Wednesday, February 23, 2011

अंको का विभाजन


अंको की अपनी दुनिया है. इनमें डूबने वाले खूब गोते लगाते हैं. ऐसे ही गोते लगाने वालों में एक थे 'को नहीं जानत है जग में'  की तर्ज पर प्रसिद्द गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन. इन्ट्यूशनिज्म के महारथी... ऐसे गणितज्ञ जो पता नहीं कैसे सोच कर ऐसी बातें लिखते जिन्हें समझना उस समय तो क्या अब भी मुश्किल है. ऐसे लोगों के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल होता है क्योंकि एक तो अपने छोटे जीवन में वे बहुत कुछ कह नहीं पाए फिर जो कुछ कहा भी उसमें से दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से बहुत कुछ खो गया… फिर जो कुछ मिला उसमें से कुछ बातें अपूर्ण ही मिल पायी... और फिर कुछ ऐसी भी मिली जिनका मतलब समझ पाना आसान नहीं. खैर इनके बारे में कभी पूरी श्रृंखला लिखने का मन है. फिलहाल उनके पहले पत्र से लेकर उनकी म्रत्यु के ५७ वर्षों के बाद ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज की लाइब्रेरी में मिले इनके कुछ नोट्स पर हुए शोध के बारे में. (जो बाद में दो अमेरिकी गणितज्ञों ने रामानुजन'स लोस्ट नोटबुक्स के नाम से प्रकाशित की, जिनमें से एक गणितज्ञ ने कहा था "The discovery of this Lost Notebook caused roughly as much stir in the mathematical world as the discovery of Beethoven’s tenth symphony would cause in the musical world." ).  इस सवाल के शोधकर्ता को इस साल का फील्ड्स मेडल मिलना लगभग तय सा है.

ये गणित के उन सवालों में से है जिन्हें समझने के लिए बस जोड़ और गिनती आना पर्याप्त है पर हल होने में सदियाँ गुजर गयी. अब देखिये न कितना आसान है: ३ = १+१+१ = २+१ = ३. वैसे ही ४ = ३+१ = २+२ = २+१+१ = १+१+१+१ = ४. साधारण सा जोड़... और अंको के विभाजित करने का तरीका. जैसे ३ को १ और २ से जोड़ कर बनाया जा सकता है या १,१ और १ से और ३ एक खुद. इस तरह ३ को विभाजित करने के ३ तरीके हुए वैसे ही ४ को विभाजित करने के पांच तरीके होंगे. अब सवाल ये है कि किसी अंक को कुल कितने तरीके से विभाजित किया जा सकता है? बहुत ही साधारण सा सवाल है.

लेकिन ३ और ४ के लिए तो ठीक पर ये अंक जैसे जैसे बढते हैं इनके विभाजन के तरीके बड़े अजब-गजब तरीके से तेजी से बढ़ते हैं. जैसे अगर १०० को विभाजित करना हो तो कुल १९०५६९२९२ तरीके हो जाते हैं. अब १००० को करना हो तो कितना बड़ा अंक आ जाएगा ये आप इस लिंक पर देख आयें. थोडा और बढ़ा दें तो पता चले कि ये कम्पूटर भी ना निकाल पाए ! अब सवाल ये था कि कैसे निकाला जाय कि किसी अंक को कुल कितने तरीके से विभाजित किया जा सकता है?

पहली कोशिश महान गणितज्ञ ओय्लर साहब ने की थी. ओय्लर साहब ने  जेनेरेटिंग फंक्शन और पावर सीरीज की मदद से सवाल को नए तरीके से लिखा. साधारण भाषा में कहने का मतलब ये कि वो कुछ ऐसा कह गए कि अगर दिल्ली से कलकत्ता की दुरी पता करना हो तो उसकी जगह अगर ये पता कर लें कि किस चाल से वहाँ  पहुचने में कितना समय लगता है तो भी दूरी निकाली जा सकती है. पर दिल्ली से कलकत्ता जाए कैसे? ये किसी को अभी भी पता नहीं था. कहने का मतलब ये कि सवाल अभी भी हल नहीं हो पाया !

१९१३ तक इस सवाल की किसी को हवा तक नहीं लग पायी. फिर १९१३ में मद्रास के एक बालक ने इंग्लैण्ड के हार्डी को जो पत्र लिखा उसमें एक फोर्मुला था. जो गलत होते हुए भी इस सवाल का अब तक का सबसे महत्तवपूर्ण सुझाव साबित हुआ. और फिर बाद में रामानुजन ने एक फोर्मुला दिया और हार्डी ने मिलकर साबित किया. मेजर मैकमोहन ने किया जोड़ घटाव का काम (मेजर साब के बारे में फिर कभी). यह कालजयी सूत्र गणित में एक चमत्कार सा था. यह सही सही तो नहीं पर बहुत सटीक अनुमान देता था सवाल के उत्तर का कितने भी बड़े अंक के लिए.

