Tuesday, June 23, 2009

ब्लॉग्गिंग के खतरे: भाग ५

पिछली पोस्ट से जारी...

कुछ ब्लॉग व्यवसायिक होते हैं, जैसे कम्पनियों के ब्लॉग. उनके लिए अक्सर ये ब्लॉग समस्या कड़ी कर देते हैं. कानूनी अडचनों के अलावा अक्सर आन्तरिक खबर और व्यवसाय की गोपनीयता/रणनीति सार्वजनिक हो जाती है. अगर ऐसी ब्लॉग्गिंग आपका पेशा है तो भाई ये सब तो आप को पता ही होगा ! अगर नहीं है तो हम आपको फोकट में क्यों बताएं :) यहाँ तो हम जैसे टाइम पास ब्लोगरों के लिए बकबक की जा रही है.

तो हम जैसे लोग आप इस बात का ध्यान रखिये... अगर बॉस की बुराई करनी हो, उससे कुछ विवाद चल रहा हो, कुछ आपसी मतभेद या शिकायतें हैं तो उन्हें ब्लॉग से दूर ही रखो तो बेहतर है. नौकरी का खतरा तो वैसे पिछली पोस्ट में आ ही गया था. अगर ज्यादा व्यक्तिगत बातें तलाक करवा दें तो आर्श्चय नहीं ! अरे जब खर्राटे लेने तक से तलाक हो सकता है तो ब्लॉग्गिंग की माया तो… ! हाँ एक बात फिर से कहना चाहूँगा. अगर आपको लगता है कि आपका ब्लॉग बहुत कम लोग पढ़ते हैं तो ये आपकी गलतफहमी है. भले ही बहुत कम लोग पढ़ते हैं पर आप जिसके बारे में लिख रहे हैं उसे तो पता चल ही जाएगा. भले ही वो बुरकीना फासो में रहता हो और उसने हिंदी का नाम भी नहीं सुना हो !

टिपण्णीयों और ब्लॉग पर दिखने वाले विज्ञापनों में अगर अश्लील सामग्री दिखने लगे तो... ? कुछ दिनों पहले रवि रतलामीजी ने इस पर एक पोस्ट लिखा था. और कल ही एक प्रतिष्ठित ब्लोगर के ब्लॉग पर लडकियां उपलब्ध करवाई जा रही थी. तो अब हम क्या कहें !  इसके साथ अगर कोई (स्पैम) टिपण्णी में वायरस या ऐसा ही अश्लील लिंक हो तो आप वहां तक चले ही जायेंगे. अगर वायरस जैसा कुछ हुआ तो क्या-क्या हो सकता है आप जानते ही हैं.

एक रोचक और खतरनाक खतरा है. मुंबई हमलों में खबर आई कि आतंकवादी भीतर बैठे ट्विट्टर पर अपडेट देख रहे हैं. वैसे अपने सजग और बुद्धिमान (?) टेलिविज़न चैनलों के होते हुए उन्हें ये करने की जरुरत पड़ी हो ऐसा लगता तो नहीं. फिर भी ये खतरा तो है ही. और हड़बड़ी में लोकप्रिय होने के लिए लोग धकाधक सनसनी खेज खबरें तो ठेलते ही हैं ! खासकर उन्हें जिन्हें ऐसी खबरें मिलती हैं उन्हें सावधानी तो बरतनी ही चाहिए.

इसके अलावा अगर आपने कुछ विवादस्पद [थोडा ज्यादा सच :)] लिख दिया और दंगे-वंगे हो जाएँ तो बड़ी बात नहीं होगी. इसीलिए शायद कहा जाता है सच और सच के सिवाय कुछ नहीं. ज्यादा और कम सच कुछ नहीं होता या तो सच होता है या झूठ. सच और झूठ बाइनरी है जी… बस ० या १ होता है बीच का नहीं. तो सच से ज्यादा या कम लिखने पर दंगे हो गए तो फिर अब इससे बड़ा खतरा क्या होगा? आप अपने को सच भी साबित नहीं कर पायेंगे जी !

इस पूरी श्रृंखला में छोटे-बड़े जो भी खतरे आये इनमे से ऐसा कोई नहीं जिसे लेकर ब्लॉग्गिंग बंद कर दी जाए. सभी से सावधानी बरतने का संकेत जरूर मिलता है.

और फिर अंत में गोल-गोल घुमने के बाद फिर वही बात जहाँ से चालु हुई थी. ये कोई खतरों की एक्सटेंसिव सूची नहीं है. और असली खतरें तो वो होते हैं जो कोई सोच/देख/गिना नहीं सकता. असली अप्रत्याशित खतरे तो ऐसे होते हैं: 'न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्योलोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव'. नसीम तालेब के ब्लैक स्वान की तरह जब तक कोई काला हंस ना दिख जाए सब यही मान के चलते हैं कि हंस तो बस श्वेत ही होता है ! वैसे ही जब तक पहली बार कोई अप्रत्याशित घटना नहीं हो जाती हमें सब सुरक्षित ही लगता है. वो खतरा ही क्या जिसके बारे में पहले से जानकारी (भ्रम!) हो.

