Friday, November 28, 2008

ईटो कियोशी

पॉल क्रुगमन के ब्लॉग से पता चला की ईटो कियोशी नही रहे। प्रायिकता सिद्धांत (Probability Theory) और आकस्मिकता (Randomness) पर उनका काम जो ईटो कलन (Ito Calculus) के नाम से जाना जाता है. गणितीय वित्त में बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है। याद है जब पहली बार ईटो लेमा (Ito's Lemma) वित्तीय गणित की कक्षा में सुना था... उसके बाद अगली तीन कक्षाओं तक कुछ हवा नहीं लगी थी। ये कोर्स १० वें सेमेस्टर में किया था मतलब ४ साल तक गणित पढने के बाद भी पहली बार में ये सिद्धांत और इसका इस्तेमाल समझ नहीं आया था। फिर ऐसे नाम इतनी जल्दी कोई कैसे भूल सकता है. अब जब कभी साक्षात्कार लेता हूँ और अगर किसी ने वित्तीय गणित के बारे में पढ़ा हो तो उससे एक बार ईटो लेमा और फेनिमन कक (Feynman Kac) में से एक तो पूछ ही लेता हूँ।

१९१५ में जन्में इस जापानी गणितज्ञ ने पिछले दोनों १० नवम्बर को आखिरी साँस ली। २००६ में पहले गॉस पुरस्कार से सम्मानित इस गणितज्ञ द्बारा विकसित सिद्धांत वित्त के अलावा जीव विज्ञान (Biology) और भौतिकशास्त्र (Physics) में भी उपयोगी साबित हुए हैं। पिछले महीने ही उन्हें जापानी आर्डर ऑफ़ कल्चर पुरस्कार से नवाजा गया था। वित्त और खासकर डेरिवेटिव ट्रेडिंग में उनके सिद्धांतों के उपयोग के चलते उन्हें 'Most Famous Japanese in WallStreet' की उपाधि से भी जाना जाता है। स्टोकास्टिक डिफ़ेरेन्शियल समीकरणों (Stochastic Differential Equations) पर उनके काम ब्लैक-शोल्स मॉडल (Black Scholes Model) तक पहुचने में मदद करते हैं। अब जो वित्तीय अभियांत्रिकी (Financial Engineering) का नाम भी सुनते हैं वो ब्लैक-शोल्स तो जानते ही हैं।

एमआईटी के प्रोफेसर डैनियल स्ट्रूक ने कहा: 'सबको पता है की ईटो के काम से कई बातो की जानकारी हुई जो पहले अनजान थी।'

श्रद्धांजली इस महान गणितज्ञ को !

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पाल क्रुगमैन के ब्लॉग पर पढने के बाद सोचा की इस पर कुछ लिखा जाय। कल से पढ़ाई के लिए छुट्टी पर हूँ (हमारी कम्पनी पढने के लिए भी छुट्टी देती है)... और परसों रात से ही टाईम्स नाऊ देख रहा हूँ... मैं तो फिर भी २ घंटे बिजली गई तो ४ घंटे सो गया लेकिन कमांडो बिना सोये लगे हुए हैं... और टाईम्स नाऊ पर अर्नब ! बिना एडवटिज्मेन्ट, कमाल की कवरेज ! टीवी पर न्यूज़ नहीं देखता पर इस बार टीवी बंद करने की इच्छा नहीं हो रही है... दिमाग शून्य हो गया है ! इससे ज्यादा लिखने की क्षमता नहीं.

नरीमन भवन में शायद कार्यवाही ख़त्म हो गई है...

~Abhishek Ojha~

Thursday, November 20, 2008

गणित से भय: यूरोप की देन ?

गणित और भय में चोली-दामन का रिश्ता है और हाल ही में मुझे रंजनाजी के सौजन्य से पता चला की ये यूरोपीय विचारधारा की देन है. fear of mathematicsरंजनाजी ने कुछ दस दिनों पहले मुझे ये अखबार का टुकडा स्कैन कर के भेजा. अब उन्हें लगा की मुझे  इस पर कुछ लिखना चाहिए... अब मेरे दिमाग में तो यही आया 'अब आगे से किसी को गणित से डरने के जरुरत नहीं...  ये गणित से डरना फिरंगियों की सोच से प्रभावित है.' लेकिन इससे कोई फायदा है क्या, किसी की भी विचारधारा हो ?  जैसे बच्चे को कितना भी समझा लो कि बेटा भूत-वूत कुछ नहीं होता, सब वहम है... पर वो तो डरेगा ही ! वैसे ही क्या फर्क पड़ता है कि किसने डराने वाला गणित बनाया... अब ये वहम मिटाना आसन नहीं.

