Wednesday, June 25, 2008

व्यावहारिक गणित (बातें गणित की... भाग III)

गणित के वैसे तरीके और परिणाम जिनका उपयोग गणित के बाहर की समस्याओं का हल करने में होता है, उन्हें हम व्यावहारिक/अनुप्रयुक्त/प्रायोगिक गणित (Applied Mathematics) कहते हैं. गणित के ऐसे बहुत से तरीके शुद्ध गणित (Pure Mathematics) से भी आते हैं इसलिए शुद्ध और व्यावहारिक गणित का विभाजन करना आसन नहीं है. गणित की कौन-कौन सी शाखाएं इसमें आती हैं ये कहना भी सम्भव नहीं है. हाँ समय के साथ कुछ मुख्य शाखाएं जरूर विकसित हो गई हैं जिन्हें आसानी से व्यवहारिक की श्रेणी में रख सकते हैं. गणित के अलावा विज्ञान और अभियांत्रिकी (Science and Engineering) में भी गणित की शाखाएं कुछ इस कदर घुली मिली हैं कि ये बताना कठिन हो जाता है की गणित है या अभियांत्रिकी का कोई विषय. जैसे अगर आप द्रव यांत्रिकी (Fluid Mechanics) पढ़ें तो यह फैसला करना कठिन हो जायेगा की यह गणित है या यांत्रिकी अभियांत्रिकी (Mechanical Engineering). उसी प्रकार अवकलित समीकरण(Differential Equations) और प्रायिकता (Probability) विद्युत् अभियांत्रिकी (Electrical Engineering) वालों के लिए जरूरी होता है. इसी तरह अलग-अलग विश्व-विद्यालयों में गणित विभाग में अलग-अलग पाठ्यक्रम होते हैं. अब सारी चीज़ें तो एक विभाग में पढ़ा नहीं सकते.. इस प्रकार अनुप्रयुक्त गणित (Applied Mathematics) के विभाग साधारणतया कुछ विशेष क्षेत्रों पर ही केंद्रित होते हैं. पूर्ण गणित का ऐसा विभाग जहाँ हर प्रकार का अनुप्रयुक्त गणित पढाया जा सके होना बहुत मुश्किल है.

कई बार कोर्स के नाम अलग होते हुए भी एक ही चीज़ पढ़ाई जाती है और कई बार नाम एक होते हुए भी अलग. मतलब साफ़ है सब कुछ जरुरत के हिसाब से. अंतर्विषयक(interdisciplinary) विषय की चर्चा हो तो अनुप्रयुक्त गणित से ज्यादा अंतर्विषयक विषय नहीं मिलेगा. अभियांत्रिकी और विज्ञान में तो भरपूर उपयोग है... पर जैसा की मैंने पहले कहा था की अब तो कोई भी क्षेत्र या विषय इससे बचा ही नहीं है. स्कूल में जब पढता था तब सबसे जुदा दो विषय कोई सोचने को कोई कहता तो सबसे पहले दिमाग में कुछ आता तो वो था गणित और जीव विज्ञान (Biology) पर अब ये आलम है की गणित ने जीव विज्ञान को भी कहीं का नहीं छोड़ा... कहते हैं की जीव विज्ञान का भविष्य गणित के हाथो में है. न्यूरोसाइंस और डीएनए की संरचना पढ़नी हो तो बस गणित ही गणित... इस प्रकार शुरू हो गया गणितीय जीव विज्ञान (Mathematical Biology). अब गणित न आती हो और जीव विज्ञान में शोध करना हो तो गए काम से... नहीं तो गणित वालों को नौकरी पर रखो :-)

गणितीय अर्थशास्त्र (Mathematical Economics), गणितीय जीव विज्ञान (Mathematical Biology), गणितीय भौतिकी (Mathematical Physics), गणितीय वित्त (Mathematical Finance), गणितीय न्यूरोसाइंस (Mathematical Neuroscience), गणितीय प्रतिरूपण (Mathematical Modeling), व्यावसायिक गणित (Business Math), गणितीय जियोफिजिक्स (Mathematical Geophysics), भौतिक और अभियांत्रिकी गणित (Engineering Mathematics) ... ऐसे नाम ही काफ़ी हैं गणित का इन विषयों में उपयोग दर्शाने के लिए (इन सब पर अलग-अलग पोस्ट लिखने की योजना है). कई बार ये विषय गणित विभाग में पढ़ा दिए जाते हैं तो कई बार उन विभागों में जिनसे ये सम्बंधित हैं.

