पहले परिचय फक्का से. वाक्य प्रयोग के हिसाब से फक्का या तो खाने की चीज होती है या लगने वाली. पर वास्तव में कम से कम खाने की तो नहीं होती ! हमारे कॉलेज में ग्रेडिंग होती है और 'ए' से 'एफ' तक (‘इ’ छोड़कर) ग्रेड मिलते हैं. कॉलेज शब्दावली में इन्हें क्रमशः इक्का, बिक्का, सिक्का, डिक्का और फक्का कहा जाता है. अब तो आप समझ ही गए होंगे फक्का मतलब न्यूनतम ग्रेड अर्थात फेल ! तो ये शब्द खूब इस्तेमाल होता था. वैसे फक्का शब्द का मूल शब्द 'एफ' ग्रेड है या ‘चार अक्षरीय एफ शब्द’ कई चर्चाओं के बाद भी ये अब तक अनजान ही है. विद्वानों में इस पर मतभेद है और जब तक कोई भाषाविज्ञानी इस पर काम नहीं करता हम ये मानते हैं कि फिलहाल दोनों ही संभव है. :)
अब बात टोपोलोजी की. टोपोलोजी गणित की एक मुख्य शाखा है. वैसे नाम सुनकर तो यही लगता है कि कुछ ऐसा गणित होता होगा जिसमें टोपने की कला सिखाई जाती होगी ! टोपने के फोर्मुले ! (अब टोपना क्या होता है ये नहीं पता तो किसी भी कनपुरिये से पूछ लीजिये. मुझे पूरा यकीन है कि से शब्द कैम्पस के बाहर से आया होगा). पर जब पता चला कि टोपोलोजी निर्विवाद रूप से सबसे ज्यादा फक्के लगाने (खिलाने) वाला कोर्स होता है तो लगा कि टोपोलोजी शायद इसलिए कहते होंगे क्योंकि इसमें टोप के भी कोई पास नहीं हो पाता. अक्सर परीक्षा के पहले ये बात उठती… ‘टोपोगे तो किसका?’ एक आध जिनको समझ में आता वो टोपा-टापी से दूर ही रहने वाले विजातीय लोग हुआ करते थे. और हर बार दो तिहाई क्लास फक्का खा जाती. तो गणित नहीं हॉरर हुआ करता था. और भय फर्स्ट इयर से ही चालु हो जाता. अब मध्यकालीन भारत में नादिरशाह आया होगा... तब फ़ोन तो नहीं था फिर भी २-४ गाँव तक आतंक की खबर तो पहुचती ही होगी. वैसे ही भरपूर आतंक हुआ करता टोपोलोजी का भी.
कुल मिला के टोपोलोजी का आतंक और फक्को से बड़ा गहरा नाता रहा है. वैसे अजीब विषय है जिनके नंबर आते हैं उनके पूरे आते हैं और बाकी खाता ही नहीं खोल पाते खोलते भी हैं तो ५-१० से आगे नहीं बढ़ पाते. बीच के नंबर लाने वाले बिरले ही होते हैं. पूरी तरह से से अब्सट्रैक्ट गणित होता है जिनको समझ में आये तो एकदम ही. ना आये तो फिर... !
वैसे एक बार इलाहबाद में स्थित एचआरआई में एक कांफ्रेंस में एक हमउम्र विद्यार्थी से मुलाकात हुई तो उसने बताया 'इस साल तो टोपोलोजी जैसे कुछ स्कोरिंग पेपर थे तो अच्छे नंबर आ गए !' हम तो उसे बड़ी इज्जत कि नजरों से देखे. क्या तेज लड़का है ! फिर उसने बताया '२०-२५ सवाल रट लेने होते हैं और हर साल वही तो आता है पेपर में !'. इससे हमारी उच्च शिक्षा के स्तर का पता चलता है, कितनी मददगार है न !. खैर हमें तो बहुत दुःख हुआ... काश ! हम भी वैसे पास हुए होते. कहाँ हमारे क्लास के रणबांकुरे चौथी बार में पास हुए थे. खैर आपको बता देता हूँ भले किसी लड़की से उसकी उम्र १० बार पूछियेगा किसी आईआईटी कानपुर/दिल्ली में पढ़े इंसान से टोपोलोजी का ग्रेड और कितनी बार में पास हुआ ये मत पूछियेगा. मैं बस इतना बताये दे रहा हूँ कि एक बार में ही पास हो गया था अब ग्रेड तो नहिये बताऊंगा चाहे कुछ भी हो जाए :)
हाँ तो अब मन किया... थोडा आपको बता दिया जाय कि ये चीज क्या होती है ! गणित की इस शाखा और इससे जुड़े कुछ गणितज्ञों के बारे में अगली कुछ कड़ियों में. वैसे एक बात है अगर कोई अच्छा पढाने वाला हो और टोपोलोजी को फील करने वाला इंसान तो फिर ये आनंद की प्राप्ति करने वाला होता है. वैसे मुझे कभी फीलिंग नहीं आ पायी पर कुछ बातें बड़ी रोचक लगी और इससे जुड़े कुछ लोग तो... !
घबराइये नहीं रोचक कहानिया, किस्से और इतिहास ही होगा और आप सब को इक्का तो मिलेगा ही.
~Abhishek Ojha~