Thursday, November 20, 2008

गणित से भय: यूरोप की देन ?

गणित और भय में चोली-दामन का रिश्ता है और हाल ही में मुझे रंजनाजी के सौजन्य से पता चला की ये यूरोपीय विचारधारा की देन है. fear of mathematicsरंजनाजी ने कुछ दस दिनों पहले मुझे ये अखबार का टुकडा स्कैन कर के भेजा. अब उन्हें लगा की मुझे  इस पर कुछ लिखना चाहिए... अब मेरे दिमाग में तो यही आया 'अब आगे से किसी को गणित से डरने के जरुरत नहीं...  ये गणित से डरना फिरंगियों की सोच से प्रभावित है.' लेकिन इससे कोई फायदा है क्या, किसी की भी विचारधारा हो ?  जैसे बच्चे को कितना भी समझा लो कि बेटा भूत-वूत कुछ नहीं होता, सब वहम है... पर वो तो डरेगा ही ! वैसे ही क्या फर्क पड़ता है कि किसने डराने वाला गणित बनाया... अब ये वहम मिटाना आसन नहीं.

खैर बात इस ख़बर की... मुझे पढने के बाद यही लगा कि ये प्रो राजू की पुस्तक 'कल्चरल फाउण्डेशनस ऑफ़ मैथेमेटिक्स' में कही गई बात है. इसका स्रोत ढूंढने की  थोडी कोशिश भी की... गणित भले ही यूरोपीय सोच की देन हो ना हो... ये ख़बर इन बातों पर आधारित है: प्रो राजू की पुस्तक में यह कहा गया है की कलन (Calculus) जिसके लिए कहा जाता है कि न्यूटन (Newton) और लिबनिज (leibnitz) दोनों ने स्वतंत्र रूप से विकसित किया, दरअसल भारत की देन  है. कलन के कई प्रमुख सिद्धांत आर्यभट, भास्कर, नीलकंठ, शंकर वारियार जैसे गणितज्ञों के कई खगोलीय और गणितीय कामों में पाये जाते हैं जिसे मैटियो रिक्की नामक जेसुइट द्वारा कोचीन से यूरोप ले जाया गया. अन्यत्र प्रो राजू कहते हैं की प्राचीन भारतीय और यूरोपीय गणितीय सोच में बहुत अन्तर है. भारतीय गणित जहाँ व्यवहारिक था वहीँ यूरोप ने इसे धर्म से जोड़ दिया. भारतीय 'प्रमाण' में जहाँ 'लगभग' की मान्यता थी वहीँ यूरोप के 'प्रूफ़' में इसे परफेक्ट बना दिया गया. प्लेटो ने जोड़-घटाव (व्यवहारिक गणित/Applied Mathematics) वाले गणित को प्रूफ़ (प्रूफ़ पर आधारित शुद्ध गणित/Proof based Pure Mathematics)  वाले गणित से नीचे माना और यह मान्यता आज तक शिक्षाविदों में चली आ रही है कि शुद्ध गणित व्यवहारिक गणित से ज्यादा श्रेष्ठ है. जबकि भारत में कभी भी ऐसा विवाद नहीं रहा... प्राचीन भारतीय गणित केवल पढने के लिए कभी नहीं था बल्कि हमेशा ही वो किसी व्यवहारिक उपयोग को लेकर रहा है. जबकि शुद्ध गणित जो यूरोपीय सोच का नतीजा था वो केवल पढने के लिए रहा… अर्थात वास्तविकता से दूर.

गणित के इस रूप के भारत से यूरोप जाने और विकृत होने के बारे में प्रो राजू कहते हैं की यूरोप में नौसंचालन के लिए की जाने वाली शुरूआती गणनाओं में कई गलतियाँ थी. जिससे समस्याएं भी होती थी और नौसंचालन में सुविधा के लिए किए जाने वाले आविष्कारों के लिए कई यूरोपीय राज्यों ने आकर्षक पुरस्कारों की घोषणा कर रखी थी. इनके सुधार के लिए भारतीय गणित और पंचांगों को जेसुइट केरल से यूरोप ले गए. केरल उस समय शिक्षा और गणित का केन्द्र हुआ करता था क्योंकि विजयनगर राज्य की प्रभुता के कारण यह उत्तरी हमलों से एकदम सुरक्षित था. जेसुइट समुदाय के लोगों का स्थानीय लोगों से घुल-मिल कर रहना था और उन्हें भाषा की दिक्कत भी नहीं होती थी. इस तरह कई त्रिकोणमितीय अनुपातों को निकालने की विधि सहित पंचांगों और अन्य खगोलीय तथा  गणितीय अध्ययनों में उपयुक्त सिद्धांत यूरोप पहुच गए. वहाँ आध्यात्म विद्या (Theology) से जुड़ जाने के कारण इसमें अमूर्तता (Abstraction) आई और फिर इसका रूप कठिन होता गया और भय का रूप लेता चला गया....

