पिछले दिनों एक यज्ञवेदी पर बनी रेखाओं को देख मैंने कहा - "वेदी पर बने ये खूबसूरत पैटर्न ज्यामिति की माँ है. क्योंकि ज्यामिति की शुरुआत यहीं से हुई थी. यज्ञ-वेदी रचना की ज्यामिति को 'शुल्बसूत्र' के नाम से जाना जाता है. इन प्राचीन सूत्र-श्लोकों में गणित के कई प्रतिष्ठित प्रमेय भी मिलते हैं।"
शुल्ब यानी डोरी। शुल्बसूत्र यानी रस्सी-सूत्र. आज भी यज्ञ वेदियों पर 'पैटर्न' धागे से ही बनाये जाते हैं.
शुल्ब यानी डोरी। शुल्बसूत्र यानी रस्सी-सूत्र. आज भी यज्ञ वेदियों पर 'पैटर्न' धागे से ही बनाये जाते हैं.
जिससे कहा उसने पूछ लिया "पर यूक्लिड एवेन्यू स्टेशन के पास तो तुमने कहा था कि - 'यूक्लिड को फादर ऑफ़ ज्योमेट्री कहते हैं?" खैर… ज्यामिति के जन्म की बात फिर कभी.
अभी आप रेखाओं से बना ये 'ग्राफ' देखिये जो मैंने बनाया 47 समीकरणों और पता नहीं कितने समय में ! मैंने 'ग्राफ' कहा क्योंकि ये कलाकृति नहीं सिर्फ एक गणितीय रेखा चित्र है [वैसे यदि आप की नजरें इसे कला के रूप में देख पा रही हैं तो आप इसे कलाकृति कह सकते हैं] जो 47 समीकरणों से मिलकर बना है.
अब बात 'क्यों' की -
'क्यों' का जवाब इतना भारी भी नहीं है. आप तो जानते ही हैं कि "माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। और वैसा ही कुछ आनंद गणित देख…" आगे आप जो सोच रहे हैं। …वैसा कुछ नहीं है।
असली बात -
यदि आप भी 'उस जमाने' के ब्लॉगर हैं तो आपको याद होगा वो जमाना जब गूगल रीडर और बज्ज हुआ करते थे. तब हमने एक पोस्ट शेयर किया था (शायद २०११ में). किसी ने बैटमैन को ऐसे ही बनाया था (शायद ये). तब अपने आलसीजी ने कहा था - "ऐसे ही भगवान जगन्नाथ को बनाइये." हमने कहा - "बिलकुल कोशिश करेंगे". उस समय बात उतनी ही गंभीरता से ली गयी थी जितनी एक शेयर किये गए लिंक के कमेंट पर कही गयी बात ली जाती है. पर 'समहाउ' ये बात कभी दिमाग से निकली नहीं. किसी कोने में कुलबुलाती रही. कभी कभी सोचता कि कौन सा हिस्सा कैसे बन सकता है. जब कभी कोई फ्रैक्टल या खूबसूरत ग्राफ दिखा या जब कभी रथ यात्रा-पूरी-जगन्नाथ भगवान की बात सुनाई या दिखाई दी. जब-जब मोमा गया… और ऐसे ही कई पल हुए जब राख में दबी इस बात की चिंगारी सुलगती रही. फिर एक दिन भगवान जगन्नाथ के चित्र का प्रिंटआउट लिया और डेस्क पर बैठे-कॉल्स-मीटिंग-ऑफिस आते जाते-खींचम-खाँची-कट्टम-कुट्टी से जो एब्सट्रैक्ट आर्ट मेरे नोटबुक में बन जाता है जो सिर्फ मैं ही समझ पाता हूँ. [कभी उन्हें खोदना है… बहुत सी बातें-भावनायें जो पन्नों पर उतर न सकी उन नोटबुक्स के पन्नों की दबी पड़ी है. खैर...] उन्ही के बीच से भगवान जगन्नाथ के इस समीकरण रूप का अभ्युदय हुआ ! ....जब कार्य पूरा हुआ तो लगा मेहनत बेकार नहीं गयी. ऐसे और प्रयास किये जा सकते हैं. और अगर अच्छे से फ्रेम करा कर घर में लगाया जाय तो मॉडर्न आर्ट से तो बेहतर है ही.* इस कला में आगे भी और हाथ आजमाने का मन है. वैसे कला के नाम पर साड़ी का किनारी, आम-अमरुद पत्ती के साथ, कमल का फूल पानी के साथ ('आई थिंक बस') इससे ज्यादा कभी कुछ बना नहीं पाए...**
… रेखाओं का खेल हैमुकद्दर रेखागणित !
