चिटठा चर्चा में पढ़ा कि बिना पोस्ट्स के ब्लॉग ठूंठ हो जाते हैं तो ध्यान आया कि अब इस ब्लॉग को तो ठूंठ ही कहेंगे। गर्मी की छुट्टी भी एक महीने की ही होती है तो सोचा की कुछ ठेल ही दिया जाय अब बहुत हो गया। तो लीजिये प्राचीन से आधुनिक समय तक चित्रकारी से लेकर स्थापत्य तक में उपयोग होने वाले इस सुनहरे अनुपात के बारे में जान लेते हैं।
अनुपात (रेशियो) तो आप जानते ही होंगे, 'वही एक बट्टा दो... दो बट्टे चार, छोटी-छोटी बातों में बँट गया संसार'। एक संख्या को दुसरे से भाग दे दीजिये और वो हो जाता है एक अनुपात। तो ऐसे अनंत अनुपात हो सकते हैं... वैसे ही जैसे अनंत अंक होते हैं। अब इस अनंत अनुपातों में से ये अद्वितीय अनुपात है... जिसे सुनहरा अनुपात (गोल्डन रेशियो) कहते हैं। इसकी खासियत क्या है? अरे भई खासियत ही खासियत है... एक पोस्ट में तो नहीं आ पायेगी। पहले ये जान लेते हैं की ये होता क्या है... ना भी समझ में आए तो कोई बात नहीं है, कम से कम ये तो जान ही सकते हैं की दुनिया की सबसे मशहूर चित्रकार की पेंटिंग और कुछ मशहूर प्राचीन भवनों में इसका उपयोग हुआ था।
कोई भी दो भिन्न संख्या ले लीजिये, अब दो है तो एक बड़ा एक छोटा होगा ही, यदि दोनों के योग को बड़ी संख्या से भाग देने पर वही अनुपात आए जो बड़ी को छोटी से भाग देने पर. तो इस अनुपात को सुनहरा अनुपात कहते हैं (इसे दैविक अनुपात भी कहते हैं). गणितज्ञों को ये रोचक लगा तो वहीँ कलाकारों को इसमें खूबसूरती दिखी। अगर इसे हल किया जाय तो इस अनुपात का मान १.६१८ के लगभग होता है। पाई की तरह ही दशमलव के कई अंको तक इसे निकाला जा सकता है. इस एक अनुपात पर केवल गणितज्ञ ही नहीं कई विधाओं के लोगों ने सालों तक काम किया है... इसका इतिहास करीब २५०० साल पुराना है। इस अकेली संख्या पर कई किताबें है. जी हाँ एक संख्या पर कई किताबें. इस अनुपात का पहला लिखित विवरण युक्लिड द्बारा लिखा गया पर उससे पहले भी इसकी उपस्थिति यूनानी मूर्तियों में देखने को मिलाती है। यूनानियों ने पहली बार ज्यामितीय रचनाओं में इसकी उपस्थिति पर गौर किया. पर सबसे ज्यादा उपयोग हुआ पुनर्जागरण के समय पर जब इसकी खूबसूरती पर कुछ लोगों ने लिखा और फिर चित्रकार, मूर्तिकार, दार्शनिक सबने उपयोग किया।
इस संख्या के गणितीय गुण तो मैं लिखने से रहा क्योंकि इस ब्लॉग पर गणित नहीं लिखा जाता :-) तो इसके उपयोग के कुछ उदहारण देखते हैं। सबसे पहले मशहूर चित्रकार लिओनार्दो दा विन्ची की पेंटिंग देखते हैं। बाबा लिओनार्दो भी कमाल के आदमी थे... सब कुछ करते थे। चित्रकार, मूर्तिकार, गणितज्ञ, अभियंता, लेखक, संगीतज्ञ और पता नहीं क्या-क्या कभी उनकी एक किताब उठा के देखिये क्या डिजाईन बनायी थी उस ज़माने में उन्होंने ! ढूंढने वालों ने उनकी कुछ ५० से ज्यादा पेंटिंग्स में इस अनुपात को ढूंढ़ निकाला. इनकी मशहूर पेंटिंग 'वर्चुवियन मैन' की एक व्याख्या देखिये... और मोनालिसा में भी ये अनुपात ढूंढ़ ही लिया गया, मोनालिसा जैसी पेंटिंग बिना गणित के बन जाय... ऐसा कैसे हो सकता है !
