Monday, May 11, 2009

ब्लॉग्गिंग के खतरे: भाग ३

पिछली पोस्ट से जारी...

अगला खतरा है आपकी व्यक्तिगत बातों का सार्वजनिक होना. आप कहेंगे वो कैसे? अरे मैं ऐसे लोगो को जानता हूँ जो अपनी डायरी किसी को नहीं दिखाते पर वही डायरी ब्लॉग पर पोस्ट कर देते हैं ! है तो बहुत ही अजीब… पर ऐसा होता है. मेरे एक मित्र हैं उनसे कहो ‘दिखाओ क्या लिख रहे हो?’ तो छुपा लेते हैं. मैंने कहा ‘आखिर डालोगे तो ब्लॉग पर ही’ तो कहने लगे ‘हाँ तब पढ़ लेना.’

उदहारण के रूप में एक सच्ची घटना बताता हूँ आपको. हमारी एक मित्र ने अपने बॉयफ्रेंड को ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित किया और अपने सारे दोस्तों को उसके ब्लॉग पर टिपियाने के लिए. बस फिर क्या था... हो गया बंटाधार. वो बेचारा पता नहीं अपना पहला-दूसरा प्यार लिखता रहा और... हाँ अगर आप अपने रिश्तों में पूरी तरह ईमानदार हैं तो ये नौबत तो नहीं आएगी पर ऐसी ही कोई और नौबत किसी और परिपेक्ष्य में आ सकती है. जैसे आप अपने किसी रिश्तेदार की दुविधा या फिर पारिवारिक बात लिख देते हैं तो कई तरह की गलतफहमी हो सकती है. तो बेहतर है सावधानी बरती जाय. ‘ज्यादा’ व्यक्तिगत बातें ब्लॉग से दूर ही रहे तो बेहतर है. वर्ना ये नशा है... 'दारु पिलाकर उगलवा लिया' की जगह कुछ दिनों में लोग शायद ये न कहने लगें 'ब्लॉग लिखवाकर उगलवा लिया'

मेरी नजर में एक महत्वपूर्ण खतरा है लीगल रिस्क या कानूनी खतरे. इसमें सबसे बड़ा मामला कॉपीराइट का हो सकता है. या फिर अगर आपने किसी सरखा हत्त के खिलाफ कुछ लिख दिया और आपको कोर्ट नोटिस आ जाए तो फिर तीसरा खम्बा के अलावा और कोई ब्लॉग साथ नहीं दे पायेगा :-) जाने कितने ही ब्लोगरों को कानूनी धमकियां मिल चुकी हैं और कईयों के खिलाफ कार्यवाही भी हो चुकी है. अगर भरोसा नहीं तो इस विषय पर एक बहुत अच्छा लेख आप यहाँ पढ़ सकते हैं. तो अपने अधिकार जानिए और बिंदास ब्लॉग्गिंग कीजिये लेकिन कौन सी वैधानिक सीमाएं है उसे जानना जरूरी है. इस बारे में कोई शंका हो तो तीसरा खम्बा पर सवाल भेजिए.

एक और छोटा खतरा है आपके स्वास्थ्य का. अगर अतिशय ब्लॉग्गिंग करने लगे तो फिर देर रात तक जागना, कम नींद और बेचैनी घेर सकती है. सोने और टहलने की बजाय अगर आप कंप्यूटर के सामने बैठे हैं और रिफ्रेश करके टिपण्णी का इंतज़ार… तो समझ लीजिये ये खतरा आप पर मडरा रहा है. मेरी बात पर भरोसा नहीं तो आप किसी पीठ और गर्दन की दर्द वाले डॉक्टर से जाकर पूछ लीजिये की कितने प्रतिशत लोग कंप्यूटर पर काम करने की वजह से परेशान हैं?