क्या आप जानते हैं की फ़िल्म बनाने में गणित का बहुत उपयोग होता है. कभी आपने सोचा है की जो एनीमेशन आप देख रहे हैं उसके पीछे कितने गणितीय समीकरण लगे हुए है... अंग्रेजी फिल्में अगर आप देखें तो कई फिल्मों में पानी के बहाव से लेकर इंसान के बालों तक की मोडलिंग गणित के सूत्रों से होती है... एनीमेशन फिल्में तो इस्तेमाल करती ही हैं. और हाँ इसके अलावा मौसम की जानकारी में भी खूब गणित इस्तेमाल होता है.

यहाँ तक भी ठीक पर बात जब सामाजिक विज्ञान (Social Sciences) पर आती है तो लगता है की गणित का इस्तेमाल नही हो रहा. पर ऐसा नहीं है, हाँ इस्तेमाल कम है पर है. अब उदहारण के लिए... समाजशास्त्र (Sociology) लेते हैं तो गणित का इस्तेमाल आंकडा इकठ्ठा करके और समाज में हो रही घटनाओ पर इस्तेमाल होना आम बात है... वैसे लोग फलन (Function) जैसी चीज़ों का इस्तेमाल भी खूब कर लेते हैं रिश्तों की व्याख्या करने में. ये तो क्लासिक उदहारण है पर हाल के दिनों में खेल सिद्धांत (Game Theory) के नाम से विख्यात गणित ने जिस तरह से सामाजिक विज्ञान के विषयों में उपयोग ढूंढा है उससे वो दिन ज्यादा दूर नहीं है जब ये भी पट जायेंगे गणित से. खेल सिद्धांत का इस्तेमाल अर्थशास्त्र, व्यापार और मनोविज्ञान (Psychology) जैसे क्षेत्रों में खूब होता है.

अब चलिए एक ऐसे उपयोग के बारे में जान लें जो थोड़ा रोचक लगेगा... जी हाँ लडाई जीतने में.
ऑपरेशन्स रिसर्च के नाम से विख्यात इस गणित का उपयोग मैनेजेमेंट में खूब होता है इसके अलावा समय/काम निर्धारण यानी शेड्यूलिंग में, optimization में, नेटवर्क से लेकर माल ढुलाई तक में होता है. पर आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की इसका विकास लडाई में हुआ वो भी द्वितीय विश्व युद्ध में. अमेरिका और ब्रिटेन के गणितज्ञों ने सैन्य सञ्चालन, प्रशिक्षण और logistics के लिए इस गणित का खूब विकास किया. जर्मनी की प्रसिद्द यु बोटों से बचने के लिए ये निष्कर्ष निकला गया की जहाजों को छोटे जत्थों में भेजना बेहतर होगा. इस मामले में भी इतेमाल किया गया की कब और कहाँ बम गिराए जाएँ जिससे ज्यादा क्षति हो. इसी कारण से नाम भी पड़ा ऑपरेशन्स रिसर्च.

पिछले पोस्ट में हमने चर्चा की थी शुद्ध गणित के उपयोगी हो जाने की बात पर. तो ऐसे भी गणित हैं जो आए ही उपयोग से ... और बाद में गणित हो गए, इसका सबसे बड़ा उदहारण कलन (Calculus) है. न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण और ग्रहों की गति का अध्ययन करते हुए कलन का आविष्कार किया जो कालांतर में गणित हो गया... और अन्य क्षेत्रों में भी खूब उपयोगी साबित हुआ.


और अगर आपने महान गणितज्ञ जॉन नैश पर बनी फ़िल्म A beautiful Mind देखी है तो याद कीजिये ये लाइने, जो प्रिन्सटन विश्वविद्यालय में गणित के एक बैच के स्वागत में कही जाती हैं: "गणितज्ञों ने लडाइयां जीती हैं... गणितज्ञों ने जापानी कोड तोडे... और परमाणु बम बनाया. आपकी तरह के गणितज्ञों ने... आज सोवियतों का लक्ष्य है वैश्विक कम्युनिस्म! मेडिसिन से लेकर अर्थशास्त्र, टेक्नोलोजी हो या अन्तरिक्ष, हर जगह युद्ध की लाइनें खिचीं जा रही हैं... और जीत के लिए हमें गणितीय रिजल्ट चाहिए... उपयोगी छापे जाने योग्य रिजल्ट. अब बताइए कौन होगा आपमें से अगला मोर्स, अगला आइंस्टाइन? आपमें से कौन होगा लोकतंत्र, आजादी और आविष्कार का सेनापति. आज हम आपके हाथों में अमेरिका का भविष्य सौंपते हैं.... आप सबका प्रिन्सटन में स्वागत है !"

