~Abhishek Ojha~

जारी रहेगा…

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चित्र साभार: http://blog.adamnash.com/2009/03/22/ask-not-for-whom-the-bell-tweets/

Thursday, May 28, 2009

शत प्रतिशत से अधिक संभावना और प्रॉबेबिलिटी

पिछली पोस्ट पर कमेन्ट:

 ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey said... इस लेख से हण्डरेड परसेण्ट से ज्यादा सहमत हैं हम।
वैसे शत प्रतिशत से अधिक की संम्भावना प्रॉबेबिलिटी में कैसे व्यक्त होती है?!

पहले तो इस टिपण्णी को बस पढ़ लेता हूँ, पहली लाइन पढ़ कर प्रसन्न: बिलकुल सही कह रहे हैं आप... ऐसे ही डेढ़ सौ, दो सौ परसेंट की सहमती जताते रहिये. हमारी किस्मत ! या पोस्ट की सफलता या फिर दोनों का मेल... जो भी हो पर यकीनन रूप से सौ प्रतिशत से अधिक सहमति हो सकती है. अगर विचार मिले तो होने ही चाहिए. ऐसी टिपण्णी के लिए ज्ञान भैया को कोटिशः धन्यवाद ।

अब अगली लाइन: 'शत प्रतिशत से अधिक की संम्भावना प्रॉबेबिलिटी में कैसे व्यक्त होती है?!' अब प्रॉबेबिलिटी को याद करके इस सवाल का जवाब देने का मन नहीं हुआ. अब सीधी सी बात है... प्रसन्नता को कम करने वाले सिद्धांत की काहे व्याख्या की जाय ! अरे मैं तो कहता हूँ… गणित के ऐसे सिद्धांतों को दरकिनार किया जा सकता है जो मानवीय आनंद पर सवाल खड़े करें ! :)

खैर अब सवाल उठा है तो सोचना तो पड़ेगा ही... दरअसल बात ऐसी है कि १०० प्रतिशत से अधिक प्रॉबेबिलिटी जैसी कोई चीज ही नहीं होती.

प्रॉबेबिलिटी या प्रायिकता में पहली ही मान्यता होती है: असंभव के लिए ० और निश्चित के लिए १ प्रॉबेबिलिटी. अब ऋणात्मक या १ से ज्यादा प्रॉबेबिलिटी जैसी कोई चीज ही नहीं होती.

- ऋणात्मक प्रॉबेबिलिटी का मतलब हुआ असंभव से भी असंभव !

- १ से ज्यादा प्रॉबेबिलिटी का मतलब निश्चित से भी ज्यादा निश्चित !

गणित की नजर में ये दोनों ही विरोधाभास हैं.

जैसे आज बारिश होने की सम्भावना ० है मतलब आज बारिश होना असंभव है. अब कोई कहता है कि कल बारिश होने की सम्भावना ० से भी कम है. (बोलचाल की भाषा में हम कह सकते हैं इसका मतलब ये है कि कल बारिश होने की सम्भावना आज से कम है.) पर गणित ये नहीं मानता अगर कल बारिश होने की संभावना आज से कम है तो आज बारिश होने की सम्भावना ० हो ही नहीं सकती ! क्योंकि असंभव से कठिन भला क्या हो सकता है?! पूर्ण से अधिक पूर्ण भला क्या हो सकता है और शून्य से अधिक शून्य !  फिर विरोधाभास आ जाएगा. ठीक वैसे ही १०० प्रतिशत से अधिक या १ से अधिक प्रॉबेबिलिटी से भी विरोधाभास हो जाएगा. कहने का मतलब ये कि प्रॉबेबिलिटी हमेशा ० से १ के बीच में ही होगी. वैसे प्रॉबेबिलिटी में सबसे पहले घटना परिभाषित की जाती है जिसकी प्रॉबेबिलिटी निकालनी है. भौतिकी (या विज्ञान की अन्य शाखाओं में) में अगर किसी घटना की प्रॉबेबिलिटी १ से ज्यादा आ जाती है. तो इसका मतलब होता है कि सिद्धांत मान्य नहीं रह जाता. जैसे स्कैटरिंग (हिंदी में क्या कहेंगे?) में, अगर किसी बीम के १०० कणों के स्कैटर होने की प्रॉबेबिलिटी १ से ज्यादा आ जाती है तो इसका मतलब होता है: ये सिद्धांत ही गलत है. कुछ तो गड़बड़ है क्योंकि इसका मतलब ये हो जाता है कि बीम में जितने कण थे उससे ज्यादा स्कैटर हो जायेंगे ! इसे ऐकिकता के नियम का उल्लंघन कहा जाता है.

