गणित से साधारणतया हम अंक ही समझते हैं फिर गुणा-भाग, लाभ-हानि, क्षेत्रमिति(Mensuration), ज्यामिति... । ये वो गणित है जिससे मानव सभ्यता ने अपनी शुरुआत की. आज गणित इतना व्यापक हो चला है कि इस गणित को विद्यालयीय गणित कहना ज्यादा उपयुक्त होगा. वैसे गणित कि शुरुआत गिनती से ही हुई होगी इसमे कोई दो राय नहीं... फिर व्यापार, लेन-देन और फिर आई ज्यामिति(Geometry). ज्यामिति से गणित का खूब विकास हुआ और त्रिकोणमिति (Trigonometry) जैसी शाखाएं इसीसे आई.
अभी-अभी हमने गिनती की चर्चा की थी... शुरुआत में गिनती बिना नंबरों के ही शुरू हुई होगी क्योंकि नंबरों का इस्तेमाल काफ़ी देर से शुरू हुआ पर गणित तो तब भी था, जब नंबर नहीं थे. थोड़ा अजीब लगता है पर ये सच है... जैसे मान लीजिये की एक आदमी के पास चार मवेशी थे उनको गिनता तो वो तब भी था बस चार कहता नहीं था, मेरे हिसाब से वो गिनने के लिए किसी चार अन्य वस्तु का इस्तेमाल करता रहा होगा... जैसे चार कंकड़. इस प्रकार अंकों का ज्ञान ना होते हुए भी मनुष्य गिनती करता रहा... इस गिनती में '४ मवेशी-४ कंकड़' दोनों समूहों को एक-एक करके मिलाता होगा, और इस प्रकार फलन(Function) का इस्तेमाल चालू कर दिया होगा. धीरे-धीरे खेती, घर, वेदी, सड़क, दूरी नापने, बर्तन बनाने आदि के लिए ज्यामिति का इस्तेमाल करना प्रारम्भ किया गया.
ये तो हुए आज के विद्यालयीय गणित... अगर आपने एक बात पर ध्यान दिया हो तो मैंने हर जगह 'इस्तेमाल किया' का उपयोग किया है... इससे मेरा मतलब है कि गणित का कभी 'आविष्कार' नहीं हुआ. ये तो हमेशा से हर मनुष्य के अन्दर होता है... इसीलिए यह मानव सभ्यता के प्रारम्भ से लेकर आजतक सतत बढ़ता जा रहा है नित्य नए क्षेत्रों में. यहीं पर गणित विज्ञान से अलग होता है, विज्ञान की बातें इंसान को बाहर की वस्तुओं का निरीक्षण और उनके प्रयोग करने से आती हैं... पर गणित की बातें मनुष्य के अन्दर से आती हैं. गणितज्ञ एक बंद कमरे में बैठ कर पूरी की पूरी गणित की एक शाखा लिख जाते हैं इसके लिए उन्हें किसी बाहरी वस्तु की जरुरत नहीं होती ठीक उसी तरह जैसे योगी ध्यान लगाकर भगवान् को महसूस कर लेते हैं.
अरे आज के लिए ज्यादा तो नहीं हो रहा... चलिए आज की बात ख़त्म करते हैं. जाते-जाते आने वाले पोस्ट की झलकियाँ दे दूँ आपको. आगे चर्चा होगी शुद्ध(Pure) और प्रायोगिक(Applied) गणित की, गणित तथा स्यांखिकी(Statistics) और प्रायिकता(Probability) में अन्तर की, गणित के विभिन्न शाखाओं की, गणित में तर्क, अंतरात्मा और गणित के खूबसूरत होने की (गणित की खूबसूरती कविता की तरह होने की), गणित और दर्शन की... ढेर सारी रोचक कहानियाँ भी होंगी... गणित के कठिनतम सवालों का इतिहास और उनके साथ जुड़ी मस्त कहानियां... ऐसा गणित जिसने लड़ाई जितने में मदद की और ऐसे प्यार जिसमें गणितज्ञों ने जान दी... आज कल तो गणित का इस्तेमाल इश्क से लेकर तलाक तक में इस्तेमाल होने लगा है ! इंजीनियरिंग तो गणित के बिना पंगु ऐसा होगा की अँधा, बहरा, गूंगा सभी हो जायेगा...
ये सारी बातें होंगी, अगर आपको पसंद आती गई तो :-)
ये logo मैंने अपने संस्थान के 'गणित और स्यांखिकी ग्रुप: Stamatics' के लिए बनाया था... क्या आप बता सकते हैं ये क्या-क्या इंगित करता है? |
ऊपर की तस्वीर साभार: http://www.uofaweb.ualberta.ca/compneurolab/images/math_400.jpg
क्या महाराज, हमारा आना जाना इतना खराब लगता है कि गणित की बंदूक लेकर बैठ गये. गणित ही करना होती तो ब्लॉगिंग में काहे आते भई. बिल्कुल पैदल है गणित में इस शब्द को देख कर किनारा काट लेते हैं. :)
ReplyDeleteअगले लेखों का इंतजार रहेगा!
