पिछली पोस्ट से जारी...
कुछ ब्लॉग व्यवसायिक होते हैं, जैसे कम्पनियों के ब्लॉग. उनके लिए अक्सर ये ब्लॉग समस्या कड़ी कर देते हैं. कानूनी अडचनों के अलावा अक्सर आन्तरिक खबर और व्यवसाय की गोपनीयता/रणनीति सार्वजनिक हो जाती है. अगर ऐसी ब्लॉग्गिंग आपका पेशा है तो भाई ये सब तो आप को पता ही होगा ! अगर नहीं है तो हम आपको फोकट में क्यों बताएं :) यहाँ तो हम जैसे टाइम पास ब्लोगरों के लिए बकबक की जा रही है.
तो हम जैसे लोग आप इस बात का ध्यान रखिये... अगर बॉस की बुराई करनी हो, उससे कुछ विवाद चल रहा हो, कुछ आपसी मतभेद या शिकायतें हैं तो उन्हें ब्लॉग से दूर ही रखो तो बेहतर है. नौकरी का खतरा तो वैसे पिछली पोस्ट में आ ही गया था. अगर ज्यादा व्यक्तिगत बातें तलाक करवा दें तो आर्श्चय नहीं ! अरे जब खर्राटे लेने तक से तलाक हो सकता है तो ब्लॉग्गिंग की माया तो… ! हाँ एक बात फिर से कहना चाहूँगा. अगर आपको लगता है कि आपका ब्लॉग बहुत कम लोग पढ़ते हैं तो ये आपकी गलतफहमी है. भले ही बहुत कम लोग पढ़ते हैं पर आप जिसके बारे में लिख रहे हैं उसे तो पता चल ही जाएगा. भले ही वो बुरकीना फासो में रहता हो और उसने हिंदी का नाम भी नहीं सुना हो !
टिपण्णीयों और ब्लॉग पर दिखने वाले विज्ञापनों में अगर अश्लील सामग्री दिखने लगे तो... ? कुछ दिनों पहले रवि रतलामीजी ने इस पर एक पोस्ट लिखा था. और कल ही एक प्रतिष्ठित ब्लोगर के ब्लॉग पर लडकियां उपलब्ध करवाई जा रही थी. तो अब हम क्या कहें ! इसके साथ अगर कोई (स्पैम) टिपण्णी में वायरस या ऐसा ही अश्लील लिंक हो तो आप वहां तक चले ही जायेंगे. अगर वायरस जैसा कुछ हुआ तो क्या-क्या हो सकता है आप जानते ही हैं.
एक रोचक और खतरनाक खतरा है. मुंबई हमलों में खबर आई कि आतंकवादी भीतर बैठे ट्विट्टर पर अपडेट देख रहे हैं. वैसे अपने सजग और बुद्धिमान (?) टेलिविज़न चैनलों के होते हुए उन्हें ये करने की जरुरत पड़ी हो ऐसा लगता तो नहीं. फिर भी ये खतरा तो है ही. और हड़बड़ी में लोकप्रिय होने के लिए लोग धकाधक सनसनी खेज खबरें तो ठेलते ही हैं ! खासकर उन्हें जिन्हें ऐसी खबरें मिलती हैं उन्हें सावधानी तो बरतनी ही चाहिए.
इसके अलावा अगर आपने कुछ विवादस्पद [थोडा ज्यादा सच :)] लिख दिया और दंगे-वंगे हो जाएँ तो बड़ी बात नहीं होगी. इसीलिए शायद कहा जाता है सच और सच के सिवाय कुछ नहीं. ज्यादा और कम सच कुछ नहीं होता या तो सच होता है या झूठ. सच और झूठ बाइनरी है जी… बस ० या १ होता है बीच का नहीं. तो सच से ज्यादा या कम लिखने पर दंगे हो गए तो फिर अब इससे बड़ा खतरा क्या होगा? आप अपने को सच भी साबित नहीं कर पायेंगे जी !
इस पूरी श्रृंखला में छोटे-बड़े जो भी खतरे आये इनमे से ऐसा कोई नहीं जिसे लेकर ब्लॉग्गिंग बंद कर दी जाए. सभी से सावधानी बरतने का संकेत जरूर मिलता है.
और फिर अंत में गोल-गोल घुमने के बाद फिर वही बात जहाँ से चालु हुई थी. ये कोई खतरों की एक्सटेंसिव सूची नहीं है. और असली खतरें तो वो होते हैं जो कोई सोच/देख/गिना नहीं सकता. असली अप्रत्याशित खतरे तो ऐसे होते हैं: 'न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्योलोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव'. नसीम तालेब के ब्लैक स्वान की तरह जब तक कोई काला हंस ना दिख जाए सब यही मान के चलते हैं कि हंस तो बस श्वेत ही होता है ! वैसे ही जब तक पहली बार कोई अप्रत्याशित घटना नहीं हो जाती हमें सब सुरक्षित ही लगता है. वो खतरा ही क्या जिसके बारे में पहले से जानकारी (भ्रम!) हो.
(समाप्त)
~Abhishek Ojha~
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इन खतरों के बीच में गणित खो गया था. गणित की वापसी अगली पोस्ट से...
जोरदार अभिषेक जी ! अंतर्जाल के खतरों से पृथक कर ब्लॉग के खतरों पर इतना तफसील से जानकारी देकर अपने मुझ जैसे कईयों का बड़ा भला किया है !
ReplyDeleteबेहतरीन!! इन्तजार लगा था. हम तो खुश थे कि गणित खो गया.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती के साथ आपनें समझाया है ,राह दिखाई है .धन्यवाद .
