Thursday, July 17, 2008

गणित के महानतम सवाल का रोचक इतिहास (बातें गणित की... भाग VII)

आज चर्चा करते हैं गणित के महानतम सवाल की. सवाल इतना आसान की १० साल की उमर के बच्चे को समझ में आ जाय. और इतना कठिन की गॉस जैसे महानतम गणितज्ञ परेशान हो जाय. इस सवाल की कठिनता इसी बात से लगे जा सकती है की गॉस ने इस सवाल को हल करने की कोशिश की और अंत में परेशान होकर उन्होंने एक पत्र में लिखा था: "वास्तव में, मैं यह स्वीकार करता हूँ की मुझे इस सवाल में बहुत कम रूचि है और ऐसे तो कई सवाल बनाए जा सकते है, जिन्हें न तो सही साबित किया जा सकता है न ग़लत."

फ़र्मैट सोलहवी शताब्दी के एक महान गणितज्ञ थे, पेशे से वकील इस महान फ्रांसीसी गणितज्ञ ने गणित के कई क्षेत्रों में महतवपूर्ण योगदान किया. जब न्यूटन ने कलन (Calculus) का आविष्कार किया तो उन्होंने कहा की इसका विचार उन्हें फ़र्मैट के काम को देखकर ही आया. १६३७ में फ़र्मैट ने एक किताब पढ़ते हुए उस पर लिखा की "मेरे पास इस सवाल का एक अद्भुत हल है, लेकिन इस किताब के हाशिये पर इतनी कम जगह है की ये लिखा नहीं जा सकता." अब उस हाशिये की कम जगह ने ऐसा गुल खिलाया की ये सवाल गणित का कठिनतम सवाल बन गया. गॉस ने तो कोशिश की ही की उनके अलावा ओय्लर, गैल्वास जैसे गणितज्ञों ने भी हाथ आजमाया, ऐसा माना जाता है की इस बात के छपने के बाद कोई गणितज्ञ ऐसा नहीं रहा जिसने इसे हल करने की कोशिश न की हो. गणितज्ञ ही क्यों जो भी सुनता एक बार कोशिश कर लेता, है ही इतना सरल देखने में. और फ़र्मैट चाचा ने लिख ही दिया था की उनके पास हल है, सब सोचते की लगे हाथों नाम कमा लिया जाय. फ़र्मैट के नाम पर ही इसे 'फ़र्मैट का अन्तिम प्रमेय'(Fermat's Last Theorem) नाम से जाना जाता है.

सवाल कुछ इस तरह है: अगर n, २ से बड़ा हो तो x^n + y^n = z^n का कोई अशून्य हल नहीं हो सकता. अर्थात ऐसी कोई तीन शून्य से भिन्न संख्याएं (x,y,z) नहीं हो सकती जिसके लिए समीकरण सत्य हो. अगर आपने पाइथागोरस प्रमेय पढ़ा है तो यह n की जगह २ रखने पर होता है, n को अगर २ लें तो ऐसी कई संख्याएँ हैं जैसे x=3, y=4, z=5 (3^2 + 4^2 = 5^2). पर क्या n>२ के लिए ऐसी तीन संख्याएं x,y,z सम्भव हैं?

फ़र्मैट के साथ ही इसका हल भी चला गया और अब लोग इस बात पर लगे रहे की ये कथन सत्य है या नहीं. इस सवाल की खूबसूरती यही थी की सब कोई समझ जाता हर किसी को लगता की अरे इसमें क्या है हल किए देता हूँ ! पर सदियाँ बीत गई. इस सवाल ने कईयों के दिन और रातें ख़राब की. पाइथागोरस प्रमेय हल करना आसान था लेकिन २ से बढ़ते ही... फ़र्मैट ने कह दिया की संख्याएं सम्भव नहीं (और ये भी कह गए थे की उनके पास इस बात का प्रमाण भी है)... लेकिन ये बात साबित कैसे हो... ऐसी संख्याएं हो भी तो सकती है ! लोग साबित करने की कोशिश करते. कई ऐसे नंबर ही ढूंढ़ते जिसके लिए ये समीकरण सही हो जाय. वैसे तो फ़र्मैट ने किताबें पढ़ते हुए ऐसे कई नोट लिखे थे किताबों के हाशियों पर, सब साबित होते चले गए... अंत में बच गया ये और इसीलिए नाम पड़ गया 'फ़र्मैट का अन्तिम प्रमेय'.

