बचपन में गणित की कक्षाओं में पढ़ाया जाता है वर्ग और वर्गमूल. वर्ग अर्थात किसी संख्या को उसी संख्या से गुणा कर दिया जाय तो वर्ग निकल आता है. फिर पढ़ाया जाता है घात अर्थात किसी संख्या के ऊपर जितने का घात हो संख्या को खुद के साथ उतनी बार गुणा. फिर वर्गमूल, घनमूल इत्यादि. साथ में ये बताया जाता है कि वर्गमूल केवल धनात्मक संख्याओं का ही होता है. इन्हीं दिनों ज्यामिति में परिचय होता है वृत्त के परिधि, त्रिज्या से होते हुए ‘पाई’ नामक संख्या से भी. पाई किसी भी वृत्त के परिधि और व्यास के अनुपात से प्राप्त संख्या को कहते हैं. फिर थोडा और आगे बढ़ने पर लघुगणक (लॉगरिदम) पढ़ते हुए परिचय होता है एक और संख्या ‘इ’ से. (वैसे शायद इस संख्या से पहला परिचय कैलकुलस पढते हुए होता है). पाई और ई गणित ही नहीं विज्ञान और अभियांत्रिकी की हर शाखा में खूब इस्तेमाल किये जाने वाले अंक हैं. गणितीय शब्दावली में दोनों अपरिमेय और ट्रान्सेंडैंटल हैं. दशमलव के रूप में लिखा जाय तो दोनों अनंत तक जाते हैं…
फिर गणित पढते हुए एक दिन एक काल्पनिक संख्या आई से परिचय होता है. और इस संख्या से एक अलग अध्याय चालु होता है मिश्रित संख्याओं का. इन्हीं दिनों ये पता चलता है कि बचपन में पढ़ी गयी बात ‘वर्गमूल केवल धनात्मक संख्याओं का ही होता है’ उन्ही लोगों के लिए पढाई जाती हैं जिन्हें गणित बस जोड़-घटाव तक ही पढ़ना होता है. और -१ के वर्गमूल जिसे ‘आई’ भी कहते हैं के साथ एक नयी काल्पनिक दुनिया का आरम्भ होता है. ये काल्पनिकता भी खूब इस्तेमाल होती है. पाई, इ और आई संभवतः विज्ञान और अभियांत्रिकी के सबसे अधिक लिखे जाने वाले गणितीय अंक चिह्न अंक हैं.
इन तीनों अंको के साथ अगर जोड़-घटाव,गुणा-भाग आता हो तो इस समीकरण में इसके अलावा कुछ और नहीं है. लेकिन इस समीकरण का मतलब क्या है? महान गणितज्ञ ओय्लर का दिया गया ये समीकरण गणित का सबसे खूबसूरत समीकरण कहा जाता है. (समीकरण चित्र में)
विकिपीडिया क एक पैराग्राफ कुछ यूँ कहता है इस समीकरण के बारे में:
मैथेमेटिकल इंटेलीजेंसर पत्रिका के पाठकों के बीच कराये गए मत के अनुसार ओय्लर का तादात्मय ‘गणित का सबसे खूबसूरत प्रमेय’ है. इसी तरह फिजिक्स वर्ल्ड पत्रिका के पाठकों ने भी २००४ में इसे मैक्सवेल के विद्युत चुम्बकत्व के समीकरण के साथ ‘सर्वकालिक महानतम समीकरण’ चुना. २००६ में न्यू हम्प्शायर विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफ़ेसर पॉल नहीन ने इस समीकरण पर ४०० पन्नों की ‘डॉ. ओय्लर'स फैबुलस फोर्मुला’ नामक किताब लिखी. इस पुस्तक में उन्होंने इसे ‘गणितीय सुंदरता का सुनहरा मानक’ होने की संज्ञा दी. कोंसटेंस रीड ने इसे ‘सम्पूर्ण गणित का सबसे प्रसिद्द सूत्र’ कहा. कहते हैं एक बार गणितज्ञ गॉस ने टिपण्णी की कि अगर ये सूत्र किसी गणित के छात्र को बताते