अगर व्यवहारिक गणित और शुद्ध गणित क्या है ये जानने की इच्छा हो तो ये देख लें:

  • व्यावहारिक गणित (बातें गणित की... भाग III)
  • शुद्ध गणित (बातें गणित की... भाग II)
  • --
    ये प्रो राजू के विचार हैं और इनमें से कई विचारों पर मेरी व्यक्तिगत सहमती नहीं है. उनके कुछ लेख और विचार पढने के बाद उनसे भारी असहमति लगती है. उस पर उनकी किताब पढने के बाद कभी चर्चा होगी.

    फिलहाल ये गणित से डरना अपना काम नहीं ये यूरोपीय विचार धारा है. गाँधी बाबा को ये बात पता होती तो स्वदेशी आन्दोलन का हिस्सा बन गया होता "हम गणित से नहीं डरेंगे क्योंकि ये यूरोपीय विचारधारा है" और चरखे के साथ-साथ वैदिक गणित और लीलावती जैसी पुस्तकें भी होती ! खैर अभी भी स्वदेशी आन्दोलन चलाने वाले लोग हैं उन तक बात पहुचाने की जरुरत है. :-)

    रंजनाजी को धन्यवाद !



    ~Abhishek Ojha~

    17 comments:

    1. अच्छा है। रंजना जी के लेख का लिंक नहीं मिलता। क्या उन्होंने भी इस विषय पर कोई लेख लिखा था?

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    2. आप ने अच्छी तरह समझाया
      पर
      पास्चात्त्य विचारधारा को
      नहीँ अपनाने के बावजूद,
      हमेँ गणित से भय है !:)
      अगर आप हमेँ भयमुक्त होने का उपाय सीखला दो तब ये एक करिश्मा होगा !

      स्नेह,
      - लावण्या

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    3. तो आपने लेख लिख ही दिया और आख़िर में इस में मेरे दिल की बात आ ही गई .आपके इस बढ़िया लेख में कि "हम गणित से नहीं डरेंगे क्योंकि ये यूरोपीय विचारधारा है" ..वैसे आप जैसे मास्टर जी होते तो हम बचपन से ही न डरते इस विषय से ..और न मार खाते किसी प्रमेय को ले कर :)

      नहीं अनूप जी मैं इस विषय पर सिर्फ़ अपने गणित न समझने के मजेदार किस्से ही लिख सकती हूँ ..:) मैंने सिर्फ़ अभिषेक को यह अखबार की कंटिग पहुँचा दी थी कि वह अपने विश्लेषण से इस विषय पर लिखे .और उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से अपनी बात समझा भी दी है .:)

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    4. बहुत रोचक और उत्साहवर्धक जानकारी है ये। भारतीय एवं पाश्चात्य गणित के दर्शन में बारीक अन्तर भी बहुत अर्थपूर्ण है।

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    5. गणित में रुचि बढ़ाने के यत्न होने चाहियें। मेरे अकादमिक संस्थान में बहुधा सप्ताहान्त में मेथमेटिकल क्विज होती थी - और प्रतिस्पर्धा अच्छी हुआ करती थी।
      जैसे जन्तुओं पर चित्र दिखा ब्लॉग पर पहेली वाली पोस्ट लिखने का चलन हो गया है, वैसे ही सरल गणितीय पहेली की पोस्टें भी बनाई जा सकती हैं - जिसे शुरुआत में गणित से एलर्जी रखने वाला भी हल कर ले!

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    6. भाई ओझाजी गणित से अपनी नही पटरी बैठती ! गणित की याद आते ही मास्साब का डंडा और हमारी हड्डियों का जो युद्ध शुरू होता था वो आज भी याद है ! ना भई , इब आप जचे वो मेरे से करवा लो पर गणित तो नही सीखूंगा ! अपन तो अंगूठे छाप ही अच्छे ! :)