छोटे रिस्क में एक और है... असामाजिकता. आप कहेंगे ब्लॉग्गिंग से सोशल नेट्वर्किंग होती है. हाँ वो तो सही है... पर ऐसा भी होता है: दिल्ली, कलकत्ता और लन्दन, न्युयोर्क में बैठे लोगों को पता होता है कि आज मुंबई की ब्लोगर मैडम एक्स के घर क्या बना है. लेकिन पड़ोसियों को नहीं पता होता ! और तो और कई बार पड़ोस में कौन रहता है ये भी नहीं पता होता. अभिषेक ओझा १७ दिन की छुट्टी गए ये मालूम है लेकिन पड़ोस के रमेशजी बीमार हैं उसकी खबर नहीं. ऑफिस का बाबु २० दिन से नहीं आया उसकी फिकर नहीं है ! तो अगर आप इतने ज्यादा सोशल नेट्वर्किंग कर रहे हैं तो छोटी-छोटी बातों को मत भूलिए... छोटी-छोटी बातों में भी जिंदगी का मजा है.

अगली पोस्ट में जारी...

~Abhishek Ojha~

Monday, May 4, 2009

ब्लॉग्गिंग के खतरे: भाग २

(ये एक आम ब्लॉगर का नजरिया है, हो सकता है ये सब पर लागू न हो. ब्लॉग्गिंग के जो भी खतरे मैं लिस्ट कर रहा हूँ वो आम ब्लॉगर की हैसियत से ‘विद्वानों’ का मत इससे भिन्न हो सकता है. मेरे व्यक्तिगत विचारों से किसी का भी सहमत-असहमत होना लाजिमी है.)

शुरुआत छोटे खतरों से. ये इतनी आम बात है कि हम इसे खतरा मानते ही नहीं. फिर भी आप अगर एक आम इंसान हैं तो आपको इससे समस्या हो सकती है. ये है अनचाहे विवाद !

विवाद से मेरा मतलब तार्किक संवाद या बहस नहीं है वो तो ब्लोगिंग का फायदा होगा. लेकिन यहाँ बात है वैसे विवाद की जिसमें लोग पढ़ते कुछ हैं (कई बार पढ़ते भी नहीं हैं !) सोचते कुछ हैं और फिर टिपण्णी कुछ और ही कर जाते हैं. कई बार इन विवादों का असली पोस्ट से कोई लेना देना नहीं होता है. ये खतरा ब्लॉग्गिंग के साथ-साथ टिपण्णी करने में भी है. कई बार सकारात्मक बहस के लिए की गयी टिपण्णी भी विवाद का रूप ले लेती है. समस्या ये है की ब्लॉगर एक बार जो पोस्ट कर देते है, अपनी कही गयी बातों से पीछे हटने को तैयार नहीं होते. चाहे वो सही हो या गलत. वैसे अगर अपनी गलती लोग मानने लगे तो ब्लॉग क्या वास्तविक जिंदगी के भी कई सारे विवाद ऐसे ही निपट जायेंगे ! व्यक्तिगत रूप से मैं कई ऐसे ब्लॉग पर टिपण्णी नहीं करता जो एकतरफा लिखते हैं. उनकी बातें गलत नहीं होती पर वो अक्सर सिक्के का एक ही पहलु उजागर करती हैं. ऐसे कई पत्रकारों के ब्लॉग हैं जिन्हें पढ़कर हंसी आती है. टिपण्णी ना करना विवादों से बचने का एक तरीका हो सकता है. पर जरूरी नहीं की आप विवाद से बच जाएँ. वैसे भी खतरों को कम किया जा सकता है ख़त्म नहीं ! आप कितने भी सावधान रहे अगर हिंदी ब्लॉगर हैं तो आपको कभी भी विवादों में घसीटा जा सकता है.

