1. बात की शुरुआत राजनीति और उर्जा से... तेल की कीमतों और न्यूक्लियर डील से तो आप सब परिचित हैं ही, अब एक और विकल्प भी आप अखबारों में देखते ही होंगे ईरान-पकिस्तान पाइपलाइन की... ईरान से पाकिस्तान होते हुए भारत तक गैस लाने के लिए पाइपलाइन बनाने की. अब गणित लगाना था की कौन-कौन से विकल्प हैं भारत के पास...


2. अब बात करते हैं प्रोसेस मोडेलिंग की... ये काम बहुत रोचक था इसमें साधारण ओपरेशन रिसर्च से लेकर मनोविज्ञान तक का इस्तेमाल होता है, इसमें ये देखना था की किसी प्रोजेक्ट को पुरा करने वास्तविक रूप में कितना समय लगेगा, इसके लिए प्रोजेक्ट का पूरा आंकडा होना चाहिए और हर काम को कौन आदमी करेगा और उसकी योग्यता क्या है ये सब होना चाहिए, इसमें बहुत सारी बातें ध्यान में रखी गई जैसे मान लीजिये फूटबाल या क्रिकेट का वर्ल्ड कप चालु हो गया तो फिर उसका क्या असर होगा? इस काम के विशेषज्ञ स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रेमंड लेविट के विडियो लेक्चर को खूब सुना... लेक्चर सुनता और विद्यार्थियों को पढाता भी :-) अपने से बड़ों को पढाना, कई बार अपने गाइड को भी पढाता :-) इससे अच्छा और क्या हो सकता है !
3. एक और रोचक प्रोजेक्ट के बारे में आपको बता दूँ... मान लीजिये की आप किसी भीड़-भाड़ वाले स्टेशन पर खड़े हैं और आग लग जाए तो आप क्या करेंगे? भागेंगे... किस दिशा में भागेंगे? निकास की तरफ़...

4. आपने थ्री डाइमेन्सन तो सुना ही होगा पर कभी फ़ोर डाइमेन्सन सुना है? जी हाँ एक समय भी जोड़ दीजिये... फ़ोर डाइमेन्सन में किसी प्रोजेक्ट का ओप्टिमाइजेसन करने का काम जेनेटिक अल्गोरिथम से... छोडिये नाम से ही भारी हो रहा है... इस काम को करने में भी बहुत मज़ा आया.
5. अब चलिए थोड़ा एन्सुरेंस एजेंट और लोन वसूली को आराम दिया जाय, जी हाँ ये पता करना की कौन आदमी लोन और प्रीमियम सही टाइम पर देगा और कौन देर से करेगा... उस हिसाब से उसी एरिया में एजेंटों को भेजा जाय तो कितनी अच्छी बात होगी... और पैसे की बचत भी होगी, इस काम को करने के लिए कई मॉडल हैं पर ये समय के साथ बदलते नहीं ! मान लीजिये किसी की माली हालत बीच में ख़राब हो गई तो? इसलिए हमने हर कलेक्शन के बाद मॉडल में सुधार किया (यह बेसियन इकोनोमेट्रिक्स का एक प्रयोग था, पहले ऐसे कम्प्यूटर नहीं थे जो इतना बड़ा-बड़ा हिसाब कर सकें इसलिए पहले इस विधा का उपयोग नहीं हो पाता था), आप इसे डायनामिक मॉडल कह सकते हैं।
6. थोड़ा तेल-साबुन बेचने का भी प्रयास किया, कनाडा के एक मुहल्ले से आंकडा लाया गया और अब पता ये करना था की किस तरह की आय वाली जगह पर कैसा डिटर्जेंट बेचा जाय और कौन सा केचप... सीधी सी बात है समाज का जो वर्ग निरमा खरीदता है वो सर्फ़ एक्सेल नहीं... (इसे मार्केट सेगमेंटेशन भी कहा जाता है, इस पर भी जो स्थायी मॉडल हैं उन पर कुछ सुधार का काम किया).
7. अब सब बेच लिया तो कुछ खरीदने की बात भी हो जाय... तो भारत में गाड़ियों की विक्री किस तरह बढ़ी है, कितना बढेगी... इस पर भी कुछ दिन काम किया...
8. और अंत में मेरी थीसिस... जो थोडी ज्यादा गणितीय है इसीलिए इतना बता दूँ की यह नेटवर्क फ्लो पर आधारित था... नेटवर्क किसी भी चीज़ का हो सकता है... मान लीजिये रेल या सड़क का पूरा एक नेटवर्क है... एक से दूसरी जगह समान भेजना है... इसको कैसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह भेजना है ताकि खर्च और समय बचे... ज्यादा से ज्यादा सामान भेजा जा सके, इस काम के लिए कई अल्गोरिथम है... पर हमारा काम इस बात का था की अगर कम्प्यूटर इस सवाल के लिए एक घंटे लेता है तो कैसे इसे कम समय में किया जाय... हमने नया अल्गोरिथम तो नहीं दिया. हाँ ऐसे अल्गोरिथम अनुमान के साथ चालु किए जाते हैं और सही उत्तर की जगह जाकर जाते हैं, हमारे काम से ऐसे अनुमान लगाए जा सकते हैं जो कई बार ९०% तक कम समय में सवाल हल कर देते हैं.

