कई बार कोर्स के नाम अलग होते हुए भी एक ही चीज़ पढ़ाई जाती है और कई बार नाम एक होते हुए भी अलग. मतलब साफ़ है सब कुछ जरुरत के हिसाब से. अंतर्विषयक(interdisciplinary) विषय की चर्चा हो तो अनुप्रयुक्त गणित से ज्यादा अंतर्विषयक विषय नहीं मिलेगा. अभियांत्रिकी और विज्ञान में तो भरपूर उपयोग है... पर जैसा की मैंने पहले कहा था की अब तो कोई भी क्षेत्र या विषय इससे बचा ही नहीं है. स्कूल में जब पढता था तब सबसे जुदा दो विषय कोई सोचने को कोई कहता तो सबसे पहले दिमाग में कुछ आता तो वो था गणित और जीव विज्ञान (Biology) पर अब ये आलम है की गणित ने जीव विज्ञान को भी कहीं का नहीं छोड़ा... कहते हैं की जीव विज्ञान का भविष्य गणित के हाथो में है. न्यूरोसाइंस और डीएनए की संरचना पढ़नी हो तो बस गणित ही गणित... इस प्रकार शुरू हो गया गणितीय जीव विज्ञान (Mathematical Biology). अब गणित न आती हो और जीव विज्ञान में शोध करना हो तो गए काम से... नहीं तो गणित वालों को नौकरी पर रखो :-)
गणितीय अर्थशास्त्र (Mathematical Economics), गणितीय जीव विज्ञान (Mathematical Biology), गणितीय भौतिकी (Mathematical Physics), गणितीय वित्त (Mathematical Finance), गणितीय न्यूरोसाइंस (Mathematical Neuroscience), गणितीय प्रतिरूपण (Mathematical Modeling), व्यावसायिक गणित (Business Math), गणितीय जियोफिजिक्स (Mathematical Geophysics), भौतिक और अभियांत्रिकी गणित (Engineering Mathematics) ... ऐसे नाम ही काफ़ी हैं गणित का इन विषयों में उपयोग दर्शाने के लिए (इन सब पर अलग-अलग पोस्ट लिखने की योजना है). कई बार ये विषय गणित विभाग में पढ़ा दिए जाते हैं तो कई बार उन विभागों में जिनसे ये सम्बंधित हैं.
क्या आप जानते हैं की फ़िल्म बनाने में गणित का बहुत उपयोग होता है. कभी आपने सोचा है की जो एनीमेशन आप देख रहे हैं उसके पीछे कितने गणितीय समीकरण लगे हुए है... अंग्रेजी फिल्में अगर आप देखें तो कई फिल्मों में पानी के बहाव से लेकर इंसान के बालों तक की मोडलिंग गणित के सूत्रों से होती है... एनीमेशन फिल्में तो इस्तेमाल करती ही हैं. और हाँ इसके अलावा मौसम की जानकारी में भी खूब गणित इस्तेमाल होता है.
यहाँ तक भी ठीक पर बात जब सामाजिक विज्ञान (Social Sciences) पर आती है तो लगता है की गणित का इस्तेमाल नही हो रहा. पर ऐसा नहीं है, हाँ इस्तेमाल कम है पर है. अब उदहारण के लिए... समाजशास्त्र (Sociology) लेते हैं तो गणित का इस्तेमाल आंकडा इकठ्ठा करके और समाज में हो रही घटनाओ पर इस्तेमाल होना आम बात है... वैसे लोग फलन (Function) जैसी चीज़ों का इस्तेमाल भी खूब कर लेते हैं रिश्तों की व्याख्या करने में. ये तो क्लासिक उदहारण है पर हाल के दिनों में खेल सिद्धांत (Game Theory) के नाम से विख्यात गणित ने जिस तरह से सामाजिक विज्ञान के विषयों में उपयोग ढूंढा है उससे वो दिन ज्यादा दूर नहीं है जब ये भी पट जायेंगे गणित से. खेल सिद्धांत का इस्तेमाल अर्थशास्त्र, व्यापार और मनोविज्ञान (Psychology) जैसे क्षेत्रों में खूब होता है.
अब चलिए एक ऐसे उपयोग के बारे में जान लें जो थोड़ा रोचक लगेगा... जी हाँ लडाई जीतने में.
ऑपरेशन्स रिसर्च के नाम से विख्यात इस गणित का उपयोग मैनेजेमेंट में खूब होता है इसके अलावा समय/काम निर्धारण यानी शेड्यूलिंग में, optimization में, नेटवर्क से लेकर माल ढुलाई तक में होता है. पर आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की इसका विकास लडाई में हुआ वो भी द्वितीय विश्व युद्ध में. अमेरिका और ब्रिटेन के गणितज्ञों ने सैन्य सञ्चालन, प्रशिक्षण और logistics के लिए इस गणित का खूब विकास किया. जर्मनी की प्रसिद्द यु बोटों से बचने के लिए ये निष्कर्ष निकला गया की जहाजों को छोटे जत्थों में भेजना बेहतर होगा. इस मामले में भी इतेमाल किया गया की कब और कहाँ बम गिराए जाएँ जिससे ज्यादा क्षति हो. इसी कारण से नाम भी पड़ा ऑपरेशन्स रिसर्च.