अगले खतरे की तरफ बढ़ते हैं: पूरी तरह सार्वजनिक ! जी हाँ ब्लॉग में गोपनीयता जैसी कोई चीज नहीं होती. अगर आपको लगता है कि आप अपनी पोस्ट या ब्लॉग डिलीट करके कुछ छुपा सकते हैं तो आप गलत हैं. धनुष से निकला बाण वापस तो नहीं आ सकता लेकिन हो सकता है लक्ष्य ना भेद पाए और बेकार चला जाय, मुंह से निकली वाणी भी वापस तो नहीं ली जा सकती लेकिन तुरत या बाद में भी आप अपनी बात से पलटी मार सकते हैं. लेकिन ब्लॉग पर किया गया पोस्ट वापस नहीं लिया जा सकता. वो शाश्वत है ! अमर है ! गूगल कैशे में ये हमेशा हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाता है. इसके अलावा भी कुछ साइट्स हैं जहाँ आपका ब्लॉग किसी पुरानी तिथि पर कैसा था यह देखा जा सकता है. वो सब तो दूर की बात गूगल रीडर के पाठकों तक तो आसानी से चला ही जाता है! अगर आपको लगता है कि आपका ब्लॉग बहुत कम लोग पढ़ते हैं तो ये आपकी गलतफहमी है. और आपके पाठको की संख्या आपके अनुमान से कहीं ज्यादा है. तो ब्लॉग पर पब्लिश बटन दबाने से पहले सोचना बहुत जरूरी है ! क्योंकि एक बार कुछ गलती से भी गलत पोस्ट हुआ तो... बैंग ! आप तो गए काम से.

आज की पोस्ट का आखिरी खतरा: आपके द्बारा दी हुई जानकारी का दुरूपयोग ! अगर किसी लड़की ब्लॉगर ने प्रोफाइल में अपनी फोटो/ईमेल/फ़ोन नंबर डाल दिया तो फिर क्या होगा ये बताने की जरुरत है क्या? इसके अलावा आपने कभी सोचा है कि कहीं कोई ट्रैफिक पुलिस के हाथ पकडा गया और कहे कि मैं 'श्री/श्रीमती अ' पुलिस अफसर को जानता हूँ. कोई बिना टिकट ट्रेन में सफ़र करे और कहे कि मैं 'श्री/श्रीमती ग' रेलवे अफसर को जानता हूँ. कोई अपने पडोसी को ये कह कर धमकी दे कि मैं 'श्री/श्रीमती द' वकील को जानता हूँ और देख लूँगा तुम्हे !. और वास्तविक जीवन में वो सिर्फ 'अ' 'ग' और 'द' के ब्लॉग पढता है. २-४ ईमेल इधर-उधर हुए हों ये भी संभव है ! उस व्यक्ति का काम तो संभव है हो जाएगा. हो या ना हो दोनों स्थितियों में आपकी छवि तो धुंधली होगी ही. तो प्रोफाइल में कितनी और क्या जानकारी देनी है इसका ध्यान रखना भी जरूरी है. इस हिसाब से तो अनोनिमस ब्लॉग्गिंग ही बेहतर है !

अगली पोस्ट से इन बचकाने खतरों से थोडा आगे बढ़ेंगे और थोड़े बड़े खतरों से मिलेंगे !

~Abhishek Ojha~

Thursday, April 30, 2009

ब्लॉग्गिंग के खतरे !

हमारे धंधे में रिस्क या जोखिम उन चीजों में निकाला जाता है जहाँ लाभ और घाटा दोनों होता है. और दोनों में से कब कौन, कैसे और कितना हो जाएगा ये पता नहीं होता है. बिल्कुल जुए जैसी बात, और वो भी अपनी औकात से कई गुना कर्ज लेने की क्षमता के साथ जुआ खेलने वाली बात. अब युद्धिष्ठिर कर्ज ले लेकर जुआ खेल सकते तो क्या होता? कर्ज नहीं ले सकते थे तब तो क्या हाल हुआ ! खैर हमारे धंधे में लोग कहते हैं कि हम वही बता देंगे जो बताना संभव ही नहीं है. अरे क्या ख़ाक बताएँगे जब कृष्ण जैसे खतरा मैनेजर युद्धिष्ठिर को नहीं रोक पाए तो कोई और क्या खतरे बता पायेगा ! तो अगर मैं कहूं की ब्लॉग्गिंग में बस ये ही खतरे हैं और इसके अलावा कुछ नहीं हो सकता तो ये एक शुद्ध झूठ के अलावा और कुछ नहीं होगा. *