जो भी हो आप हमारे पोस्ट और विचार से हजारों-लाखो प्रतिशत सहमत हो सकते हैं. हर जगह सिद्धांत नहीं लगाए जाते. वैसे भी जहाँ दिल की बात हो दिमाग की क्या जरुरत ? :)

आइंस्टाइन बाबा भी कह गए: ‘How on earth are you ever going to explain in terms of chemistry and physics so important a biological phenomenon as first love?’  वो गणित कहना भूल गए लेकिन वैसे भी बिना गणित केमिस्ट्री भले दो कदम चल ले फिजिक्स तो हिल नहीं पायेगा. तो प्यार की ही तरह बाकी मानवीय भावनाओं के लिए भी विज्ञान के सिद्धांतो की जरुरत नहीं !

~Abhishek Ojha~

नोट: खतरों वाली श्रृंखला जारी रहेगी.

Monday, May 11, 2009

ब्लॉग्गिंग के खतरे: भाग ३

पिछली पोस्ट से जारी...

अगला खतरा है आपकी व्यक्तिगत बातों का सार्वजनिक होना. आप कहेंगे वो कैसे? अरे मैं ऐसे लोगो को जानता हूँ जो अपनी डायरी किसी को नहीं दिखाते पर वही डायरी ब्लॉग पर पोस्ट कर देते हैं ! है तो बहुत ही अजीब… पर ऐसा होता है. मेरे एक मित्र हैं उनसे कहो ‘दिखाओ क्या लिख रहे हो?’ तो छुपा लेते हैं. मैंने कहा ‘आखिर डालोगे तो ब्लॉग पर ही’ तो कहने लगे ‘हाँ तब पढ़ लेना.’

उदहारण के रूप में एक सच्ची घटना बताता हूँ आपको. हमारी एक मित्र ने अपने बॉयफ्रेंड को ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित किया और अपने सारे दोस्तों को उसके ब्लॉग पर टिपियाने के लिए. बस फिर क्या था... हो गया बंटाधार. वो बेचारा पता नहीं अपना पहला-दूसरा प्यार लिखता रहा और... हाँ अगर आप अपने रिश्तों में पूरी तरह ईमानदार हैं तो ये नौबत तो नहीं आएगी पर ऐसी ही कोई और नौबत किसी और परिपेक्ष्य में आ सकती है. जैसे आप अपने किसी रिश्तेदार की दुविधा या फिर पारिवारिक बात लिख देते हैं तो कई तरह की गलतफहमी हो सकती है. तो बेहतर है सावधानी बरती जाय. ‘ज्यादा’ व्यक्तिगत बातें ब्लॉग से दूर ही रहे तो बेहतर है. वर्ना ये नशा है... 'दारु पिलाकर उगलवा लिया' की जगह कुछ दिनों में लोग शायद ये न कहने लगें 'ब्लॉग लिखवाकर उगलवा लिया'

मेरी नजर में एक महत्वपूर्ण खतरा है लीगल रिस्क या कानूनी खतरे. इसमें सबसे बड़ा मामला कॉपीराइट का हो सकता है. या फिर अगर आपने किसी सरखा हत्त के खिलाफ कुछ लिख दिया और आपको कोर्ट नोटिस आ जाए तो फिर तीसरा खम्बा के अलावा और कोई ब्लॉग साथ नहीं दे पायेगा :-) जाने कितने ही ब्लोगरों को कानूनी धमकियां मिल चुकी हैं और कईयों के खिलाफ कार्यवाही भी हो चुकी है. अगर भरोसा नहीं तो इस विषय पर एक बहुत अच्छा लेख आप यहाँ पढ़ सकते हैं. तो अपने अधिकार जानिए और बिंदास ब्लॉग्गिंग कीजिये लेकिन कौन सी वैधानिक सीमाएं है उसे जानना जरूरी है. इस बारे में कोई शंका हो तो तीसरा खम्बा पर सवाल भेजिए.