अब चलिए थोड़ा इस गणित का स्वरुप भी जान लेते हैं... सीधी भाषा में कहीं तो वास्तविक जीवल और मानवता से जुड़े सवालों और समस्याओं को हल करने में गणित का इस्तेमाल होता है और इसे अनुप्रयुक गणित कहते हैं. इस प्रकार अनुप्रयुक्त गणित एक तरीका (technique) है या फिर जैसा की हमारे कुछ प्रोफेसर कहते थे ... ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत नहीं ये तो मेकैनिकल मैथ है :-) अनुप्रयुक्त गणित एक प्रयास है वास्तविक दुनिया और मानवता से जुड़ी समस्याओं और रहस्यों को सुलझाने का और एक बात ये भी की शुद्ध और उपयोगी गणित को अलग करना सम्भव नहीं है. रामानुजन के सहयोगी जी एच हार्डी कहते हैं: "शुद्ध गणित तो अनुप्रयुक्त गणित से भी ज्यादा उपयोगी है. शुद्ध गणितज्ञ के पास उपयोगी के साथ-साथ सौन्दर्य की अनुभूति का भी फायदा होता है. उपयोगी तो तरीके होते हैं और तरीके मुख्यतः शुद्ध गणित से ही सीखे जा सकते हैं"

शुद्ध की तरह ही आपने देख की अनुप्रयुक्त गणित को भी परिभाषित करना आसन नहीं है. पर एक जैसे शुद्ध में स्वयंसिद्ध और प्रमेय थे उसी प्रकार यहाँ परिभाषित करने की कोशिश की जाय तो कुछ इस प्रकार की होगी:
- साधारणतया शुरुआत होती है एक गणितीय मॉडल (Mathematical Model) से (वो छरहरे बदन वाली मॉडल नहीं :-)). गणितीय मॉडल होता है गणित की भाषा में किसी समस्या का वर्णन.
- फिर उस मॉडल का अध्ययन और गणित के नियमों के अनुसार उसका विश्लेषण.
- और फिर विश्लेषण से आए गणितीय रिजल्ट को आम भाषा में प्रस्तुत करना.

अब इन मॉडल को कहा तो वास्तविक जाता है पर इन्हें आसन बनाने के लिए कई सारी मान्यातएं लेनी पड़ती हैं... जैसे कोई वस्तु गिर रही है तो मान लेना की हवा का अवरोध ही नहीं है... पर धीरे-धीरे मॉडल को जटिल किया जाता है ... और जो सरल मान्यताएं ले ली गई थी उनको हटाने का प्रयास. अब इसी विश्लेषण में कई बार नए सिद्धांतों और नए गणित का विकास हो जाता है.

अब आती है एक और समस्या ये मॉडल तो बन जाते हैं, फिर इनका विश्लेषण करने के लिए किसी भी प्रकार का गणित इस्तेमाल हो सकता है... और पूरी गणित तो किसी को नहीं आती, इसीलिए गणित के विद्यार्थियों को कुछ प्रमुख गणित के कोर्स जरूर कराये जाते हैं ताकि मुख्य गणित की मुलभुत बातें पता रहे. इन सब कारणों से ही अनुप्रयुक्त गणित का एक पूर्ण विभाग बनाना मुश्किल है... अब आप ही बताइए जब जीव विज्ञान भी गणित के विभाग में पढाया जाने लगे.. तो विश्व के कितने विश्वविद्यालय इस प्रकार का विभाग खोल पायेंगे जिसमें सब कुछ पढाया जाता हो... इसीलिए गणित सच्चे रूप में एक बहुविषयक विषय है... बिना बाकी विभागों के सहयोग से अनुप्रयुक्त गणित का विभाग चलाना नामुमकिन सा है.

आज के लिए लगता है बहुत ज्यादा हो गया... लिखना रोकना पड़ेगा, आपको अगले लेख में भी तो यहाँ बुलाना है... तो चलिए अगले लेख में जानते हैं... कैसे-कैसे विभाग हैं विश्वविद्यालयों में गणित के और जानेंगे गणित के कुछ रोचक उपयोग के उदहारण मेरे कामो के द्बारा. घबराइए नहीं मैं अपने रिसर्च आप पर नहीं थोपूँगा... मेरी पोस्ट में गणित एकदम नहीं होता ये तो आप समझ ही गए होंगे !

~Abhishek Ojha~

Thursday, June 19, 2008

शुद्ध गणित (बातें गणित की... भाग II)

जैसा की पिछले पोस्ट में ये निष्कर्ष निकला था की गणित विज्ञान और कला दोनों में आता है... और शुद्ध गणित तो (PURE MATHEMATICS) गणित की आधारशिला है, तो आज बातें गणित में शुद्धता की.

