Sunday, July 22, 2012

गणितीय कला के कुछ शानदार नमूने

गणित और कला का पुराना नाता है। वैदिक यज्ञों में बनने वाली वेदियों और हवन कुंडों से लेकर  पिरामिड तक। पुराने से पुराने कला के नमूनों में गणितीय अनुपात देखे जा सकते हैं। 

इससे पहले इस ब्लॉग पर सुनहरा अनुपात (गोल्डेन रेशियो/सौंदर्य अनुपात), फ्रैक्टल, और एक गणितीय नेकलेस जैसी कुछ पोस्ट में ऐसी कलाओं का जिक्र मैंने किया था । पर पिछले दिनों ब्रिजेस गणितीय कला का लिंक मिला। यहाँ पर आप कुछ आधुनिक गणितीय कला के शानदार नमूने देख सकते हैं।

पिछले कुछ प्रदर्शनियों की कलाकृतियाँ और 2012 के कोन्फ्रेंस में दिखाई जाने वाली कलाकृतियाँ भी।

एक से बढ़कर एक ! जैसे ये दो नमूने देखिये। ये बर्कली स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के कम्प्युटर साइंस के प्रोफेसर कार्लो सेक्वेन की कलाकृति है।

नीचे वाली कलाकृति बैरी सिप्रा की है। इनकी कलाकृति 'लूपी लव' मोबियस स्ट्रिप पर लिखी गयी एक लघु प्रेम कहानी है। मोबियस स्ट्रिप की ये खासियत होती है कि उसकी सतह एक ही होती है। अर्थात आप जहां से चलें वहीं वापस आ जाते हैं... अर्थात जिस पन्ने से बनाया जाय उस असली पन्ने का दोनों हिस्सा तय कर लेते हैं - बिना कभी पन्ना पलटे !

'लूपी लव' के बारे में पढ़िये: पाठक आसानी से उस पर लिखी कहानी बिना कभी पन्ना पलटे पढ़ सकते हैं। देखने वाले इसे उठा कर इससे खेल सकते हैं और शुरू से अंत तक कहानी पढ़ सकते हैं – बस ना कोई शुरुआत है न कोई अंत !

बाकी कला दीर्घा आप लिंक पर देख कर आइये। रोचक है।

Thursday, July 12, 2012

सुनना ड्रम की आकृति को

वो  गाना तो आपने सुना ही होगा जिसमें आँखों की महकती खुशबू को देखना और फिर हाथ से छूना जैसी बात होती है. किसी चीज के आकर प्रकार को सुनना भी कुछ ऐसी ही बात लगती है.

सवाल कुछ ऐसा है कि जो भी ध्वनि हम अपने कानों से सुनते हैं क्या हम उससे, आवाज के स्रोत का आकर-प्रकार पता लगा सकते हैं?  मान लीजिये हम अपनी आँखें बंद कर लें और किसी से आस पास रखी चीजों को बजाने के लिए कहें. तो क्या हम बता सकते हैं कि आवाज किस चीज से आ रही है ! शायद हाँ. पर हमने उन चीजों को देखा होता है !

पर अगर अनजान चीजों को बजाएं तो भी क्या हमें पता चल सकता है?

क्या आकृति के हिसाब से उनसे निकलने वाली आवाज अद्वितीय होती है. ? अगर हाँ. तो आवाज सुनकर वस्तुओं की आकृति भी बताई जा सकती है. !

गणितीय रूप में इस सवाल को गणितज्ञ मार्क कैक ने १९६६ में लिखा. क्या आवाज की तरंग/स्पेक्ट्रम की व्याख्या कर हम उन ड्रमों की आकृति बता सकते हैं जिनसे वो आवाज आ रही है !  अर्थात क्या ध्वनि तरंगों की व्याख्या से वस्तुओं की ज्यामिति का पता लगाया जा सकता है?
साधारण शब्दों में कहें तो उन्होंने एक फलन (फंक्शन) परिभाषित किया वस्तुओं की ज्यामिति से ध्वनि तरंगों में. और फिर सवाल ये हुआ कि क्या एक ही ध्वनि तरंग के लिए अलग-अलग ज्यामिति के हल हो सकते हैं ?

गणितीय हल से निकला कि हाँ ऐसा संभव है. अर्थात एक ही ध्वनि तरंग के लिए अलग अलग ज्यामिति संभव है ! पहला हल सोलह डाइमेंशन की ज्यामिति का था. पर... बाद में बाकी डाइमेंशन के हल भी मिल गए. और ये पता चला कि किसी भी एक ध्वनि तरंग के लिए वस्तुओं की ज्यामिति अद्वितीय नहीं होती. अर्थात विभिन्न आकर की वस्तुओं से एक जैसी ध्वनि तरंगे निकल सकती हैं.