ही अगर स्पष्ट रूप से समझ में ना आये तो वो छात्र कभी उत्कृष्ट गणितज्ञ नहीं बन सकता. उन्नीसवीं सदी के विख्यात दार्शिनिक, गणितज्ञ और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर बेंजामिन पियर्स ने एक व्याख्यान में इसे साबित करने के बाद कहा: ‘ये पूर्णतया विरोधाभासी है, हम इसे समझ नहीं सकते, हमें नहीं पता कि इसका अर्थ क्या है लेकिन चूँकि हमने इसे सिद्ध किया है तो हम जानते हैं कि ये सच है.’ स्टैंफर्ड विश्वविद्यालय के गणितज्ञ प्रो कीथ डेवलिन ने कहा ‘जैसे शेक्सपियर की एक लंबी कविता प्रेम के असली तत्व को कैद करती है, जैसे एक चित्रकार गहरी मानवीय सुंदरता को उकेरता है वैसे ही ओय्लर का समीकरण अस्तित्व की गहराई तक पंहुचता है’. [ये पूरा पैराग्राफ विकिपीडिया के एक पैराग्राफ का अनुवाद है. बुरे अनुवाद के लिये हमारी तरफ से ‘सॉरी’ रहेगा.]
एक अंक जो दशमलव में लिखने पर अनंत तक जाता है वो वृत्त के परिधि और व्यास से आया. साथ में एक वैसी ही अजीबो गरीब संख्या ‘इ’. ‘आई’ जो कि काल्पनिक है. और ओय्लर ने कहा कि ‘इ’ पर अगर ‘आई’ और ‘पाई’ के गुणनफल का घात लगा दें तो वो -१ हो जाएगा ! इतने अजीबो गरीब मिलन का इतना साधारण परिणाम ‘१’.
सबसे पहले तो हमने यही पढ़ा होता है कि किसी भी धनात्मक संख्या पर अगर किसी धनात्मक या ऋणात्मक संख्या का घात लगाएं तो परिणाम ऋणात्मक नहीं होता. अगर साधारण तरीके से सोचें तो एक काल्पनिक संख्या और ‘पाई’ के गुणनफल का कुछ अर्थ हो सकता है क्या? फिर ‘इ’ और उसके ऊपर ये विकट काल्पनिक घात. अगर बचपन की पढ़ी बात से समझें तो ‘इ’ को ‘इ’ से ही गुणा करना है, लेकिन कितनी बार? ‘एक काल्पनिक संख्या से गुणा किये हुए अनंत तक जाने वाली संख्या के गुणनफल के बराबर?’ ! विचित्र ! और इस विकटता का हल अत्यंत ही साधारण याने -१. (अगर e(x) का विस्तार और त्रिकोणमिति के sin(x) और cos(x) के विस्तार पता हों तो इसका प्रमाण भी ऐसा ही साधारण होता है.)
विकटता के मिश्रण से उपजी सरलता इस समीकरण को खूबसूरत बना देती है. मुझे अपने एक पुराने मॉडर्न आर्ट पर लिखे गए पोस्ट की याद आ रही है. अगर आपने यहाँ तक पढ़ा है तो इस समीकरण पर बने कुछ कार्टून भी देखते जाएँ. मैं क्या कहूँ. अपने काजल कुमार जी बेहतर व्याख्या कर पायेंगे कार्टूनी सुंदरता.
आई और पाई पर पर एक ये भी:
~Abhishek Ojha~
अपना गणित कमज़ोर है भाई फिर भी बात समझने लायक तो है.
ReplyDeleteदेखने में तो वाकई, छोटा सा, सुंदर सा समीकरण है... (मैं गणितीय व्याख्या में नहीं जा रहा...)
ReplyDeleteसर जी, पता नहीं यहाँ गणित की कक्षा में अटपटा लगेगा, लेकिन मन से निकलता यही है... साधु साधु!
ReplyDeleteआप यह ब्लॉग न लिखते तो दिनों में से सुख थोड़ा कम अवश्य हो जाना था।
वाह, तीन सिद्धान्तों का सुन्दर संमिश्रण।
ReplyDeleteदिलचस्प !
