रामानुजन के मार्गदर्शक और जी एच हार्डी के सहयोगी जे ई लिटिलवूड ने एक बार कहा था: 'गणित एक खतरनाक पेशा है, और हम गणितज्ञों में से एक अच्छा ख़ासा हिस्सा पागल हो जाता है'.
आंद्रे ब्लाक (Andre bloch) पिछली सदी के एक प्रसिद्द फ़्रांसिसी गणितज्ञ थे. मिश्रित फलन के सिद्धांतों (complex function theory) पर दिया गया उनका 'ब्लॉक प्रमेय' गणित के खूबसूरत प्रमेयों में आता है. आंद्रे ब्लॉक के बारे में कई विरोधाभासी कहानियाँ प्रसिद्द हैं. उन्होंने कई प्रसिद्ध गणितज्ञों के साथ पत्राचार तो किया पर कभी किसी से मिले नहीं. कहते हैं जोर्ज पोल्या ने जब उन्हें ज्यूरिक बुलाया तो उन्होंने ये कह दिया कि उनकी स्थिति ऐसी नहीं कि वो ज़्यूरिक आ सकें. जब पोल्या उनके बताए पते पर पँहुचे तो पता चला कि वो एक पागलखाने का पता था. पोल्या उस पागलखाने के दरवाजे से लौट आये. (वैसे बाद में पोल्या ने ऐसी किसी घटना के होने से इनकार किया.) एक और अजीब बात ये थी कि आंद्रे अपनी चिट्ठियों में दिनांक एक अप्रैल ही लिखते थे.
यहूदी परिवार में घडीसाज पिता के पुत्र आंद्रे अपने छोटे भाई के साथ एक ही कक्षा में पढते थे. कहते हैं आंद्रे के भाई ने जहाँ अच्छे अंक प्राप्त किये वहीँ आंद्रे अपनी कक्षा में आखिरी स्थान पर आये. पर फ़्रांसिसी गणितज्ञ अर्नेस्ट वेसीयट द्वारा लिए गए मौखिक परीक्षा के उन्हें २० में से १९ अंक प्राप्त हुए और उन्हें इकोल पोलीटेक्निक में नामांकन मिल गया. एक साल के भीतर ही प्रथम विश्वयुद्ध के चलते दोनों भाइयों को पढाई छोड कर सेना में भर्ती होना पड़ा. कुल मिलकर यहीं तक पढाई की आंद्रे ने. इसके बाद के ३१ साल का शेष जीवन पागलखाने में गुजारते हुए उन्होंने गणित पर अद्भुत शोध किये. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कुछ समय तक फ़्रांस का वो हिस्सा नाजी जर्मनी के कब्जे में था और इस दौरान आंद्रे ने अपनी यहूदी पहचान छुपाने के लिए छद्म नामों से भी शोध छपवाए.
उनके पागलखाने तक पहुचने के कारणों पर भी मतभेद तो थे पर सभी मतभेदों में एक बात सामान थी और वो थी नृशंस हत्या !
कुछ लोगों का कहना था कि उन्होंने अपने मकान मालकिन और सास की हत्या इसलिए कर दी क्योंकि वो बहुत शोर करती थी और इससे उनके काम में बाधा पड़ती थी. कुछ ने ये कहा कि उन्होंने अपने भाई से ईर्ष्या के चलते उसकी हत्या कर दी. क्योंकि उनका भाई उस समय एक विद्यालय खोलने की योजना बना रहा था. कुछ ने मंगेतर तो कुछ ने पत्नी की हत्या की बात की. कई लोगों ने धार्मिक बहस को इसका कारण माना.
कुछ किस्सों के अनुसार विश्वयुद्ध से लौटे फौजी अफसर होने के नाते उनकी इज्जत थी और इसी बात के चलते हत्यारा होने पर भी उन्हें मानसिक रोगी बताकर उन्हें अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. २४ वर्ष की उम्र से लेकर १९४८ में मृत्यु तक वो मानसिक अस्पताल में ही रहे. हत्या की इस घटना के अलावा आंद्रे को एक शांत और मिलनसार व्यक्ति के रूप में जाना जाता था. लेकिन जो व्यक्ति हत्या कर दे… अपने ही परिवार के कई लोगों का उसका मिलनसार और विद्वान होना किस काम का ? !