स्थापत्य कला में इसका उपयोग देखना हो तो तकरीबन ४५० वर्ष ईशा पूर्व अथेन्स का एक्रोपोलिस है। इसमें यह अनुपात दिखा क्या आपको? थोड़ा मुश्किल है, मुझे भी नहीं दिख रहा।
वैसे अब इस संख्या की चर्चा हो ही गई है तो इन सब पर एक-एक मजेदार पोस्ट बन जायेगी। तो विस्तृत जानकारी अगले कुछ पोस्ट में आती रहेगी. इन सब के अलावा ये संख्या जीव विज्ञान और संगीत में भी आती है... उफ्फ़ ! संगीत और गणित? यही बाकी रह गया था। पर आपमें से बहुत संगीत में रूचि रखते हैं तो शायद आपको ये अच्छा लगे कि कैसे एक संख्या संगीत में उपयोग हो सकती है... आख़िर दैविक संख्या है !
अब आपको एक और गुण बता दूँ. ये अनुपात होता है १.६१८... अब जरा कैलकुलेटर उठा के १/१.६१८ निकालिए ये भी .६१८... आता है।
बहुत सारे गुण है जब कई किताबें हैं तो एक पोस्ट में क्या होगा। पर आज ब्लॉग को ठूंठ होने से बचाने के लिए इतना ही। आने वाली कुछ पोस्ट इस दैविक संख्या पर। देखते हैं कहाँ-कहाँ मिलता है। निराशा तो नहीं मिलेगी हाँ ये हो सकता है की आप भी इस सुनहरे अंक की उपस्थिति अपने शरीर के साथ-साथ आस-पास की कई चीज़ों में देखने लगें !
~Abhishek Ojha~
सारे चित्र विकिपीडिया से।
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रोचक जानकारी और ज्ञान से भरपूर आलेख। एक सवाल भी। क्या इस अनुपात की दोनों संख्याएँ पूर्ण संख्याएं भी हो सकती हैं? यदि हाँ तो कौन सी?
ReplyDeleteमाननीय दिनेशजी,
ReplyDeleteअगर निकाला जाय तो अनुपात का सही मान होता है (वर्गमूल(५) +१)/२. यानी [sqrt(5) + 1]/2 = (2.236...+1)/2 = 1.618...
पर ये कई तरीकों से निकलता है (प्रकृति में भी दीखता है) जिनमें एक फिबोनाच्ची क्रम भी है... जो ऐसे होता है: 0, 1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21, 34, 55, 89, 144, 233, 377, 610, 987, 1597, 2584, 4181, 6765....
अर्थात हर संख्या पिछले दो अंको का योग होती है...
अगर इस क्रम में बढ़ते जाय तो दो लगातार संख्याओं का अनुपात सुनहरे अनुपात की अनुमानित व्वैल्यु देता है... जितनी बड़ी संख्या लें अनुमान उतना ही अच्छा होता है... जैसे अगर 21/13 = 1.615
6765/4181 = 1.6180....
पर यह इर्रशनल नंबर है तो दशमलव में सही मान पाई(22/7=3.1416...) की तरह कई अंको तक निकाला जाता है. फिबोनाच्ची क्रम में जीतनी बड़ी संख्या लेकर भाग कीजिये उतना ही सही वैल्यू के समीप मान आता है.
बहुत बढ़िया। ज्यादा ध्यान दिया तो कागज कलम ले कर मानसिक हलचलीय गतिविधि गणित में प्रारम्भ होने का खतरा है।
ReplyDeleteजमाये रहिये!