ReplyDeleteयदि यह न समझा जाये कि " सात काँड रामायण हो गयी और भक्त यह पूछता है.. सीता किसके पिता थे " तो मेरी समस्या सुन लो । मैं जरा खोदू किसिम का जीव हूँ... मुझे खुदाई करने का शगल इन्टरमीडियेट के दिनों से ही रहा है ।
मेरी यह उत्कँठा अब तक शान्त न हुई कि पाई, आई, ई जैसे इन गणितीय चिन्हों के नामकरण के पीछे कौन सा तर्क या नीति रही है ?
This article is beyond my intellect. I surrender :-))
ReplyDeleteहम तो अभी तक E=mc2 को ही सबसे ख़ूबसूरत समझते रहे ! वैसे एक और समीकरण है जो एक चर्च में स्थापित है ! इंग्लैण्ड के साही चर्च में स्थापित पाल डीरेक का समीकरण! शायद ही किसी और समीकरण को ऐसा सम्मान मेला हो!
ReplyDelete@डा० अमर कुमार: डॉ साहब, जहाँ तक मुझे पता है पहली बार किसी ने अपने हिसाब से इस्तेमाल किया और फिर वही धीरे-धीरे प्रसिद्द हो जाता है.
ReplyDeleteपर ज्यादातर गणितीय चिह्नों में एक समानता है वो ये कि अक्सर वो सिद्धांत के नाम का पहला अक्षर (ग्रीक में) हैं. ग्रीक गणित प्राचीनतम (लिखित रूप में) है. आगे जब गणित का विस्तार यूरोप और अन्य क्षेत्रों में हुआ तो वो उन्हीं सिद्धांतों के विस्तार से हुआ और एक परंपरा सी चल पड़ी ग्रीक अक्षरों के इस्तेमाल की. जैसे आई ग्रीक आयोटा हुआ करता था. इमाजिनारी का आई, ग्रीक का आयोटा. [एक अपवाद है इसका इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग: चूँकि आई करेंट के लिए इस्तेमाल होता है तो वहाँ आई की जगह जे से काल्पनिक संख्या को दर्शाते हैं.]
उसी तरह पाई ग्रीक में पेरीमीटर शब्द का पहला अक्षर होता है. पाई को परिधि और व्यास के अनुपात से दर्शाया गया था. तो पेरीमीटर का पहला अक्षर ग्रीक में पाई. यहाँ रोचक बात ये है कि पाई का कंसेप्ट करीब ईशा पूर्व २००० वर्ष पुराना है लेकिन ये चिह्न करीब ३०० साल ही पुराना है.
वैसे ही इ exponential शब्द का पहला अक्षर है. सम के लिए सिग्मा इत्यादि.
जब कोई गणितज्ञ कोई नया शोध छपवाता है तो वो अपने हिसाब से नए चिह्न इस्तेमाल करता है और फिर वही मानक के तौर पर इस्तेमाल होने लगते हैं. जैसे जोर्ज कैंटर ने जब अनंत की परिभाषा को विस्तार दिया तो उन्होंने हिब्रू के अलेफ को कार्डिनल नंबर के लिए इस्तेमाल किया. उनका कहना था कि ये अंक भगवान की भाषा है और शायद इसलिये भी उन्होंने हिब्रू चुना. तब से अब तक यही चिह्न इस्तेमाल होता रहा है.
वैसे ही जैसे फिजिक्स में फ़ोर्स के लिए एफ, अक्सलारेशन के लिए ए और वेलोसिटी के लिए वी इत्यादि...
@Kajal Kumar: :)
ReplyDelete@आशीष श्रीवास्तव: धन्यवाद, पॉल डिराक वाली जानकारी मेरे लिए नयी थी.
.
ReplyDeleteवाह.. मेरी जिज्ञासा आज जाकर शान्त हुई !
मेरी अज्ञानता का शमन करने हेतु धन्यवाद देना तो बनता ही है...
सो, स्वीकार किया जाये ।
bahut achhi post hai .