शुद्ध गणित पुरी तरह से तर्क पर आधारित है. इसे अप्रायोगिक/अव्यवहारिक गणित भी कह सकते हैं... अर्थात ऐसा गणित जिसका कोई उपयोग ना हो... फिर ऐसा गणित है ही क्यों? जी हाँ थोड़ा अजीब है पर कई चीज़ें ऐसी हैं जिनका कोई उपयोग नहीं है... कविता का क्या उपयोग है? सत्य की खोज में भटकने का क्या उपयोग है?... दर्शन शास्त्र का क्या उपयोग है? वैसे ही शुद्ध गणित का भी कहीं-ना-कहीं दिमागी उपयोग है... कमाल की बात ये है की जो आज शुद्ध गणित है कल उपयोगी हो जाता है... फिर अजीब... एक बंद कमरे में बैठ कर ऐसे गणित को जन्म देना जिसका वास्तविक दुनिया से कोई लेना देना नहीं... और उसका इतना उपयोग होने लगे की उसके बिना कई काम ठप हो जाए... शायद इसीलिए गणित और सत्य की खोज एक जैसे होते हैं... सत्य है, सर्वव्यापी है तभी तो दशकों बाद ही सही... उपयोगी हो जाता है

इस उपयोगी हो जाने के उदहारण कहीं भी मिल जायेंगे जैसे वित्त (Finance), रसायन शास्त्र (Chemistry), चिकित्सा (Medical Science), और कूटलेखन (Cryptography) इत्यादि. वित्त में तो प्रायिकता (Probability Theory) से लेकर दुर्व्यवस्था सिद्धांत (Chaos Theory) तक हर प्रकार के शुद्ध गणित का इस्तेमाल होता है. गांठ-गणित (Knot Theory) की खोज करते समय किसने सोचा होगा की इसका इस्तेमाल डीएनए की संरचनाओं के अध्ययन में होगा ऐसे ही समूहसिद्धांत (Group Theory) का इस्तेमाल रसायन सस्त्र में अणुओं (Molecules) के अध्ययन में होने लगा... रोबोट (Robotics) और संगणक विज्ञान (Computer Science) ने लगता है कुछ शुद्ध रहने ही नहीं दिया सबका इस्तेमाल कर डाला... खैर शुद्ध से प्रायोगिक हो जाने की विस्तृत बात किसी और पोस्ट में...


शुद्ध गणित के अंतर्गत आने वाली गणित की मुख्य शाखाएं हैं: सांस्थिति (Topology), विश्लेषण (Analysis: Real, complex, functional etc), ज्यामिति (Geometry), अंक सिद्धांत (Number Theory), अमूर्त/अव्यावहरिक बीजगणित (Abstract Algebra) आदि.


अगर मोटे तौर पर देखें तो शुद्ध गणित पूरी तरह से तर्क पर आधारित होता है इसमें उपयोगिता का कोई स्थान नहीं... इस तरह के गणित का मुख्य रूप से विकास २०वी सदी में ही हुआ. हुआ तो पहले भी था पर नामाकरण और एक शाखा के रूप में प्रसिद्द २०वी सदी में ही हुआ. ऐसा गणित जाना जाता है अपनी खूबसूरती के लिए (Mathematical Beauty), कठिन साधना जैसा होने और अव्यवहारिक होने के लिए. ये बता पाना तो कठिन है कि इसमें होता क्या है... पर साधारणतया यह कुछ स्वयमसिद्ध धारणाओं/तदात्म्यों (Axioms) से चालु होता है और फिर उन धारणाओं का इस्तेमाल करते हुए अन्य प्रमेय (Theorems) और फिर जो जग जाहिर है ... उनको साबित करना (आपने भी खूब साबित किए होंगे!). साबित हो गया तो प्रमेय जब तक नहीं हुआ तब तक अनुभाग या अटकल (Conjecture). गहरी गणित की सोच और सिद्धांतों का विकास कई बार बस गणित पढ़ते हुए ही किया गया अर्थात बिना किसी वास्तविकता को सोचे (और फिर दिमाग ख़राब होता है पढने वाले का, लिखने वाला तो जो दिमाग में आया लिखता गया... कितने गणितज्ञों को मैंने उनकी सुंदर सोच पर गाली दिया है ये मैं ही जानता हूँ). एक उदहारण के लिए: बड़े अंको के गुणनखंड निकालने, तथा रूढ़ संख्याओं से सम्बंधित गणितज्ञों ने कई तरीके खोज निकाले थे और इसका कोई उपयोग नहीं था... पर बहुत समय के बाद इसका उपयोग कूट लेखन (Cryptology) में होने लगा. इसी प्रकार प्रक्षेपणीय ज्यामिति (Projective Geometry) का उपयोग औद्योगिक रोबोट (Industrial robots) को चलाने में किया जाने लगा. कुछ लोग कहते हैं की हर प्रयोग होने वाले गणित के पीछे एक शुद्ध गणित की शाखा का हाथ होता है... पर खोज होने के क्रम में ये पूरी तरह सच नहीं है... जैसे ज्यामिति का उपयोग प्रायोगिक गणित की तरह शुरू हुआ पर अब ये शाखा उच्चतर स्तर पर लगभग पुरी तरह से शुद्ध गणित हो गई है.

