Sunday, February 13, 2011

अंकों के देश में !

गणित का मतलब हम अक्सर अंको से ही लगाते हैं. गणित माने जोड़, घटाव, गुणा और भाग. हमें लगता है बस यही है गणित. पर ये गणित तो बस अंको का गणित है. गणित तो बिन अंको के भी होता है। ... चलिये इसे हम अंकगणित कहते हैं. पर वास्तव  में अंको का गणित भी इन अंकों तक ही नहीं है. संख्या सिद्धांत या नंबर  थियोरी अंकगणित से  कहीं अधिक विस्तृत होता है और इसमें अंको के गुण और उससे जुड़े नियम होते हैं. कुछ दिनों पहले मैथफेल नामक ब्लॉग पर आई ये तस्वीर मुझे बहुत पसंद आई थी. आज चलते हैं अंकों के देश में. पर जैसा कि ये तस्वीर कहती है अंकगणित गणित नहीं है ! Arithmetic-Mathematics

वैसे गणित की सीधी सी परिभाषा तो ये हैं कि जो आसानी से समझ में आ जाए वो गणित नहीं हैSmile  जैसे अंको तक का गणित आसानी समझ में आ जाता है तो गणितज्ञ उसे गणित ही नहीं मानते. अंको के लिए उन्होंने संख्या सिद्धांत बनाया. वैसे ही पिछली पोस्टों में जब गणित की खूबसूरती पर चर्चा चली थी तो मैंने लिखा था कि गणितज्ञ गणित के उन सिद्धांतों को गणित ही नहीं मानते जिनका उपयोग होने लगता है असली गणित को तो वो साश्वत सत्य की खोज और कविता सा मानते हैं. अब ये अलग बात है कि कहने वाले उसे ये कहते हैं कि अँधेरे कमरे में बैठ कर काली बिल्ली ढूंढने के सामान है ये गणित.... और मजे की बात है कि वो बिल्ली उस कमरे में  होती नहीं ! पर ये तो हुई मजाक की बात. संख्या के सिद्धांत में अंको के नियम और नियमों से अंक बनाए जाते हैं. नहीं-नहीं मैंने गलत टाइप नहीं किया नियमों से अंक भी बनाए जाते हैं. अब एक नए तरह के अंकों की एक नयी ही दुनिया होती है. उसके अपने नियम होते हैं और उनको आपस में जोडने घटाने और गुणा भाग करने के नियम भी नए होते हैं.

अंको से हमारे दिमाग में जो सबसे पहले अंक आते हैं उन्हें पूर्ण अंक (...३,-२,-१,०,१,२,३,...) कहते हैं या प्राकृतिक संख्याएं (१,२,३...) सम, विषम, रूढ़ इत्यादि अंको के कुछ मौलिक गुणों के आधार पर अंको का वर्गिकरण होता है। जैसे जो संख्या 2 से विभाजित हो वो सम संख्या जो न हो वो विषम, जो किसी से भी विभाजित ना हो वो रूढ़। ये सभी गिनती वाले अंक हैं अब ये एक बड़े परिवार का हिस्सा हैं जिन्हे परिमेय अंक (रेशनल) कहते हैं।  जैसे १/४,२/३,५/१ इत्यादि. अब आपने बट्टा या भिन्न के सवाल पढे होंगे। इनके अपने नियम हैं... अब इन परिमेय अंको के पड़ोसी अंक होते हैं अपरिमेय अंक। बहुत करीबी पड़ोसी… एक दूसरे के आजू-बाजू रहने वाले लेकिन दोनों के गुण आपस में नहीं मिलते। इनकी समस्या ये है कि इन्हें भिन्न या बट्टे में नहीं लिखा जा सकता। अब कितने भी करीबी पड़ोसी हों ये भिन्न नहीं होंगे तो अभिन्न कहना ही पड़ेगा। तो इस तरह बने परिमेय के पड़ोसी अपरिमेय !

