पर इस बीच कुछ हुआ ही नहीं ऐसा भी नहीं है कई गणितज्ञों ने इस सवाल को कुछ ख़ास परिस्थितियों के लिए सही सिद्ध कर दिया... ओय्लर (Euler) ने n को ३ लेकर किया तो द्रिच्लेट (Dirichlet) और लिजेंद्रे (Legendre) ने मिलकर ५ के लिए. इसी तरह कुछ और अंको के लिए सिद्ध किया गया, १८५७ में क्युम्मर (Kummer) ने रूढ़ संख्याओं के एक ख़ास वर्ग के लिए सिद्ध किया. पर सारे अंको के लिए सिद्ध करना अभी भी दूर की बात थी. ब्रिटानिका एन्साइक्लोपेडिया में इस सवाल के जिक्र के अंत में लिखा गया था कि 'शायद यह प्रमेय कभी सही या ग़लत साबित न किया जा सके'.
महान गणितज्ञ हिल्बर्ट (Hilbert) से जब ये पूछा गया की वो इस सवाल पर काम क्यों नहीं कर रहे तो उन्होंने जवाब दिया कि 'इस सवाल के लिए मुझे तीन साल तक गहन अध्ययन करना पड़ेगा और उसके बाद भी संभवतः हार का सामना करना पड़े.' हिल्बर्ट और इस सवाल पर एक प्रसिद्द किस्सा भी है, उन दिनों जहाज का नया-नया आविष्कार हुआ था और हिल्बर्ट को एक कांफ्रेंस में जाना था उन्होंने कह दिया कि मैं 'फ़र्मैट के अन्तिम प्रमेय' पर बोलने वाला हूँ जब उनका प्रेजेंटेशन ख़त्म हो गया और फ़र्मैट का कोई जिक्र तक नहीं आया तब लोगों ने पूछा कि आप तो फ़र्मैट पर बोलने वाले थे. हिल्बर्ट ने जवाब दिया कि वो मैंने इसलिए कहा था कि अगर प्लेन क्रैश हो गया होता तो मैं भी फ़र्मैट कि तरह अमर हो जाता. लोगों को लगता कि मैंने सिद्ध कर लिया था. |
इस बीच १९८८ में एक हल आया और खूब लोकप्रिय हुआ पर जब जांच हुई तो इसे ग़लत करार दिया गया... कुछ गणितज्ञों ने 'फ़र्मैट का अन्तिम प्रमेय कैसे साबित न करें' जैसे पेपर भी छपे जिसमें ये लिखा जाता कि इस तरीके से मैंने कोशिश कर ली है कोई फायदा नहीं !
सवाल कि कठिनता बढती गई और कहानियाँ भी बनती गई... इन सब के बीच १९५५ में २८ वर्षीय जापानी गणितज्ञ तानियामा (Taniyama) ने एक नया सवाल पेश किया... जो कहता है कि इलिप्टिक कर्व्स (Elliptic Curves) और मोडुलर फोर्म्स (Modular Forms) के बीच सम्बन्ध है... या फिर यूँ समझ लें कि छद्म वेश में दोनों एक दुसरे का ही रूप हैं. इसे समझने कि जरुरत नहीं बस इतना जान लीजिये कि ये नया सवाल कुछ ऐसा कहता था कि गणित की दो एकदम ही अलग चीजें एक-दुसरे से जुड़ी हुई है. लोगों को ज्यादा समझ नहीं आया, और इसी बीच १९५८ में तानियामा ने आत्म हत्या कर ली. उनके मित्र शमुरा (Shimura) ने इस सवाल पर और काम किया और लोगो तक इसे पहुचाया. अब कुछ फ़र्मैट की ही तरह तानियामा ने कह दिया था की ऐसा है... पर कोई प्रमाण इसका भी नहीं था. (इसे तानियामा-शिमुरा सवाल (Taniyama-Shimura Conjecture) के नाम से जाना जाता है).
पर क्या इस समानता के अलावा भी कोई और समानता थी? दोनों एकदम अलग... एक कहता है की इलिप्टिक कर्व और मोड्यूलर फॉर्म एक हैं... दूसरा कहता है की एक समीकरण का हल कोई ३ संख्याएं नहीं हो सकती ! दोनों में कोई सम्बन्ध नहीं... पर नए विचार ही तो कमाल करते हैं... १९८५ में ग्रेहार्ड फ़्रे नाम के जर्मन गणितज्ञ वो सोच दिखाया जो कभी कोई सोच ही नहीं सकता था. फ़्रे ने मान लिया की फ़र्मैट ग़लत हैं, यानी कम से कम एक हल होना चाहिए उनके समीकरण का ! पर ये मानकर उन्होंने ये पाया की अगर ऐसा हुआ तो एक ऐसी इलिप्टिक कर्व बन जायेगी जो मोडुलर नहीं होगी ! पर तानियामाजी कह गए थे की हर इलिप्टिक मोडुलर होनी चाहिए. बस उन्होंने एक और निष्कर्ष निकाल दिया की अगर फ़र्मैट ग़लत हैं तो फिर तानियामा भी सही नहीं हो सकते यानी उन्हें भी ग़लत होना पड़ेगा. इसी को तार्किक भाषा में लिख दें तो ये कथन ऐसा हो जाता है: अगर तानियामा का कथन सत्य है तो फ़र्मैट का अन्तिम प्रमेय भी सत्य होगा. तो अब ये दोनों अनसुलझे सवाल जुड़ गए. पर समस्या ये थी की फ़्रे चचा ने भी कुछ साबित नहीं किया, बस कमाल का विचार देकर उन्होंने सोचा की विशेषज्ञ लोग ये सब साबित कर देंगे. और ऐसा ही हुआ विशेषज्ञों ने काम करना चालु कर दिया (फ़्रे के विचार को जीन पिएरे के विस्तार के बाद एप्सिलोन अनुभाग के नाम से जाना गया).