(समाप्त)

~Abhishek Ojha~

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इन खतरों के बीच में गणित खो गया था. गणित की वापसी अगली पोस्ट से...

Thursday, June 4, 2009

ब्लॉग्गिंग के खतरे: भाग ४

पिछली पोस्ट से जारी...

एक गंभीर खतरा है नौकरी जाने का ! अब आप सरकारी नौकरी वाले हैं और वो भी ऐसी मलाई वाली जिसमें कुछ भी करो माफ़ है तब तो ठीक है. वर्ना जरा संभल के. नहीं तो पता चला मंदी से बच गए और ब्लॉग्गिंग ले डूबा ! वैसे ही ब्लॉग्गिंग, ट्विट्टर और फेसबुक ने बहुत लोगों की नौकरी ली है. आप असावधान हुए तो आपको भी ले डूबेंगे उनकी तो अब आदत हो चली है :)

संभवतः यह ब्लॉग्गिंग का सबसे बड़ा खतरा है. हाल ही में किसी ने फेसबुक स्टेटस लगाया कि वो नयी कंपनी ज्वाइन कर रहा है. उसी मेसेज के थ्रेड में किसी के सवाल के उत्तर में उसने लिखा कि ‘काम किसे करना है. हमें तो अनुभव है काम नहीं करने का :)’. बस… नयी कंपनी के किसी अधिकारी ने उसे पढ़ लिया और फिर न इधर के हुए न उधर के. ऐसे ही कोई बीमारी का बहाना बनाकर छुट्टी पर गया और फेसबुक ने नौकरी ले ली.

ये तो ठीक… कई बार जोश में आकर लोग टविट्टरिया/ब्लोगिया देते हैं: 'हमारे ऑफिस में फलां बात की मीटिंग चल रही है' और इसी सिलसिले में कोई गोपनीय बात निकल जाती है. और फिर नतीजा: गुलाबी रशीद थमा दी जाती है. हाल के दिनों में ऐसे खूब मामले हुए हैं. इनकी कोई गिनती तो नहीं है और बीच-बीच में ऐसी खबरें आती रहती हैं. वैसे ये खतरा नया भी नहीं है. किसी महाशय ने तो २००४ में ही ऐसे लोगों की सूची बनानी चालु की थी जो ब्लॉग्गिंग में नौकरी गवां चुके थे. एक हालिया नमूना :cisco_twitter1

cisco_twitter तो अगर आप ऑफिस से ब्लॉग्गिंग करते हैं ऑफिस से जुडी बातों को ब्लॉग पर डालते हैं तो फिर तो... ! मजाक लग रहा हो तो तो लो पढो ये सारे लिंक. हाथ कंगन को आरसी क्या?

CNN Producer Says He Was Fired for Blogging

Beware if your blog is related to work

'Ill' worker fired over Facebook

बढ़ते हैं अगले खतरे की तरफ… किशोरों के लिए ब्लॉग्गिंग के संभावित खतरों में एक की तरफ इंगित करता न्यू हैम्पसायर विश्वविद्यालय के क्राइम्स अगेंस्ट चिल्ड्रेन रिसर्च सेण्टर का यह शोध पत्र है कि क्या ब्लॉग्गिंग किशोरों के ऑनलाइन यौन उत्पीडन का खतरा पैदा कर सकता है? इस शोध के पृष्ट २८९-२९१ पर नतीजो को आप पढ़ सकते हैं. इसे पढ़ कर तो यह जरूरी लगता है कि अवयस्क ब्लोगरों को उचित मार्गदर्शन मिले.

आज की पोस्ट में पढने को बहुत सारे लिंक है इसलिए यहीं विराम लगाते हैं. वैसे कहीं ये मेरी गलतफहमी तो नहीं कि आप लिंक्स पर जाकर पढेंगे ? :)

~Abhishek Ojha~

जारी रहेगा…

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चित्र साभार: http://blog.adamnash.com/2009/03/22/ask-not-for-whom-the-bell-tweets/

Thursday, May 28, 2009

शत प्रतिशत से अधिक संभावना और प्रॉबेबिलिटी

पिछली पोस्ट पर कमेन्ट:

 ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey said... इस लेख से हण्डरेड परसेण्ट से ज्यादा सहमत हैं हम।
वैसे शत प्रतिशत से अधिक की संम्भावना प्रॉबेबिलिटी में कैसे व्यक्त होती है?!