ये सारे परिमेय और कुछ अपरिमेय जिस मुहल्ले में रहते हैं उसका नाम हुआ बीजगणितीय मुहल्ला. विभाजन के बाद कुछ अपरिमेयों ने परिमेयों के साथ रहने का फैसला किया होगा Smile तो इन सबको एकसाथ बीजगणितीय अंक कहते हैं। बीजगणितीय मुहल्ले वालों का एक गुण ये होता है कि वे सभी एक खास तरह के समीकरण के हल (मूल) होते हैं। अब जो ऐसे समीकरणों के हल नहीं हो पाते वो बाजू के मुहल्ले में रहते हैं और उन्हें इस जटिल मुहल्ले वालों को ट्रैन्सन्डेन्टल अंक कहते हैं। बीजगणितीय और जटिल अंकों को मिलकर वास्तविक अंक नामक जिला बनता है।

अब आप कहेंगे सारे नंबर तो हो गए जिले तक ही। पर असली अंक तो अब चालू होते हैं ! इन जिलों के मण्डल को अतिवास्तविक या हाइपररियल अंक कहते हैं। इनके गुण का तो वही सिद्धान्त है कि जो किसी राज्य के निवासी का होता है वो पहले देशवासी है। पहले भारतीय फिर बिहार, बंगाल। तो उसी तरह जो अतिवास्तविक के गुण है वो वास्तविक के होंगे ही।  इसके बाद आते हैं समिश्रित अंक याने काम्प्लेक्स अंक। वास्तविक और काल्पनिक अंको के जिलों को मिलकर बना समिश्र प्रांत। काल्पनिक अंक माने आई लगे अंक। जैसे 1+2आई. आई का मतलब होता है ऋणात्मक अंक का वर्गमूल... वही वाला वर्गमूल जिसके बारे में हम बचपन में पढ़ते हैं कि केवल धनात्मक अंको का ही वर्गमूल होता है। यहाँ भी चकमा दे गए न गणितज्ञ पढ़ा दिया कि धनात्मक अंको का वर्गमूल होता है और फिर पता चला कि ऋणात्मक का भी वर्गमूल होता है ! तो भैया इसका मतलब ये है कि गणित देश के छपरा से आगे ही नहीं जाएँगे तो पता कैसे चलेगा कि लखनऊ भी कोई जगह है ? दिल्ली, लंदन तो अभी दूर है ही।

अब इन मिश्रित संख्याओं के प्रांत को बढ़ा दें तो बृहतसमिश्रित प्रांत का नाम हुआ क्वाटरनायन। अब इस बृहत क्षेत्र में रहने वाले अंको की एक मजेदार आदत होती है कि एक को दूसरे से गुणा कर दो तो वही नहीं आता जो दूसरे को पहले से गुणा करने पर आता है। यानि यहाँ 2X3 अगर 6 होता है तो 3X2 कुछ और होगा ! अब अलग-अलग जगह के लोगों के अपने अपने तरीके हैं। वैसे ही इन अंको के अभी अपने नखरे हैं. ये समिश्रित अंको का एक तरह से 2 डायमेशन से तीन डायमेंशन में विस्तार है।

इस बृहत् प्रान्त के बाहर आते हैं ओक्टोनायन. इनके रंग, गुण और नखरे तो और भी अजीब होते हैं। यहाँ भी दो का आपसी गुणा आगे की जगह पीछे से कर देने पर अलग हो जाता है तो तीन अंक लेकर अगर पहले दो को गुणा करने के बाद तीसरे से गुणा किया जाय तो वही नहीं आता जो पहले आखिरी दो को गुणा करने के बाद पहले से गुणा करें ! आप ये कहें कि ओझवा बौरा गया है और अब गुणा भाग भी भूल गया. इसके पहले मैं ये सैर बंद कर देता हूँ Open-mouthed smile  फिर चलेंगे कभी अभी आप हवा खा के आइये.

~Abhishek Ojha~

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ये ब्लॉग बंद सा हो गया था. धन्यवाद अनूपजी का जो उन्होंने आज याद  और हमने एक पोस्ट ठेल  दी. आपने झेला हो तो मेरे साथ उन्हें भी कोस लीजियेगा और जो धन्यवाद देना हो तो मुझे दे जाएँ. झूठा ही सही Smile

21 comments:

  1. difficult....esp ham jaise maths ko na samjhne vale logo ke liye .....