अब कम्प्यूटर की खोज हो गई तो क्या ऐसा नहीं है की सारे नंबर के लिए चेक कर लो. ये कौन सी बड़ी बात है... लेकिन बड़ी बात है... क्योंकि ये काम कम्प्यूटर नहीं कर सकता! कितने नंबर आप चेक करेंगे?... हजारों, लाखों तब भी बहुत सारे बचे रहेंगे... आप अनंत तक कभी नहीं जा सकते... लाखों करोडो अंक कम करते जाएँ तब भी अनंत अंक बचे रहेंगे. ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्य्ते॥

आप अनंत से अनंत निकाल ले तो भी अनंत ही शेष रहता है. तो कम्प्यूटर फ़ेल. यही कारण है की ऐसे प्रमाण को गणितज्ञ नकार देते हैं. गणित में कुछ भी साबित करने की प्रथा रही है. स्टेप-बाई-स्टेप ताकि कुछ गुन्जाईस ना बची रह जाय. गणितज्ञों को चुनौती बहुत पसंद है पर ये चुनौती उन्हें हराती रही. धीरे-धीरे ऐसा लगा की गणितज्ञों ने हार मान ली है... इस सवाल पर काम करना ना के बराबर हो गया. या यूँ कह लें की कोई भी इस पर काम करने से डरता था (जो करता भी छुप के करता, ताकि लोग हँसी ना उडाएं). तो फिर क्या हुआ इस सवाल का? क्या किसी ने हिम्मत की... अगर आप जानते तो अच्छी बात हैं, वैसे जानेंगे यहाँ पर बाकी कई सारी रोचक जानकारी के साथ अगले पोस्ट में !

इस सवाल पर कई किताबें है और एक प्रसिद्द डोक्युमेन्ट्री भी बनी. इस पोस्ट में कई बातें उस डॉक्युमेंट्री से भी ली जायेंगी.

कल रंजनाजी ने एक ब्लॉग समीक्षा लिखी इस श्रृंखला पर. आप इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं. बहुत-बहुत आभार रंजनाजी का. रंजनाजी ने कुछ ज्यादा ही बड़ाई कर दी है. पर उनका आशीर्वाद मिला है, खुश रहने का... तो खुशी-खुशी सर माथे पर.



- आंकडों वाली पोस्ट पर द्विवेदीजी की टिपण्णी से एक बात याद आई: हमारे समाजशास्त्र (Sociology) के एक प्रोफेसर सांख्यिकी(Statistics) के प्रोफेसर के पास आए थे और उन्होंने कहा की मेरे पास ये कुछ आंकडा है और मैं अपनी मान्यताओं को गणित का जामा पहनाना चाहता हूँ तो आप कोई ऐसा मॉडल बता दीजिये जिससे वो ही रिजल्ट आयें जो मेरी मान्यता का समर्थन करें.:-) तो गणित तो बेचारा गणित है उसका उपयोग भी लोग अपनी मर्जी से कर लेते हैं. मूक बेचारा क्या कर सकता है भला !
- समीरजी आपको वेटेड एवेरेज से डरने की जरुरत नहीं है... आप टिपण्णी करने वालो पर की जाने वाली हर तरह की अनाल्य्सिस में आउटलायर ही रहेंगे. किसी भी कर्व फिटिंग से पहले ही आप को बाहर कर दिया जायेगा :-) नहीं तो अकेले ही सारा कर्व स्क्यू कर देंगे आप.



चित्र साभार: विकिपीडिया

~Abhishek Ojha~

14 comments:

  1. पाठक की दिलचस्पी बनाने के बाद उसकी उम्मीद से अच्छी जानकारी भी तफ़सील से देना बहुत बडी बात है - आपकी शैली और मसौदा दोनों बहुत अच्छे लगे! धारावाहिक शैली में की गई पोस्ट्स अच्छी लग रही हैं.

