(ये एक आम ब्लॉगर का नजरिया है, हो सकता है ये सब पर लागू न हो. ब्लॉग्गिंग के जो भी खतरे मैं लिस्ट कर रहा हूँ वो आम ब्लॉगर की हैसियत से ‘विद्वानों’ का मत इससे भिन्न हो सकता है. मेरे व्यक्तिगत विचारों से किसी का भी सहमत-असहमत होना लाजिमी है.)
शुरुआत छोटे खतरों से. ये इतनी आम बात है कि हम इसे खतरा मानते ही नहीं. फिर भी आप अगर एक आम इंसान हैं तो आपको इससे समस्या हो सकती है. ये है अनचाहे विवाद !
विवाद से मेरा मतलब तार्किक संवाद या बहस नहीं है वो तो ब्लोगिंग का फायदा होगा. लेकिन यहाँ बात है वैसे विवाद की जिसमें लोग पढ़ते कुछ हैं (कई बार पढ़ते भी नहीं हैं !) सोचते कुछ हैं और फिर टिपण्णी कुछ और ही कर जाते हैं. कई बार इन विवादों का असली पोस्ट से कोई लेना देना नहीं होता है. ये खतरा ब्लॉग्गिंग के साथ-साथ टिपण्णी करने में भी है. कई बार सकारात्मक बहस के लिए की गयी टिपण्णी भी विवाद का रूप ले लेती है. समस्या ये है की ब्लॉगर एक बार जो पोस्ट कर देते है, अपनी कही गयी बातों से पीछे हटने को तैयार नहीं होते. चाहे वो सही हो या गलत. वैसे अगर अपनी गलती लोग मानने लगे तो ब्लॉग क्या वास्तविक जिंदगी के भी कई सारे विवाद ऐसे ही निपट जायेंगे ! व्यक्तिगत रूप से मैं कई ऐसे ब्लॉग पर टिपण्णी नहीं करता जो एकतरफा लिखते हैं. उनकी बातें गलत नहीं होती पर वो अक्सर सिक्के का एक ही पहलु उजागर करती हैं. ऐसे कई पत्रकारों के ब्लॉग हैं जिन्हें पढ़कर हंसी आती है. टिपण्णी ना करना विवादों से बचने का एक तरीका हो सकता है. पर जरूरी नहीं की आप विवाद से बच जाएँ. वैसे भी खतरों को कम किया जा सकता है ख़त्म नहीं ! आप कितने भी सावधान रहे अगर हिंदी ब्लॉगर हैं तो आपको कभी भी विवादों में घसीटा जा सकता है.
अगले खतरे की तरफ बढ़ते हैं: पूरी तरह सार्वजनिक ! जी हाँ ब्लॉग में गोपनीयता जैसी कोई चीज नहीं होती. अगर आपको लगता है कि आप अपनी पोस्ट या ब्लॉग डिलीट करके कुछ छुपा सकते हैं तो आप गलत हैं. धनुष से निकला बाण वापस तो नहीं आ सकता लेकिन हो सकता है लक्ष्य ना भेद पाए और बेकार चला जाय, मुंह से निकली वाणी भी वापस तो नहीं ली जा सकती लेकिन तुरत या बाद में भी आप अपनी बात से पलटी मार सकते हैं. लेकिन ब्लॉग पर किया गया पोस्ट वापस नहीं लिया जा सकता. वो शाश्वत है ! अमर है ! गूगल कैशे में ये हमेशा हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाता है. इसके अलावा भी कुछ साइट्स हैं जहाँ आपका ब्लॉग किसी पुरानी तिथि पर कैसा था यह देखा जा सकता है. वो सब तो दूर की बात गूगल रीडर के पाठकों तक तो आसानी से चला ही जाता है! अगर आपको लगता है कि आपका ब्लॉग बहुत कम लोग पढ़ते हैं तो ये आपकी गलतफहमी है. और आपके पाठको की संख्या आपके अनुमान से कहीं ज्यादा है. तो ब्लॉग पर पब्लिश बटन दबाने से पहले सोचना बहुत जरूरी है ! क्योंकि एक बार कुछ गलती से भी गलत पोस्ट हुआ तो... बैंग ! आप तो गए काम से.
