हमारे धंधे में रिस्क या जोखिम उन चीजों में निकाला जाता है जहाँ लाभ और घाटा दोनों होता है. और दोनों में से कब कौन, कैसे और कितना हो जाएगा ये पता नहीं होता है. बिल्कुल जुए जैसी बात, और वो भी अपनी औकात से कई गुना कर्ज लेने की क्षमता के साथ जुआ खेलने वाली बात. अब युद्धिष्ठिर कर्ज ले लेकर जुआ खेल सकते तो क्या होता? कर्ज नहीं ले सकते थे तब तो क्या हाल हुआ ! खैर हमारे धंधे में लोग कहते हैं कि हम वही बता देंगे जो बताना संभव ही नहीं है. अरे क्या ख़ाक बताएँगे जब कृष्ण जैसे खतरा मैनेजर युद्धिष्ठिर को नहीं रोक पाए तो कोई और क्या खतरे बता पायेगा ! तो अगर मैं कहूं की ब्लॉग्गिंग में बस ये ही खतरे हैं और इसके अलावा कुछ नहीं हो सकता तो ये एक शुद्ध झूठ के अलावा और कुछ नहीं होगा. *
विश्वयुद्ध हो या ९/११ या नागासाकी/हिरोशिमा... किसीने पहले नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है ! खतरे जब एक बार आ जाते हैं तब हम उनके बारे में सोचना चालु करते हैं. तब हम इस बात का ध्यान रखने लगते हैं कि कोई हवाई जहाज किसी बिल्डिंग में ना घुसे पर अब क्यों कोई जहाज बिल्डिंग में घुसने लगा... अब तो कुछ और होगा ! कुछ भी... जो हम नहीं जानते ! अगर जान ही लेंगे तो फिर वो खतरा कहाँ रह पायेगा.
अब स्वाइन फ्लू ही देख लो, कभी किसी ने सोचा था क्या? सूअर तो ससुरे तब भी साँस लेते थे ! डॉट कॉम बबल में स्टॉक मार्केट डूब गए तो लोग देखने लगे की अगर फिर से डॉट कॉम बबल हुआ तो क्या होगा. अरे अब फिर से क्यों होगा वही? अब एक बार हाथ जल गया तो कोई वैसे ही आग में हाथ नहीं डालेगा. हाँ अब इंसान आग से तो सावधान हो जाता है पर पानी में डूब कर मर जाता है... बच जाता है तो अगली बार आग और पानी से बचता रहता है, फिर किसी और चीज से खतरा होता है ! उसी तरह पहले हो चुकी घटनाओं के चक्कर में लोग पड़े रहे और कर्ज लेकर जुआ खेलते रहे. और बन गया हाऊसिंग बबल और आ गया रिसेसन. अब आगे से इसका भी ध्यान रखा जाएगा और फिर कोंई नया बबल आएगा.
तो कुल मिला के मेरा कहना ये है कि मैं जो खतरे गिना रहा हूँ ये सब वैसे है जो हम देख सकते हैं ! पर असली खतरे तो वो होते हैं जो हम सोच भी नहीं सकते. और ऐसे ही खतरे ज्यादा खतरनाक होते हैं क्योंकि उनके लिए हम बिल्कुल तैयार नहीं होते. खैर जिस धंधे का खाना होता है उसको ज्यादा गाली नहीं देना चाहिए :-) और वैसे भी यहाँ बात ब्लॉग्गिंग की होनी थी तो मुड़ते हैं ब्लॉग्गिंग कि तरफ.
ब्लॉग्गिंग का तो माजरा ही कुछ और है. यहाँ तो फायदा क्या है यही नहीं मालूम (हिंदी में ऐडसेंस से कमी करने वाले और प्रोफेसनल ब्लोग्गर नहीं के बराबर है !). वैसे ब्लॉग्गिंग कोई क्यों करता है इसे एक बार मैंने मासलो की जरूरतों के अनुक्रम (Maslow's hierarchy of needs) से जोड़ा तो था (वो भी कभी पोस्ट होगा).
बिन फायदे वाली चीज का खतरा निकलना हो तो मूल सिद्धांत (अगर फायदे बंद हो जाएँ तो क्या हो !) ही लागू नहीं होता. फिर भी बड़े खतरे हैं जी इस ब्लॉग्गिंग के. आज भूमिका ही लम्बी हो गयी.