एक और छोटा खतरा है आपके स्वास्थ्य का. अगर अतिशय ब्लॉग्गिंग करने लगे तो फिर देर रात तक जागना, कम नींद और बेचैनी घेर सकती है. सोने और टहलने की बजाय अगर आप कंप्यूटर के सामने बैठे हैं और रिफ्रेश करके टिपण्णी का इंतज़ार… तो समझ लीजिये ये खतरा आप पर मडरा रहा है. मेरी बात पर भरोसा नहीं तो आप किसी पीठ और गर्दन की दर्द वाले डॉक्टर से जाकर पूछ लीजिये की कितने प्रतिशत लोग कंप्यूटर पर काम करने की वजह से परेशान हैं?

छोटे रिस्क में एक और है... असामाजिकता. आप कहेंगे ब्लॉग्गिंग से सोशल नेट्वर्किंग होती है. हाँ वो तो सही है... पर ऐसा भी होता है: दिल्ली, कलकत्ता और लन्दन, न्युयोर्क में बैठे लोगों को पता होता है कि आज मुंबई की ब्लोगर मैडम एक्स के घर क्या बना है. लेकिन पड़ोसियों को नहीं पता होता ! और तो और कई बार पड़ोस में कौन रहता है ये भी नहीं पता होता. अभिषेक ओझा १७ दिन की छुट्टी गए ये मालूम है लेकिन पड़ोस के रमेशजी बीमार हैं उसकी खबर नहीं. ऑफिस का बाबु २० दिन से नहीं आया उसकी फिकर नहीं है ! तो अगर आप इतने ज्यादा सोशल नेट्वर्किंग कर रहे हैं तो छोटी-छोटी बातों को मत भूलिए... छोटी-छोटी बातों में भी जिंदगी का मजा है.

अगली पोस्ट में जारी...

~Abhishek Ojha~

Monday, May 4, 2009

ब्लॉग्गिंग के खतरे: भाग २

(ये एक आम ब्लॉगर का नजरिया है, हो सकता है ये सब पर लागू न हो. ब्लॉग्गिंग के जो भी खतरे मैं लिस्ट कर रहा हूँ वो आम ब्लॉगर की हैसियत से ‘विद्वानों’ का मत इससे भिन्न हो सकता है. मेरे व्यक्तिगत विचारों से किसी का भी सहमत-असहमत होना लाजिमी है.)

शुरुआत छोटे खतरों से. ये इतनी आम बात है कि हम इसे खतरा मानते ही नहीं. फिर भी आप अगर एक आम इंसान हैं तो आपको इससे समस्या हो सकती है. ये है अनचाहे विवाद !