ऐसा गणित को आत्म साक्षात्कार जैसी यौगिक क्रिया से भी जोड़कर देखा जाता है... रामानुजन का नाम तो आपने सुना ही होगा वो अपने गणित के ज्ञान को भगवान् की देन समझते थे... रोज देवी की पूजा करने के बाद २ घंटे बैठ कर सूत्र लिखते ही चले जाते थे. उन्हें अपने हर समीकरण और सूत्र में प्रकृति और भगवान् की झलक दिखती थी. कवियों की कविता की तरह तुकबंदी ... और साबित करने में परम आनंद ... ये सब गणितज्ञों के लक्षण होते हैं... एक तुकबंदी का उदहारण आप बगल के फ्रैक्टल (Fractal) में देख सकते हैं. अगर इसमें कुछ नहीं दिखा तो एक बार यहाँ देख आयें.


गणित को अगर ठीक से देखा जाय तो यह सिर्फ़ सच ही नही वरन अलौकिक सुन्दरता के भी दर्शन कराता है-बरट्रांड रसेल


चलिए अब थोडी गणित की भाषा के बात करते हैं: शुद्ध गणित गणित की वो शाखा है जो पुरी तरह से और सिर्फ़ पूरी तरह से कुछ मान्यताओं पर आधारित होता है...
अगर 'ये और ये' 'किसी भी अवस्था' में सच हैं तो उस अवस्था में 'फलां-फलां वाक्य' सत्य होगा. (अगर कोई गणितग्य हो तो उसको इसी वाक्य में पेंटिंग की सुन्दरता दिख जाय ! )
यहाँ जो 'ये और ये' है वो सच होना जरूरी नहीं है... और 'किसी भी अवस्था' का वर्णन करना भी जरुरी नहीं है. अगर हमारी ये मूल धारणाएं 'कुछ भी हों' और किसी ख़ास चीज़ के बारे में न हो तो हम गणित की बात कर रहे हैं :-) इसलिए शुद्ध गणित वो है जिसमें हमें कभी पता नहीं होता की हम क्या कर रहे हैं ना ही ये कि जो कह रहे हैं वो सच है या नहीं !

तर्क का गणित में वही स्थान है जो वास्तुकला में ढांचा या संरचना का... कुछ गणितज्ञ प्रायोगिक गणित (Applied Mathematics) को हल्का और बेकार मानते हैं... जी एच हार्डी (रामानुजन के सहयोगी गणितज्ञ) के अनुसार प्रायोगिक गणित जहाँ भौतिक सच्चाई का गणितीय रूप है वहीं शुद्ध गणित भौतिक संसार से परे की सत्यता दर्शाता है, उनके अनुसार गणित वही है जो सौंदर्य का बोध कराता हो और इस हिसाब से प्रायोगिक गणित कुरूप(dull) है !

वर्ग गणित(Category Theory) इसीलिए बनाया गया ताकि गणित की विभिन्न शाखाओं में रिश्ते बनाए जा सके और एक एकीकृत गणित का विकास हो.. काफ़ी हद तक ये सफल भी हुआ पर अभी भी इसका निरंतर विकास जारी है.

"गणित की कोई ऐसी शाखा नहीं होती जिसका भविष्य में किसी वास्तविक दुनिया की प्रक्रिया में इस्तेमाल न हो भले ही वो गणित कितना भी अव्यवहारिक क्यों ना हो" - निकोलाई लोबाचेव्स्की


शायद अब आप समझ रहे होंगे की ऐसा गणित होता ही क्यों है !

शायद पोस्ट लम्बी हो रही है... पर जाते-जाते एक गणितीय विरोधाभास जिसे हजाम विरोधाभास (Barbar's Paradox) भी कहते है... ये रसेल बरट्रांड विरोधाभास (Russel Bertrand Paradox) का अपभ्रंस है (अपभ्रंस इसलिए की ये पूरी तरह गणितीय नहीं है)...


मान लीजिये कि एक गाँव में एक हजाम(नाई) है और वो उन्ही और केवल उन्ही लोगो की हजामत बनाता है जो ख़ुद अपनी हजामत नहीं बनाते. अब बताइए इस वाक्य में कुछ समस्या है क्या?

बता ही देता हूँ क्योंकि पहले ही लोग बोल चुके हैं की इस श्रंखला में सवाल नहीं होने चाहिए !

- अब समस्या ये है की नाई अगर ख़ुद की हजामत बनाता है तो नियम के हिसाब से ख़ुद की हजामत नहीं बना सकता क्योंकि वो केवल उन्ही की हजामत बना सकता है जो ख़ुद अपनी नहीं बनाते !
- और अगर ख़ुद की हजामत नहीं बनाता तो नियम के हिसाब से उसे ख़ुद की हजामत बनानी चाहिए !