ReplyDeleteबेहतरीन!!!!!
ReplyDeleteधन्यवाद!!!!
सतर्क करता हुआ विश्लेषण पसन्द आया।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
ब्लोगिंग का एक खतरा को आपसे छूट ही गया। ज्यादा ब्लोगिंग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, विशेषकर आंखों के लिए। इससे हार्ट एटैक, डिप्रेशन, एसिडिटी, मोटापा, कुपच, आदि अनेक बीमारियां हो सकती हैं।
ReplyDeleteइसलिए रह-रहकर ब्लोगिंग करना ही श्रेयस्कर है!
ज्यादा और कम सच कुछ नहीं होता या तो सच होता है या झूठ. सच और झूठ बाइनरी है जी… बस ० या १ होता है बीच का नहीं.
ReplyDelete----------
आज का सच कल के अन्य साक्ष्यों के सन्दर्भ में उतना सच नहीं रह जाता।
सच बाइनरी/गणितीय फिनॉमिना नहीं नैतिक सत्य है।
(Why does the icon below in my laptop says that site contains unauthenticated content! Better check with some add-on widgets!)
achchha lekh likha abhishek bhaiya.
ReplyDeleteलाजवाब्।
ReplyDeleteश्रृंखला को समेट कर एक पीडीएफ ईबुक प्रकाशित कर दें तो और उत्तम. हम इसकी कड़ी अपने ब्लॉग पर टांग देंगे - आने वालों होशियार - और ये कि देखो इतने खतरों के बावजूद हम मैदान में डटे हैं!
ReplyDeleteवाह वाह बहुत खूब .
ReplyDeleteबेहतरीन प्रविष्टि । आभार ।
ReplyDelete....ब्लॉग्गिंग के जाने माने खतरों से परिचित हैं मगर आप के द्वारा अनजान खतरों से भी परिचय हुआ.यह श्रृंखला रोचक रही.
ReplyDeleteचलिये ये पाठ तो सीख लिया -
ReplyDeleteअब गणित समझ मेँ आये
तब मान जायेँगे उस्ताद जी !
:-)
Blogging ke vibhinn khatron se parichit kara sarahniya kaam kiya hai aapne, Dhanyavad.
ReplyDelete@बालसुब्रमण्यम: सरजी ये खतरा तो है ही. भाग ३ में इसका जिक्र आया था - http://kuchh-baatein.blogspot.com/2009/05/blog-post_11.html
ReplyDeleteरविरतलामी जी की टिपण्णी सधन्यवाद सहित उधार ले रहा हूँ ....".आने वालों होशियार - और ये कि देखो इतने खतरों के बावजूद हम मैदान में डटे हैं!
ReplyDeleteसही बात, खतरे ही खतरे ही खतरे हैं.
ReplyDeleteएक बार ब्लॉगर से मिल तो लें l:-)
@ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey:
ReplyDeleteआपकी बात तो सही है. और ठीक यही बात मैंने एक पोस्ट में लिखी थी:
चाहे धनी-गरीब, पाप-पुण्य, सच-झूठ, परीक्षा में प्राप्त अंक, वेतन या फिर रीडर में अपठित लेख ! सब पर बाबा आइंस्टाइन का सापेक्षता सिद्धांत लगता है... और ये बातें निर्भर करती हैं आस पास के परिवेश और अवस्था पर !
जो आज सही है कल गलत हो जाता है और जो किसी के लिए सही है किसी और के लिए गलत. लेकिन कल लिखते हुए ख्याल आया: 'कानून में' अगर तर्क के हिसाब से काम होता है तो 'एट अ गिवेन पॉइंट ऑफ़ टाइम' सच केवल सच ही तो हो सकता है ! अब ख्याल आया तो लिख दिया :)
अरे, आपने तो बडी खतरनाक बातें बता दीं।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
रोचक रही यह श्रृंखला ..इतने खतरे पर कोई न हटेगा इस ब्लाग मैदान से .. नशा ही यह कुछ ऐसा है जी
ReplyDeletebahut hi badhiya jaankari ke sath sath kuchh sawdhaniyo ke prati sachet kiya .......dhanyabaad.......uchit post
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी, ओर बहुत अच्छे ढंग से समझाई.
ReplyDeleteधन्यवाद
खतरे कहाँ नहीं हैं? हर काम में हैं और हर काम किए जा रहे हैं लोग।
ReplyDeleteब्लागगिंग छोड दे तो भी नाराज हो जाओगे :)
ReplyDeleteबेहतरीन ज्ञान बाँटा आपने। इन खतरों से सजग रहकर काम करें तो सुरक्षित ब्लॉगिंग हो सकती है। शुक्रिया।
ReplyDeleteकुछ खतरों की ओर टूटी-फूटी पर प्रकाश डाला गया है। लेकिन वहाँ कुछ फ़ायदे भी गिनाए गये हैं।
सोचता हूं समय रहते यहां से निकल लेने मे ही भलाई है.:)
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुंदर प्रिय अभिषेक !!
ReplyDeleteइस तरह विषयाधारित आलेख देना शुरू कर दो तो कई महत्वपूर्ण विषयों पर पठनीय सामग्री हम पाठकों को मिल जायगी.
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
हूँ, आजकल शोधकार्य रहा है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
... गणित समझना आवश्यक जान पडता है !!!!!!
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी दी आपने !
ReplyDeleteफिर भी हम डटे रहेंगे !
आज की आवाज
वाह भैया क्या पोस्ट है
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