ReplyDeleteschool se lekar , engineering tak ki maths dubara se yaad aa gayi.
vaise mujhe lagta hai , issi se related ek concept negative frequency ka bhee hai jo ki Fourier me use hota hai . ho sakta hai , vo itni saral baat hai , to sayad concept hi nahi kahalaye .
jo bhee ho ,
Post achhi lagi.
isi tarah beech beech me hum logo ko maths aur usase related use , ki yaad dilate rahiye .
Regards--
Gaurav Srivastava
abhee abhee aapki ब्लॉगरी और माडर्न आर्ट post phir se padi , bahut hi sachhi post hai . lagta hai , aapne mere maan ki sari baten kah dee hai.
ReplyDeleteबना तो मैं लूँगा ही, पचासों आईडिया हैं... लेकिन साला देखेगे कौन? प्रसंशा कौन करेगा? ये साले बड़े-बड़े चित्रकार, लेखक यही काम करें तो माडर्न आर्ट... हम करें तो कचरा ! इनके बकवास को लाखों-करोड़ों, हम कुछ अच्छा भी बनाएं तो गाली... धत साला पगला गया है... पता नहीं क्या पोत रहा है !.
yahi sonch kar meri art ki pratibha barbaad chali gayi :-) :-)
aur saath me yeh bhee ki --
छोटा ब्लोगर सोचता है चलो अभी लिखते जाओ... एक बार लोकप्रिय होने दो... फिर यही पोस्ट वापिस ठेला करूँगा... तब तो लोग पढेंगे ही, और पता नहीं तब समय मिले ना मिले !
kuch log meri tarah bhee hote hain , hum bechare yahi sonchte rah jaate hain ki agar mai apne blog par kuch likh bhee doonga to kaun padega , isiliye 2 saal beet jaane par bhee hum apna blog nahi bana paye :-(
भैया, वर्ग वर्गमूल, घन घन मूल, पाइ तक तो ठीक था पर बाकी का सब सर के ऊपर से निकल गया ।
ReplyDeleteआपने शायद देखा हो http://www.math.utah.edu/~palais/pi.html
ReplyDeleteफिर भी आपकी तरफ से इस पर एक लेख तो बनता है!
@आशीष श्रीवास्तव:
ReplyDeleteशुक्रिया. हाँ आज बीबीसी पर ये न्यूज भी पढ़ा.
http://www.bbc.co.uk/news/science-environment-13906169
वाह, तीन सिद्धान्तों का सुन्दर संमिश्रण।
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ReplyDeleteयूँ समझिये कि - यदि एक छड़ी को एक पूर्ण चक्कर में घुमाया जाए ( उसका एक छोर धुरी की तरह टिका रहे - और दूसरा घूमे घडी से उलटी दिशा में) तो चक्कर पूरा होने के बाद घूमता छोर अपनी जगह वापस पहुंचेगा | शुरूआती रेखा से कोण बनेगा 0 (शून्य डिग्री ) या (360 डिग्री ) या (2 पाई रेडियन )
ReplyDeleteपूरे गोले का कोण [ 2 pi ]है तो --- यदि पहले छड़ी
**********पूर्व को संकेत कर रही थी - तो धुरी से दूरी है e ^ (0 pi i ) = e ^ (2 pi i x 1 ) = e ^ 0 = +1 ;;
**********पश्चिम कि ओर है (अर्थात आधा गोला) तो धुरी से दूरी है e ^ (2 pi i x 1/2 ) = e ^ ( 1 pi i ) = -1 ;;
********** उत्तर कि ओर (अर्थात चौथाई गोला हो )तो e ^ (2 pi i x 1/4 ) = e^ (1pi i/ 2) = वर्गमूल (-१)
***********और दक्षिण की ओर (तीन चौथाई गोला ) तो e ^ (2 pi i x 3/4 ) = e^ (3pi / 2 ) = वर्गमूल (-१)
[ क्षमा कीजिये - टिप्पणी में फिगर नहीं दे पा रही ---- समझिये कि घडी में ३ बजे को +१, १२ बजे को i , ९ बजे को -१, और ६ बजे को -i या कि ३ i कहा जाएगा | घडी की दिशा में नहीं बल्कि घडी की उलटी दिशा में घूमना है - ३ बजे से शुरू कर के, १२, फिर ९ फिर ६, फिर ३ बजे तक वापस आना है ]
"e " को जिस नंबर कि घात (पॉवर ^ ) हो - समझ लीजिये कि गोला उतने रेडियन घूमा है | पूर्ण वृत्त घूमना अर्थात [2 pi ] रेडियन घूमना |
तो एक पूर्ण गोलाकार वृत्त तो होता है [ e ^ (2 pi i ) = +1 ] .