हा हा ! है ना मजेदार (कहीं ये मत कह दीजियेगा कि हद वेवकूफ आदमी है... इसमें मज़ा आने वाली क्या बात है !)

चलिए हजाम भाई की समस्या में रूचि हो तो यहाँ और यहाँ जानिए. बरट्रांड रसेल विरोधाभास बहुत प्रसिद्द विरोधाभास है... चलिए वादे के हिसाब से गणितीय पोस्ट नहीं होगी इसलिए कोई यहाँ प्रूफ़ नहीं.

आज की पोस्ट लिखने में बहुत मज़ा आया सबसे ज्यादा मज़ा आया गणित की शाखाओं के नाम हिन्दी में सोचने में... अगर किसी शाखा का और अच्छा नाम आपके दिमाग में आ रहा हो तो सुझाना न भूलें.

अगले पोस्ट में प्रायोगिक गणित (Applied Mathematics) के बारे में... और फिर उससे अगली पोस्टों में... इतनी बातें दिमाग में घूम रही हैं की इस श्रृंखला का अंत नहीं दीखता.... थोड़ा समयाभाव है पर सप्ताह में एक पोस्ट ठेलने की कोशिश रहेगी... वैसे इससे ज्यादा गणित पढ़ना भी नहीं चाहिए :-)

आज हिन्दी में सोचे/ढूंढे गए नामो की एक झलक:

PURE MATHEMATICS शुद्ध गणित
Cryptography कूटलेखन
Chaos Theory दुर्व्यवस्था सिद्धांत
Knot Theory गांठ-गणित
Group Theory समूह सिद्धांत
Topology सांस्थिति
Analysis (Real, complex, functional etc) गणितीय विश्लेषण
Abstract Algebra अमूर्त/अव्यावहरिक बीजगणित
Axioms स्वयमसिद्ध धारणा/तदात्म्य
Conjecture अनुभाग या अटकल
Theorems प्रमेय
Projective Geometry प्रक्षेपणीय ज्यामिति
Category Theory वर्ग गणित


~Abhishek Ojha~

Saturday, June 14, 2008

बातें गणित की...प्रतिक्रियाएं आपकी

गणित की बातें शुरू करने से पहले मैंने ये कभी नहीं सोचा था की इतनी सारी प्रतिक्रियाएं आएँगी। पर जैसा की मैंने कहा था... आपको गणित अच्छा लगे या न लगे बिना इसके कुछ नहीं हो सकता और शायद गणित ने कईयों की दुखती नस पर हाथ रख दिया :-) मैंने लक्ष्य रखा था की अगर ५ लोगो की भी गालियाँ आ गई तो श्रृंखला जारी रहेगी...
वैसे सबसे ज्यादा धन्यवाद के पात्र हैं द्विवेदी जी... मुझे आशा है की मैं उनकी मुहब्बत आप तक पंहुचा पाउँगा। वैसे वकीलों का गणित से पुराना नाता है... इस पर भी एक पोस्ट लिखने का मन है।

कई टिपण्णीयों का जवाब देने का मन हुआ तो सोचा की एक पोस्ट ही लिख दी जाय...

सबसे पहले उड़न तश्तरी वाले समीर जी: समीर जी आपका आना भला किसे बुरा लग सकता है। आंखें बिछाए हम आपका इंतज़ार करते रहते हैं.... अगर आपको अच्छा न लगे तो बाकी सब कुछ बाद में... आज से ही ये श्रृंखला बंद ! आपको तो आना ही पड़ेगा... और गणित तो कविता की तरह खूबसूरत होती है, और आप ठहरे कवि ह्रदय व्यक्ति... :-) और क्या चाहिये ! वैसे फैसला तो आपको ही करना है। (वैसे आप बंदूक से कब से डरने लगे?)

उन्मुक्त जी को धन्यवाद गणित पर बहुत अच्छी बातें उन्होंने लिखी हैं... मैं कोशिश करूँगा उनकी तरह अगर कुछ लिख पाया तो।

अनुनाद सिंह जी: अवश्य मैं कोशिश करूँगा विकिपेडिया पर लिखने की समयाभाव है थोड़ा और अभी अगले महीने एक परीक्षा भी दे रहा हूँ। पर लिखूंगा जरूर।

नितिन व्यासजी, सिद्धार्थजी , बाल किशनजी, जी के अवधिया जी, हरिमोहन सिंहजी आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद आशा है श्रृंखला जारी रख पाऊंगा। और आपकी आशा पर खरा उतरने की पूरी कोशिश रहेगी।

