पिछली पोस्ट से जारी...
एक गंभीर खतरा है नौकरी जाने का ! अब आप सरकारी नौकरी वाले हैं और वो भी ऐसी मलाई वाली जिसमें कुछ भी करो माफ़ है तब तो ठीक है. वर्ना जरा संभल के. नहीं तो पता चला मंदी से बच गए और ब्लॉग्गिंग ले डूबा ! वैसे ही ब्लॉग्गिंग, ट्विट्टर और फेसबुक ने बहुत लोगों की नौकरी ली है. आप असावधान हुए तो आपको भी ले डूबेंगे उनकी तो अब आदत हो चली है :)
संभवतः यह ब्लॉग्गिंग का सबसे बड़ा खतरा है. हाल ही में किसी ने फेसबुक स्टेटस लगाया कि वो नयी कंपनी ज्वाइन कर रहा है. उसी मेसेज के थ्रेड में किसी के सवाल के उत्तर में उसने लिखा कि ‘काम किसे करना है. हमें तो अनुभव है काम नहीं करने का :)’. बस… नयी कंपनी के किसी अधिकारी ने उसे पढ़ लिया और फिर न इधर के हुए न उधर के. ऐसे ही कोई बीमारी का बहाना बनाकर छुट्टी पर गया और फेसबुक ने नौकरी ले ली.
ये तो ठीक… कई बार जोश में आकर लोग टविट्टरिया/ब्लोगिया देते हैं: 'हमारे ऑफिस में फलां बात की मीटिंग चल रही है' और इसी सिलसिले में कोई गोपनीय बात निकल जाती है. और फिर नतीजा: गुलाबी रशीद थमा दी जाती है. हाल के दिनों में ऐसे खूब मामले हुए हैं. इनकी कोई गिनती तो नहीं है और बीच-बीच में ऐसी खबरें आती रहती हैं. वैसे ये खतरा नया भी नहीं है. किसी महाशय ने तो २००४ में ही ऐसे लोगों की सूची बनानी चालु की थी जो ब्लॉग्गिंग में नौकरी गवां चुके थे. एक हालिया नमूना :
तो अगर आप ऑफिस से ब्लॉग्गिंग करते हैं ऑफिस से जुडी बातों को ब्लॉग पर डालते हैं तो फिर तो... ! मजाक लग रहा हो तो तो लो पढो ये सारे लिंक. हाथ कंगन को आरसी क्या?
CNN Producer Says He Was Fired for Blogging
Beware if your blog is related to work
'Ill' worker fired over Facebook
बढ़ते हैं अगले खतरे की तरफ… किशोरों के लिए ब्लॉग्गिंग के संभावित खतरों में एक की तरफ इंगित करता न्यू हैम्पसायर विश्वविद्यालय के क्राइम्स अगेंस्ट चिल्ड्रेन रिसर्च सेण्टर का यह शोध पत्र है कि क्या ब्लॉग्गिंग किशोरों के ऑनलाइन यौन उत्पीडन का खतरा पैदा कर सकता है? इस शोध के पृष्ट २८९-२९१ पर नतीजो को आप पढ़ सकते हैं. इसे पढ़ कर तो यह जरूरी लगता है कि अवयस्क ब्लोगरों को उचित मार्गदर्शन मिले.
आज की पोस्ट में पढने को बहुत सारे लिंक है इसलिए यहीं विराम लगाते हैं. वैसे कहीं ये मेरी गलतफहमी तो नहीं कि आप लिंक्स पर जाकर पढेंगे ? :)
~Abhishek Ojha~
जारी रहेगा…
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चित्र साभार: http://blog.adamnash.com/2009/03/22/ask-not-for-whom-the-bell-tweets/
अपना तो काम ही ब्लोगीँग है - बिना किसी छल कपट के -
ReplyDeleteकार्य की सीमा मर्यादा को ध्यान मेँ रखना जरुरी है ये बात तो पक्की ! - लावण्या
हाँ, ये खतरे तो हैं। ये वही सब खतरे हैं जो अभिव्यक्ति के हैं। जबान बोल कर अन्दर घुस जाती है सजा सिर को भुगतनी पड़ती है।
ReplyDeleteखतरे तो हैं ही यह,पर इनसे बेखबर बस लिखे जा रहे हैं । आखिर मन की लिख रहे हैं, कामना हमेशा यही रहती है - अभी कुछ और डूबो मन ।
ReplyDelete"किशोरों के ऑनलाइन यौन उत्पीडन का खतरा पैदा कर सकता है? "
ReplyDeleteअभिषेक भाई क्या यह खतरा केवल अवयस्कों के लिए ही है ?पक्का ? आपकी बात मन कर निश्चिंत हो जाऊं ?