उनेक बाद सवाल लगभग वहीँ का वहीँ पड़ा रहा. १९३७ में उनके नोट्स का इस्तेमाल कर हान्स रादेमचेर ने एक सूत्र बनाया पर वो भी अनंत अंको को जोडने वाला कठिन सूत्र था. फिर एमरी विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर केन ओनो और उनके सहयोगियों ने पिछले महीने इस सवाल को हल कर लेने की घोषणा की. प्रोफ़ेसर ओनो कहते हैं कि ओय्लर ने जो दिया उससे  गणित के ब्रह्माण्ड में बस मंगल ग्रह तक को देख पाने की सी बात थी. उससे १५० सालों में २०० से बड़े अंको का विभाजन नहीं किया जा सका. फिर रामानुजन ने गणितज्ञों को टेलीस्कोप दे दिया... जिसमें दूर के ग्रहों और तारों को देखने की क्षमता थी.

रामानुजन की डायरी में एक लाइन थी जिसमें उन्होंने लिखा था "there appear to be corresponding properties in which the moduli are powers of 5, 7, or 11... and no simple properties for any moduli involving primes other than these three."  पर इसकी व्याख्या कर पाने के पहले ही ३२ वर्ष की उम्र में रामानुजन चल बसे.

कंप्यूटर और नए गणितीय खोजों के बावजूद रामानुजन के नोट्स गणितज्ञों के लिए विस्मय का कारण बने रहे और वो उस लाइन का मतलब ढूंढते रहे. फिर केन ओनो की टीम को पता लगा कि रामानुजन के टेलीस्कोप से जितना दिख रहा था उसके आगे ब्रह्माण्ड में देखने की जरुरत नहीं. क्योंकि उसके बाद यही fractalदुनिया फिर से अपने को दुहरा रही है. उन्होंने अंको के विभाजन में फ्रैक्टल का सिद्धांत पाया. ओनो कहते हैं कि रामानुजन का no simple properties फ्रैक्टल ही हैं. इस तरह पिछले महीने ये सवाल हल हो गया. फ्रैक्टल अपने आप को अनंत तक दुहराने वाले पैटर्न होते हैं और केन ओनो की टीम ने अंको के विभाजन में यही पैटर्न ढूंढ निकाला है. जिसकी मदद से उन्होंने एक बीजगणितीय सूत्र निकाला है अंको के विभाजन को निकलने के लिए.

चलते-चलते*: बताता चलूँ कि रामानुजन के बारे में हम जितना सुनते-जानते हैं उससे कहीं ज्यादा महान गणितज्ञ थे. इतिहास में एक बार पैदा होने वाले एक महर्षि की तरह. उनके बारे में ३ महीने पहले (उनके जन्मदिन पर) जोर्ज ऐंड्रूस का लिखा लेख है: The meaning of Ramanujan: Now and for the future. जो कुछ यूँ शुरू होता है:  In this paper we pay homage to this towering figure whose mathematical discoveries so affected mathematics throughout the twentieth century and into the twenty first. Whenever we remember Ramanujan, three things come most vividly to mind: (1) Ramanujan was a truly great mathematician; (2) Ramanujan's life story is inspiring; and (3) Ramanujan's life and work give credible support to our belief in the Universality of truth. We shall examine each of these topics in the next three sections. A careful examination of each topic should, at least, give us some inkling of the meaning of Ramanujan. (ऐंड्रूस को रामानुजन के नोट्स को ढूंढने का श्रेय जाता है. आजीवन वो रामानुजन के नोट्स पर काम करते रहे हैं.)

और दो महीने पहले ही खुद केन ओनो द्वारा अमेरिकन मैथेमेटिकल सोसाइटी में छपा ये आलेख: The last words of a genius. और अगर पढ़ सकें तो अपने भारत के इस अद्भुत गणितज्ञ के बारे में ये किताब जरूर पढियेगा. संघर्ष, बिडम्बना और प्रतिभा का अद्भुत संगम: The Man Who Knew Infinity: A Life of the Genius Ramanujan.

*अगर आपने यहाँ तक पढ़ा है तो बता दूं कि चलते-चलते के बाद के जो लिंक हैं वो पढ़ने की कोशिश कीजियेगा. जहाँ गणित दिखे उसे छोड़कर अंग्रेजी वाले पैराग्राफ ही सही. अच्छा लगेगा, इसकी गारंटी Smile वैसे रामानुजन पर कभी फुर्सत में ढेर सारे पोस्ट लिखने का मन है.