पिछले पोस्ट में हमने चर्चा की थी शुद्ध गणित के उपयोगी हो जाने की बात पर. तो ऐसे भी गणित हैं जो आए ही उपयोग से ... और बाद में गणित हो गए, इसका सबसे बड़ा उदहारण कलन (Calculus) है. न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण और ग्रहों की गति का अध्ययन करते हुए कलन का आविष्कार किया जो कालांतर में गणित हो गया... और अन्य क्षेत्रों में भी खूब उपयोगी साबित हुआ.
और अगर आपने महान गणितज्ञ जॉन नैश पर बनी फ़िल्म A beautiful Mind देखी है तो याद कीजिये ये लाइने, जो प्रिन्सटन विश्वविद्यालय में गणित के एक बैच के स्वागत में कही जाती हैं: "गणितज्ञों ने लडाइयां जीती हैं... गणितज्ञों ने जापानी कोड तोडे... और परमाणु बम बनाया. आपकी तरह के गणितज्ञों ने... आज सोवियतों का लक्ष्य है वैश्विक कम्युनिस्म! मेडिसिन से लेकर अर्थशास्त्र, टेक्नोलोजी हो या अन्तरिक्ष, हर जगह युद्ध की लाइनें खिचीं जा रही हैं... और जीत के लिए हमें गणितीय रिजल्ट चाहिए... उपयोगी छापे जाने योग्य रिजल्ट. अब बताइए कौन होगा आपमें से अगला मोर्स, अगला आइंस्टाइन? आपमें से कौन होगा लोकतंत्र, आजादी और आविष्कार का सेनापति. आज हम आपके हाथों में अमेरिका का भविष्य सौंपते हैं.... आप सबका प्रिन्सटन में स्वागत है !" |
अब चलिए थोड़ा इस गणित का स्वरुप भी जान लेते हैं... सीधी भाषा में कहीं तो वास्तविक जीवल और मानवता से जुड़े सवालों और समस्याओं को हल करने में गणित का इस्तेमाल होता है और इसे अनुप्रयुक गणित कहते हैं. इस प्रकार अनुप्रयुक्त गणित एक तरीका (technique) है या फिर जैसा की हमारे कुछ प्रोफेसर कहते थे ... ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत नहीं ये तो मेकैनिकल मैथ है :-) अनुप्रयुक्त गणित एक प्रयास है वास्तविक दुनिया और मानवता से जुड़ी समस्याओं और रहस्यों को सुलझाने का और एक बात ये भी की शुद्ध और उपयोगी गणित को अलग करना सम्भव नहीं है. रामानुजन के सहयोगी जी एच हार्डी कहते हैं: "शुद्ध गणित तो अनुप्रयुक्त गणित से भी ज्यादा उपयोगी है. शुद्ध गणितज्ञ के पास उपयोगी के साथ-साथ सौन्दर्य की अनुभूति का भी फायदा होता है. उपयोगी तो तरीके होते हैं और तरीके मुख्यतः शुद्ध गणित से ही सीखे जा सकते हैं"
शुद्ध की तरह ही आपने देख की अनुप्रयुक्त गणित को भी परिभाषित करना आसन नहीं है. पर एक जैसे शुद्ध में स्वयंसिद्ध और प्रमेय थे उसी प्रकार यहाँ परिभाषित करने की कोशिश की जाय तो कुछ इस प्रकार की होगी:
- साधारणतया शुरुआत होती है एक गणितीय मॉडल (Mathematical Model) से (वो छरहरे बदन वाली मॉडल नहीं :-)). गणितीय मॉडल होता है गणित की भाषा में किसी समस्या का वर्णन.
- फिर उस मॉडल का अध्ययन और गणित के नियमों के अनुसार उसका विश्लेषण.
- और फिर विश्लेषण से आए गणितीय रिजल्ट को आम भाषा में प्रस्तुत करना.
अब इन मॉडल को कहा तो वास्तविक जाता है पर इन्हें आसन बनाने के लिए कई सारी मान्यातएं लेनी पड़ती हैं... जैसे कोई वस्तु गिर रही है तो मान लेना की हवा का अवरोध ही नहीं है... पर धीरे-धीरे मॉडल को जटिल किया जाता है ... और जो सरल मान्यताएं ले ली गई थी उनको हटाने का प्रयास. अब इसी विश्लेषण में कई बार नए सिद्धांतों और नए गणित का विकास हो जाता है.