पहले तो इस टिपण्णी को बस पढ़ लेता हूँ, पहली लाइन पढ़ कर प्रसन्न: बिलकुल सही कह रहे हैं आप... ऐसे ही डेढ़ सौ, दो सौ परसेंट की सहमती जताते रहिये. हमारी किस्मत ! या पोस्ट की सफलता या फिर दोनों का मेल... जो भी हो पर यकीनन रूप से सौ प्रतिशत से अधिक सहमति हो सकती है. अगर विचार मिले तो होने ही चाहिए. ऐसी टिपण्णी के लिए ज्ञान भैया को कोटिशः धन्यवाद ।

अब अगली लाइन: 'शत प्रतिशत से अधिक की संम्भावना प्रॉबेबिलिटी में कैसे व्यक्त होती है?!' अब प्रॉबेबिलिटी को याद करके इस सवाल का जवाब देने का मन नहीं हुआ. अब सीधी सी बात है... प्रसन्नता को कम करने वाले सिद्धांत की काहे व्याख्या की जाय ! अरे मैं तो कहता हूँ… गणित के ऐसे सिद्धांतों को दरकिनार किया जा सकता है जो मानवीय आनंद पर सवाल खड़े करें ! :)

खैर अब सवाल उठा है तो सोचना तो पड़ेगा ही... दरअसल बात ऐसी है कि १०० प्रतिशत से अधिक प्रॉबेबिलिटी जैसी कोई चीज ही नहीं होती.

प्रॉबेबिलिटी या प्रायिकता में पहली ही मान्यता होती है: असंभव के लिए ० और निश्चित के लिए १ प्रॉबेबिलिटी. अब ऋणात्मक या १ से ज्यादा प्रॉबेबिलिटी जैसी कोई चीज ही नहीं होती.

- ऋणात्मक प्रॉबेबिलिटी का मतलब हुआ असंभव से भी असंभव !

- १ से ज्यादा प्रॉबेबिलिटी का मतलब निश्चित से भी ज्यादा निश्चित !

गणित की नजर में ये दोनों ही विरोधाभास हैं.

जैसे आज बारिश होने की सम्भावना ० है मतलब आज बारिश होना असंभव है. अब कोई कहता है कि कल बारिश होने की सम्भावना ० से भी कम है. (बोलचाल की भाषा में हम कह सकते हैं इसका मतलब ये है कि कल बारिश होने की सम्भावना आज से कम है.) पर गणित ये नहीं मानता अगर कल बारिश होने की संभावना आज से कम है तो आज बारिश होने की सम्भावना ० हो ही नहीं सकती ! क्योंकि असंभव से कठिन भला क्या हो सकता है?! पूर्ण से अधिक पूर्ण भला क्या हो सकता है और शून्य से अधिक शून्य !  फिर विरोधाभास आ जाएगा. ठीक वैसे ही १०० प्रतिशत से अधिक या १ से अधिक प्रॉबेबिलिटी से भी विरोधाभास हो जाएगा. कहने का मतलब ये कि प्रॉबेबिलिटी हमेशा ० से १ के बीच में ही होगी. वैसे प्रॉबेबिलिटी में सबसे पहले घटना परिभाषित की जाती है जिसकी प्रॉबेबिलिटी निकालनी है. भौतिकी (या विज्ञान की अन्य शाखाओं में) में अगर किसी घटना की प्रॉबेबिलिटी १ से ज्यादा आ जाती है. तो इसका मतलब होता है कि सिद्धांत मान्य नहीं रह जाता. जैसे स्कैटरिंग (हिंदी में क्या कहेंगे?) में, अगर किसी बीम के १०० कणों के स्कैटर होने की प्रॉबेबिलिटी १ से ज्यादा आ जाती है तो इसका मतलब होता है: ये सिद्धांत ही गलत है. कुछ तो गड़बड़ है क्योंकि इसका मतलब ये हो जाता है कि बीम में जितने कण थे उससे ज्यादा स्कैटर हो जायेंगे ! इसे ऐकिकता के नियम का उल्लंघन कहा जाता है.

जो भी हो आप हमारे पोस्ट और विचार से हजारों-लाखो प्रतिशत सहमत हो सकते हैं. हर जगह सिद्धांत नहीं लगाए जाते. वैसे भी जहाँ दिल की बात हो दिमाग की क्या जरुरत ? :)

आइंस्टाइन बाबा भी कह गए: ‘How on earth are you ever going to explain in terms of chemistry and physics so important a biological phenomenon as first love?’  वो गणित कहना भूल गए लेकिन वैसे भी बिना गणित केमिस्ट्री भले दो कदम चल ले फिजिक्स तो हिल नहीं पायेगा. तो प्यार की ही तरह बाकी मानवीय भावनाओं के लिए भी विज्ञान के सिद्धांतो की जरुरत नहीं !

~Abhishek Ojha~

नोट: खतरों वाली श्रृंखला जारी रहेगी.