आज की पोस्ट का आखिरी खतरा: आपके द्बारा दी हुई जानकारी का दुरूपयोग ! अगर किसी लड़की ब्लॉगर ने प्रोफाइल में अपनी फोटो/ईमेल/फ़ोन नंबर डाल दिया तो फिर क्या होगा ये बताने की जरुरत है क्या? इसके अलावा आपने कभी सोचा है कि कहीं कोई ट्रैफिक पुलिस के हाथ पकडा गया और कहे कि मैं 'श्री/श्रीमती अ' पुलिस अफसर को जानता हूँ. कोई बिना टिकट ट्रेन में सफ़र करे और कहे कि मैं 'श्री/श्रीमती ग' रेलवे अफसर को जानता हूँ. कोई अपने पडोसी को ये कह कर धमकी दे कि मैं 'श्री/श्रीमती द' वकील को जानता हूँ और देख लूँगा तुम्हे !. और वास्तविक जीवन में वो सिर्फ 'अ' 'ग' और 'द' के ब्लॉग पढता है. २-४ ईमेल इधर-उधर हुए हों ये भी संभव है ! उस व्यक्ति का काम तो संभव है हो जाएगा. हो या ना हो दोनों स्थितियों में आपकी छवि तो धुंधली होगी ही. तो प्रोफाइल में कितनी और क्या जानकारी देनी है इसका ध्यान रखना भी जरूरी है. इस हिसाब से तो अनोनिमस ब्लॉग्गिंग ही बेहतर है !
अगली पोस्ट से इन बचकाने खतरों से थोडा आगे बढ़ेंगे और थोड़े बड़े खतरों से मिलेंगे !
~Abhishek Ojha~
बहुत बढ़िया सटीक पोस्ट. अभिषेक जी बधाई.
ReplyDeleteअब तो सावधान होन ही पडेगा धन्य्वाद्
ReplyDeleteवाकई खतरे है, पर यहाँ सभी खतरो के खिलाड़ी है :)
ReplyDeleteहम तो कब से सवधान बैठे थे ..फोटो लगाने के मोह से न उबर पाए :-)
ReplyDeleteटिपण्णी ना करना विवादों से बचने का एक तरीका हो सकता है. पर जरूरी नहीं की आप विवाद से बच जाएँ.सही कहा है आपने. तटस्थ रहें तो लोगबाग उकसाते हैं - तटस्थों - तुम्हारे अपराध को समय लिक्खेगा! फिर, वे प्रति-पोस्टों से आपको हर प्रकार से उकसाते हैं - प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष.
ReplyDeleteसीरीज का इंतजार रहेगा. देखते हैं कि ओखली में सिर दिए रखने लायक खतरे हैं या नहीं.. :)
अब इस मैदान में उतर ही गए तो खतरे से डरना क्या ..पर बात आपकी सही है ..अब देखते हैं आगे आगे इस के इश्क में होता है क्या :)आप इसी तरह खतरों से आगाह कराते जाइए ..
ReplyDelete"आप कितने भी सावधान रहे अगर हिंदी ब्लॉगर हैं तो आपको कभी भी विवादों में घसीटा जा सकता है."
ReplyDeleteइस धुर वाक्य के से ही काम चल गया पूरी पोस्ट का । बाकी खतरे तो उठा-उठा कर जीना सीख लिया है हमने । next-
किसी भी काम में सावधानी बरतना बहुत ही जरूरी होता है, पर जब तक खतरों की जानकारी न हो सावधानी किस चीज़ की रखें ?
ReplyDeleteआप ब्लागिंग में तरह -तरह के आसन्न खतरों से हमें जिस प्रकार आगाह कर रहे हैं तो उसी प्रकार सावधानिया भी जहाँ तक संभव होगा हमें भी बरतनी ही पड़ेगी. समझदारी तो इसी में है.
सुन्दर लेख माला प्रस्तुति पर बधाई और अगली कड़ी का इंतजार...........
चन्द्र मोहन गुप्त
नेम ड्रॉपिंग ब्लॉगिन्ग के निमित्त क्यों, वैसे भी लोग धड़ल्ले से करते हैं। अत: ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है।
ReplyDeleteअसली समस्या अपनी छद्म इमेज प्रस्तुत करने की है। उसमें एक छद्म संवारने को हजार छद्म रचने पड़ते हैं।
मैं पुन: कहूंगा कि आपका पब्लिक पब्लिक होना चाहिये। प्राइवेट मित्रों तक और सीक्रेट आप और भगवान के बीच भर। पर जितना सीक्रेट कम कर सकें, उतना आप ऊपर उठते हैं। एम.के. गांधी की तरह।
पोस्ट सोचने का मसाला दे गई - यह उसकी उपयोगिता है।
भाई आपने तो हमें डरा ही दिया....अब आगे से सम्भल कर चलना पड़ेगा.
