सुनहरे अनुपात की स्थापत्य कला में उपस्थिति बहुत पुरानी है.... जैसे चित्रकारी में मोनालिसा और लियोनार्दो दा विन्ची की कृतियाँ सबसे पहले दिमाग में आ जाती हैं वैसे ही स्थापत्य कला के प्राचीन अनूठे नमूनों की बात करें तो पिरामिड ही दिमाग में आते हैं। पिरामिड का निर्माण क्यों और कैसे हुआ ये तो आप सब जानते ही हैं... पर अगर गौर से देखा जाय तो सूक्ष्म से बड़े स्तर तक कई वैज्ञानिक तथ्य इनमें छुपे हुए हैं। ठीक दा विन्ची के चित्रों की तरह।
अगर पिरामिड का अनुप्रस्थ काट देखें तो यह ऐसा दीखता है। चित्र में जो phi है वो वही सुनहरा अनुपात है (१.६१८...). यानी पिरामिड की तिरछी ऊंचाई और जमीन के केन्द्र से उसकी दूरी का अनुपात. पिरामिड से निकाला गया यह यह अनुपात सुनहरे अनुपात से दशमलव के ४ अंको तक मिलता है। अगर केन्द्र से यह दूरी १ ले लें तो पिरामिड की ऊंचाई phi के वर्गमूल के बराबर हो जाती है। और इस चित्र में अगर आप थोड़ा और गणित लगा लें तो पायेंगे की झुकी हुई सतह का क्षेत्रफल भी phi ही आ जाता है। फ़राओ निर्मित महान गीज़ा के पिरामिड में यह अनुपात सबसे सटीक मिलता है.
आगे बढ़ते हैं पेरिस की तरफ़... यहाँ पर नोट्रेडेम (Notre Dame) नाम से प्रख्यात कैथेडरल है. यह कैथेडरल फ्रांसीसी स्थापत्यकला के सबसे प्रसिद्द इमारतों में से एक है. फ्रांसीसी क्रांति के समय इसे भारी क्षति पहुँची थी पर पिछली शताब्दी में फिर से इसका जीर्णोद्धार कर पहले की अवस्था में ले आया गया (काश अपने यहाँ भी ऐतिहासिक भवनों के साथ ऐसा हो पाता). १२वीं सदी में निर्मित स्थापत्य कला के इस अद्भुत नमूने के जगमगाते चित्र के साथ ये चित्र भी देख लीजिये, इस चित्र में अनुपात को रेखांकित किया गया है. । तो अगली बात जब आप पेरिस जाएँ तो ध्यान से देखियेगा।
अब वो चित्र जिसे देखकर मैंने इस अनुपात के बारे में पढ़ना चालु किया था। ये चित्र वैसे तो इन्टरनेट से लिया गया है लेकिन पहली बार इसे मैंने 'Numerical methods for Engineers' किताब में देखा था... जिसमें एक छोटे से परिचय के साथ यही चित्र दिया गया है. अथेन्स के एक्रोपोलिस का... ईशा पूर्व पांचवी सदी में निर्मित ऐसे कई ग्रीक भवनों में यह अनुपात था... जिनमें सबसे प्रसिद्द पर्थेनोन नमक यह मन्दिर है। खँडहर का रूप ले चुके इस ईमारत की हुबहू कॉपी अमेरिका के टेनिसी प्रान्त की राजधानी नैशविले में बनाई गई है।
जाते-जाते उक़बा की मस्जिद को देख लीजिये... इसके मुख्य भवन और मीनारों में यह अनुपात आसानी से मिलता है... इसके अलावा आधुनिक समय में टोरंटो का सीएन टावर और संयुक्त राष्ट्र के मुख्य भवन में यह अनुपात है। वैसे ये तो कुछ प्रसिद्द उदहारण हैं... इनके अलावा ऐसे कितने ही भवन होंगे जिनमे यह अनुपात ढूंढा जा सकता है. अपने ताजमहल में भी इसकी उपस्थिति कुछ शोधकर्ताओं ने ढूंढ़ निकाली है !
अगली पोस्ट में प्रकृति से कुछ उदहारण देखते हैं... डीएनए से लेकर गैलेक्सी तक में इस दैविक अनुपात की उपस्थिति... !
इस श्रृंखला के शुरुआत से ही आप सब का सहयोग और उत्साहवर्धन मिलता रहा है... मसिजीवीजी ने पिछले दिनों जनसत्ता के अपने नियमित कालम में सुनहरा अनुपात और इस ब्लॉग कि चर्चा की. लवली कुमारी ने भी बड़े अच्छे सुझाव भेजें हैं. आप सबका आभार. आशा है ऐसे ही मार्गदर्शन मिलता रहेगा... और साथ बना रहेगा.
~Abhishek Ojha~
बहुत शानदार और अचम्भित करने वाली बातें बतायी आपने...। पुरातन वास्तुविद भी इस सुनहरे अनुपात की विलक्षण समझ रखते थे, यह कम रोचक नहीं है।
ReplyDeleteजबरदस्त बातें रही...मजा आ गया पढ़ कर..कुछ तो समझ ही रहे हैं.
ReplyDeleteगंभीर किंतु रोचक विवेचन है यह तो .....
ReplyDeleteबहुत रोचक जानकारी।
ReplyDeleteअति सुन्दर जानकारी सब नही तो काफ़ी कुछ पल्ले भी पढ रहा हे,
ReplyDeleteधन्यवाद
इस तरह तो गणित को जानना बहुत रोचक है ..
ReplyDeleteआपने यह बात बहुत खूबसूरती से समझायी है। विषय के रूप में हमें गणित अच्छा लगे या नहीं, लेकिन इसके बिना काम नहीं चलनेवाला। मानव और प्रकृति की हरेक रचना, हर क्रिया में अनुपात है। हम बोलते हैं तो कथन में, चलते हैं तो कदमताल में, सर्वत्र अनुपात का सहज बोध मौजूद है। हमारी यह समझ आपकी उपलब्धि है।
ReplyDeleteइस विषय पर मेरी पहली टिप्पणी में इसे नैसर्गिक अनुपात कहा था। अगली कड़ी में शायद आप वहाँ तक पहुँचा ही देंगे।
ReplyDeleteFascinating Abhishek bhai ~` All these structures are magnificent !!
ReplyDeletephi ke bare mein gyan da Vinci Code padhne ke baad hi hua tha. Usmein to ye bhi bataya gaya tha ki humare body ke kayi ratio is phi ke aadhar par bane hain.
ReplyDeleteAchcha prastutikaran raha, aabhaar
हमारी गणित में सुधार लाकर ही छोडेंगे आप !
ReplyDeleteThe best language of the world is mathematics. because it is God's language
ReplyDeleteबस भइया जमा दिया आपने तो.. यही चाहते थे हम..हार्दिक बधाई स्वीकारें ..क्या कहूँ तारीफ को शब्द कम पड़ रहे हैं..ऐसे ही लिखते रहें ..मिल का पत्थर साबित होगा यह ब्लॉग.
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