~Abhishek Ojha~

तस्वीर: गणितीय सूत्र से बना फ्रैक्टल. इसे मैंने कभी गणितीय रंगोली नाम देकर इसी ब्लॉग के लिए बनाया था, उस पोस्ट पर कुछ और भी हैं. खूबसूरत लगे तो देख आइये. इसे देखने में क्या लजाना? वैसे भी गणितीय है Smile

15 comments:

  1. यह अभागा महान गणितज्ञ युवावस्था में ही शून्य में लीन हो गया ! ऐसी धुन का पक्का जो गणित और भौतिकी में १००% प्रतिशत अंक लाता था और बाकी विषयों में फेल होता था.

    ReplyDelete
  2. At the same time given a beacon of light to others.

    ReplyDelete
  3. सर !
    आज छुट्टी चाहिए ! पेट दर्द ...

    ReplyDelete
  4. सारे लिंक देख-पढ़ के लौटा हूँ। फ्रैक्टल पहले भी पढ़ा है, उसे फिर से देखना बहुत पसंद आया।
    गणित पर जो आप लिखते हैं, उसके लिए हमेशा ही बहुत आभार!

    ReplyDelete
  5. रामानुजम के सूत्रों में जूझने की कोशिश की थी। एक माह के बाद हार मान ली।

    ReplyDelete
  6. रॉर्बट केनिगेल (Robert Kanigel) की लिखी पुस्तक The Man Who Knew Infinity: A Life of the Genius Ramanujan अपने में बेजोड़ है। मैंने इसे लगभग दो दसक पहले पढ़ा था। यह बेहद प्रेणनादायक है सबको पढ़नी चाहिये।

    ReplyDelete
  7. सुबह-सुबह इस लेख को पढ़कर मन खुश हो गया। :)

    ReplyDelete
  8. @Ashish Shrivastava: 'अभागा महान गणितज्ञ' और 'धुन का पक्का'. बिलकुल सही शब्द इस्तेमाल किया है आपने.
    @अनामी: बिलकुल सही बात.
    @सतीश सक्सेना: अरे सर, रोज तो छुट्टी ही है. कभी कभी तो क्लास लगती है. उसमें भी बहाना :)

    ReplyDelete
  9. @Avinash Chandra: कविवर, आप को अच्छा लगा ये जानकार हमें बहुत ही अच्छा लगा :)
    @प्रवीण पाण्डेय: वो सूत्र हैं ही ऐसे. हम भी तो बस उनकी कहानियों और इनके कारनामों से बहुत ज्यादा कहाँ समझ पाते हैं. बड़ी चीजों की खूबसूरती दूर से ही निहार कर अभिभूत हुए जाते हैं.
    @उन्मुक्त: धन्यवाद उन्मुक्तजी, मुझे भी बहुत पसंद है ये किताब. और ऐसी है भी जो किसी को भी पसंद आएगी.

    ReplyDelete
  10. @अनूप शुक्ल: हम भी आपका कमेन्ट देख कर खुश हो लिए. बताइए तो कितनी अच्छी बात है, किसी और की ख़ुशी से ख़ुशी मिलना वैसे ही बहुत कम हो पाता है आज के जमाने में :)

    ReplyDelete
  11. very interesting, at last i read it. subah jab office mein aakar facebook dekha to prashant ne yeh link diya tha, phir jab padhna shuru kiya to office work se time hi nahin mil raha tha ise padhne ke liye. abhi jakar completely padha(with all links) aur padhkar maza aa gaya. pure mind refreshment.

    ReplyDelete
  12. जब भी इस महान गणितज्ञ के बारे में पढता हूँ ,खान पान से जुड़े अंधविश्वासों को कोसता हूँ -महाशय एक ऐसे आर्थोडाक्स परिवार से थे जो शुद्ध शाकाहारी था -जब इन्हें टी बी हुयी तो डाक्टरों ने निरामिष पेयों की सलाह दी -मगर संस्कार आड़े हाथों आ आ गए -हमें तो लगता है कि इनसे बड़ी अभागी तो मानवता रही जो व्यर्थ के कारणों से एक महामेधा के अवदानों से वंचित रह गयी ...

    ReplyDelete
  13. मेरा बेटा रामानुजम के बारे में जानना चाहता था..अचानक मैं यहाँ आ गयी ..हम सभी पढ़ रहे हैं..आभार

    ReplyDelete
  14. रामानुजन तो मेरे सबसे प्रिय विषयों में से एक हैं। अरविन्द जी की बात उचित नहीं लगती क्योंकि संसार में हर मांसाहारी वस्तु का सुन्दर विकल्प है और रासायनिक गुण ही तो सब कुछ हैं, सब कुछ विज्ञान ही कहता है। हाँ मैंने ये सब संस्कार वश नहीं कहा है कि क्योंकि मैं अनीश्वरवादी और धर्म को बेकार जैसा मानने वाला हूँ।

    ReplyDelete