कई कल्पित कथाओं के बाद कुछ शोध, चिट्ठियों और आंद्रे के सबसे छोटे भाई की लिखी किताब में बातें थोड़ी अलग हैं. उस हिसाब से आंद्रे युद्ध में घायल हो जाने के कारण कुछ दिन अस्पताल में बिताने के बाद सेना के लिए अक्षम घोषित होने के बाद घर लौटे थे और उनके भाई के सर में गोली लग गयी थी जिससे उनकी एक आँख भी चली गयी थी. फिर एक दिन खाना खाते समय आंद्रे ने अपने भाई, चाचा और चाची की हत्या कर दी. इसके बाद वो चिल्लाते हुए बाहर निकल गए और अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया. जहाँ से उन्हें मानसिक अस्पताल भेज दिया गया.
फ्रेंच अकादमी ऑफ साइंस ने उन्हें १९४८ के बेक्वेरेल पुरस्कार के लिए चुना था जो उन्हें उसी साल मरणोपरांत प्रदान किया गया. बिना किसी उच्च औपचारिक शिक्षा के आंद्रे ने गणित की कई शाखाओं पर शोध किया और कई गणितज्ञों के साथ शोधपत्र भी छपे. मुख्यधारा और दुनिया से पूरी तरह अलग रहने के बावजूद सीमित किताबों और पत्रों के माध्यम से वो गणित के विकास पर काम करते रहे.
उस समय के अस्पताल के मुख्य मनोवैज्ञानिक बरुक ने बाद में बिना आंद्रे का नाम लिए ‘चार्लटन का गणितज्ञ’ नाम से छपे लेख में लिखा कि आंद्रे ‘तर्कसंगत मानसिकता के रोगी’ थे. उनका तर्क था कि ये उनकी जिम्मेवारी थी कि परिवार के सुजनन (eugenic duty) के लिए उसकी एक शाखा को खत्म कर दिया जाय जो उनके हिसाब से दूषित थी. कई सालों के बाद अपने सबसे छोटे भाई से मिलने के बाद उन्होंने डॉक्टर को एक बार बताया कि ‘ये सब एक गणितीय तर्क पर आधारित है. मेरे परिवार में पहले मानसिक रोगी रहे हैं और उसे खत्म कर देने के लिए परिवार की एक शाखा को तर्क के हिसाब से खत्म हो जाना चाहिए. मैंने इसके लिए जो काम शुरू किया था वो अभी खत्म नहीं हुआ है’. उन्होंने डॉक्टर से ये भी कहा कि उनके तर्क में भावना का कोई स्थान नहीं और इसके लिए उन्होंने अलेक्जन्द्रिया की प्रसिद्ध गणितज्ञ हिपाटिया के सिद्धांतों का प्रयोग किया.
हिपाटिया पहली प्रसिद्द महिला गणितज्ञ के रूप में भी जानी जाती है. ईसाई कट्टरपंथियों ने ४१५ ई. में हिपाटिया की हत्या कर दी. शिष्यों के लिखे कुछ लेखों और पत्रों के अलावा हिपाटिया का कोई दर्शन बचा नहीं है. और कोई भी ये अनुमान नहीं लगा पाया कि आंद्रे ने किस सिद्धांत की बात की होगी. वैसे काफी बाद में लिखे गए एक उपन्यास में एक अनुच्छेद मिला जिसमें यह लिखा गया था कि हिपाटिया ने एक नरसंहार पर कहा की उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक कुछ अर्ध-जानवर जिस मिटटी से आये थे अगर उसी मिटटी में कुछ साल पहले चले जाएँ और उससे दुनिया का पुनर्निर्माण और एक महान व्यवस्थित समाज बने.
लोग ये नहीं मान पाते कि एक उपन्यासकार की ऐसी कल्पित बात से आंद्रे प्रभावित हुआ हो. ये बिडम्बना ही होगी कि एक गणितीय विद्वान जिसे इस हत्या को छोड़ दें तो बहुत ही शांत और दयालु इंसान के रूप में देखा गया एक उपन्यास से इस तरह प्रभावित हो जाए. मानसिक अस्पताल के एक छोटी सी जगह में एक मेज पर काम करते रहने वाला आंद्रे अक्सर उस जगह को छोड़ अन्य जगहों पर भी जाने से मना कर देता. ‘गणित मेरे लिए पर्याप्त है’ कह कर टाल देने वाले आंद्रे के सबसे छोटे भाई की लिखी किताब के अनुसार वह बस अस्पताल में गणित के अलावा बस शतरंज खेलता और अत्यंत ही विनम्र किस्म का इंसान था जिसे अस्पताल के कर्मचारी एक आदर्श मरीज के रूप में देखते थे.