आपने तो कमाल की श्रृंखला शुरू की है। अब छुट्टियाँ खतम करके लौटा हूँ। फुरसत से पढूंगा। अभी तो हाजिरी और बधाई दर्ज की जाय। :)
ReplyDeleteरोचक लिंक ढूंढ़ लाये आप तो ..सही जा रही है यह श्रृंखला ..
ReplyDelete@Arvind Mishra: अरविंदजी आपकी बात सही है. पर ऑनलाइन अनुरोधों से उत्पीडन का खतरा अवयस्कों में 'ज्यादा' है. व्यस्क फिर भी बहकावे से बच सकते हैं. बाकी अगली कड़ी में भी कुछ आएगा ही :)
ReplyDeleteब्लागिंग क्या, हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है!
ReplyDeleteअवयस्क उत्पीडन का अनजाने में शिकार बनते है .ओर व्यस्क उत्पीडित होने के ठिकाने भी ढूंढते है ..कम से कम ब्लोगिंग में तो ऐसा ही लगता है हजूर...
ReplyDeleteअनुराग जी से सहमत हूँ :-)
ReplyDeleteभाई हमको तो डर लगने लगा है. आप भी हमको काहे डरा रहे हैं.:)
ReplyDeleteरामराम.
अजी जब ओफ़िस समय मै, ओर ओफ़िस के पिसी से आप निजी प्रयोग करेगे तो हमारे यहां तो १००% नोकरी जाने के चांस है, क्योकि आप को पहले ही दिन यहां बता दिया जाता है कि ओफ़िस का पीसी आप के बाप का नही ओर आप को यहां काम करने के लिये दिया जाता है, सो काम करो, पकडे जाने पर छुट्टी, इस लिये मै तो कभी भी अपनी मेल भी चेक नही करता.
ReplyDeleteअगली बात से मै अनुराग जी से सहमत हुं
धन्यवाद
शुक्र है मेरे ऑफिस में कोई इन्टरनेट का प्रयोग नहीं करता। केवल मैं ही करता हूँ। लेकिन आपने जिन खतरों से आगाह किया है उनकी सच्चाई पूरी तरह समझ में आ रही है। मैं कुछ अधिक सावधान रहने की कोशिश करूंगा। वैसे ये बातें हमारी ब्लॉगरी की स्वतंत्रता पर कुठाराघात करती हैं। फिर एक बार यह सूक्ति स्थापित हुई - अति सर्वत्र वर्जयेत्।
ReplyDeleteअति सर्वत्र वर्जयेत्।
ReplyDelete--बस सिद्धार्थ जी ने तो मूल मंत्र लिख दिया.
हम तो ओफोस-वोफिस के गोरखधंधे से दो साल पहले मुक्त हो गए। अब ब्लोगिंग को ही धंधा बना लिया है। इसलिए यह सब मुझ पर लागू ही नहीं होता। हो रही है न, आप सबको ईर्ष्या मुझ पर!
ReplyDeleteचलिए, हमारी नौकरी भी बच ही गयी :-)
ReplyDeleteअच्छी जानकारी… खतरे तो सड़क पर चलने में भी हैं… इसलिये सावधानी और चतुराई महत्वपूर्ण है…
ReplyDeleteभैया, हम तो है ही बेरोज़गार! कौन निकालेगा हमे नौकरी से ब्लागिंग करने पर:)
ReplyDeleteअपन तो इसीलिए ट्विटर फेसबुक पर कुछ अपडेट नहीं करते.. खतरा है भाई खतरा है
ReplyDeleteअरे बाप रे....राम रे राम.....मेरा भी घर खराब होता जा रहा है....!!
ReplyDeleteअच्छा किया आपने खतरों से आगाह कर दिया ....पर इसके आलावा भी कई खतरे हैं ....उल-जलूल कमेन्ट से जो मानसिक परेशानी होती है उस से तो कई बार ब्लॉग ही बंद कर देने का मन होता है ....!!
ReplyDeleteअरे ये पार्ट तो छूट ही गया था।
ReplyDeleteवैसे जब नौकरी पेशा आदमी सब कुछ भूल कर ब्लॉगिंग के चक्कर में पडा रहेगा, तो नौकरी तो जा ही सकती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
भैया यहाँ तो नोकरी ही नही है फिर जाने का डर कैसा ।
ReplyDeleteआप सबको पिता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ...
ReplyDeleteDevPalmistry