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  2. तो FLT से हमें शिक्षा मिलती है की :
    हर जटिल समस्या के सरल, आसानी से समझ आ जाने वाले कई ग़लत समाधान होते हैं।

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  3. मेरे पास दो विकल्प हैं:

    एक तो पोस्ट को रोचक एवं ज्ञानवर्धक कह कर नाम कमाते हुए सटक लूँ...


    या

    दूसरा, अपने आपको ५वीं पास से मूर्ख घोषित कर आत्म समर्पण कर दूँ कि भाई, अपने बस का न तब था और न अब है.

    --जैसी आप सलाह दो. आप तो गणित जानते हो. :)

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  4. कुछ कुछ समझने की कोशिश कर ही रही थी कि ""पाइथागोरस प्रमेय हल करना आसान था ""पढ़ते ही पापा का वह चांटा याद आ गया जो मेरे बोर्ड एक्साम के एंड तक मुझे समझाने की कोशिशमें जोर से लगा था .और अंत में मुझे रब्ब के हवाले कर के सोने चले गए ..उसको मैंने अपने कार्डबोर्ड के क्लिप में लिखा और बहुत मेहनत से नक़ल कर के उसको पेपर में लिख दिया :) तो इस से जुड़ी रोचक बातें तो पढ़ रही हूँ ..पर फार्मूला अभी भी समझ से बाहर है :) आप लिखते रहे क्यूंकि गणित विषय को यूँ पढ़ना अच्छा लग रहा है ..

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  5. एक तो आप सप्ताह भर से ज्यादा वक़्त लेते हो कई बार नई पोस्ट लिखने में ,फ़िर गणित दाल देते हो तो मुझ जैसा biology का स्टुडेंट उसी कशमकश में पड़ जाता है समीर जी वाली....फ़िर हिम्मत करके रुक रुक कर पढता है ......एक दो बार पढ़ कर वापस चला जाता है.....फ़िर घुटने टेक देता है.....कहता है अभिषेक बाबू आप हमारे गणित के teacher न हूए,वरना हम भी कही रुड़की से पास होकर इंजीनियर होते.......नही इस पुरी श्रंखला को आपने दिलचस्पी से जोड़ा है उसका श्रेय पुरी तरह आपको जाता

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  6. bahut badhiya bhai..
    agali kist ke intezar me hun..

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  7. हजारों, लाखों तब भी बहुत सारे बचे रहेंगे... आप अनंत तक कभी नहीं जा सकते... लाखों करोडो अंक कम करते जाएँ तब भी अनंत अंक बचे रहेंगे. ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्य्ते ॥
    अच्छी जानकारी अच्छी रोचक एवं ज्ञानवर्धक पोस्ट्स.

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  8. जय हो।
    मुझे याद आता है कि x^n + y^n = z^n पर मैने भी जवानी में कुछ घण्टे झोंके थे। उसके बाद काम की बातों में लग गया।
    यह अलग बात है कि वे काम की बातें अब बेकार लगती हैं और मन कहीं टेण्जेंशियल कुछ करने को करता है।
    पर गणित के लिये अब वह मानसिक डिसिप्लिन लाना कठिन है।

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  9. भाई ये तो परम गणित के फार्मूले दिख रे सै !
    अपना आड़े के काम ! आपनी समझ में कुछ
    नी आंदा ! आपां तो चाले कितै और .. :)

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  10. ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्य्ते ॥
    मैं और बहुत से लोग इसे भिन्न तरीके से देखते हैं। पूर्ण शून्य को भी कहा जाता है। और इस श्लोक में शून्य के ही गुणधर्म बताए गए हैं। अर्थात् शून्य में से शून्य को शेष करने पर भी शून्य ही शेष रहता है। इसी को ईश्वर/ब्रह्म व उस से जगत की व्याख्या के लिए भी प्रयोग किया गया है।
    मैं ने फर्मेट का अंतिम प्रमेय देखा था और उस पर नौसिखिए जैसी आजमाइश भी कर डाली थी। पर बाद में सोचा कि इसे कहाँ तक परखा जा सकता है? इस से वकालत में ध्यान लगाना अच्छा। आप का ब्लाग भले ही सप्ताह भर में आए मगर रोचक और ज्ञानवर्धक रहता है।

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  11. भाई जो गणित हम ३५ साल पहले छोड कर भागे उसे फ़िर से दिखा कर डरा रहे हो चलो मान लेते हे हम २दुसरी फ़ेल हे, मे तो सवाल पढते पढ्ते बेहोश होने लगा था...