विवाद से मेरा मतलब तार्किक संवाद या बहस नहीं है वो तो ब्लोगिंग का फायदा होगा. लेकिन यहाँ बात है वैसे विवाद की जिसमें लोग पढ़ते कुछ हैं (कई बार पढ़ते भी नहीं हैं !) सोचते कुछ हैं और फिर टिपण्णी कुछ और ही कर जाते हैं. कई बार इन विवादों का असली पोस्ट से कोई लेना देना नहीं होता है. ये खतरा ब्लॉग्गिंग के साथ-साथ टिपण्णी करने में भी है. कई बार सकारात्मक बहस के लिए की गयी टिपण्णी भी विवाद का रूप ले लेती है. समस्या ये है की ब्लॉगर एक बार जो पोस्ट कर देते है, अपनी कही गयी बातों से पीछे हटने को तैयार नहीं होते. चाहे वो सही हो या गलत. वैसे अगर अपनी गलती लोग मानने लगे तो ब्लॉग क्या वास्तविक जिंदगी के भी कई सारे विवाद ऐसे ही निपट जायेंगे ! व्यक्तिगत रूप से मैं कई ऐसे ब्लॉग पर टिपण्णी नहीं करता जो एकतरफा लिखते हैं. उनकी बातें गलत नहीं होती पर वो अक्सर सिक्के का एक ही पहलु उजागर करती हैं. ऐसे कई पत्रकारों के ब्लॉग हैं जिन्हें पढ़कर हंसी आती है. टिपण्णी ना करना विवादों से बचने का एक तरीका हो सकता है. पर जरूरी नहीं की आप विवाद से बच जाएँ. वैसे भी खतरों को कम किया जा सकता है ख़त्म नहीं ! आप कितने भी सावधान रहे अगर हिंदी ब्लॉगर हैं तो आपको कभी भी विवादों में घसीटा जा सकता है.

अगले खतरे की तरफ बढ़ते हैं: पूरी तरह सार्वजनिक ! जी हाँ ब्लॉग में गोपनीयता जैसी कोई चीज नहीं होती. अगर आपको लगता है कि आप अपनी पोस्ट या ब्लॉग डिलीट करके कुछ छुपा सकते हैं तो आप गलत हैं. धनुष से निकला बाण वापस तो नहीं आ सकता लेकिन हो सकता है लक्ष्य ना भेद पाए और बेकार चला जाय, मुंह से निकली वाणी भी वापस तो नहीं ली जा सकती लेकिन तुरत या बाद में भी आप अपनी बात से पलटी मार सकते हैं. लेकिन ब्लॉग पर किया गया पोस्ट वापस नहीं लिया जा सकता. वो शाश्वत है ! अमर है ! गूगल कैशे में ये हमेशा हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाता है. इसके अलावा भी कुछ साइट्स हैं जहाँ आपका ब्लॉग किसी पुरानी तिथि पर कैसा था यह देखा जा सकता है. वो सब तो दूर की बात गूगल रीडर के पाठकों तक तो आसानी से चला ही जाता है! अगर आपको लगता है कि आपका ब्लॉग बहुत कम लोग पढ़ते हैं तो ये आपकी गलतफहमी है. और आपके पाठको की संख्या आपके अनुमान से कहीं ज्यादा है. तो ब्लॉग पर पब्लिश बटन दबाने से पहले सोचना बहुत जरूरी है ! क्योंकि एक बार कुछ गलती से भी गलत पोस्ट हुआ तो... बैंग ! आप तो गए काम से.

आज की पोस्ट का आखिरी खतरा: आपके द्बारा दी हुई जानकारी का दुरूपयोग ! अगर किसी लड़की ब्लॉगर ने प्रोफाइल में अपनी फोटो/ईमेल/फ़ोन नंबर डाल दिया तो फिर क्या होगा ये बताने की जरुरत है क्या? इसके अलावा आपने कभी सोचा है कि कहीं कोई ट्रैफिक पुलिस के हाथ पकडा गया और कहे कि मैं 'श्री/श्रीमती अ' पुलिस अफसर को जानता हूँ. कोई बिना टिकट ट्रेन में सफ़र करे और कहे कि मैं 'श्री/श्रीमती ग' रेलवे अफसर को जानता हूँ. कोई अपने पडोसी को ये कह कर धमकी दे कि मैं 'श्री/श्रीमती द' वकील को जानता हूँ और देख लूँगा तुम्हे !. और वास्तविक जीवन में वो सिर्फ 'अ' 'ग' और 'द' के ब्लॉग पढता है. २-४ ईमेल इधर-उधर हुए हों ये भी संभव है ! उस व्यक्ति का काम तो संभव है हो जाएगा. हो या ना हो दोनों स्थितियों में आपकी छवि तो धुंधली होगी ही. तो प्रोफाइल में कितनी और क्या जानकारी देनी है इसका ध्यान रखना भी जरूरी है. इस हिसाब से तो अनोनिमस ब्लॉग्गिंग ही बेहतर है !