खैर बात इस ख़बर की... मुझे पढने के बाद यही लगा कि ये प्रो राजू की पुस्तक 'कल्चरल फाउण्डेशनस ऑफ़ मैथेमेटिक्स' में कही गई बात है. इसका स्रोत ढूंढने की  थोडी कोशिश भी की... गणित भले ही यूरोपीय सोच की देन हो ना हो... ये ख़बर इन बातों पर आधारित है: प्रो राजू की पुस्तक में यह कहा गया है की कलन (Calculus) जिसके लिए कहा जाता है कि न्यूटन (Newton) और लिबनिज (leibnitz) दोनों ने स्वतंत्र रूप से विकसित किया, दरअसल भारत की देन  है. कलन के कई प्रमुख सिद्धांत आर्यभट, भास्कर, नीलकंठ, शंकर वारियार जैसे गणितज्ञों के कई खगोलीय और गणितीय कामों में पाये जाते हैं जिसे मैटियो रिक्की नामक जेसुइट द्वारा कोचीन से यूरोप ले जाया गया. अन्यत्र प्रो राजू कहते हैं की प्राचीन भारतीय और यूरोपीय गणितीय सोच में बहुत अन्तर है. भारतीय गणित जहाँ व्यवहारिक था वहीँ यूरोप ने इसे धर्म से जोड़ दिया. भारतीय 'प्रमाण' में जहाँ 'लगभग' की मान्यता थी वहीँ यूरोप के 'प्रूफ़' में इसे परफेक्ट बना दिया गया. प्लेटो ने जोड़-घटाव (व्यवहारिक गणित/Applied Mathematics) वाले गणित को प्रूफ़ (प्रूफ़ पर आधारित शुद्ध गणित/Proof based Pure Mathematics)  वाले गणित से नीचे माना और यह मान्यता आज तक शिक्षाविदों में चली आ रही है कि शुद्ध गणित व्यवहारिक गणित से ज्यादा श्रेष्ठ है. जबकि भारत में कभी भी ऐसा विवाद नहीं रहा... प्राचीन भारतीय गणित केवल पढने के लिए कभी नहीं था बल्कि हमेशा ही वो किसी व्यवहारिक उपयोग को लेकर रहा है. जबकि शुद्ध गणित जो यूरोपीय सोच का नतीजा था वो केवल पढने के लिए रहा… अर्थात वास्तविकता से दूर.

गणित के इस रूप के भारत से यूरोप जाने और विकृत होने के बारे में प्रो राजू कहते हैं की यूरोप में नौसंचालन के लिए की जाने वाली शुरूआती गणनाओं में कई गलतियाँ थी. जिससे समस्याएं भी होती थी और नौसंचालन में सुविधा के लिए किए जाने वाले आविष्कारों के लिए कई यूरोपीय राज्यों ने आकर्षक पुरस्कारों की घोषणा कर रखी थी. इनके सुधार के लिए भारतीय गणित और पंचांगों को जेसुइट केरल से यूरोप ले गए. केरल उस समय शिक्षा और गणित का केन्द्र हुआ करता था क्योंकि विजयनगर राज्य की प्रभुता के कारण यह उत्तरी हमलों से एकदम सुरक्षित था. जेसुइट समुदाय के लोगों का स्थानीय लोगों से घुल-मिल कर रहना था और उन्हें भाषा की दिक्कत भी नहीं होती थी. इस तरह कई त्रिकोणमितीय अनुपातों को निकालने की विधि सहित पंचांगों और अन्य खगोलीय तथा  गणितीय अध्ययनों में उपयुक्त सिद्धांत यूरोप पहुच गए. वहाँ आध्यात्म विद्या (Theology) से जुड़ जाने के कारण इसमें अमूर्तता (Abstraction) आई और फिर इसका रूप कठिन होता गया और भय का रूप लेता चला गया....

अगर व्यवहारिक गणित और शुद्ध गणित क्या है ये जानने की इच्छा हो तो ये देख लें:

  • व्यावहारिक गणित (बातें गणित की... भाग III)
  • शुद्ध गणित (बातें गणित की... भाग II)
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    ये प्रो राजू के विचार हैं और इनमें से कई विचारों पर मेरी व्यक्तिगत सहमती नहीं है. उनके कुछ लेख और विचार पढने के बाद उनसे भारी असहमति लगती है. उस पर उनकी किताब पढने के बाद कभी चर्चा होगी.

    फिलहाल ये गणित से डरना अपना काम नहीं ये यूरोपीय विचार धारा है. गाँधी बाबा को ये बात पता होती तो स्वदेशी आन्दोलन का हिस्सा बन गया होता "हम गणित से नहीं डरेंगे क्योंकि ये यूरोपीय विचारधारा है" और चरखे के साथ-साथ वैदिक गणित और लीलावती जैसी पुस्तकें भी होती ! खैर अभी भी स्वदेशी आन्दोलन चलाने वाले लोग हैं उन तक बात पहुचाने की जरुरत है. :-)

    रंजनाजी को धन्यवाद !



    ~Abhishek Ojha~