Sunday, June 12, 2011

एक ख़ूबसूरत समीकरण

बचपन में गणित की कक्षाओं में पढ़ाया जाता है वर्ग और वर्गमूल. वर्ग अर्थात किसी संख्या को उसी संख्या से गुणा कर दिया जाय तो वर्ग निकल आता है. फिर पढ़ाया जाता है घात अर्थात किसी संख्या के ऊपर जितने का घात हो संख्या को खुद के साथ उतनी बार गुणा. फिर वर्गमूल, घनमूल इत्यादि. साथ में ये बताया जाता है कि वर्गमूल केवल धनात्मक संख्याओं का ही होता है. इन्हीं दिनों ज्यामिति में परिचय होता है वृत्त के परिधि, त्रिज्या से होते हुए ‘पाई’ नामक संख्या से भी. पाई किसी भी वृत्त के परिधि और व्यास के अनुपात से प्राप्त संख्या को कहते हैं. फिर थोडा और आगे बढ़ने पर लघुगणक (लॉगरिदम) पढ़ते हुए परिचय होता है एक और संख्या ‘इ’ से. (वैसे शायद इस संख्या से पहला परिचय कैलकुलस पढते हुए होता है). पाई और ई गणित ही नहीं विज्ञान और अभियांत्रिकी की हर शाखा में खूब इस्तेमाल किये जाने वाले अंक हैं. गणितीय शब्दावली में दोनों अपरिमेय और ट्रान्सेंडैंटल हैं. दशमलव के रूप में लिखा जाय तो दोनों अनंत तक जाते हैं…

फिर गणित पढते हुए एक दिन एक काल्पनिक संख्या आई से परिचय होता है. और इस संख्या से एक अलग अध्याय चालु होता है मिश्रित संख्याओं का. इन्हीं दिनों ये पता चलता है कि बचपन में पढ़ी गयी बात ‘वर्गमूल केवल धनात्मक संख्याओं का ही होता है’ उन्ही लोगों के लिए पढाई जाती हैं जिन्हें गणित बस जोड़-घटाव तक ही पढ़ना होता है. और -१ के वर्गमूल जिसे ‘आई’ भी कहते हैं के साथ एक नयी काल्पनिक दुनिया का आरम्भ होता है. ये काल्पनिकता भी खूब इस्तेमाल होती है. पाई, इ और आई संभवतः विज्ञान और अभियांत्रिकी के सबसे अधिक लिखे जाने वाले गणितीय अंक चिह्न अंक हैं.

इन तीनों अंको के साथ अगर जोड़-घटाव,गुणा-भाग आता हो तो इस समीकरण मेंeuler's equation इसके अलावा कुछ और नहीं है. लेकिन इस समीकरण का मतलब क्या है? महान गणितज्ञ ओय्लर का दिया गया ये समीकरण गणित का सबसे खूबसूरत समीकरण कहा जाता है. (समीकरण चित्र में)

विकिपीडिया क एक पैराग्राफ कुछ यूँ कहता है इस समीकरण के बारे में:


मैथेमेटिकल इंटेलीजेंसर पत्रिका के पाठकों के बीच कराये गए मत के अनुसार ओय्लर का तादात्मय ‘गणित का सबसे खूबसूरत प्रमेय’ है. इसी तरह फिजिक्स वर्ल्ड पत्रिका के पाठकों ने भी २००४ में इसे मैक्सवेल के विद्युत चुम्बकत्व के समीकरण के साथ ‘सर्वकालिक महानतम समीकरण’ चुना. २००६ में न्यू हम्प्शायर विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफ़ेसर पॉल नहीन ने इस समीकरण  पर ४०० पन्नों की ‘डॉ. ओय्लर'स फैबुलस फोर्मुला’ नामक किताब लिखी. इस पुस्तक में उन्होंने इसे ‘गणितीय सुंदरता का सुनहरा मानक’ होने की संज्ञा दी. कोंसटेंस रीड ने इसे ‘सम्पूर्ण गणित का सबसे प्रसिद्द सूत्र’ कहा. कहते हैं एक बार गणितज्ञ गॉस ने टिपण्णी की कि अगर ये सूत्र किसी गणित के छात्र को बताते ही अगर स्पष्ट रूप से समझ में ना आये तो वो छात्र कभी उत्कृष्ट गणितज्ञ नहीं बन सकता. उन्नीसवीं सदी के विख्यात दार्शिनिक, गणितज्ञ और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर बेंजामिन पियर्स ने एक व्याख्यान में इसे साबित करने के बाद कहा: ‘ये पूर्णतया विरोधाभासी है, हम इसे समझ नहीं सकते, हमें नहीं पता कि इसका अर्थ क्या है लेकिन चूँकि हमने इसे सिद्ध किया है तो हम जानते हैं कि ये सच है.’ स्टैंफर्ड विश्वविद्यालय के गणितज्ञ प्रो कीथ डेवलिन ने कहा ‘जैसे शेक्सपियर की एक लंबी कविता प्रेम के असली तत्व को कैद करती है, जैसे एक चित्रकार गहरी मानवीय सुंदरता को उकेरता है वैसे ही ओय्लर का समीकरण अस्तित्व  की गहराई तक पंहुचता है’. [ये पूरा पैराग्राफ विकिपीडिया के एक पैराग्राफ का अनुवाद है. बुरे अनुवाद के लिये हमारी तरफ से ‘सॉरी’ रहेगा.]

एक अंक जो दशमलव में लिखने पर अनंत तक जाता है वो वृत्त के परिधि और व्यास से आया. साथ में एक वैसी ही अजीबो गरीब संख्या ‘इ’. ‘आई’ जो कि काल्पनिक है. और ओय्लर ने कहा कि ‘इ’ पर अगर ‘आई’ और ‘पाई’ के गुणनफल का घात लगा दें तो वो -१ हो जाएगा ! इतने अजीबो गरीब मिलन का इतना साधारण परिणाम ‘१’.

सबसे पहले तो हमने यही पढ़ा होता है कि किसी भी धनात्मक संख्या पर अगर किसी धनात्मक या ऋणात्मक संख्या का घात लगाएं तो परिणाम ऋणात्मक नहीं होता. अगर साधारण तरीके से सोचें तो एक काल्पनिक संख्या और ‘पाई’ के गुणनफल का कुछ अर्थ हो सकता है क्या? फिर ‘इ’ और उसके ऊपर ये विकट काल्पनिक घात. अगर बचपन की पढ़ी बात से समझें तो ‘इ’ को ‘इ’ से ही गुणा करना है, लेकिन कितनी बार? ‘एक काल्पनिक संख्या से गुणा किये हुए अनंत तक जाने वाली संख्या के गुणनफल के बराबर?’ ! विचित्र ! और इस विकटता का हल अत्यंत ही साधारण याने -१. (अगर e(x) का विस्तार और त्रिकोणमिति के sin(x) और cos(x) के विस्तार पता हों तो इसका प्रमाण भी ऐसा ही साधारण होता है.)

विकटता के मिश्रण से उपजी सरलता इस समीकरण को खूबसूरत बना देती है. मुझे अपने एक पुराने मॉडर्न आर्ट पर लिखे गए पोस्ट की याद आ रही है. अगर आपने यहाँ तक पढ़ा है तो इस समीकरण पर बने कुछ कार्टून भी देखते जाएँ. मैं क्या कहूँ. अपने काजल कुमार जी बेहतर व्याख्या कर पायेंगे कार्टूनी सुंदरता.


389-beautye_to_the_pi_times_i
आई और पाई पर पर एक ये भी:

numbers


~Abhishek Ojha~