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  12. रंजना जी ने आपके ब्‍लॉग की बहुत अच्‍छी समीक्षा की है। पढ़ना अच्‍छा लगा। आपके ब्‍लॉग की सराहना होनी ही चाहिए। गणित की बातें इतने रोचक व बोधगम्‍य अंदाज में शायद ही कहीं मिलें।

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  13. अभिषेक जी, आपका कहना बिलकुल सही है, कि अभी तक दिखाए गए सूत्र के समान घाट 2 के अलावा, उससे अधिक मान के लिए मूल सूत्र को नहीं पाया गया है। या कहें अंको का ऐसा सम्बन्ध न हो..??
    पाइथागोरस प्रमेय का..
    3^2 + 4^2 = 5^2 को मूल सूत्र कहा जाता है।
    गौर कीजियेगा..
    9^2 + 12^2 = 15^2
    12^2 + 16^2 = 20^2
    मेरे अनुसार आप समझ गए होंगे। ठीक इसके समान मेरे याद में तो घाट 3 के लिए कोई सूत्र नहीं है।
    फिर भी में एक बात याद दिलाना चाहूँगा कि रामानुजम जी की... जादुई संख्या...
    हालाँकि मुझे भी इस विषय पर ज्यादा नहीं पता। पर मैंने भारतीय विज्ञान सम्मलेन 2007 में कुछ इस तरह से पढ़ा था। जिसकी याद धुंधली सी कुछ इस तरह से है।
    9^3 + 10^3 = 1^3 + 12^3
    729 + 1000 = 1 + 1728
    मैं नहीं जानता की बात कहाँ तक ठीक है। फिर भी दिखाए गए सूत्र से सम्मलेन में बताए गए सूत्र की समानता मुझे दिखाई पड़ रही है। साथ में सम्मलेन में और भी जादुई संख्या की विशेषता बतलाई गई थी। जो मुझे याद नहीं। इस समय मेरा दिमाग जबरन ही अंको के सम्बन्ध को देख रहा है। जिस तरह आपने लेख में " ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्य्ते॥ " सूत्र की व्याख्या की। मेरा ध्यान इस बात पर खिंचा चला आ रहा है। जैसे कि आप भी जानते होंगे। कि अनंत शब्द का प्रयोग अधिकतम और सर्वाधिक मान के लिए प्रयुक्त होता है। ध्यान देने वाली बात यहाँ यह है, कि 1728 में मात्र एक अंक की कमी है। जो हम सबको 1^3 के रूप में दिखाई दे रहा है। जिसके अनुसार इसकी पूर्ति नहीं की जा सकती। नहीं तो Z = 12 न लिख देते। इसमें भौतिकी की खूबसूरती भी निहित है। क्योंकि यहाँ बात अनंत के अधिकतम मान के लिए हो रही है। कहने का तात्पर्य जहाँ गुरुत्वाकर्षण बल समाप्त हो जाता है। उसे अनंत कहते हैं। या ऐसा कहें वहाँ से अनंत प्रारम्भ हो जाता है। यह कक्षा 12 की पुस्तक में है। जहाँ समान्तर रेखाएं मिलती हैं। उसे अनंत कहते हैं। या ऐसा कहें जहाँ समान्तर रेखाएं मिलती हुई प्रतीत होती है। उसे अनंत कहते हैं।

    इतना सब बतलाने का उद्देश मात्र इतना सा है कि उन्होंने मूल सूत्र के भौतिकी अर्थ को जान लिया रहा होगा। उसके अंको के सम्बन्ध को नहीं। जो शायद जादुई संख्या द्वारा परिभाषित हुआ होगा। क्या फ़र्मैट जी भौतिकी से भी सम्बन्ध रखते थे ?? क्या उनके लेखों में समय का उपयोग गणित विषय के लिए भी किया गया था ??

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