कुश भाई डरने की बात नहीं है मेरा वादा है 'बाप रे' वाला गणित नहीं आएगा... कहानियाँ और 'कैसे-कैसे गणित' ही बहुत हो जायेंगे। आप निडर रहिये... मेरा प्रयास है गणित के इस्तेमाल और उसके विकास, इतिहास में रोचकता पैदा करना। आप ऐसे डरेंगे तो कैसा काम चलेगा। मिश्राजी ने बिल्कुल सही कहा है अब परीक्षाएं तो है नहीं... ममता जी आपके छतीस के आंकडे को तैतीस में तो नहीं बदल सकता पर एक बार दुश्मन की तरफ़ हाथ बढाइये छतीस भी नहीं रहने पायेगा।

अनिताजी आप से अनुरोध है आप कहानियाँ लाइये आप भी लिखिए... हम पढेंगे... और आपने सिग्मा को बिल्कुल सही पहचाना और ये भी सही की ज्ञान जी सारे सिम्बल सही पहचान गए... अरे इंजिनियर ठहरे... कैसे नहीं पहचानेंगे। ज्ञान जी को तो हमेशा ही धन्यवाद है। उनके लोगो पर भी काम चालू होगा जल्दी ही।

टिपण्णीयों से कई सारे विचार मिले गणित और रोजगार पर भी लिखने का मन है... आख़िर सब अपनी जगह है पर रोजी-रोटी भी तो मायने रखती है। आप सब से अनुरोध है की अगर आपको गणित के किसी ख़ास शाखा के बारे में कुछ जानना हो तो जरूर बतायें... उसे पढने और यहाँ लाने की जिम्मेदारी मेरी। अगर श्रृंखला सही चली तो अपने एक प्रोफेसर साहब से भी अतिथि लेख लिखवाने का मन है... देखते हैं योजनायें कहाँ तक सफल हो पाती हैं।



और अब थोडी बातें कल वाले लोगो के बारे में... लोगो में सिग्मा (ग्रीक अक्षर), integration (समाकलन) का सिम्बोल और एक ग्लोब है जिसे तो आप पहचानते ही हैं। Stamatics, IIT कानपुर के गणित और स्यांखिकी पढने वालों का समूह है जो Mathematics और Statistics मिला कर बनाया गया है। सिग्मा का उपयोग किसी क्रम (सीरीज़) के योग को प्रदर्शित करने में किया जाता है। लोगो बनाते समय ये विचार किया गया था की लोगो ये प्रदर्शित करेगा की Stamatics वाले विश्व में कहीं भी हैं जुड़े हुए हैं। और integration के सिम्बोल का भी ऐसा ही कुछ मतलब लगाया गया था पर साथ में एक path integration (पथ समाकलन) भी होता है. 'कॉम्प्लेक्सअनाल्य्सिस' में किसी closed curveपर पथ समाकलन किया जाय तो उसका सिम्बोल होता है: integration वाले सिम्बोल के बीच में एक वृत्त, आप इसे नीचे वाले चित्र में देख सकते हैं. कुछ इसी को प्रदर्शित करने का काम किया ग्लोब के साथ integration सिम्बोल ने। यानी दुनिया को closed curve मानते हुए ... Stamatics वालों का integration :-)














~Abhishek Ojha~

Thursday, June 12, 2008

बातें गणित की...भाग I

गणित का नाम सुनते ही अक्सर लोगों को एक बोझिल, पकाऊ, डरावना सा विषय याद आ जाता है... साथ ही याद आती है मास्टर जी की छड़ी. वैसे ये सही भी है... गणित ने हमारे देश में लगभग सभी स्कूल जाने वालों का बचपना छीना है... अगर गणित में रूचि हो गई तो भी और अगर ना हुई तब तो छीना ही छीना...। पर आप किसी भी श्रेणी में आते हों एक बात तो आपको माननी ही पड़ेगी... ये गणित है बड़े काम की चीज़. कोई भी क्षेत्र ढुन्ढ लो बिना इसके काम नहीं चलता, भले ही आप इसका सीधे-सीधे इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं लेकिन सच तो यही है की बिना इसके कुछ नहीं हो सकता... अगर आपको ये मिथ्या लगता है तो आप मुझे वो क्षेत्र बताइये जहाँ इसका इस्तेमाल नहीं होता? और रोचकता में तो गणित से जुड़ी कहानियो का कोई मुकाबला नहीं... [रोचकता मैं मैंने कहानी शब्द जोड़ दिया नहीं तो आधे लोग इससे आगे पढेंगे ही नहीं :-)] तो चलिए आज बात करते हैं कि 'गणित' है क्या?

