पिछली पोस्ट से उस सुनहरी दास्ताँ को आगे बढाते हैं. हमने सुनहरे अनुपात (Golden Ratio) की परिभाषा तो जान ही ली थी. आज वाली पोस्ट में थोडी गणित है (बस जोड़-घटाव) पर इसके बाद आने वाली ३-४ पोस्ट में एक भी अंक नहीं आएगा.
फिबोनाच्ची क्रम अंकों का एक क्रम होता है. जिसकी पहली और दूसरी संख्या १ होती है. उसके बाद हर अगली संख्या पिछली दो को जोड़ने से मिलती है, अर्थात फिबोनाच्ची क्रम ऐसा होता है: १, १, २, ३, ५, ८, १३, २१,.... आप देख सकते हैं क्रम के अंक पिछले दो अंकों के जोड़ने से बने है. ये हो गया फिबोनाच्ची क्रम (इस क्रम की संख्याओं को फिबोनाच्ची संख्या के नाम से जाना जाता है)...
अब एक काम करते हैं इस क्रम के हर अंक में उसके पिछले वाले अंक से भाग दे देते हैं। तो नया क्रम कुछ ऐसा होगा:
१, १/१, २/१, ३/२, ५/३, ८/५, १३/८, २१/१३, ...
अब अगर कैलकुलेटर उठा के देखें तो ये संख्याएं कुछ ऐसी आएँगी:
१, १, २, १.५, १.६६, १.६, १.६२५, १.६१५,...
अगर ये काम और बड़े अंकों के लिए करें तो यह धीरे-धीरे सुनहरे अनुपात की तरफ़ पहुच जाता है (१.६१८...). ये एक और तरीका है दैविक अनुपात तक पहुचने का... रास्ते अलग हो सकते हैं पर सत्य तो एक ही है ! जितने बड़े फिबोनाच्ची अंक लीजिये उतना सही सुनहरा अनुपात मिलेगा। अनंत के जितना करीब, सत्य के उतना ही पास !
आगे बढ़ने से पहले एक बात: वो हर चीज़ जिसमें सुनहरा अनुपात या आयत होता है मनुष्य को अच्छी लगती है चाहे वो कोई पेंटिंग हो या किसी का चेहरा, या फिर कोई वस्तु... सुनहरा अनुपात और सुन्दरता की चर्चा किसी और पोस्ट में !
अब आयत (Rectangle) की बात (वो छैंया-छैंया में 'आयत की तरह मिल जाए कहीं' से थोड़ा अलग है)। ऐसा आयत जिसकी भुजाओं का अनुपात 'सुनहरा अनुपात' हो उसे सुनहरा आयत कहते हैं। मतलब ये की आयत की लम्बाई को चौडाई से भाग देने पर १.६१८.... आए। इसकी कई खासियत में से एक ये भी है की अगर इसमें से एक वर्ग काटकर अलग कर दिया जाय तो जो बचता है वो भी सुनहरा आयत ही होता है। जब इस पर पहली किताब आई और इसके गुण चित्रकारों को पता चले तो इसकी सुन्दरता का खूब इस्तेमाल किया गया। कई प्रसिद्द पेंटिंग्स में। बस इस कदर लोग मोहित थे कि इसे ऐसा अनुपात माना जाता है जिससे प्रकृति काम करती है... ये हुआ आयत और इसी से जुड़ी हुई एक रचना आगे बनाएं तो घुमावदार स्पायरल का चित्र बनता है. ये चित्र में एक आयत और दूसरा स्पायरल दोनों सुनहरे ! एक को सुनहरा आयत कहते हैं और दुसरे को सुनहरा स्पायरल.
अब प्रकृति में ये रचना आपको कहाँ-कहाँ दिखती है? कई जगह... जैसे कुछ तो इनमें ही देख लीजिये। गणित ने कैसे कुछ बहुत बड़ी-बड़ी कलाकृतियों और इमारतों को प्रभावित किया है... इसकी चर्चा अगली पोस्ट में करते हैं।
पिछले पोस्ट पर आई द्विवेदीजी और मसिजीवीजी की टिपण्णी और उनके जवाब भी देखने लायक हैं. ये मत कह दीजियेगा की यही क्या कम था जो जाते-जाते और लिंक ठेले जा रहे हो :-)
~Abhishek Ojha~
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वास्तव में प्रकृति की भाषा गणित ही है
ReplyDeleteAishwarya Ka Face isi anupaat mei ekdam sahee hai aisa kehte hain -
ReplyDeleteInteresing explanation Abhishek bhai
Rgds,
L
( I'm away from my PC hence the comment is in Eng. hope you accept it
till the next post :)
यह कुछ समझ में आई इस लिए रोचक लगी :)
ReplyDeleteफैबिनॉक्की और घोंघा/शंख! वाह! तब तो फैबिनॉक्की मुझे पांचजन्य/कृष्ण से जोड़ते हैं!
ReplyDeleteभाई अभिषेक अब हम "biology" के स्टुडेंट को मत डराओ ...हम वैसे ही कल की "पिरलय" से सहमे हुए है......
ReplyDeleteअच्छा हुआ अपने लिंक दे दिया वरना तो छुटी ही थी यह पोस्ट ..बाकि मोनालिसा के बारे में सही कहा आपने ..मैंने कहीं पढ़ा थी इसकी डिटेल ,अभी चलती हूँ कभी इसपर भी हाँथ साफ करुँगी (यानि लिखूंगी वह पोस्ट भी आपको समर्पित होगी )
ReplyDeleteएक बात और मैंने कुछ चित्रकारी पर भी हाँथ साफ किए थे ,गुरूजी की बातें अब तो धुंधली पड़ गई है कन्क्लूजन यह है की आप बिल्कुल सही है भगवन बड़ा गणितज्ञ ही होगा .
LOVELY
गणित की बातें तो वाकई खूबसूरत हैं.
ReplyDeleteकभी दैत्य संख्याओं (नेटवर्क मार्केटिंग जिस पर निर्भर है,) पर भी लिखिएगा
रोचक एवं दिलचस्प!! साधुवाद इस तरह से समझाने का!
ReplyDelete------------
आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.
बहुत अच्छी बात कही हे आप ने,आज काफ़ी रोचक लगी.
ReplyDeleteधन्यवाद
अगली तीन चार पोस्टों में एक भी अंक नहीं.. वाह क्या बात है.. आपके मुंह में घी शक्कर.. :)
ReplyDeleteवाह अभिषेक भाई, कमाल की एकदम अलग सी पोस्ट है आपकी । और ये फिबोनॉच्ची बडा ही दिलचस्प ।
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