विश्वयुद्ध हो या ९/११ या नागासाकी/हिरोशिमा... किसीने पहले नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है ! खतरे जब एक बार आ जाते हैं तब हम उनके बारे में सोचना चालु करते हैं. तब हम इस बात का ध्यान रखने लगते हैं कि कोई हवाई जहाज किसी बिल्डिंग में ना घुसे पर अब क्यों कोई जहाज बिल्डिंग में घुसने लगा... अब तो कुछ और होगा ! कुछ भी... जो हम नहीं जानते ! अगर जान ही लेंगे तो फिर वो खतरा कहाँ रह पायेगा.

अब स्वाइन फ्लू ही देख लो, कभी किसी ने सोचा था क्या? सूअर तो ससुरे तब भी साँस लेते थे ! डॉट कॉम बबल में स्टॉक मार्केट डूब गए तो लोग देखने लगे की अगर फिर से डॉट कॉम बबल हुआ तो क्या होगा. अरे अब फिर से क्यों होगा वही? अब एक बार हाथ जल गया तो कोई वैसे ही आग में हाथ नहीं डालेगा. हाँ अब इंसान आग से तो सावधान हो जाता है पर पानी में डूब कर मर जाता है... बच जाता है तो अगली बार आग और पानी से बचता रहता है, फिर किसी और चीज से खतरा होता है ! उसी तरह पहले हो चुकी घटनाओं के चक्कर में लोग पड़े रहे और कर्ज लेकर जुआ खेलते रहे. और बन गया हाऊसिंग बबल और आ गया रिसेसन. अब आगे से इसका भी ध्यान रखा जाएगा और फिर कोंई नया बबल आएगा.

तो कुल मिला के मेरा कहना ये है कि मैं जो खतरे गिना रहा हूँ ये सब वैसे है जो हम देख सकते हैं ! पर असली खतरे तो वो होते हैं जो हम सोच भी नहीं सकते. और ऐसे ही खतरे ज्यादा खतरनाक होते हैं क्योंकि उनके लिए हम बिल्कुल तैयार नहीं होते. खैर जिस धंधे का खाना होता है उसको ज्यादा गाली नहीं देना चाहिए :-) और वैसे भी यहाँ बात ब्लॉग्गिंग की होनी थी तो मुड़ते हैं ब्लॉग्गिंग कि तरफ.

ब्लॉग्गिंग का तो माजरा ही कुछ और है. यहाँ तो फायदा क्या है यही नहीं मालूम (हिंदी में ऐडसेंस से कमी करने वाले और प्रोफेसनल ब्लोग्गर नहीं के बराबर है !).  वैसे ब्लॉग्गिंग कोई क्यों करता है इसे एक बार मैंने मासलो की जरूरतों के अनुक्रम (Maslow's hierarchy of needs) से जोड़ा तो था (वो भी कभी पोस्ट होगा).

बिन फायदे वाली चीज का खतरा निकलना हो तो मूल सिद्धांत (अगर फायदे बंद हो जाएँ तो क्या हो !) ही लागू नहीं होता. फिर भी बड़े खतरे हैं जी इस ब्लॉग्गिंग के. आज भूमिका ही लम्बी हो गयी.

दो-चार दिन में खतरे लेकर मैं आता हूँ :-)

~Abhishek Ojha~

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*ये ब्लॉग्गिंग में रिस्क वाली श्रृंखला का पूरा श्रेय जाता है माननीय रवि रतलामीजी को और उनकी इस टिपण्णी को (वैसे आपको पसंद ना आये और गलतियाँ-वलतियाँ हो तो उसका सारा श्रेय मेरा)

उन्होंने कहा था: ‘ध्यान रखिएगा, कोई रिस्क छूटने न पाए.’ तो सरजी आज की पोस्ट से ये बात तो साफ़ हो ही गयी होगी कि कितने रिस्क कोई गिना सकता है और कितने छुट जायेंगे :-)

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