इस अध्ययन के क्रम में ये भी पता चला कि ड्रम की पूर्ण आकृति तो नहीं पर थोडा-बहुत पता तो लगाया जा ही सकता है. !

अगर आपको गणित आती हो तो गणितीय रूप और मार्क कैक का असली पेपर आप यहाँ देख सकते हैं.

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~Abhishek Ojha~

Thursday, July 5, 2012

कितने सिग्मा का भरोसा ?

हिग्स बॉसन के आविष्कार के खबर में एक पंक्ति ये भी है कि इस खोज का विश्वास स्तर या कांफिडेंस लेवल ५ सिग्मा का है। क्या है ये विश्वास स्तर?

सांख्यिकी में विश्वास स्तर को स्टैंडर्ड डेविएशन (मानक विचलन) की इकाई में नापा जाता है। जिसे ग्रीक अक्षर सिग्मा से लिखा जाता है। सिग्मा अर्थात मानक विचलन अर्थात आंकड़ों में विभिन्नता का माप। एक आंकड़ें में दिये गए अंक अपने औसत से कितने दूर या पास है।

कोई भी परिणाम कितना भरोसे का है उसके लिए अक्सर सांख्यिकी के विश्वास स्तर के सिद्धान्त का इस्तेमाल किया जाता है। समाजशास्त्र, भौतिकी, अभियांत्रिकी, आयुर्विज्ञान, वित्तीय अभियांत्रिकी जैसे लगभग हर क्षेत्र में इस सिद्धान्त का इस्तेमाल होता है।

समान्य वितरण या नॉर्मल डिस्ट्रिब्यूशन या बेल कर्व (घंटी के आकार का वक्र होने के कारण इसे बेल कर्व भी कहते हैं) सांख्यिकी का सबसे प्रसिद्ध वितरण है। इस वितरण में अधिकतर आंकड़े औसत के करीब ही होते हैं और जैसे जैसे हम औसत से दूर होते जाते हैं आंकड़ों की संख्या तेजी से कम होती जाती है। वास्तविक जीवन में ऐसे वितरण अक्सर देखने को मिलते है जैसे किसी क्लास में अधिकतर बच्चे औसत के करीब अंक लाते हैं। बहुत ज्यादा और बहुत कम अंक लाने वाले छात्र हमेशा ही कम होते हैं। वैसे ही किसी कार्यालय में बहुत ज्यादा काम करने वाले और बहुत कम काम करने वाले भी कम होते हैं ज़्यादातर औसत ही होते हैं। लोगों की ऊंचाई पर भी ये वितरण काम करता है इत्यादि!

समान्य वितरण के हिसाब से औसत के 1 सिग्मा की दूरी के अंदर ही 68.27File:Standard deviation diagram.svg प्रतिशत आंकड़े आ जाते हैं। 2 सिग्मा के अंदर 95.45 प्रतिशत, 3 सिग्मा के अंदर 99.73... इसी तरह 5 सिग्मा के अंदर 99.9999426696856 प्रतिशत। अर्थात समान्य वितरण में कुछ 5 सिग्मा से बाहर हो इसके होने की संभवना बहुत कम हो जाती है। लाखों में एक होने की तर्ज पर - 3,488,555 में एक। 

पर किसी वितरण के समान्य वितरण जैसा होने का मतलब ये कभी नहीं होता कि वो समान्य वितरण ही हो। जैसे प्रकृति में अक्सर 10-12 सिग्मा से बाहर की घंटनाएँ भी होती रहती हैं। जैसे - सुनामी ! शेयर बाजार में भी इस वितरण का बहुत इस्तेमाल होता है पर अक्टूबर 1987 के शेयर बाजार की गिरावट 36 सिग्मा से बाहर होने की घटना थी ! समान्य वितरण के हिसाब से - लगभग असंभव !  कहने का मतलब ये कि इस वितरण को इस्तेमाल करने से पहले इसके सही अर्थ को समझना भी बहुत जरूरी है। लगभग असंभव और लगभग समान्य... दोनों में ही 'लगभग' शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण है।

इस घोषणा में 5 सिग्मा भरोसा होने का अर्थ ये है कि इन परिणामो के एक अनायास ही संयोग होने की संभावना 3,488,555 में 1 होने जैसी है ! (पर शून्य नहींSmile)

 

इससे पहले केवल 2.5 सिग्मा का भरोसा होने से इसे खोज का नाम नहीं दिया जा सका था।

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ये सिद्धान्त कहीं भी लागू हो सकता है। अभी खयाल आया कि 36-40 सिग्मा  से बाहर वाली खूबसूरती वाला पैराग्राफ गणितीय प्रेम पत्र में भी जोड़ा जा सकता था। Smile

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~Abhishek Ojha~

Monday, February 27, 2012

अनंत

अनंत एक अंक नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है... एक सोच है... वो जो हर बड़े से बड़ा हो... फिर कैसे परिभाषित करें इसे? कई बातें शायद मानव सोच के बाहर होती हैं... एक ये भी है !