गणित से साधारणतया हम अंक ही समझते हैं फिर गुणा-भाग, लाभ-हानि, क्षेत्रमिति(Mensuration), ज्यामिति... । ये वो गणित है जिससे मानव सभ्यता ने अपनी शुरुआत की. आज गणित इतना व्यापक हो चला है कि इस गणित को विद्यालयीय गणित कहना ज्यादा उपयुक्त होगा. वैसे गणित कि शुरुआत गिनती से ही हुई होगी इसमे कोई दो राय नहीं... फिर व्यापार, लेन-देन और फिर आई ज्यामिति(Geometry). ज्यामिति से गणित का खूब विकास हुआ और त्रिकोणमिति (Trigonometry) जैसी शाखाएं इसीसे आई.

अभी-अभी हमने गिनती की चर्चा की थी... शुरुआत में गिनती बिना नंबरों के ही शुरू हुई होगी क्योंकि नंबरों का इस्तेमाल काफ़ी देर से शुरू हुआ पर गणित तो तब भी था, जब नंबर नहीं थे. थोड़ा अजीब लगता है पर ये सच है... जैसे मान लीजिये की एक आदमी के पास चार मवेशी थे उनको गिनता तो वो तब भी था बस चार कहता नहीं था, मेरे हिसाब से वो गिनने के लिए किसी चार अन्य वस्तु का इस्तेमाल करता रहा होगा... जैसे चार कंकड़. इस प्रकार अंकों का ज्ञान ना होते हुए भी मनुष्य गिनती करता रहा... इस गिनती में '४ मवेशी-४ कंकड़' दोनों समूहों को एक-एक करके मिलाता होगा, और इस प्रकार फलन(Function) का इस्तेमाल चालू कर दिया होगा. धीरे-धीरे खेती, घर, वेदी, सड़क, दूरी नापने, बर्तन बनाने आदि के लिए ज्यामिति का इस्तेमाल करना प्रारम्भ किया गया.

ये तो हुए आज के विद्यालयीय गणित... अगर आपने एक बात पर ध्यान दिया हो तो मैंने हर जगह 'इस्तेमाल किया' का उपयोग किया है... इससे मेरा मतलब है कि गणित का कभी 'आविष्कार' नहीं हुआ. ये तो हमेशा से हर मनुष्य के अन्दर होता है... इसीलिए यह मानव सभ्यता के प्रारम्भ से लेकर आजतक सतत बढ़ता जा रहा है नित्य नए क्षेत्रों में. यहीं पर गणित विज्ञान से अलग होता है, विज्ञान की बातें इंसान को बाहर की वस्तुओं का निरीक्षण और उनके प्रयोग करने से आती हैं... पर गणित की बातें मनुष्य के अन्दर से आती हैं. गणितज्ञ एक बंद कमरे में बैठ कर पूरी की पूरी गणित की एक शाखा लिख जाते हैं इसके लिए उन्हें किसी बाहरी वस्तु की जरुरत नहीं होती ठीक उसी तरह जैसे योगी ध्यान लगाकर भगवान् को महसूस कर लेते हैं.

अरे आज के लिए ज्यादा तो नहीं हो रहा... चलिए आज की बात ख़त्म करते हैं. जाते-जाते आने वाले पोस्ट की झलकियाँ दे दूँ आपको. आगे चर्चा होगी शुद्ध(Pure) और प्रायोगिक(Applied) गणित की, गणित तथा स्यांखिकी(Statistics) और प्रायिकता(Probability) में अन्तर की, गणित के विभिन्न शाखाओं की, गणित में तर्क, अंतरात्मा और गणित के खूबसूरत होने की (गणित की खूबसूरती कविता की तरह होने की), गणित और दर्शन की... ढेर सारी रोचक कहानियाँ भी होंगी... गणित के कठिनतम सवालों का इतिहास और उनके साथ जुड़ी मस्त कहानियां... ऐसा गणित जिसने लड़ाई जितने में मदद की और ऐसे प्यार जिसमें गणितज्ञों ने जान दी... आज कल तो गणित का इस्तेमाल इश्क से लेकर तलाक तक में इस्तेमाल होने लगा है ! इंजीनियरिंग तो गणित के बिना पंगु ऐसा होगा की अँधा, बहरा, गूंगा सभी हो जायेगा...

ये सारी बातें होंगी, अगर आपको पसंद आती गई तो :-)



ये logo मैंने अपने संस्थान के 'गणित और स्यांखिकी ग्रुप: Stamatics' के लिए बनाया था... क्या आप बता सकते हैं ये क्या-क्या इंगित करता है?

ऊपर की तस्वीर साभार: http://www.uofaweb.ualberta.ca/compneurolab/images/math_400.jpg

Thursday, June 5, 2008

अद्भुत फोटोग्राफी

विलक्षण फोटोग्राफी का नमूना पेश करती ५० तसवीरें अप यहाँ देखिये:

50 (Really) Stunning Pictures and Photos

और स्वागत कीजिये मेरे एक दोस्त का हिन्दी ब्लॉग जगत में:

वंदे मातरम् (http://shikharawasthi.blogspot.com/)


~Abhishek Ojha~