पिछली पोस्ट पर कमेन्ट:
वैसे शत प्रतिशत से अधिक की संम्भावना प्रॉबेबिलिटी में कैसे व्यक्त होती है?!
पहले तो इस टिपण्णी को बस पढ़ लेता हूँ, पहली लाइन पढ़ कर प्रसन्न: बिलकुल सही कह रहे हैं आप... ऐसे ही डेढ़ सौ, दो सौ परसेंट की सहमती जताते रहिये. हमारी किस्मत ! या पोस्ट की सफलता या फिर दोनों का मेल... जो भी हो पर यकीनन रूप से सौ प्रतिशत से अधिक सहमति हो सकती है. अगर विचार मिले तो होने ही चाहिए. ऐसी टिपण्णी के लिए ज्ञान भैया को कोटिशः धन्यवाद ।
अब अगली लाइन: 'शत प्रतिशत से अधिक की संम्भावना प्रॉबेबिलिटी में कैसे व्यक्त होती है?!' अब प्रॉबेबिलिटी को याद करके इस सवाल का जवाब देने का मन नहीं हुआ. अब सीधी सी बात है... प्रसन्नता को कम करने वाले सिद्धांत की काहे व्याख्या की जाय ! अरे मैं तो कहता हूँ… गणित के ऐसे सिद्धांतों को दरकिनार किया जा सकता है जो मानवीय आनंद पर सवाल खड़े करें ! :)
खैर अब सवाल उठा है तो सोचना तो पड़ेगा ही... दरअसल बात ऐसी है कि १०० प्रतिशत से अधिक प्रॉबेबिलिटी जैसी कोई चीज ही नहीं होती.
प्रॉबेबिलिटी या प्रायिकता में पहली ही मान्यता होती है: असंभव के लिए ० और निश्चित के लिए १ प्रॉबेबिलिटी. अब ऋणात्मक या १ से ज्यादा प्रॉबेबिलिटी जैसी कोई चीज ही नहीं होती.
- ऋणात्मक प्रॉबेबिलिटी का मतलब हुआ असंभव से भी असंभव !
- १ से ज्यादा प्रॉबेबिलिटी का मतलब निश्चित से भी ज्यादा निश्चित !
गणित की नजर में ये दोनों ही विरोधाभास हैं.
जैसे आज बारिश होने की सम्भावना ० है मतलब आज बारिश होना असंभव है. अब कोई कहता है कि कल बारिश होने की सम्भावना ० से भी कम है. (बोलचाल की भाषा में हम कह सकते हैं इसका मतलब ये है कि कल बारिश होने की सम्भावना आज से कम है.) पर गणित ये नहीं मानता अगर कल बारिश होने की संभावना आज से कम है तो आज बारिश होने की सम्भावना ० हो ही नहीं सकती ! क्योंकि असंभव से कठिन भला क्या हो सकता है?! पूर्ण से अधिक पूर्ण भला क्या हो सकता है और शून्य से अधिक शून्य ! फिर विरोधाभास आ जाएगा. ठीक वैसे ही १०० प्रतिशत से अधिक या १ से अधिक प्रॉबेबिलिटी से भी विरोधाभास हो जाएगा. कहने का मतलब ये कि प्रॉबेबिलिटी हमेशा ० से १ के बीच में ही होगी. वैसे प्रॉबेबिलिटी में सबसे पहले घटना परिभाषित की जाती है जिसकी प्रॉबेबिलिटी निकालनी है. भौतिकी (या विज्ञान की अन्य शाखाओं में) में अगर किसी घटना की प्रॉबेबिलिटी १ से ज्यादा आ जाती है. तो इसका मतलब होता है कि सिद्धांत मान्य नहीं रह जाता. जैसे स्कैटरिंग (हिंदी में क्या कहेंगे?) में, अगर किसी बीम के १०० कणों के स्कैटर होने की प्रॉबेबिलिटी १ से ज्यादा आ जाती है तो इसका मतलब होता है: ये सिद्धांत ही गलत है. कुछ तो गड़बड़ है क्योंकि इसका मतलब ये हो जाता है कि बीम में जितने कण थे उससे ज्यादा स्कैटर हो जायेंगे ! इसे ऐकिकता के नियम का उल्लंघन कहा जाता है.
जो भी हो आप हमारे पोस्ट और विचार से हजारों-लाखो प्रतिशत सहमत हो सकते हैं. हर जगह सिद्धांत नहीं लगाए जाते. वैसे भी जहाँ दिल की बात हो दिमाग की क्या जरुरत ? :)
आइंस्टाइन बाबा भी कह गए: ‘How on earth are you ever going to explain in terms of chemistry and physics so important a biological phenomenon as first love?’ वो गणित कहना भूल गए लेकिन वैसे भी बिना गणित केमिस्ट्री भले दो कदम चल ले फिजिक्स तो हिल नहीं पायेगा. तो प्यार की ही तरह बाकी मानवीय भावनाओं के लिए भी विज्ञान के सिद्धांतो की जरुरत नहीं !
~Abhishek Ojha~
नोट: खतरों वाली श्रृंखला जारी रहेगी.