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    7. मुझे दादा जी कहा करते थे क्या सीखते हो तुम? मुझ से लीलावती क्यों नहीं पढ़ते। पहले तो समझ ही नहीं आया कि लीलावती क्या है? बाद में पता लगा वह गणित की पुस्तक है।
      वकालत में दस बरस गुजरने के बाद एक दिन लीलावती हाथ लगी तो बैठ कर उस के सारे सवाल कर डाले। उन का उपयोग शायद ही कभी हो। लेकिन वे सवाल हल कर आनंद बहुत आया। कभी मन होता है कि लीलावती का हिन्दी अनुवाद कर नैट पर डाला जाए, जिस में पुराने मापों को आधुनिक से बदल दिया जाए।
      वैसे गणित से डरने की जरूरत नहीं। हमारे यहाँ गांव के बन्जारे जो किसी स्कूल में नहीं पढ़े, जिन्हें लिखना और पढ़ना नहीं आता उन की मौखिक गणित को देख कर दांतो तले उंगली दबानी पढ़ती है।

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    8. ओझा भाई, सब्जी वाला भी बिलकुल सही हिसाब लगाता है,पता नही वो स्कुल गया है या नही,युरोप वालो के बारे आप ने सही लिखा है.
      धन्यवाद

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    9. द्विवेदी जी ने 'लीलावती 'पढ़ तो ली ही बहुत रोचक है ,जिस समय हम लोग प्राथमिक कक्षाओं में थे तो रूपया आना पैसा चला करता था ,तोला माशा रत्ती सूक्ष्म तोल के मानक थे ,पाई का चलन लगभग बंद हो चुका था " सेंटीमल सिस्टम ऑफ़ करेंसी १९५७ में लागू हुआ ,उस समय तक अंक गणित की एक बहु पुरानी पुस्तक " चक्रवर्ती ' नाम से भी अभ्यास के लिए प्रयोग में करते थे | अंग्रेजों के ज़माने की थी अतः पौंड शिलिंग पेंस [ब्रिटिश करंसी इकाई ] के प्रश्न भी थे ,|भारत में तो गणित कहावतों में भरा पड़ा है ,दिन दूनी रात चौगुनी , नौदो ग्यारह , तीन तेरह , तिया पांचा ,३६ का आंकडा ,आँखें चार होना ,निन्यानबे का फेर ,सभी में गणित का कोई न कोई सूत्र प्रर्दशित किया गया है "| यानि की जिनके जीवन में गणित इस तरह से पेवस्त हो उस समाज के लोग क्यो कर गणित से डरेंगे ? अभिषेक ओझा अपना दूसरा नुसक्खा कब प्रस्तुत कर रहे हैं ? पहला 'ब्लोगिंग छुडाना वे प्रेसक्रीब कर ही चुके हैं ही |

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    10. बहुत अच्छी। और रोचक जानकारी। धन्यवाद।

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    11. गणित से भय कैसा, ये तो हमारा सबसे प्रिय विषय होता था। सबसे ज्यादा स्कोर करने की जुगत तो यहीं लगती थी। रोचक जानकारी परोसी है अभिषेक।

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    12. मेरा भी यह प्रिय विषय था । आज तक दुख है कि कॉलेज में गणित क्यों नहीं लिया ।
      घुघूती बासूती

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    13. अभिषेक जी ,प्रेमचंद ने कहीं लिखा है कि उन्हें गणित हिमालय की ऊंचाई सी लगती है -मुझे तो यह सागर की गहराई की मानिंद लगती है -शायद यह इसलिए है कि बचपन में इसे पढाने के टीचर अच्छे नही मिले ! अच्छा लिखा है आपने !

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    14. हम गणित से नहीं डरेंगे क्योंकि ये यूरोपीय विचारधारा है


      गणित को लेकर भय का माहौल बचपन से ही बना दिया जाता है और बच्चे इससे दूर भागने लगते हैं। गणित के कई शिक्षक भी इससे ग्रस्त रहते हैं।

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    15. सच कहा जाए तो व्यवहारिक गणित और शुद्ध गणित के बीच विभाजन रेखा खींचना मुमकिन नहीं. शुद्ध गणित तो ऐसी जगहों पर इस्तेमाल हो रहा है जहाँ कभी गणित का दूर दूर तक पता नहीं था. कौन कह सकता था कि कभी बीमारियों का गणितीय मॉडल बनाया जाएगा और उसमें differential equations और probability का इस्तेमाल होगा.

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    16. गणित के कई निति नियम भारतीयों की देन हैं यह तो पता था ,पर आपने और भी अधिक अच्छी ,महत्वपूर्ण रोचक जानकारी दी हैं आपको बहुत बहुत धन्यवाद और बधाई

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    17. ब्लॉगरों के आपसी सहयोग से निर्मित अद्भुत कृति. :)

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