अलग अलग प्रोजेक्ट इन जगहों पर किए गए..
1. IIM Bangalore, December 2004
2. i4Ds, Switzerland, May-July 2006
3. i4Ds, Switzerland, May-July 2005 (Known as aec-ii at that time)
4. i4Ds, Switzerland, May-July 2006
5. IIM Bangalore, December 2005
6. IIM Bangalore, December 2005
7. IIT Kanpur, May-July 2004
8. IIT Kanpur, Aug 2006-May 2007
अगर गलती से किसी के बारे में और जानने की इच्छा हो तो जरूर पूछें.
इसे एक ओवरव्यू की तरह ही लिया जाय... इस सप्ताह मुंबई जाना पड़ा और भी कई सारे काम आ गए, इस श्रृंखला को जारी रखने के लिए ये पोस्ट लिख डाली. इन विषयों पर विस्तृत चर्चा अलग-अलग पोस्ट में की जायेगी. (यह फैसला द्विवेदीजी और मसिजीवी जी की टिपण्णी को ध्यान में रखते हुए लिखा गया है)
~Abhishek Ojha~
This blog could be more exciting if you can create another topic that everyone can relate on.
ReplyDeleteआलेख लम्बा तो था, लेकिन रोचक भी। वैसे इसे दो भागों में किया जा सकता था। कहीं कहीं ऐसा भी लगा जैसे ब्लागवाणी चल रही हो, संक्षेप। पूरा आलेख नहीं।
ReplyDeleteद्विवेदी जी सही कह रहे हैं आलेख लंबा हो गया, ज्यादा लिखना नहीं चाह रहा था... उस सवाल की कहानी लिखनी है अगले पोस्ट में इसलिए इसी पोस्ट में सब निपटा दिया... मुख्य-मुख्य यहाँ लिख दिया, अपनी बात थी तो फटाफट लिख गया इसलिए समय भी नहीं लगा... अगली पोस्ट छोटी-छोटी और कहानियो वाली होगी.
ReplyDeleteरोचक काम करते रहे हैं आप।
ReplyDeleteकुछ और ब्यौरे रहते तो और अच्छा होता- ब्लॉगवाधी जैसी झलकियॉं हो गईं इस बात से हम भी सहमत हैं।
कुछ और मॉडलों पर विचार करें- कैसे तय हो कि आज की सबसे अच्छी पोस्ट किसकी होगी... कौन सी पोस्टें पढी जाएंगी किन पर टिप्पणी मिलेंगी और ऐसी कितनी होंगी जिनपर टिप्पणी तो मिलेंगी लेकिन पढ़ी नहीं जाएंगी... मतलब ब्लॉगजगत का गणित :))
avishek bhaiya aap batate jayen hum padh -sun rahen hain.
ReplyDeleteअच्छा गणितीय उपयोग है। निष्कर्ष के लिये गणित सहयोगी है लेकिन ये आंकड़े जुटाना अपने में कठिन काम है।
ReplyDeleteवाह! यह शृंखला बहुत ही उपयोगी है और हिन्दी ब्लागजगत में अनूठी भी। इसे जारी रखिये।
ReplyDeleteइसी तरह प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान के गहन पहलुओं पर भी हिन्दी में कोई बन्धु लेख लिखे तो मजा आ जाय। बाकी अपने देश में शिक्षा तो लगभग रटना-रटाना ही रह गया है। गहराई और मौलिकता का इसमें कहीं महत्व नहीं रह गया है।
bahut badhiya lekh hai ye..
ReplyDeleteganit me ruchi bachpan se hote huye bhi achchhe number kabhi nahi aaye.. lekin use padhna aaj bhi achchha lagta hai..
तो लोन और लॉटरीवाले भी आपकी गणित की ओर आकर्षित होने लगे। :)
ReplyDeleteaapka blog padhkar bahut he achha laga, bilkul alag hai, badhai ho , likhate rahiye ,hamare jaise logo ko jarurat hai, ganit ke kuch rochak khel bhi bataeye. thanks!
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