आंद्रे पत्रों में अपने पते के नाम पर बस मकान संख्या और गली का नाम दिया करता और ये कभी नहीं लिखता कि वो मकान नंबर वास्तव में एक मानसिक अस्पताल है. आंद्रे आजीवन कभी किसी गणितज्ञ से नहीं मिला. पारिवारिक, धार्मिक सुजनन के नाम पर कई नरसंहार हुए हैं. आंद्रे ने पता नहीं किस तर्क से परिवार वालों की हत्या कर दी. कोई भी तर्क मानव हत्या को उचित नहीं ठहरा सकता. वैसे ये एक रहस्य ही है कि ऐसा क्या था जिसने आंद्रे को ऐसा जघन्य अपराध करने को प्रेरित किया. मनोविज्ञान और गणितीय दर्शन दोनों के लिए अब भी ही ये एक रहस्य सा ही है.
~Abhishek Ojha~
१. Henri Cartan and Jacqueline Ferrand, The case of André Bloch
२. Douglas M. Campbell, Beauty and the beast: The strange case of andre bloch
अरे भाई, गणित फणित छोड़ो। मन तन्दुरुस्त रहे तो जोड़-बाकी-गुणा-भाग में कुछ कमजोर रहना भी चलेगा! :)
ReplyDeleteआंद्रे ब्लाक के बारे में, मेरे लिए यह पहला परिचय रहा. धन्यवाद. किसी को भी किसी चीज़ में नहीं डूबना चाहिये...
ReplyDeleteगणितीय संवेदना में जीवन तहस नहस न हो जाये, गणित बहुत ही नशीली है।
ReplyDeleteमैं तो दहल गया -ऐसा आलेख आप क्यों लिख रहे :)
ReplyDeleteकहावत है कि बिना पागलपन के मिश्रण के कोई भी जीनियस नहीं होता
बिहार के कई गणितग्य पागल हुए हैं -
कोई न कोई सम्बन्ध तो है -
दो गणितीय पागलों को तो मैं भी झेल चुका हूँ कितने तो मासूम थे बिचारे ..
एक और मासूम दिखा है बिचारा और दुर्भाग्य से वह भी गणित ज्ञानी
आंद्रे ब्लाक के बारे में यह दिलचस्प जानकारी रही. उम्मीद है, ऐसे और भी गणितज्ञों को जानने का मौका यहाँ मिलेगा.
ReplyDeleteवैसे, अपने क्षेत्र का हर ज्ञानी एक सीमा तक पागल तो होता ही है।!?
@अरविन्दजी: अरे मैं ज्ञानी नहीं हूँ. नोर्मल हूँ यहीं इसका प्रमाण है :)
ReplyDelete@रविजी: हाँ, कोई भी क्षेत्र हो उसमें डूब चुके लोग शायद कुछ और नहीं सोच पाते और पागल के रूप में परिभाषित हो जाते हैं.
सर जी, शुक्रिया।
ReplyDeleteढेर सारे होने का भी अलग फायदा है कि रूचि रखने वाले अधिक, और अधिक पा लेते हैं।
लिखते रहें ऐसा ही।
*ढेर सारे Link
ReplyDeleteलेकिन जो व्यक्ति हत्या कर दे… अपने ही परिवार के कई लोगों का उसका मिलनसार और विद्वान होना किस काम का ?
ReplyDeleteBahut Sahi kaha aapne
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक कुछ अर्ध-जानवर जिस मिटटी से आये थे अगर उसी मिटटी में कुछ साल पहले चले जाएँ और उससे दुनिया का पुनर्निर्माण और एक महान व्यवस्थित समाज बने.
ReplyDeleteयह उपन्यास का एक साधारण वाक्य नही है!
आंद्रे ब्लाग एक नृशस हत्यारे की बजाए एक क्रांतिकारी लग रहे है!
बहुत रोचक जानकारी मिली. पहली बार ही इनके बारे में पढ़ रही हूँ.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
मेरा मानना है कि या तो सभी पागल हैं या कोई पागल नहीं है। लेकिन पता नहीं क्यों लोग अधिक सोचने या पढ़ने वालों को पागल करार देते हैं और उसके शोध का फायदा लेने में कभी पीछे नहीं रहते।
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