वेदांग ज्योतिष में कहा गया है -
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तथा वेदाङ्गशास्त्राणां गणितं मूर्ध्नि स्थितम्॥
~Abhishek Ojha~
[* ये शुभ काम तो मैं जल्दी ही करने वाला हूँ :) ]
[*वैसे कला में रूचि की इस सीमा के बाहर एक 'एक्सेप्शन' का दौर भी गुजरा है ! ]
अभी आप रेखाओं से बना ये 'ग्राफ' देखिये जो मैंने बनाया 47 समीकरणों और पता नहीं कितने समय में ! मैंने 'ग्राफ' कहा क्योंकि ये कलाकृति नहीं सिर्फ एक गणितीय रेखा चित्र है [वैसे यदि आप की नजरें इसे कला के रूप में देख पा रही हैं तो आप इसे कलाकृति कह सकते हैं] जो 47 समीकरणों से मिलकर बना है.
"नीलाचलनिवासाय नित्याय परमात्मने. बलभद्रसुभद्राभ्यां समीकरणरूपाय जगन्नाथाय ते नमः".
यदि भरोसा न हो रहा हो तो आगे पढ़े और हो गया हो तो आप वैसे भी पढ़ेंगे ही -
अब बात क्यों और कैसे की.
पहले बात "कैसे" की -
नीचे एक अपूर्ण तस्वीर देखिये जिसमें इस चित्र के बनाने के विभिन्न चरण दीखते हैं. आप ग्राफ की कुछ आकृतियों को आसानी से पहचान लेंगे - वृत्त और रेखाएं तो सहज ही. इसके अतिरिक्त एलिप्स (अंडाकार), रेखा, पैराबोला इत्यादि के अलावा कुछ थोड़े जटिल समीकरण भी हैं। नीचे के ग्राफ में आप अलग-अलग रंगों को देखेंगे तो पता चलेगा कौन सा हिस्सा किस प्रकार बना है. जैसे चित्र का सबसे बड़ा वृत्त: x^2 + y^2 = 100. यानी १० त्रिज्या (रेडियस) का एक वृत्त जिसका केंद्र शुन्य है.
अब बात कुछ अन्य हिस्सों की। y = ।x। का ग्राफ होता है V की तरह। y = ।2x।, y = ।3x। इत्यादि का ग्राफ भी ऐसा ही होता है… आप नीचे नीली और लाल रेखाओं से घिरे क्षेत्र को देखिये और अगर x या y को एक सीमा के भीतर ही रख दिया जाय तो… आप ढूंढिए कि चित्र का कौन सा हिस्सा इन दो समीकरणों से बना है: y+3= |4x|, y+2=|x|, {y < -1.6}
सीमा तय करने से याद आया चित्र का वो हिस्सा जो सिर्फ एक समीकरण से बन गया. उस हिस्से के लिए बहुत सारे समीकरण सोचने के बाद एक दिन ध्यान आया कि कार्टेसियन की जगह यदि पोलर का इस्तेमाल किया जाय तो मामला आसानी से हल हो सकता है. फिर थोड़ा सोचने और कुछ समीकरणों से प्रयोग करने के बाद जो समीकरण हाथ लगा वो शायद इस चित्र का सबसे खूबसूरत समीकरण है !
r=cos(124theta)^3+10, .65 < theta <2.5 9.6 < r < 10
यानी नीचे के ग्राफ को r और theta पर सीमा लगा कर काट छांट कर देने से वो खबसूरत हिस्सा बन गया. समीकरण एक और... नीचे का ग्राफ देखिये। खूबसूरती कहाँ लिखी जा पाएगी इस सरलता की ... आप पढ़ते हुए शायद समझ पाएं। काट छांट से मतलब कुछ ऐसा है कि जैसे पेंटिंग बनाने में ब्रश का एक स्ट्रोक ज्यादा चल गया तो पेंटिंग गयी उसका यहाँ उल्टा है। बड़े ग्राफ को सीमित कर काट-छाँट कर ये ग्राफ बना. जैसे मकान बनाने का एक तरीका होता है एक-एक ईंट जोड़कर बनाने का पर वहीँ एलोरा के कैलासनाथ मंदिर के बनाने का भी एक तरीका था - पहाड़ को काट उसमें मंदिर गढ़ना !2>
इसी तरह आँखों के ऊपर का हिस्सा। हाइपरबोला और कुछ पॉलिनोमिअलस सोचने के बाद अंत में लॉग और एक्सपोनेंशियल पर आकर बात रुकी - इन समीकरणों से चित्र का कौन सा हिस्सा बना ये तो आप स्वयं देख सकते हैं.