अब 1x1 भी = 1 है (आप एक पूर्ण गोला दो बार घूम लें तो वही पहुंचेगे जहाँ एक गोले के बाद पहुंचे थे ) ;
और (-1) x (-1) भी = 1 है | (आप घडी से उलटी दिशा में आधा गोला घूम कर , उसी दिशा में फिर से और आधा गोला घूम लें , अर्थात आधा गोला दो बार घूम लें , तो भी वही पहुंचेगे जहाँ एक गोले के बाद पहुंचे थे )
[ यही घूमना यदि घडी की ही दिशा में हों तो कोण निगेटिव अर्थात ऋणात्मक होते हैं ]
- तो 1 का वर्गमूल [+1 ] भी है और [-1 ] भी | इसीलिए यह कहा है कि [e ^ (2 pi i) ] का वर्ग मूल है [{e ^ (2 pi i)} ^ 1/2 ] = [e ^ 1 pi i ] यानी कि एक गोले का वर्ग मूल है आधा गोला घूमना |
इसी तरह [e ^ 0 pi] = e ^ 0 = 1 (रेखा अपनी जगहसे बिल्कुल ना घूमे )
;; [e ^ 2 pi] = 1 (रेखा एक पूर्ण गोल घूम कर लौट आये )
;; [e ^ 4 pi] = {e ^ 2 pi} ^2 = 1 (रेखा दो पूर्ण गोले घूम कर लौट आये )
;; [e ^ 6 pi] = {e ^ 2 pi} ^ 3 = 1 (रेखातीन पूर्ण गोले घूम कर लौट आये )आदि ;
फिर
[e ^ 1 pi] = {e ^ 2 pi} ^ 1/2 = -1 (रेखा आधा ही गोला घूमे - तो यदि पिछली बार धुरी से पूर्वकी ओर नोक थी तो अब उलटी अर्थात पश्चिम की ओर होगी)
इन चीज़ों के गणितीय मूल्य है
pi =22 / 7 = 3.14 ;;;;;;; e = 2.718 ;;;;;;; i = square root of (-1)
अभिषेक जी - यह e , i , और pi को समझाते हुए मैंने एक पोस्ट लिखी है जो आपकी इस पोस्ट को देख कर ही लिखी है | अभी ही प्रकाशित की है - फिगर के साथ - यह लिंक देखें - http://ret-ke-mahal-hindi.blogspot.com/2011/07/blog-post_25.html
ReplyDeleteशिल्पा जी की ये ब्लॉग permisson माँग रही है। कैसे e^iπ=-1 को समझें?
Deletesorry. that blog post does not exist now .
Deleteif you still wish you can check here
http://shilpamehta1.blogspot.in/2011/11/e-i-pi.html
It's really very good explanation of maths concepts and relationship between i,e,square root..
ReplyDeleteThanks to lot..
अगर आपकी पोस्ट के बाद शिल्पाजी की पोस्ट नहीं पढ़ता को कभी समझ में नहीं आता। क्योंकि इमेजनरी नम्बर से कभी लेन देन नहीं रहा है।
ReplyDeleteआपकी बहुत सुंदर प्रस्तुति और शिल्पाजी का बहुत सुंदर समझाने का ढंगा।
दोनों को ढेर सारा आभार...
सिद्धार्थ जोशी
लगता है फिर पढ़ना पड़ेगा कभी। अभी तो समझ में नहीं आ रहा…
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