अगली पोस्ट से इन बचकाने खतरों से थोडा आगे बढ़ेंगे और थोड़े बड़े खतरों से मिलेंगे !

~Abhishek Ojha~

Thursday, April 30, 2009

ब्लॉग्गिंग के खतरे !

हमारे धंधे में रिस्क या जोखिम उन चीजों में निकाला जाता है जहाँ लाभ और घाटा दोनों होता है. और दोनों में से कब कौन, कैसे और कितना हो जाएगा ये पता नहीं होता है. बिल्कुल जुए जैसी बात, और वो भी अपनी औकात से कई गुना कर्ज लेने की क्षमता के साथ जुआ खेलने वाली बात. अब युद्धिष्ठिर कर्ज ले लेकर जुआ खेल सकते तो क्या होता? कर्ज नहीं ले सकते थे तब तो क्या हाल हुआ ! खैर हमारे धंधे में लोग कहते हैं कि हम वही बता देंगे जो बताना संभव ही नहीं है. अरे क्या ख़ाक बताएँगे जब कृष्ण जैसे खतरा मैनेजर युद्धिष्ठिर को नहीं रोक पाए तो कोई और क्या खतरे बता पायेगा ! तो अगर मैं कहूं की ब्लॉग्गिंग में बस ये ही खतरे हैं और इसके अलावा कुछ नहीं हो सकता तो ये एक शुद्ध झूठ के अलावा और कुछ नहीं होगा. *

विश्वयुद्ध हो या ९/११ या नागासाकी/हिरोशिमा... किसीने पहले नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है ! खतरे जब एक बार आ जाते हैं तब हम उनके बारे में सोचना चालु करते हैं. तब हम इस बात का ध्यान रखने लगते हैं कि कोई हवाई जहाज किसी बिल्डिंग में ना घुसे पर अब क्यों कोई जहाज बिल्डिंग में घुसने लगा... अब तो कुछ और होगा ! कुछ भी... जो हम नहीं जानते ! अगर जान ही लेंगे तो फिर वो खतरा कहाँ रह पायेगा.

अब स्वाइन फ्लू ही देख लो, कभी किसी ने सोचा था क्या? सूअर तो ससुरे तब भी साँस लेते थे ! डॉट कॉम बबल में स्टॉक मार्केट डूब गए तो लोग देखने लगे की अगर फिर से डॉट कॉम बबल हुआ तो क्या होगा. अरे अब फिर से क्यों होगा वही? अब एक बार हाथ जल गया तो कोई वैसे ही आग में हाथ नहीं डालेगा. हाँ अब इंसान आग से तो सावधान हो जाता है पर पानी में डूब कर मर जाता है... बच जाता है तो अगली बार आग और पानी से बचता रहता है, फिर किसी और चीज से खतरा होता है ! उसी तरह पहले हो चुकी घटनाओं के चक्कर में लोग पड़े रहे और कर्ज लेकर जुआ खेलते रहे. और बन गया हाऊसिंग बबल और आ गया रिसेसन. अब आगे से इसका भी ध्यान रखा जाएगा और फिर कोंई नया बबल आएगा.

तो कुल मिला के मेरा कहना ये है कि मैं जो खतरे गिना रहा हूँ ये सब वैसे है जो हम देख सकते हैं ! पर असली खतरे तो वो होते हैं जो हम सोच भी नहीं सकते. और ऐसे ही खतरे ज्यादा खतरनाक होते हैं क्योंकि उनके लिए हम बिल्कुल तैयार नहीं होते. खैर जिस धंधे का खाना होता है उसको ज्यादा गाली नहीं देना चाहिए :-) और वैसे भी यहाँ बात ब्लॉग्गिंग की होनी थी तो मुड़ते हैं ब्लॉग्गिंग कि तरफ.

