पिछली पोस्ट से जारी...
अगला खतरा है आपकी व्यक्तिगत बातों का सार्वजनिक होना. आप कहेंगे वो कैसे? अरे मैं ऐसे लोगो को जानता हूँ जो अपनी डायरी किसी को नहीं दिखाते पर वही डायरी ब्लॉग पर पोस्ट कर देते हैं ! है तो बहुत ही अजीब… पर ऐसा होता है. मेरे एक मित्र हैं उनसे कहो ‘दिखाओ क्या लिख रहे हो?’ तो छुपा लेते हैं. मैंने कहा ‘आखिर डालोगे तो ब्लॉग पर ही’ तो कहने लगे ‘हाँ तब पढ़ लेना.’
उदहारण के रूप में एक सच्ची घटना बताता हूँ आपको. हमारी एक मित्र ने अपने बॉयफ्रेंड को ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित किया और अपने सारे दोस्तों को उसके ब्लॉग पर टिपियाने के लिए. बस फिर क्या था... हो गया बंटाधार. वो बेचारा पता नहीं अपना पहला-दूसरा प्यार लिखता रहा और... हाँ अगर आप अपने रिश्तों में पूरी तरह ईमानदार हैं तो ये नौबत तो नहीं आएगी पर ऐसी ही कोई और नौबत किसी और परिपेक्ष्य में आ सकती है. जैसे आप अपने किसी रिश्तेदार की दुविधा या फिर पारिवारिक बात लिख देते हैं तो कई तरह की गलतफहमी हो सकती है. तो बेहतर है सावधानी बरती जाय. ‘ज्यादा’ व्यक्तिगत बातें ब्लॉग से दूर ही रहे तो बेहतर है. वर्ना ये नशा है... 'दारु पिलाकर उगलवा लिया' की जगह कुछ दिनों में लोग शायद ये न कहने लगें 'ब्लॉग लिखवाकर उगलवा लिया'
मेरी नजर में एक महत्वपूर्ण खतरा है लीगल रिस्क या कानूनी खतरे. इसमें सबसे बड़ा मामला कॉपीराइट का हो सकता है. या फिर अगर आपने किसी सरखा हत्त के खिलाफ कुछ लिख दिया और आपको कोर्ट नोटिस आ जाए तो फिर तीसरा खम्बा के अलावा और कोई ब्लॉग साथ नहीं दे पायेगा :-) जाने कितने ही ब्लोगरों को कानूनी धमकियां मिल चुकी हैं और कईयों के खिलाफ कार्यवाही भी हो चुकी है. अगर भरोसा नहीं तो इस विषय पर एक बहुत अच्छा लेख आप यहाँ पढ़ सकते हैं. तो अपने अधिकार जानिए और बिंदास ब्लॉग्गिंग कीजिये लेकिन कौन सी वैधानिक सीमाएं है उसे जानना जरूरी है. इस बारे में कोई शंका हो तो तीसरा खम्बा पर सवाल भेजिए.
एक और छोटा खतरा है आपके स्वास्थ्य का. अगर अतिशय ब्लॉग्गिंग करने लगे तो फिर देर रात तक जागना, कम नींद और बेचैनी घेर सकती है. सोने और टहलने की बजाय अगर आप कंप्यूटर के सामने बैठे हैं और रिफ्रेश करके टिपण्णी का इंतज़ार… तो समझ लीजिये ये खतरा आप पर मडरा रहा है. मेरी बात पर भरोसा नहीं तो आप किसी पीठ और गर्दन की दर्द वाले डॉक्टर से जाकर पूछ लीजिये की कितने प्रतिशत लोग कंप्यूटर पर काम करने की वजह से परेशान हैं?