दो-चार दिन में खतरे लेकर मैं आता हूँ :-)
~Abhishek Ojha~
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*ये ब्लॉग्गिंग में रिस्क वाली श्रृंखला का पूरा श्रेय जाता है माननीय रवि रतलामीजी को और उनकी इस टिपण्णी को (वैसे आपको पसंद ना आये और गलतियाँ-वलतियाँ हो तो उसका सारा श्रेय मेरा)
उन्होंने कहा था: ‘ध्यान रखिएगा, कोई रिस्क छूटने न पाए.’ तो सरजी आज की पोस्ट से ये बात तो साफ़ हो ही गयी होगी कि कितने रिस्क कोई गिना सकता है और कितने छुट जायेंगे :-)
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इस पोस्ट में तो जाँ बाज़ी है
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
वैसे खतरे की बात में मुझे एक फायदा भी सूझ रहा है। हम कह सकते हैं कि हमें ऐसा वैसा नहीं समझो, हम खतरों के खिलाड़ी हैं :)
ReplyDeleteभूमिका ने ही इतना बाँध लिया कि क्या कहें ? अब खतरे उठाने/पढ़ने आउंगा दो चार दिन में मैं भी यहाँ ।
ReplyDeleteखतरा जीवन में कई यह जीवन का खेल।
ReplyDeleteजो ब्लागिंग करता रहे खतरे लेंगे झेल।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
खतरे तो चौतरफा हैं भाया.
ReplyDeleteएक प्रोफेसनल से खतरों के बाबत जानकारी की इच्छा बलवती हो उठी -वैसे तो एक अम्येचोर जोखिम विश्लेषक की हैसियत हर प्रबुद्ध ब्लॉगर की होनी चाहिए ! मगर एक अनुरोध है -खतरों /जोखिम निपटने के अपने भोगे हुए यथार्थ से कुछ आजमूदा नुस्खों को बयां कर सके तो हो सकता है की ब्लॉग विरादरी लाभान्वित हो सके -जिसमें मैं तो उपभोक्ता नंबर एक हूँ !
ReplyDeleteआतुर प्रतीक्षा !
भूमिका में ही टाइम पास कर दिये। पूरी बात बताओ जी। हम बेकरार हैं जानने के लिये।
ReplyDeleteट्रेलर बता रहा है...पिक्चर हिट होगी ...रिलीज़ का इंतज़ार है.....शुक्रवार कब है ?कब है शुक्रवार
ReplyDeleteभूमिका यह है तो आगे क्या होगा ....उत्सुकता बढ़ गयी है .....वैसे तो यहाँ सब खतरों के खिलाडी है ..फिर भी एहतियात के तौर पर बचाव सुविधा भी बता ही देना :)
ReplyDeleteशुरु तो करो गिनाना फिर और लोग भी जोड़ जायेंगे. :)
ReplyDeleteआज खतरा तो जीने में भी है.
ReplyDeleteसुबह के चार बज चुके हैं और मैं सोने की तैयारी कर रहा था। सोचा कि सोने से पहले कुछ ब्लॉग पढ़ लिये जायें। आपकी पोस्ट मिली, जल्दी-जल्दी में पढ़ी। लेकिन फिर अहसास हुआ कि शीर्षक में लिखा था "ब्लॉगिंग के खतरे", लेकिन पोस्ट में आपने ब्लॉगिंग को छोड़कर बाकी सभी खतरे गिना डाले। पोस्ट को कई बार पढ़ा लेकिन ब्लॉगिंग के खतरे कहीं नजर न आये।
ReplyDeleteफिर अंत में "स्टार" लगाकर जो आपने सूचना चिपका रखी थी, उसे पढ़ने बैठा तो सारा माजरा समझ में आया। लगता है अब चैन की नींद आयेगी। बिना खतरे की ब्लॉग पोस्ट लिखने के लिये साधुवाद! :) शुभरात्रि!
कितने वोल्ट का खतरा है सरजी ?
ReplyDeleteभाईजान, खतरे तो बता देते मैंने पूरी पोस्ट दो तीन बार पढ़ी लेकिन खतरे तो कहीं नहीं मिले बताना ज़रूर क्यूंकि यह खतरे वाला काम में दो साल से कर रहा हूँ
ReplyDeleteनो रिक्स नो गेन!
ReplyDeleteसांप को रस्सी न समझते तो न रत्नावली होती और न रामबोला तुलसी बन पाते।
भाई ब्लॉगिंग में स्लॉगिंग करो। नहीं तो मास्लोवियाई पिरामिड के बॉटम में मस्त रहो!
क्यों डराते हो भाई ? डराने वालों की क्या कोई कमी थी ?
ReplyDeleteवैसे गजब का लिखा है।
घुघूती बासूती
चलो शपथ लो न डरेगें न डराएंगे बस ब्लांगिंग करते जाअगें.....वैसे खतरा ही जिंन्दगी है चलती ही जा रही है...
ReplyDeleteहमें तो एक ही खतरा नजर आता है, खुद को न भूल जाएँ।
ReplyDeleteखतरोँ के खिलाडी हैँ
ReplyDelete' ब्लोगर्स' !
है ना .. ?
इँतज़ार है
आगे भी सुनाइये
- लावण्या
भाई हम कमर कस कर सुनने को तैयार बैठे हैं आप तो सुना ही दो अब और इंतजार करते नही बनता.
ReplyDeleteरामराम.