ब्लॉग्गिंग का तो माजरा ही कुछ और है. यहाँ तो फायदा क्या है यही नहीं मालूम (हिंदी में ऐडसेंस से कमी करने वाले और प्रोफेसनल ब्लोग्गर नहीं के बराबर है !).  वैसे ब्लॉग्गिंग कोई क्यों करता है इसे एक बार मैंने मासलो की जरूरतों के अनुक्रम (Maslow's hierarchy of needs) से जोड़ा तो था (वो भी कभी पोस्ट होगा).

बिन फायदे वाली चीज का खतरा निकलना हो तो मूल सिद्धांत (अगर फायदे बंद हो जाएँ तो क्या हो !) ही लागू नहीं होता. फिर भी बड़े खतरे हैं जी इस ब्लॉग्गिंग के. आज भूमिका ही लम्बी हो गयी.

दो-चार दिन में खतरे लेकर मैं आता हूँ :-)

~Abhishek Ojha~

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*ये ब्लॉग्गिंग में रिस्क वाली श्रृंखला का पूरा श्रेय जाता है माननीय रवि रतलामीजी को और उनकी इस टिपण्णी को (वैसे आपको पसंद ना आये और गलतियाँ-वलतियाँ हो तो उसका सारा श्रेय मेरा)

उन्होंने कहा था: ‘ध्यान रखिएगा, कोई रिस्क छूटने न पाए.’ तो सरजी आज की पोस्ट से ये बात तो साफ़ हो ही गयी होगी कि कितने रिस्क कोई गिना सकता है और कितने छुट जायेंगे :-)

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Thursday, February 19, 2009

ओसामा बिन लादेन: मैं देखउँ तुम्ह नाहीं !

कल ये ख़बर पढ़ी तो तुलसी बाबा की ये चौपाई दिमाग में आई:

मैं देखउँ तुम्ह नाहीं गीधहि दृष्टि अपार । बूढ़ भयउँ न त करतेउँ कछुक सहाय तुम्हार ॥

सीआईए और ऍफ़बीआई ओसामा बिन लादेन को ढूंढ़ के थक गई, और इन भूगोल के प्रोफेसरों ने झट से बता दिया की ओसामा कहाँ है ! वैसे ये चौपाई तो बिल्कुल सटीक बैठती है इस मामले पर. प्रोफेसरों ने कह दिया: 'भाई आप तो नहीं देख सकते पर हमारे शोध की दृष्टि अपार है, हमने तो बता दिया ओसामा कहाँ है. हम तो प्रोफेसर बन गए नहीं तो आपकी कुछ और मदद करते'. अब रामायण में संपाति भी कोई ऐसे भौगोलिक गणितीय मॉडल लगाए होंगे तो अपने को नहीं पता. ये बात क्लियर करना तुलसी बाबा भूल गए और सीधे लिख गए 'गीधहि दृष्टि अपार' अब गीध->गिद्ध .... ->शोध तक जा पाता है या नहीं ये तो अजितजी ही बता सकते हैं. खैर जहाँ तक सीआईए के थकने की बात है तो जब तक सीआईए थक नहीं जाती तब तक ये प्रोफेसर बताने वाले भी नहीं थे. आख़िर प्रोफेसर हैं भाई... प्रोफ़ेसर तो काम ही तब करते हैं जब सब कुछ ख़त्म हो जाता है !

अब वित्त में ही देख लीजिये मंदी आ जाने तक अर्थशास्त्री कुछ नहीं कहते. वास्तव में तो अक्सर नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्रियों के शोध का पालन करने पर ही तो घोर मंदी आती है. लेकिन मजे की बात ये है कि एक बार घोर मंदी आ जाय तो बस यह बात साबित करने के लिए ही कि मंदी आ गयी है ये सैकड़ों शोध छाप डालते हैं. और उसके बाद तो मंदी के हजारों कारण और उपाय पर छपने वाले सहस्त्रों शोधों में से ही किसी न किसी को नोबेल मिलना तय हो जाता है. मुझे तो आश्चर्य हुआ कि ओसामा को पकड़े जाने के पहले ही ऐसा शोध आ कैसे गया ! अब समय से पहले आ गया है तो काम का शायद ही होगा :-)*