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  2. जब यह पढ़ा था तब बहुत सोचा कि ऐसा क्यों? अब सोचता हूँ कि आप ऐसे क्यों?

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  3. मैथफेल देखा। यह विचार आया मन में कि मैथ में फेल होना भी बहुत कठिन है! पास होना तो और भी कठिन! :)

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  4. 01000100 01101000 01100001 01101110 01111001 01100001 01110111 01100001 01100100

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  5. हा हा हा
    पूरी पोस्ट इस उम्मीद से, बहुत धीरे—धीरे पढ़ी कि शायद कुछ समझ आ जाए...
    व्यर्थ. गणित मेरे लिए रोमन—ग्रीक है.

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  6. थोड़ा सा कन्फ़्यूज़न है, क्लियर कीजिये -
    "आपने झेला हो तो मेरे साथ उन्हें भी कोस लीजियेगा और जो धन्यवाद देना हो तो मुझे दे जाएँ. झूठा ही सही" इसका मतलब आप दोनों को एक साथ कोसना है या आपके साथ मिलकर अनूपजी को कोसना है? :))
    धन्यवाद देना है, वो भी सच्चे वाला, आप दोनों को। आये तो हम भी थे कई बार इस ब्लाग पर, लेकिन कैट को बैलने से डर गये:)
    मजा आया पढ़कर।

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  7. सही सही का धन्यवाद मेरे भाई !
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    और अनूप जी का भी !

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  8. बहुत खूब! ऐसे सरल तरीके से गणित पढ़ाय़ा जाता तो लोग गणित को इत्ता कठिन न मानते!

    अब वो वाली पोस्ट भी बांच लेते हैं जो छूटी थी और जिसके लिये कहा था कि पोस्ट लिखो तो दोनों एक साथ बांच लेंगे। :)

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  9. @Ashish Shrivastava: 01000001011101000110100100100000010100110111010101101110011001000110000101110010

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  10. @ आशीष श्रीवास्तवजी ने जो ० १ से बने अंक लिखे हैं उसका मतलब है 'धन्यवाद' और मैंने जो ऊपर वाले कमेन्ट में लिखा है उसका मतलब है 'अति सुन्दर' ये आशीष जी के कमेन्ट के लिए :)

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  11. @अनुरागजी: हमें बायलोजी ऐसे ही लगती थी (है) :)
    @प्रवीणजी: अरे तो बहुत नोर्मल हूँ, सही से गणितज्ञ कहाँ बन पाया :)
    @ज्ञानदत्तजी: :) सही बात है.
    @काजलजी: कार्टून में गणित नहीं होता? ऐसा कैसे हो सकता है ?

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  12. खग जाने खग ही की भाषा।
    हम तट बैठे लखैं तमाशा॥

    ओझा सुकुल की एकै काठी।
    समझ न पावे कछू त्रिपाठी॥

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  13. @संजयजी: अरे सर किसी को नहीं कोसना है बस आपके सच्चे वाले धन्यवाद के लिए शुक्रिया :)
    @मास्साब, अनूपजी: शुक्रिया.

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  14. @सिद्धार्थजी: हा हा. धन्यवाद.

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  15. @दर्पण: उफ़ ! कह नहीं सकता क्या याद दिला दिया अपने ये कह के :)

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  16. गणित शब्द पढ़ते ही मेरे हाथ पाँव फूल जाते हैं -मगर आप का लेखन आकर्षित भी करता है -
    काश आप मुझे कुछ गणित पढ़ा देते -क्या/कितना ट्यूशन फीस लेगें ?

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  17. गणित!!!
    दुबारा से इसे पढना सुखद है, पीछा का सब पढना है

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  18. वैसे गणि‍त गहराई में बड़ी ही स्‍पष्‍ट और एक सम्‍पूर्ण जीवन दर्शन है, ऊपर से ही कठि‍न और जंजाल लगती है।

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  19. @अरविन्दजी: आशीर्वाद के बदले कैसी डील रहेगी :)
    @अविनाश: धन्यवाद. फुर्सत मिले तो पढ़ना कुछ अच्छी पोस्ट भी मिलेगी :)
    @राजेजी: जी बिलकुल सही बात कही आपने.

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