कुछ गणितज्ञों ने इसे... अति सूक्ष्म (इंफानाइटेसिमल ) का उल्टा कहा। छोटे से छोटा होते हुए जब शून्य पर पहुंचे तो उसका उलट अनंत ! लेकिन इस परिभाषा का भी कोई मतलब नहीं... शून्य 'एक' अंक है... अनंत नहीं। कैंटर ने जब कहा की अनंत एक ही नहीं होता तो अनंत इस परिभाषा के दायरे से भी बाहर हो गया।

कैंटर ने कार्डिनलिटी, यानि किसी समुच्चय में कितने सदस्य हैं, के सिद्धान्त का इस्तेमाल कर कहा कि अगर किसी समुच्चय में से उसके कुछ सदस्य निकाल दिये जाएँ और बचे हुए समुच्चय तथा मूल समुच्चय की कार्डिनलिटी समान हो, तो ऐसे समुच्चय के सदस्यों की संख्या अनंत होती है। अर्थात बालटी  में से एक लोटा पानी निकाल लें और फिर भी बालटी में उतना ही जल शेष बचे जितना पहले था तो इसका मतलब हुआ कि बालटी में अनंत जल है !

जैसे सभी प्राकृतिक संख्याओं के समुच्चय में से केवल सम संख्याएँ निकाल कर एक नया समुच्चय बनाया जाय तो प्राकृतिक संख्याओं के समुच्चय और सम संख्याओं के समुच्चय के सदस्यों की संख्या समान ही होगी। दोनों समुच्चयों में एक-एक की बराबरी है।  1, 2, 3,... –> 2, 4, 6,... जितने सदस्य पहले में उतने ही दूसरे में, जबकि दूसरा समुच्चय खुद पहले का उप-समुच्चय भी है। अर्थात उसके सारे सदस्य पहले के सदस्य भी हैं ! इससे पहले सम (विषम) सख्याओं की संख्या वाले अनंत को प्राकृतिक संख्या वाले अनंत से छोटा अनंत भी कुछ लोग मानते थे। लेकिन एकैक फलन से कैंटर ने परिभाषित किया कि प्रकृतिक सख्याओं वाले अनंत अर्थात गिनती कर अनंत तक पंहुचने वाले अनंत और परिमेय संख्याओं के समुच्चय वाले अनंत भी एक ही है। क्योंकि प्रकृतिक संख्याओं और परिमेय संख्याओं में भी एक-एक का रिश्ता (फलन) निकाला जा सकता है। लेकिन फिर जब अपरिमेय संख्याओं पर बात आई तो कैंटर ने कहा कि ये अनंत प्रकृतिक संख्याओं के अनंत से बड़ा होता है !

कैंटर ने अनंतों के लिए एक अलग गणित और नियम बनाया... लेकिन इन दो अनंतों के बीच में भी क्या कोई अनंत होता है? इस सवाल का उत्तर बाद में ये मिला कि 'न तो इसे सही साबित ही किया जा सकता है ना ही गलत"।

अनंत के बारे में एक और बात... अगर हम किसी भी चीज में कुछ जोड़ते रहें अर्थात उसे बढ़ाते रहें तो अनंत तक पँहुच जाएँगे ये जरूरी नहीं ! वैसे ही जैसे रोज बस कुछ पढ़ने से हम विद्वान हो जाएँ ये जरूरी नहींOpen-mouthed smile जैसे हम एक 1 में आधा जोड़ दें, फिर 1 चौथाई, फिर 1 का आठवाँ हिस्सा.... इस तरह हम जीवन भर जोड़ते रह जाएँ तो भी योग 2 से अधिक कभी नहीं हो पाएगा ! ये गणित में लिमिट का सिद्धान्त है।

फिजिक्स में कई बार जब समीकरण अर्थहीन हो जाते हैं और सिद्धान्त काम करने बंद कर देते हैं... परिणाम अनंत आने लगते हैं तो उसे सिंगुलारिटी कहते हैं। जहां पर जाकर मानव सोच और उसके सिद्धान्त काम करना बंद कर दे... !

अनंत पर एक और रोचक बात एक बिन्दु की लंबाई शून्य नहीं होती वरन एक बिन्दु कि कोई लंबाई ही नहीं होती....  अर्थात एक सेमी हो या एक किलोमीटर या यहाँ से चाँद की दूरी सभी में समान बिन्दु होंगे - अनंत । यही नहीं अगर हम एक डाइमेनशन से ऊपर बढ़े तो भी अनंत बिन्दु होंगे... !

हरी अनंत हरी कथा अनंता... और .... ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।

~Abhishek Ojha~