लॉस अन्जेलिस स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गिलेस्पी साहब की टीम ने जीव-जंतुओं के एक से दुसरे जगह जाने की प्रक्रिया के हिसाब से गणितीय मॉडल बनाए और फिर ओसामा बिन लादेन की मूलभूत जरूरतों और उसकी पिछली रहने की ज्ञात जगह को आधार बनाकर ये निष्कर्ष निकाला की ओसामा अभी कहाँ हो सकता है. भविष्य में मॉडल को खुफिया एजेंसियों से प्राप्त सूचना के आधार पर परिष्कृत भी किया जा सकेगा. इस शोध से पता लगा कि पाकिस्तान के पाराचिनार में ओसामा के होने की सम्भावना बनती है. और जब ओसामा के कद की लम्बाई, उसके रहने के आस-पास छुपने की जगह होनी चाहिए, कुछ सुविधायें जैसे बिजली और एक से ज्यादा घर भी होने चाहिए जैसे कारकों को ध्यान में रखा गया तो अंततः उपग्रह से प्राप्त चित्र में तीन घर ऐसे दिखे जिनमें ओसामा के होने की संभावना ज्यादा लगती है.

इस पुरे शोध में इस्तेमाल हुए कुछ सिद्धांत इस प्रकार हैं:

- दुरी क्षय सिद्धांत (Distance Decay Theory) के अनुसार अगर किस जीव के रहने की एक ज्ञात जगह से चला जाय तो उस जीव के पाये जाने की सम्भावना (प्रायिकता) दूरी के साथ कम होती जाती है और उस प्रजाति के जीवो की संख्या चरघातांकीय (Exponential) गति से कम होती जाती है.

- द्वीप जैविकभूगोल (Theory of Island Biogeography) का सिद्धांत कहता है: छोटे और पृथक द्वीपों की तुलना में बड़े और पास के द्वीपों में प्रवास की दर और जीवों का पोषण निम्न विलोपन दर (lower extinction rate) के साथ होता है.

- इनके अलावा ओसामा के जीवन से सम्बंधित कई बातें भी इस्तेमाल की गई जैसे उसकी लम्बाई, वह एकांत पसंद करता है, उसे डायलिसिस के लिए बिजली की जरुरत होती है इत्यादि.

शोध के अनुसार ओसामा जहाँ पहले देखा गया था उससे मिलती-जुलती (प्राकृतिक और सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनितिक) जगह पर ही होगा. क्योंकि अगर वह ‘ज्यादा सेकुलर पाकिस्तानी हिस्से’ की तरफ़ या भारत की तरफ़ बढ़ता है तो उत्तरोतर सांस्कृतिक परिवर्तन होते रहने के कारण उसके पकड़ लिए जाने या मार दिए जाने की संभावना बढ़ जाती है. इसी प्रकार लादेन के किसी बड़े कस्बे में होने की सम्भावना ज्यादा है जहाँ मानव जाति का विलोपन दर कम हो ! और इन सबके साथ उसकी मूलभूत सरंचना और जरूरतों को मिला दिया जाय तो उसके रहने का ठिकाना ढूँढना आसन हो जाता है.

एम्आईटी इंटरनेशनल रिव्यू में छपे पुरे शोध के लिए यहाँ जाएँ. इसी शोधपत्र से ली गई कुछ तस्वीरें:

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और ये हैं वो तीन जगहें जहाँ ओसामा के होने की सम्भावना है: उनकी भौगोलिक स्थिति क्रमशः N 33.901944° E 70.093746°, N 33.911694° E 70.0959° और N 33.888207° E 70.113308° है. तो फिर हमने बता दिया आप निकल लीजिये. अभी भी मौका है और ५ करोड़ डॉलर का इनाम है, बाद में मत कहियेगा कि मैंने बताया ही नहीं :-)