ReplyDeleteगुलमोहर का फूल
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ReplyDeleteहम तो एक एक हर्फ़ पढ़े जाते हैं -आखिर एक प्रोफेसनल का लेखा है यह !
ReplyDeleteअभिषेक जी अंत में एक तालिका बनाईएगा जिसमें एक तुलनात्मक लेखा हो जिससे अंतर्जाल और ब्लागिंग के फर्कों ( यदि कोई हों ! ) को भी समझा सकेगा !
अगले का इंतज़ार है !
आपने सही सुझाया है भाई .
ReplyDeleteसिरीज सही विषय पर है। आज जितना लिखा है वह बहुत काम का है। लेकिन ज्ञान जी की टिप्पणी महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteब्लोगिंग अर्थात अभिव्यक्ति .माने आप जो महसूस कर रहे है उसे लिखे ..वे ख्याल जो आप बांटना चाहते है .....यदि आप अपने को अभिव्यक्त करने में हिच्किचायेगे तो किस बात की अभिव्यक्ति ?यानी आप जो है वही कागजो में दिखिये ....
ReplyDeleteब्लोगिंग करने वाले लोग हमारे समाज के भीतर के ही लोग है जाहिर है समाज के जो गुण अवगुण है ....वही ब्लोगिंग में भी है ...जहाँ तक विवादों का सवाल है .दो तरह के विवाह होते है एक जो जानबूझकर उठाये जाते है .एक जो अनायास उठते है....मुझे दोनों सुहाते नहीं है
काफ़ी दूर तक सोचते हैं आप,बहुत अच्छा लिखा है।
ReplyDeleteधन्यवाद।
अच्छी पोस्ट लिखी है आपने। कुछ लोग अपने ब्लाग को चर्चा में रहने के लिए भी टोपियां उछालते रहते हैं। कुतर्क करने वाले ब्लागरों की संख्या हिंदी में काफी है। लेकिन परिवार और समाज में भी तो कुछ ऐसा ही है अभिषेक जी।
ReplyDeleteखतरे बनाए जाते हैं संतरे
ReplyDeleteसंतरे होती हैं पोस्ट मीठी
जिसमें टिप्पणियां होती हैं फांके
खट्टी मीठी और कड़वी भी
कड़वी भी देती हैं फायदा
आप बतलायें कि संतरे के छिलकों
का छीलकर क्या किया जाता है
क्या संतरों को छीलकर खाया जाता है
या निकाला जाता है उनकी फांकों का रस
जैसे वे बेबस, वैसे वो पोस्ट बेबस
जिस पर न बरसता हो टिप्पणियों का रस।
जीवन के हर क्षेत्र की तरह ही यहाँ भी सावधानीपूर्वक सजगता से काम रखने की आवश्यक्ता है. आपने अच्छा विश्लेषण किया है. निश्चित ही ये खतरे तो हैं ही.
ReplyDeleteपहले आपने बता दिया होता तो उल्टे पांव भाग निकलते.....अब तो इतना चलने के बाद इस खतरनाक रास्ते से मोह जैसा हो गया है :)
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण पोस्ट!
ReplyDeleteभाई अब तो सबसे नाता सा जुड़ने लगा है।लगता है जैसे हम सभी एक दुनिया के निवासी है और आपस में अपनी बात रखते हैं।ऐसे में आप क्यों डरा रहे हैं।मैं डा.अनुराग से सहमत हूँ......
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! आपने बहुत ही सुंदर लिखा है ! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
ReplyDeleteहूँ, पर अपुन तो कभी इन खतरों के बारे में सोचा ही नहीं था। शुक्रिया।
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SBAI TSALIIM
ठीक कहा - अन्तरजाल और एकान्तता - असंभव।
ReplyDeleteलेकिन बहुत से लोग (मैं भी) इस गलतफ़हमी में जीते हैं कि वे अपने को अन्तरजाल में छिपा सकते हैं।