अब देखिये सारांश...
- फ़र्मैट ने एक बात कही की ऐसा नहीं हो सकता.
- तानियामा ने कहा की दो बिल्कुल ही अलग गणितीय चीजें जो देखने में तो बिल्कुल अलग हैं लेकिन ध्यान से देखो तो एक ही है.
- फ़्रे और जीन पिएरे ने कहा की भाई अगर तानियामा सही हैं तो फ़र्मैट भी सही है.
अभी तक सबने बस कहा... किसी ने कुछ साबित नहीं किया. और गणित में अगर साबित करना हटा दिया जाय तो कोई फेल ही ना हो :-) बिना साबित किए कभी किसी बात का कोई मतलब है गणित में ... कुछ नहीं ! तो फिर इन अनसुलझे हुए सवालों की पोटली से आगे क्या हुआ? देख के तो यही लगता है की अनसुलझे सवालों का अम्बार लगता जा रहा है... बस सबके तार जुड़ रहे हैं... तो क्या ये तार कुछ सुलझा पायेगा? जानते हैं अगले पोस्ट में!
- समीरजी क्यों ये कह कर दुखी कर रहे हैं की मैं गणित जानता हूँ... गणित ही जान रहा होता तो कहानियाँ क्यों सुनाता :-) और आपके विकल्प अच्छे तो हैं पर फिजिबल नहीं ! फिजिबल विकल्पों का सेट लेकर आइये तो सुझाव मिलेगा.
- अनुराग जी धन्यवाद आपका... सप्ताह में एक से दो पोस्ट तक करने की कोशिश है... सम्भव हो पाया तो सारा श्रेय आपका.
~Abhishek Ojha~
मैं यह पुन: रहस्योद्घाटन करता हूं कि एक समय हमें भी गलतफहमी थी कि गणित की रिडल हल करने पर कभी हमें फील्ड्स मैडल मिल जायेगा। यह कीड़ा दिमाग में डालने वाले गणित के प्रोफेसर और बिट्स के उपमहानिदेशक थे। पर भला हो कि उनके चढ़ाये चने के झाड़ से हम जल्दी उतर आये और बाकी काम-धाम में लग गये!:)
ReplyDeleteयह पोस्ट बहुत सहजता और सरलता से सब कुछ समझा गई. अति रोचक, दिलचस्प एवं ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए आभार. :) अब अगली कड़ी का इन्तजार है, न भी करें तो आयेगी जरुर. :)
ReplyDeleteइस टिप्पणी को समीर लाल एवं डॉ अनुराग आर्य की तरफ से सामूहिक समर्पण माना जाये.
वाह मजेदार!! अभिषेक जी आजकल कुछ कामो में वयस्त था सो आपका लिखा पोस्ट नही पढ़ पा रहा था और वो भी आप पोस्ट तो अहले सुबह लिख मारते हैं..... आज पढ़ा .....बहुत ही सरल और अच्छे ढंग से आपने इस हल को बेहाल कर दिया.... उपयोगी पोस्ट
ReplyDeleteअन सुलझे सवाल न केवल इतिहास मे दर्ज होते हैं बल्कि कितनों को ही कसरत कराते रहते हैं।
ReplyDeleteअभिषेक भाई सीधे ही कह दीजिए हम चले जाएँगे.. ये नये तरीके से क्यो भगाना चाहते है :)
ReplyDeleteगणित विषय में आपकी जानकारी वाकई बढ़िया है.. इस विषय में लोगो को भी रूचि दिलाने का जो काम आप कर रहे है वो भी काबिल ए तारीफ है.. हमारी तरफ से शुभकामनाए
इस "सामूहिक समर्पण "से पूर्ण सहमत हूँ......मेरी हाजिरी नोट कर ले
ReplyDeleteएक बात कहना भूल गया था कभी आपसे पोस्ट प्रेसेंट करने का तरीका सीखना पड़ेगा......बेहद प्रभावशाली है .....
ReplyDeleteहमेशा का तरह रोचक अंदाज, अच्छा लगा।
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पढ कर बुद्धिजीवी सा फ़ील करने लगता हूँ!
ReplyDeleteB.Sc. गणित से करने के बावजूद मैं नहीं समझ सकता था की गणित विषय भी ब्लॉग्गिंग का हिस्सा बन सकता था / बहरहाल मजा आया / वैसे भी शिक्षा जैसे विषय पर ब्लोग्स हैं ही कितने ?
ReplyDeleteप्राईमरी का मास्टर
http://www.primarykamaster.blogspot.com/