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--- कई बार ओसामा टाइप करते हुए ओबामा टाइप हो गया. एक 'एस' की जगह 'बी' हो जाने से कई बार बिलांडर होते-होते रह गया ! मुझे नींद आ रही है मैं चला सोने… आप कीजिये पैकिंग. और अगर आपको ५ करोड़ डॉलर मिल गए तो मेरे हिस्से का देने मत भूलियेगा !---

~Abhishek Ojha~

*[मैं प्रोफेसर समाज का मजाक नहीं उड़ा रहा. पीएचडी करने का तो अपना मन कुलबुलाता रहता है पर आजकल ऐसे कई कारण इस विचार से दूर कर रहे हैं. खैर वित्त में तो ऐसा ही होता है... हर बड़े मार्केट क्रैश के बाद सबसे ज्यादा शोध होता है].



महीनों बाद अपडेट: अंतत ओसामा इसी परिधि में मिला. और जो महीनों पहले मैंने टाइप करने की बात की वो गलती फोक्स न्यूज़ के साथ-साथ कई औरों ने भी किया :)

Thursday, January 8, 2009

कौन सा पेशा सबसे अच्छा ?

पेशे तो सभी अच्छे होते हैं, उसमें क्या अच्छा क्या बुरा !
लेकिन एक बात तो है कुछ दिनों के बाद सबको अपना छोड़ दुसरे का ही पेशा अच्छा लगने लगता है। खैर वो तो अपनी-अपनी सोच है... ।

अमेरिका में तो हर बात का सर्वे होता है और हर चीज की रैंकिंग। वैसे एक्चुएरी का प्रोफेशन तो हमेशा से ही सबसे ज्यादा वेतन वाले पेशे में ऊपर रहता आया है। लेकिन ये रैंकिंग केवल वेतन की नहीं है ये सबसे अच्छे (और बुरे) पेशे की है। इस सर्वे में वेतन के अलावा काम का दबाव, परिवेश तथा रोजगार से जुड़े अन्य पहलुओं को ध्यान में रखा गया।

तो सबसे अच्छा कौन?
अरे साफ़ बात है इस ब्लॉग पर है तो क्या होगा? गणित !
आप कहेंगे 'व्हाट? ये भी कोई पेशा है?
अब पेशा नहीं है तो मैं इतना क्यों लट्टू हूँ भाई इस पर, बिना पैसे के भला आजकल कुछ होता है आजकल ! खैर गणित तो सर्वव्यापक है, पेशा तो बस उसकी माया का एक रूप है :-)

ये ख़बर पढ़ी तो सोचा कि आप को भी बता दूँ... (इसी बहाने ठूंठ हो रहे इस ब्लॉग के लिए एक पोस्ट भी मिल गई) अब तो गणित को गंभीरता से लीजिये भाई। सबसे अच्छे पेशों की सूची में शुरू के तीन स्थानों पर तो गणित ही है।

यहाँ दुसरे नंबर पर जो 'एक्चुएरी' है वो क्या होता है?... ये वो गणितज्ञ लोग होते हैं जो मूलतः बीमा और वित्त से जुड़ी कंपनियों के लिए काम करते हैं। पॉलिसी बनाना, प्रीमियम तय करना, रिस्क निकलना... और हाँ ये गणित की ही एक शाखा होती है... एक्चुएरी प्रोफेशन के लिए होने वाली परीक्षाओं/पाठ्यक्रमों में ९०% से ज्यादा गणित ही होता है, सांख्यिकी और नंबरों का खेल होता है बस। अगर आपको एक्चुएरी के गणितज्ञ होने पर शक है तो ये लीजिये एक अधिकारिक परिभाषा: "Mathematician who compiles and uses statistics mainly for insurance and finance purposes."

एक्चुएरी और सांख्यिकी पर कभी भविष्य में पोस्ट आएगी। अभी इस सर्वे का डिटेल आप वाल स्ट्रीट जर्नल पर जाकर देख सकते हैं या फिर सर्वे कराने वाली कंपनी पर ही.

~Abhishek Ojha~

साभार: वाल स्ट्रीट जर्नल.