हाँ दो और पोलर समीकरण भी तो है -
जाते जाते एक अन्य सरल समीकरण - तिलक-अंश:
बाकी हिस्से तो आप समझ ही गए होंगे। सरल और सुन्दर!
'क्यों' का जवाब इतना भारी भी नहीं है. आप तो जानते ही हैं कि "माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। और वैसा ही कुछ आनंद गणित देख…" आगे आप जो सोच रहे हैं। …वैसा कुछ नहीं है।
असली बात -
यदि आप भी 'उस जमाने' के ब्लॉगर हैं तो आपको याद होगा वो जमाना जब गूगल रीडर और बज्ज हुआ करते थे. तब हमने एक पोस्ट शेयर किया था (शायद २०११ में). किसी ने बैटमैन को ऐसे ही बनाया था (शायद ये). तब अपने आलसीजी ने कहा था - "ऐसे ही भगवान जगन्नाथ को बनाइये." हमने कहा - "बिलकुल कोशिश करेंगे". उस समय बात उतनी ही गंभीरता से ली गयी थी जितनी एक शेयर किये गए लिंक के कमेंट पर कही गयी बात ली जाती है. पर 'समहाउ' ये बात कभी दिमाग से निकली नहीं. किसी कोने में कुलबुलाती रही. कभी कभी सोचता कि कौन सा हिस्सा कैसे बन सकता है. जब कभी कोई फ्रैक्टल या खूबसूरत ग्राफ दिखा या जब कभी रथ यात्रा-पूरी-जगन्नाथ भगवान की बात सुनाई या दिखाई दी. जब-जब मोमा गया… और ऐसे ही कई पल हुए जब राख में दबी इस बात की चिंगारी सुलगती रही. फिर एक दिन भगवान जगन्नाथ के चित्र का प्रिंटआउट लिया और डेस्क पर बैठे-कॉल्स-मीटिंग-ऑफिस आते जाते-खींचम-खाँची-कट्टम-कुट्टी से जो एब्सट्रैक्ट आर्ट मेरे नोटबुक में बन जाता है जो सिर्फ मैं ही समझ पाता हूँ. [कभी उन्हें खोदना है… बहुत सी बातें-भावनायें जो पन्नों पर उतर न सकी उन नोटबुक्स के पन्नों की दबी पड़ी है. खैर...] उन्ही के बीच से भगवान जगन्नाथ के इस समीकरण रूप का अभ्युदय हुआ ! ....जब कार्य पूरा हुआ तो लगा मेहनत बेकार नहीं गयी. ऐसे और प्रयास किये जा सकते हैं. और अगर अच्छे से फ्रेम करा कर घर में लगाया जाय तो मॉडर्न आर्ट से तो बेहतर है ही.* इस कला में आगे भी और हाथ आजमाने का मन है. वैसे कला के नाम पर साड़ी का किनारी, आम-अमरुद पत्ती के साथ, कमल का फूल पानी के साथ ('आई थिंक बस') इससे ज्यादा कभी कुछ बना नहीं पाए...**
… रेखाओं का खेल है
वेदांग ज्योतिष में कहा गया है -
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तथा वेदाङ्गशास्त्राणां गणितं मूर्ध्नि स्थितम्॥
~Abhishek Ojha~
[* ये शुभ काम तो मैं जल्दी ही करने वाला हूँ :) ]
[*वैसे कला में रूचि की इस सीमा के बाहर एक 'एक्सेप्शन' का दौर भी गुजरा है ! ]
वाह। बहुत खूब। बेहतरीन । बहुत दिन बाद गणितीय पोस्ट पढ़ी। जय हो।
ReplyDeleteगजब महाराज गजब :)
ReplyDeleteहमें तो इस गणितीय रचना को देखकर अगणित आनंद आया। क्यों कि गणित से हमने बहुत पहले दूरी बना ली थी और दर्शन का साथ पकड़ लिया था।
ReplyDeleteवाह! शानदार. हमें गणितीय आर्ट और चाहिए!!
