अनंत एक अंक नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है... एक सोच है... वो जो हर बड़े से बड़ा हो... फिर कैसे परिभाषित करें इसे? कई बातें शायद मानव सोच के बाहर होती हैं... एक ये भी है !
कुछ गणितज्ञों ने इसे... अति सूक्ष्म (इंफानाइटेसिमल ) का उल्टा कहा। छोटे से छोटा होते हुए जब शून्य पर पहुंचे तो उसका उलट अनंत ! लेकिन इस परिभाषा का भी कोई मतलब नहीं... शून्य 'एक' अंक है... अनंत नहीं। कैंटर ने जब कहा की अनंत एक ही नहीं होता तो अनंत इस परिभाषा के दायरे से भी बाहर हो गया।
कैंटर ने कार्डिनलिटी, यानि किसी समुच्चय में कितने सदस्य हैं, के सिद्धान्त का इस्तेमाल कर कहा कि अगर किसी समुच्चय में से उसके कुछ सदस्य निकाल दिये जाएँ और बचे हुए समुच्चय तथा मूल समुच्चय की कार्डिनलिटी समान हो, तो ऐसे समुच्चय के सदस्यों की संख्या अनंत होती है। अर्थात बालटी में से एक लोटा पानी निकाल लें और फिर भी बालटी में उतना ही जल शेष बचे जितना पहले था तो इसका मतलब हुआ कि बालटी में अनंत जल है !
जैसे सभी प्राकृतिक संख्याओं के समुच्चय में से केवल सम संख्याएँ निकाल कर एक नया समुच्चय बनाया जाय तो प्राकृतिक संख्याओं के समुच्चय और सम संख्याओं के समुच्चय के सदस्यों की संख्या समान ही होगी। दोनों समुच्चयों में एक-एक की बराबरी है। 1, 2, 3,... –> 2, 4, 6,... जितने सदस्य पहले में उतने ही दूसरे में, जबकि दूसरा समुच्चय खुद पहले का उप-समुच्चय भी है। अर्थात उसके सारे सदस्य पहले के सदस्य भी हैं ! इससे पहले सम (विषम) सख्याओं की संख्या वाले अनंत को प्राकृतिक संख्या वाले अनंत से छोटा अनंत भी कुछ लोग मानते थे। लेकिन एकैक फलन से कैंटर ने परिभाषित किया कि प्रकृतिक सख्याओं वाले अनंत अर्थात गिनती कर अनंत तक पंहुचने वाले अनंत और परिमेय संख्याओं के समुच्चय वाले अनंत भी एक ही है। क्योंकि प्रकृतिक संख्याओं और परिमेय संख्याओं में भी एक-एक का रिश्ता (फलन) निकाला जा सकता है। लेकिन फिर जब अपरिमेय संख्याओं पर बात आई तो कैंटर ने कहा कि ये अनंत प्रकृतिक संख्याओं के अनंत से बड़ा होता है !
कैंटर ने अनंतों के लिए एक अलग गणित और नियम बनाया... लेकिन इन दो अनंतों के बीच में भी क्या कोई अनंत होता है? इस सवाल का उत्तर बाद में ये मिला कि 'न तो इसे सही साबित ही किया जा सकता है ना ही गलत"।
अनंत के बारे में एक और बात... अगर हम किसी भी चीज में कुछ जोड़ते रहें अर्थात उसे बढ़ाते रहें तो अनंत तक पँहुच जाएँगे ये जरूरी नहीं ! वैसे ही जैसे रोज बस कुछ पढ़ने से हम विद्वान हो जाएँ ये जरूरी नहीं जैसे हम एक 1 में आधा जोड़ दें, फिर 1 चौथाई, फिर 1 का आठवाँ हिस्सा.... इस तरह हम जीवन भर जोड़ते रह जाएँ तो भी योग 2 से अधिक कभी नहीं हो पाएगा ! ये गणित में लिमिट का सिद्धान्त है।
फिजिक्स में कई बार जब समीकरण अर्थहीन हो जाते हैं और सिद्धान्त काम करने बंद कर देते हैं... परिणाम अनंत आने लगते हैं तो उसे सिंगुलारिटी कहते हैं। जहां पर जाकर मानव सोच और उसके सिद्धान्त काम करना बंद कर दे... !
अनंत पर एक और रोचक बात एक बिन्दु की लंबाई शून्य नहीं होती वरन एक बिन्दु कि कोई लंबाई ही नहीं होती.... अर्थात एक सेमी हो या एक किलोमीटर या यहाँ से चाँद की दूरी सभी में समान बिन्दु होंगे - अनंत । यही नहीं अगर हम एक डाइमेनशन से ऊपर बढ़े तो भी अनंत बिन्दु होंगे... !
हरी अनंत हरी कथा अनंता... और .... ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।
~Abhishek Ojha~
"No one shall expel us from the Paradise that Cantor has created." - David Hilbert
ReplyDeleteजॉर्ज कैंटर का कहना था कि अनन्तता समझो, ईश्वर के पास पहंचो। कैंटर के बारे में आमिर डी ऐक्ज़ल की लिखी उनकी जीवनी 'द मिस्ट्री ऑफ द एलेफ: मैथमेटिक्स, द केबालह, एन्ड द सर्च फॉर इंफिनिटी' भी पढ़ने योग्य है। इसकी समीक्षा मैंने ऊपर दिये लिंक पर की है।
ReplyDeleteधन्यवाद उनमुक्तजी।
Deleteयही तो ईश्वर की गणितीय प्रतिस्थापना है...ज्ञानपूर्ण आलेख...
ReplyDeleteकुछ-कुछ जेनो और यूक्लिड जैसा.
ReplyDeleteशुक्रिया कहना बनता है :)
ReplyDeleterochak
ReplyDeleteहार मान गए न बच्चू :) हरि अनंत हरि कथा अनंता !
ReplyDeleteआभार और अनंत शुभकामनायें!
ReplyDeleteहरी अनंत हरी कथा अनंता... और .... ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
ReplyDeleteपूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।
tue - true - true - infinitely true .......
क्या कहानी है अनंत की! :)
ReplyDeleteहरि ॐ तत्सत्।
ReplyDeleteऐसे लेख गणित और भौतिकी के अबूझ से लगने वाले सिद्धांतों को सरलता से समझाते हैं। अक्टूबर के बाद फरवरी में! कम से कम सप्ताह में एक लिख तो लिख दिया करें प्रभू!
सादर,
गिरिजेश
- via email.
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
ReplyDeleteपूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।
ये पूर्ण या शून्य भी तो अनंत ही है ।
.बेहतरीन प्रस्तुति .....
ReplyDeleteहम आपका स्वागम करते है....
दूसरा ब्रम्हाजी मंदिर आसोतरा में .....
ज्ञान सागर अनंता ही है ।
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