छोटे रिस्क में एक और है... असामाजिकता. आप कहेंगे ब्लॉग्गिंग से सोशल नेट्वर्किंग होती है. हाँ वो तो सही है... पर ऐसा भी होता है: दिल्ली, कलकत्ता और लन्दन, न्युयोर्क में बैठे लोगों को पता होता है कि आज मुंबई की ब्लोगर मैडम एक्स के घर क्या बना है. लेकिन पड़ोसियों को नहीं पता होता ! और तो और कई बार पड़ोस में कौन रहता है ये भी नहीं पता होता. अभिषेक ओझा १७ दिन की छुट्टी गए ये मालूम है लेकिन पड़ोस के रमेशजी बीमार हैं उसकी खबर नहीं. ऑफिस का बाबु २० दिन से नहीं आया उसकी फिकर नहीं है ! तो अगर आप इतने ज्यादा सोशल नेट्वर्किंग कर रहे हैं तो छोटी-छोटी बातों को मत भूलिए... छोटी-छोटी बातों में भी जिंदगी का मजा है.
अगली पोस्ट में जारी...
~Abhishek Ojha~
ब्लागरी अपने आस पास को भूलने के लिए तो बिलकुल नहीं है।
ReplyDeleteया फिर हम जैसे उम्र दराज घोषित हो जाओ..हम जो हैं वो हैं एक खुली किताब मानिंद..पसंद आये तो पढ़ो.वरना पन्ने पन्ने अलग कर उनमें पान बाँध कर बेच दो....हमें न समझ पाना सबित यूँ भी कर देता है कि तुम पान ही बेचते होगे. :) कोई शक!!!
ReplyDeleteअच्छे खतरे गिनवाये यूँ तो!!
ReplyDeleteअभिषेक जी पूरी ईमानदारी से लिख रहे हैं आप ! लोअर बैक पेन तो मुझे भी शुरू हो गया है ! डाक्टर कहते हैं यह मानसिक अघात जैसे प्यार में धोखा जईसा ही कुछ और पी सी पर बैठने के सम्मिलित कारण से है -खैर असली कारण पिन प्योयिंट करने में लगा हूँ !
ReplyDeleteअन्य कारण भी बिलकुल सही हैं ! मैं तो अपने को खतरे से घिरा पा रहा हूँ !
हम तो आपसे सहमत हूं. कुछ कुछ लफ़डा होने लगा है.
ReplyDeleteरामराम.
खरनाक खतरों से आगाह किया है आपने ..सावधान होने की जरुरत है शुक्रिया
ReplyDeleteयह सब क्या हो रहा है?
ReplyDeleteएकदम सच्चे व अच्छे खतरे !!!
ReplyDeleteबहुत सही ...
ReplyDeleteबात में दम है .पर समझदार लोग सब चीजे बेलंस बना कर चल सकते है.....देखो तुम भी चल रहे हो ना.....
ReplyDelete'दारु पिलाकर उगलवा लिया' की जगह कुछ दिनों में लोग शायद ये न कहने लगें 'ब्लॉग लिखवाकर उगलवा लिया' ....ha ha ha achchha likha bhaiya.
ReplyDeleteहर ब्लाँगर खतरो का खिलाङ़ी है , वैसे आप खतरे गिनवाते जाए, सब पढ़ रहे हैं .....
ReplyDeleteइस लेख से हण्डरेड परसेण्ट से ज्यादा सहमत हैं हम।
ReplyDeleteवैसे शत प्रतिशत से अधिक की संम्भावना प्रॉबेबिलिटी में कैसे व्यक्त होती है?!
आपने कितनी बारिक बात पर ध्यान दिया है, लोग ब्लॉग पर जितने सोशल होते जा रहे हैं अपने पड़ोस में उतने ही अनसोशल।
ReplyDeleteतीनों लेख पढ़े। आपसे सहमत हूँ। कितन भी संभलकर चलो कभी ना कभी तो गलती की संभावना बनी ही रहती है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
जो पड़ोसियों से बात भी करते हैं उनकी बातों का विषय इसी ब्लॉगरी से सम्बन्धित होता है। पड़ोसी बेचारा अगर इस टेस्ट का नहीं हुआ तो खुद ही किनारा कर लेता है।
ReplyDeleteबहुत शानदार पोस्ट है। मुझे तो देर हो गयी। इन खतरों का स्पर्श महसूस करने लगा था। लेकिन अब सम्हलने की कोशिश कर रहा हूँ।