ReplyDeleteरोचक !
ReplyDeleteWaah
ReplyDeleteवाह वाह
ReplyDeleteयह गणितीय फ्रेमवर्क के रूप में कब मिलेगा??
ReplyDeleteबाकी तो गणित भूल भुलाय गया
लेकिन ब्लॉगर की आत्मा ज़िंदा है यह देख सुखद आश्चर्य हुआ।
जय हो ओझा जी की। :)
Tum bemisal ho dost :) Is post ko viral hona chahiye..
ReplyDeleteMuqaddar likhkar jo thoda sa khela hai, wo bhi gazab hai ;)
वाह। यानी जो देवताओं के स्वरुप हैं उन रूपकों से गणित की कई पहेलियाँ निकल सकती हैं।
ReplyDeleteगणित के बिना कोई कला संभव नहीं। कलाकार फिजूल ही उससे डरते हैं। बेहतरीन प्रयास।
ReplyDeleteरोचक लेख और सराहनीय प्रयास. गणित कला है और कला गणित है. धन्यवाद !
ReplyDeleteप्रिंट लेकर दीवार पर टांगने का जुगाड़ करते हैं, अभी पेटेंट तो नहीं करवाया न? एक दो दिन बात करवाईयेगा :)
ReplyDeleteHAPPY INDEPENDENCE DAY
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
आपकी की पोस्ट ओर ब्लाँगों से अलग हैं ...
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
http://savanxxx.blogspot.in
झिंझौड़ डाला। इस रेखागणितीय दृष्टि से देखा जाय तो बहुत-कुछ नया उद्घाटित होने की सम्भावना है।
ReplyDeleteझिंझौड़ डाला। इस रेखागणितीय दृष्टि से देखा जाय तो बहुत-कुछ नया उद्घाटित होने की सम्भावना है।
ReplyDeleteरमानाथाय नाथाय, जगन्नाथाय नमो नमः।
ReplyDeleteएतना ही कह सकते हैं।
वाह गणित से कला...क्या बात!
ReplyDeleteवाह गणित से कला...क्या बात!
ReplyDeleteदैवीय रूपक भाव से जुड़े हैं यह तो स्पष्ट था लेकिन इनमें गणितीय समीकरण भी छिपे हैं यह जानना रोचक है. अभी तक केवल यंत्रों को ही गणित से जुड़ा समझा था...
ReplyDeleteदैवीय रूपक भाव से जुड़े हैं यह तो स्पष्ट था लेकिन इनमें गणितीय समीकरण भी छिपे हैं यह जानना रोचक है. अभी तक केवल यंत्रों को ही गणित से जुड़ा समझा था...
ReplyDeleteआपका शोध परक तथ्य पढ़ने को प्रेरित करता है ।
ReplyDeleteआपके परिश्रम का वन्दन है ।
आपका शोध परक तथ्य पढ़ने को प्रेरित करता है ।
ReplyDeleteआपके परिश्रम का वन्दन है ।
पहले तो गणित के नाम से ही भागने की सोची फिर भगवन जगन्नाथ के नाम पर पोस्ट पढ़ना चालू किया तो रोचकता बढ़ती गयी । गणित इतनी रोचक तो कभी नही थी ।
ReplyDeleteपहले तो गणित के नाम से ही भागने की सोची फिर भगवन जगन्नाथ के नाम पर पोस्ट पढ़ना चालू किया तो रोचकता बढ़ती गयी । गणित इतनी रोचक तो कभी नही थी ।
ReplyDeleteगणित और सनातन ज्ञान को जोड़ने वाली इतनी रोचक प्रस्तुति शायद ही पहले कभी पढ़ी हो
ReplyDeleteअद्भुत। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteAmazing !!