धन्यवाद, भाई मुझे तो चक्कर आने लगे हे पता नही क्यो, फ़िर आऊगा
ReplyDeleteचलो, यह बढ़िया रहा कि समय रहते चेत गये वरना तो ठूंठ बनने की कागार पर ही थे. :)
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निवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.
-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
सुन्दर!हमारे नामाराशि शुक्लजी ने एक किताब लिखी थी- मैथेमैटिक्स आफ़ एस्थेटिक्स। अब उसको खोज के दुबारा पढ़ा जायेगा।
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी ........
ReplyDeleteरोचक
ReplyDeleteओझा जी
ReplyDeleteकमाल की पोस्ट. विंसी के विषय में तो जितना लिखा जाए उतना कम .आपके पोस्ट के मध्यम से उनकी शख्शियत को याद करने का अवसर मिला. आपकी लेखनी को धन्यवाद.
बाबा रे !
ReplyDeleteभीषण भालो गणित इति :)
- लावण्या
शानदार।
ReplyDeleteबहुत पहले पढ़ा था...विषय पराया है तकनीकी पक्ष कम पकड़े पर इतना समझा कि सौंदर्य की निर्मिति अपेक्षाओं की कसौटी पर होती है जिसे सूत्रबद्ध किया जा सकता है।
एक सवाल- सुनहरे अनुपात से सौंदर्य उपजता है या जिसमें सुनहरा अनुपात होता है उसे सुंदर मानने की मानव मन को आदत हो गई है ?
माननीय मसिजीवी जी,
ReplyDeleteसुनहरे अनुपात और सुन्दरता में कौन किसकी उपज है ये कहना थोड़ा मुश्किल है. पर ३ बातें मेरे दिमाग में आ रही हैं.
- सबसे ज्यादा उपयोग पुनर्जागरण के समय पर हुआ और तब इस पर एक बहुत प्रसिद्द लेख छापा था. तो ये कहना की उस लेख ने इस अनुपात और इसके ज्यामितीय गुणों को प्रभावित किया ग़लत नहीं होगा. सबसे ज्यादा उपयोग लियोनार्दो की रचनाओं में देखने को मिलता है. कुछ उदहारण में 'वर्चुवियन मैन' के अलावा 'मोनालिसा' और 'लास्ट सपर' जैसे विश्व प्रसिद्द कलाकृतियाँ शामिल हैं.
- पर ईशा पूर्व भी इसके उपयोग के कई उदहारण हैं, जब गणितीय रूप इतना प्रचलित नहीं था. तो पहला कथन सत्य तो है पर ऐसे उदहारण भी हैं.
- नए जमाने में खूब सारे गणितीय शोध और किताबों ने इस अनुपात को प्रसिद्धि दिलाई. तो कई शोध कर्ताओं ने मशहूर हीरोइनों और मॉडलों की तस्वीरों की अनालिसिस की तो पाया की उनके चेहरों में ये अनुपात किसी न किसी रूप में उपस्थित था. कई मॉडलों के जिस्म की भी व्याख्या इससे की गई और एक ख़ास घुमाव पर की ये कैसे 'गोल्डन स्पायरल' होने पर ज्यादा खुबसूरत दिखता है. ऐसे ही कई फूलों और प्राकृतिक चीज़ों में भी इसे ढूंढ़ निकाला गया.
इसे दैविक अनुपात भी कहते हैं और इसके पीछे कारण यही है की लोग मानते हैं की भगवान् (प्रकृति) इस अनुपात में रचनाएँ करना पसंद करते हैं. और फिर भगवान् ऐसा करें तो खूबसूरती तो होनी ही है !
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ReplyDeleteअभिषेक भाई, अब तो तुमको सीरियसली लेना पड़ेगा..
बुरा मत मानना , कई बार यहाँ से गुज़र गया, किंतु बस ऎसे ही..
आज के आलेख को देख व पढ़ कर अभिभूत हूँ,
साथ ही मज़बूर हूँ.. कि तुमको अपने रीडर में जोड़े
बिना गुजारा नहीं । हैट्स आफ़ टू यू.. दाउ आई डोन्ट वीयर हैट !