अब आती है एक और समस्या ये मॉडल तो बन जाते हैं, फिर इनका विश्लेषण करने के लिए किसी भी प्रकार का गणित इस्तेमाल हो सकता है... और पूरी गणित तो किसी को नहीं आती, इसीलिए गणित के विद्यार्थियों को कुछ प्रमुख गणित के कोर्स जरूर कराये जाते हैं ताकि मुख्य गणित की मुलभुत बातें पता रहे. इन सब कारणों से ही अनुप्रयुक्त गणित का एक पूर्ण विभाग बनाना मुश्किल है... अब आप ही बताइए जब जीव विज्ञान भी गणित के विभाग में पढाया जाने लगे.. तो विश्व के कितने विश्वविद्यालय इस प्रकार का विभाग खोल पायेंगे जिसमें सब कुछ पढाया जाता हो... इसीलिए गणित सच्चे रूप में एक बहुविषयक विषय है... बिना बाकी विभागों के सहयोग से अनुप्रयुक्त गणित का विभाग चलाना नामुमकिन सा है.
आज के लिए लगता है बहुत ज्यादा हो गया... लिखना रोकना पड़ेगा, आपको अगले लेख में भी तो यहाँ बुलाना है... तो चलिए अगले लेख में जानते हैं... कैसे-कैसे विभाग हैं विश्वविद्यालयों में गणित के और जानेंगे गणित के कुछ रोचक उपयोग के उदहारण मेरे कामो के द्बारा. घबराइए नहीं मैं अपने रिसर्च आप पर नहीं थोपूँगा... मेरी पोस्ट में गणित एकदम नहीं होता ये तो आप समझ ही गए होंगे !
~Abhishek Ojha~
पढ़ता जा रहा हूँ.. अब चाहे कितना भी बीमार रहूँ..छुट्टी नहीं मांगूगा. चुपचाप पढ़ाई करुँगा..वो फिल्म भी देखी हुई नहीं है जिसका आप जिक्र कर रहे हैं.
ReplyDeleteअभिषेक जी बहुत रोचक लेख लिखा है आपने, कि लम्बा होते हुये भी एक बार मे पूरा पढ़ गये :)|
ReplyDeleteएक सुझाव है: Fluid = द्रव, द्रव्य = Matter, सहमत हों तो बदल दें।
धन्यवाद।
जीव विज्ञान में गणित की बात की तो मुझे अपने छात्र दिन याद आये। बायोलॉजी एक एलेक्टिव विषय था। कोशिका विखण्डन के विषय में मैने एक मेथमेटिकल मॉडल बनाया था - नाभिक में +टिव चार्ज मानते हुये।
ReplyDeleteऔर मेरे प्रोफेसर काफी प्रभावित थे। चाहते थे कि मैं इन्जीनियरिंग से बायो साइंस में शिफ्ट कर लूं!
वह भी क्या जमाना था - अब तो गणित ही भूल गये हम!
बाप रे अभिषेक जी आपने तो बड़ी ही लम्बी क्लास ले ली। :)
ReplyDeleteवैसे इस विषय मे कुछ हमारी जानकारी बढ़ गई क्यूंकि हम गणित से बहुत दूर रहते है। :)
धन्यवाद मिश्रा जी... गलती सुधार दी गई है.
ReplyDeleteसमीरजी आप बीमार होते हुए भी गणित पढ़ रहे हैं ये आपका डेडीकेसन देखकर प्रसन्नता हुई, आपको बोनस अंक दिए जायेंगे... :-) मेरा पोस्ट लिखना सफल हुआ.
ज्ञान जी और ममताजी धन्यवाद.
हम तो इतना ही समझ पाये कि गणित के बिना किसी भी विषय या क्षेत्र में काम नहीं चलने वाला।
ReplyDeleteपूर्ण गणित का ऐसा विभाग जहाँ हर प्रकार का अनुप्रयुक्त गणित पढाया जा सके होना बहुत मुश्किल ही नहीं असंभव है।
ReplyDeleteआप ने गणित के वर्तमान स्वरूप का अच्छा प्रस्तुतिकरण किया है। लेकिन पोस्ट लम्बी हो गई। इसे दो भागों में बांटा जा सकता था। इस से कम समय दे सकने वाले पाठक भी इस आलेख को पढ़ने के लिए रुकते। फुरसत न तलाश करते।
आप आगे बढ़ते जाइए। इस ऑन लाइन क्लास के अनेक नए विद्यार्थी रोज ही पैदा होते रहेंगे।
अभिषेक आप कितने लायक अध्यापक हैं ..:)गणित हु हु ..देख कर ही पसीना आ गया ....पढाते रहे .समीर जी को खास कर ध्यान से ....:)
ReplyDeleteअभी तक ओके हूँ
ReplyDeletero -pit ke padhana padata hai :-(
ReplyDeleteha ha ha
badhiya jankari bhaiya aap batate jaiye bas..
LOVELY
hello ojha ji aapne badiya jankari dee he
ReplyDeletekrupaya is visay ko thoda or khole
mujhe working model banwane me dikkat aati he
Chetanji, apana email id de jaate to achchha hota. aap mujhe abhishek.ojha[AT]gmail.com par email bhej sakte hain.
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