ReplyDeleteहमें तो इस गणितीय रचना को देखकर अगणित आनंद आया। क्यों कि गणित से हमने बहुत पहले दूरी बना ली थी , गणित इतनी रोचक तो कभी नही थी !!!!अदभुत लिखा है मन आह्लादित हो गया
ReplyDeleteTum aur hum karsaktey hAi dhamaal NB jzise bhuj bhukamp aur latter bhukamp aur sagarmatha Nepal bhukamp aur ab hissar bhukamp all related to body parts of humankind body's of bhukamp Indian peninsula structure so we both can calculate easily by karlpearson coefficient of correlation and trends out the next sight of bhukamp just by applying trigonometry as predicted in Vishnu bhagwat ki a sehshashsiyee NB mudra and Lakshmi hi unkey charm dabzrahi hAi
ReplyDeleteJust thinking about it and calculate the best results
Hum Kisi bhi cheez Ko Kisi bhi Mandir ke sath mai aur Bharat ke Kone pe Bani Mandir se dusre ke sath Hum trigonometric relations pata kar sakte hain aur usse Har cheez ko aasani se calculate bhi kar sakte hain
ReplyDeleteHum Duniya Ke Ae kaun se Doosre ko Ne ke beech mein tunnel map effect dwara yeah app dwara Duti Pata kar sakte hain aur director relation Paida kar sakte hain aur agar koi Bhukamp Aaya Hai To Uske Neeche Dharti Ki dusri Taraf kaun sa Kaun Sa Tha Woh Kya Hua usse Hum Dharti Pe Aa Gale next Bhukamp ki bata sakte hain aur uske Beech Mein trigonometric relations Karke usko Rashi Chakra aur uski according kitne kitneg kya be affected area hongy who bhi pzta karsaktey hain ye bilkukule bhahut Sarah hAi aur Iskey lie bloggers ka Nobel price paa saktey hain powered by you and me
ReplyDeleteHum Duniya Ke Ae kaun se Doosre ko Ne ke beech mein tunnel map effect dwara yeah app dwara Duti Pata kar sakte hain aur director relation Paida kar sakte hain aur agar koi Bhukamp Aaya Hai To Uske Neeche Dharti Ki dusri Taraf kaun sa Kaun Sa Tha Woh Kya Hua usse Hum Dharti Pe Aa Gale next Bhukamp ki bata sakte hain aur uske Beech Mein trigonometric relations Karke usko Rashi Chakra aur uski according kitne kitneg kya be affected area hongy who bhi pzta karsaktey hain ye bilkukule bhahut Sarah hAi aur Iskey lie bloggers ka Nobel price paa saktey hain powered by you and me
ReplyDeleteHum Kisi bhi cheez Ko Kisi bhi Mandir ke sath mai aur Bharat ke Kone pe Bani Mandir se dusre ke sath Hum trigonometric relations pata kar sakte hain aur usse Har cheez ko aasani se calculate bhi kar sakte hain
ReplyDeleteMy big brother brother is a bit police man but of bhukamp high temperature person so contact with me as good as you are
ReplyDeleteSee you
बहुत उम्दा आलेख
ReplyDeleteसुपर
ReplyDeleteवाह! इस पर तो विस्तृत टीप लिखनी होगी।
ReplyDeleteऔर हाथ आजमाया जाए।
न केवल समीकरण, बल्कि सोर्स पब्लिक डोमेन में डाला जाए।
ऊपर की टीप स्मार्टफ़ोन से संक्षिप्त थी. अब डेस्कटॉप से पूरी बात.
ReplyDeleteथोड़े समय पहले, जब मैंने अपने लिविंग रूम के टीवी की केबल काट दी और उसमें कोडी बॉक्स लगा दिया तो पाया कि अधिकतर समय वहाँ गीत संगीत ही बजता है तो उसमें प्रोजेक्ट एम (मिल्कड्रॉप विजुअलाइज़ेशन का फ़ॉर्क) लगा दिया तो वातावरण रंगीन और कलाकृतिमय हो गया. मिल्कड्रॉप के कुछ खूबसूरत संयोजनों को गाहे बगाहे मैं रचनाकार पर रचनाओं के साथ लगाता आ रहा हूं. हाल ही में एक दिन ऐसे ही किसी खूबसूरत संयोजन को देख कर रेखा (पत्नी, जो खुद कलाकार है और कलाशिक्षिका भी) ने पूछा कि कंप्यूटर पर ये कलाकृतियाँ कैसे बनती हैं? तब मैंने बताया कि ये सब गणितीय समीकरण से बनता है. परंतु मुझे यह 2015 की पोस्ट याद नहीं आई थी, तो मैंने नेट का कोई साधारण सा पन्ना निकालकर उसे बताया था कि ऐसे.
आज जब यह फिर से सामने आया तो मैंने यह लिंक उसे भेजा. एकदम स्पष्ट है उसे अब सबकुछ. धन्यवाद. :)
अद्भुत🙏🙏🙏
ReplyDeleteगणित में सब संभव है. प्रयास करते रहना चाहिए।अति उत्तम, जय हो।
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