टोपोलोजी की बात शुरू होने के पहले बंद हो गयी. बात प्रस्तावना से आगे बढ़ी ही नहीं. 'शुरू होने से पहले ही बंद...? !' अब बात थी टोपोलोजी की तो ऐसा ही होना था. इससे याद आया एक उदहारण जो उस किताब में है जिसने हमारा और टोपोलोजी का पहला परिचय कराया. जेम्स मुन्क्रेस की किताब 'टोपोलोजी'. टेक्स्टबुक के रूप में शायद दुनिया के सभी बड़े स्कूलों में उपयोग की जाती है. उदहारण कुछ ऐसा है... एक समुच्चय (सेट) और दरवाजे में फर्क ये है कि दरवाजा एक समय पर या तो खुला रह सकता है या बंद... पर एक समुच्चय खुला (ओपन सेट) भी हो सकता है बंद (क्लोज सेट) भी, और खुला और बंद दोनों हो सकता है ! पहली बार पढ़ा था तो मजा तो आया था. साथ में ये भी लगा था ससुर समुच्चय ना हुआ अजूबा हो गया. वैसे टोपोलोजी अजूबा ही है [बस समझ में आना चाहिए, मुझे बहुत ज्यादा नहीं आता :) एक ईमानदार स्टेटमेंट दे रहा हूँ. अब इंसान एक समय पर ईमानदार और बेईमान दोनों तो नहीं हो सकता !]
टोपोलोजी गणित कि नयी शाखाओं में से है. करीब ९० साल पहले इसे गणित की एक स्वतंत्र शाखा के रूप में पहचान मिली तो इससे जुड़े लगभग सारे महत्तवपूर्ण सिद्धांत पिछले ५० सालों में दिए गए. पर शुरुआत तो कोनिग्स्बर्ग के पुलों वाले सवाल से ही मानी जाती है जिसका हल अठारहवी सदी में हुआ. इस सवाल की चर्चा अगली पोस्ट में. टोपोलोजी को गणित की कई पुरानी मान्यताओं में क्रातिकारी परिवर्तन लाने के लिए जाना जाता है. और और गणित को सिर्फ 'अंको की भाषा' वाली परिभाषा से बाहर लाकर खड़ा करने में में तो सबसे ज्यादा योगदान टोपोलोजी का ही है. शुरुआत में यह गणित की कुछ शाखाओं से सम्बंधित था और अक्सर इसे ज्यामिति की शाखा समझ लिया जाता था. पर अब स्वतंत्र रूप से टोपोलोजी ने गणित की सभी शाखाओं के अलावा विज्ञान की कई शाखाओं को प्रभावित किया है. मोटे तौर पर टोपोलोजी एक ज्यामितीय 'सोच' है. जिसमें कई वस्तुओँ के सामूहिक ज्यामितीय गुणों का अध्ययन किया जाता है. यह गणित की एक क्वांटीटेटिव ना होकर क्वालिटेटिव (किसी भी वस्तु के गुण के बारे में अध्ययन से सम्बंधित) शाखा है. इसे इस तरह समझा जा सकता है... इसमें किसी सवाल को हल करने की जगह उसके गुणों का अध्ययन किया जाता है. हल करने की जगह ये देखा जाता है कि हल संभव भी है या नहीं. गणित की कई शाखाओं को एक सूत्र में जोड़ने का श्रेय टोपोलोजी को जाता है. एक ऐसी विचारधारा का विकास जिस पर गणित के कई सिद्धांत आधारित हैं. एक प्रयास जो गणित के अब तक विकसित सिद्धांतों को एक सोच के अन्दर समेट सके.
टोपोलोजी शुद्ध गणित की एक प्रतिष्ठित शाखा है. जिसमें स्वयंसिद्ध परिभाषित किये जाते हैं फिर उनका इस्तेमाल कर प्रमेय, फिर उन्हें साबित किया जाता है. 'किसी भी वस्तु से सम्बंधित सवालों के बारे में एक गुण को लेकर उसे सही या गलत साबित करना' इसी अवधारणा पर टोपोलोजी का विकास हुआ. पहले ऐसे कई सवाल हुआ करते थे जिन्हें हल करने के लिए लोग सदियों तक लगे रहे, बिना ये सोचे कि हल संभव भी है या नहीं ! टोपोलोजी की मदद से ऐसे कई सवाल सहज हुए. कई सवालों के लिए यह साबित किया गया कि इनका हल संभव ही नहीं है तो कई अन्य के लिए ये कि ऐसे कई सवालों का हल एक ही है और इनमें से किसी एक को भी हल किया गया तो सारे हल हो जायेंगे. टोपोलोजी में मात्रा या परिमाण(क्वांटिटी) मायने नहीं रखते पर उनके गुण मायने रखते हैं. जैसे पुणे और दिल्ली के बीच में कहीं से कर्क रेखा गुजरती है या नहीं ऐसे सवालों के जवाब टोपोलोजी के दायरे में आयेंगे. कहाँ से गुजरती है ये टोपोलोजी के लिए मायने नहीं रखता.
काश जिंदगी और मानवीय सोच भी गणित की तरह होते और उन्हें एक सूत्र में पिरोया जा सकता ! टोपोलोजी जैसे गणित ज्यादा पढने वाले शायद यही सब सोच कर फिलोस्फर (पागल?) हो जाते हैं.
बस आज के लिए इतना ही अब ये श्रृंखला चालु कर दी है तो ख़त्म भी करूँगा ही. कब और कितने दिनों के अन्तराल पर पोस्ट करूँगा ये मायने नहीं रखता :)
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~Abhishek Ojha~
जारी रहो और यह सूत्र धर लो आज की दुनिया का:
ReplyDeleteअब इंसान आज के समय पर ईमानदारी से बेईमान हो सकता.