ReplyDeleteजी, उस से हमें बहुत मुहब्बत थी बचपन से ही। स्कूल जाने की उमर के पहले से ही। और वह तब प्रेरणा भी बनी रही जब तक हम किशोर न हो गए। फिर समाज, या यूँ कहिए बाजार एक विलेन की तरह बीच में आ गया। दरअसल हमारी माशूक की उन दिनों बाजार में बड़ी खराब हालत थी। हमारी वह मुहब्बत बडी़ ही सफाई से कत्ल कर दी गई। हमें जिन्दा हकीकतों के साथ बांध दिया गया। पर मुहब्बत कत्ल होने पर भी मरती नहीं। वह कहीं दिल में या जिगर में या दोनों के बीच कहीं फंस कर जिन्दा रही। हमें जिन जिन्दा हकीकतों से बान्धा गया था हम उन के न हुए और वे हमारी। वे जल्दी ही अपनी मीठी कड़वी यादें छोड़ कर अपने रास्ते चल दीं। हम कानून के पल्ले आ बंधे।
ReplyDeleteफिर वह दिल और जिगर के बीच से निकल कर हमारे सामने आ खड़ी हुई पर अब मुहब्बत तो थी पर वस्ल की उम्र विदा हो चुकी थी। हम अब भी उस की मुहब्बत की गिरफ्त में हैं। वस्ल नहीं तो क्या? मुहब्बत वस्ल की मोहताज नहीं।
चलिए आप उसे लाने वाले हैं जन्मपत्री बांच ही दी है आप ने। इंतजार करेंगे हमारी उस मुहब्बत का कि वह आप के सानिध्य में किस हालात में है?
अच्छा याद दिलाया! इण्टीग्रेशन, सिग्मा, स्टैटेस्टिक्स-मेथमैटिक्स। सही में रोमांचक विषय हैं। पर साथ ही छूट गया!
ReplyDeleteऔर लोगो मस्त डिजाइन करते हैं आप! एक लोगो "मानसिक हलचल" के लिये बनाइये न!
गणित मेरे प्रिय विषय में से एक रहा है और मैंने कुछ चिट्ठियां इनसे संबन्धित लिखी हैं। इसमें एक चिट्ठी बूरबाकी के ऊपर है। मुझे आश्चर्य होता है कि इस शब्द पर रोज दो, तीन लोग खोज कर मेरे चिट्ठे पर आते हैं।
ReplyDeleteलिखिये, यह अच्छा विषय है। आगे की कड़ियों का इंतज़ार रहेगा।
बढ़िया और हटके विषय चुना है आपने। मजा आ गया। कड़ियाँ जारी रखें। इन्तजार रहेगा।
ReplyDeleteअरे बाप रे.. गणित यहा भी..
ReplyDeleteबाप रे बाप...हमारी हालत बड़ी खस्ता रहती थी गणित में...सीए (इंटर) में अन्तिम बार पढ़ी थी..फिसड्डी थे..वो तो Statistics ने बचा लिया था हमें नहीं तो कभी पास नहीं हो पाते...वैसे अब इम्तिहान का दबाव नहीं है तो हो सकता है पढ़ लें...:-)
ReplyDeleteगणित के परिचय की आपकी यह पोस्ट बहुत दमदार और रोचक है। कुछ दिन पहले तक ऐसी कल्पना करना मुश्किल था कि इस तरह की चिट्ठीयाँ हिन्दी में पढ़ने को मिलेंगी। आपका भविष्य का इरादा देखकर और खुशी हो रही है।
ReplyDeleteमेरा उत्साह इतना बढ़ गया है कि मैं आपसे हिन्दी विकिपिडिया पर गणित के विषयों (टापिक्स) पर कुछ लेखों का योगदान करने का आग्रह करना चाहता हूं। हिन्दी विकिपिडिया का मुखपृष्ट तो आपको पता ही होगा:
http://hi.wikipedia.org/wiki/मुखपृष्ठ
रोचक श्रंखला शुरू की आपने.
ReplyDeleteआगे क इंतजार रहेगा.
एक बहुत अच्छी श्रृंखला की शुरुवात!
ReplyDeleteगणित से तो हमारा छतीस का आंकडा है । :)
ReplyDeleteइस गणित की वजह से हमने बचपन में इतनी मार खायी है कि अब तक सर में गूमड़ है। पिताजी ने मार मार कर खोपड़ी खोल दी पर गणित अड़ियल ट्टू के जैसे बैठा रहा कभी अंदर नहीं घुसा। तब तो नहीं पर गत कुछ वर्षों से एक बार फ़िर इस पर हाथ आजमाने की इच्छा जागी है खास कर वैदिक गणित में।
ReplyDeleteआप विश्वास तो न करेगें पर अभी कुछ दिन पहले हम अपने कॉलेज के गणित की टीचर से गणित से जुड़ी कहानियां सुनाने को कह रहे थे और सोच रहे थे आप सब से शेयर करेगें, चलिए अब हम उस मेहनत से बच गये , आप से ही सुनेगें और एक बार फ़िर अपने हाथ आजमायेगे इस अड़ियल घोड़े पर । हम सिग्मा पहचान पाए थे लोगो में , ज्ञान जी ने मेरे ख्याल से सब सिंबल पहचान लिए हैं है न
रोचक विषय चुना है आपने , पढने के लिये इन्तजार रहेगा लेकिन समझने की बात मत करना
ReplyDeleteअनिता जी आप सही हैं... ज्ञान जी ने सब पहचान लिया... और ऐसा भी क्या है कहानियाँ आप भी ले आइये. सब मिल के लिखेंगे तो और ज्यादा अच्छा होगा.
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ReplyDeleteबाप रे बाप !!!
ReplyDeleteअभिषेक भाई, किस दुखती रग पर हाथ धर दिया आपने ! गणित से भगवा बचाए। पांचवीं कक्षा में सौ में से 04 नंबर आए थे। इससे पुरानी दुश्मनी है। आज भी इकाई की संख्या से आगे कोई भी हिसाब चाहे गुणा हो या भाग , कुछ नहीं कर पाते।
वैसे , आपका समझाने का तरीका अच्छा है। काश, मेरे गुरु भी ऐसे होते :(
सभी से मेरा सवाल है गणित में गिनतियां खड़ी क्यों लिखी जाती है
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