:)
टोपोलोजी शब्द मेरे लिए भी काफी असहज रहा है जब तब जेहन में उमड़ता घुमड़ता है !
ReplyDeleteअच्छा लगा।
ReplyDelete@ काश जिंदगी और मानवीय सोच भी गणित की तरह होते और उन्हें एक सूत्र में पिरोया जा सकता ! टोपोलोजी जैसे गणित ज्यादा पढने वाले शायद यही सब सोच कर फिलोस्फर (पागल?) हो जाते हैं.
शायद जिन्दगी और गणित को जोड़ कर देखना ही ठीक नहीं है। कितने लोग फिलॉस्फराना अंदाज में कहते फिरते हैं - जिन्दगी का गणित ही गलत हो गया। भाई बिगाड़ा आप ने अब गणित को क्यों सामने ला रहे हो?
अगली कड़ी जल्दी आनी चाहिए।
क्या सुडोकू पहेलियाँ भी टोपोलोजी ही हैं?
ReplyDeleteअच्छा लगा आपने फिर गणित पर लिखने का मन बना लिया ...कोई शर्त नही की आप नियमित रहें ..पर विषयों में विविधता आनी ही चाहिए यह जरुरी भी है....जब समय मिले लिखें.
ReplyDelete‘टोपोलॉजी’ यह किसी अनाड़ी को टोपी पहनाने का विज्ञान है क्या?
ReplyDeleteहम बस इतना समझ पाये कि यह कोई बहुत अच्छी चीज है। बताने के लिए धन्यवाद।:)
टोपोलोजी भाई मुझे तो ऎसा लग रहा है जेसे आप कह रहे हो... टोपा लो जी, भाई हम ने बडी मुश्किल से जान छुडाई इस गंणित से, अब इसे रहने दो,
ReplyDeleteलेख बहुत अच्छा लगा, लेकिन हमरी समझ से बाहर
माफ कीजिएगा, मेरी गणित शुरू से कमजोर रही है, इसलिए मैं चाह कर भी आपकी बातें समझ नहीं पाई। वैसे इतना तो मैं कह सकती हूं कि आपने लिखा बहुत ही टोपोलोजी टाइप है।
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क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?
पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।
वैसे टोपोलोजी अजूबा ही है [बस समझ में आना चाहिए, मुझे बहुत ज्यादा नहीं आता :)
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मैं कहूं तो यह कि वैसे टोपोलोजी अजूबा ही है [बस समझ में आना चाहिए, मुझे बिल्कुल नहीं आता :)
लोग कहते हैं कि टोपॉलोजिस्ट वह व्यक्ति है जिसे कार के पहिये और डोनट में फर्क नहीं लगता:-)
ReplyDeleteऐसे चार रंगों की मुश्किल भी इसी में आती है।
कभी समझने की कोशिश की थी टोपॉलाजी..हाई इनर्जी फ़िजिक्स की बैटरी भी इसी मे है..मगर जितना दिमाग लगाया..उतना कफ़्यूजन भी बढ़ता गया..हाइजेन्बर्ग-प्रिन्सिपल की तरह..
ReplyDeleteहाँ जार्ज गैमो ने अपनी पापुलर-साइन्स विषयक किताबों मे इसका बड़ा अनुप्रयोगात्मक और प्रभावी तरीके से जिकर किया है...
और मानवीय सोच टोपोलोजी पे चले या न चले अपना मानवीय व्यवहार तो टीपोलॉजी पर ही चलता है..और बड़ी स्योर-शॉट भी है यह आर्ट..
मस्त लिखते हैं आप..
टोपोलोजी अपने लिए अबूझ पहेली सी रही ..पर तुमने काफी दिलचस्प बना दिया है इसे
ReplyDeleteअच्छी किताब है।
ReplyDeleteटोपोलॉजी के लेख पढ़ते पढ़ते एक बात दिमाग में आई पता नहीं कितनी सही है... कुछ सालों पहले यानि कुछ बीस तीस साल पहले लोहे की रॉड को मोड़ने की कोशिश की जा रही थी ताकि टॉय ट्रेन को एक छोटे ट्रेक पर घुमाया जा सके। लेकिन लोहा एक सीमा तक मुड़ने के बाद टूट जाता। अगर पतला लोहा काम में लिया जाता तो वह टॉय ट्रेन के काम नहीं आता। इस पहेली के लिए लोहे के अयस्क से कई तरह के प्रयोग किए गए। इसी दौरान एक वैज्ञानिक के दिमाग में आया कि क्यों न लोहे का पाइप लेकर उसे मोड़ा जाए। वह मुड़ेगा तो लोहे की दो पत्तियों को बीच अंतर कम हो जाएगा और सीधा होगा तो अंतर बढ़ जाएगा।
ReplyDeleteइस तरह मुड़ी हुई ट्रेन का कांसेप्ट चल निकला। बाद में रोलर कोस्टर राइड तक में इसका सफल इस्तेमाल किया गया। रोलर कोस्टर का वाहन जिस ट्रेक पर चलता है वह पाइप का बना होता है न कि लोहे के सरियों का। इस तरह ट्रेन ऊपर और नीचे एक जैसे गोते लगाती हुई वापस उसी बिंदू पर आ जाती है जहां से शुरू हुई थी।
यह भी टोपोलॉजी शाखा का बिंदू हो सकता है.. शायद
यह मेरा अनुमान है...