Friday, October 24, 2008

इश्क से गिरे, गणित पे अटके ...

फर्मैट के अन्तिम प्रमेय की श्रृंखला में कई बातें आई थी... अब इतने लंबे समय तक अगर कोई सवाल अनसुलझा रहे तो कहानियाँ तो होगी ही। कई सारे पुरस्कार भी रखे गए थे...

एक ऐसा ही पुरस्कार रखा था जर्मनी के डॉक्टर उद्योगपति पॉल फ्रेडरिक वोल्फ्केल (Paul Friedrich Wolfskehl) ने। यूँ तो पेशे से डॉक्टर थे पर एक बीमारी की वजह से ये पेशा छोड़ना पड़ा। और फिर गणित में रूचि हो गई... पर इन्होने अपनी कमाई के एक बड़े हिस्से को फर्मैट के अन्तिम प्रमेय पर पुरस्कार देने की जो घोषणा की उसके पीछे गणित में उपजी रूचि से ज्यादा इश्क का हाथ था।

कहते हैं की वोल्फ्केल को इश्क में धोखा मिला (जो की अक्सर मिलता है...) और फिर वो ऐसे टूटे की उन्होंने आत्महत्या की सोंची (अक्सर हो न हो ये भी होता ही है)।

पर इसी बीच वो पुस्तकालय चले गए और गणित की एक किताब में खो गए... उन्हें फर्मैट के अन्तिम प्रमेय पर लिखे गए क्युम्मर (Kummer) के एक पेपर में ऐसा लगा कि कुछ गड़बड़ है। दरअसल इस पेपर में क्युम्मर ने कौशी (Cauchy) के काम में गलती निकाली थी, जिससे यह साबित हुआ था कि कौशी का प्रूफ़ ग़लत है. वोल्फ्केल को लगा कि क्युम्मर ही ग़लत है और कौशी अभी भी सही है... हालाँकि उनको जो लगा वो बात तो नहीं थी पर इसमें वो ऐसे उलझे कि आत्महत्या का विचार ही त्याग दियाऔर चूँकि ये सारे पेपर फर्मैट के अन्तिम प्रमेय से सम्बंधित थे तो उन्हें लगा की कहीं न कहीं उनकी जान बचाने में इस प्रमेय का भी हाथ हैं।

अब उनकी प्रेमिका कौन थी ये तो कोई नहीं जानता पर ये कहानी उस प्रेमिका का नाम लिए बिना कई किताबों में छपी... और कारण भले थोड़े अलग हो पर कहानी ऐसी ही होती है... कुछ लोग ऐसा कारण भी देते हैं: उन्हें अपनी प्रेमिका की बेवफाई के बाद फिर से दुबारा प्यार नहीं हो पाया और वो नहीं चाहते थे की उनके बाद ये पैसा उनकी बीवी को मिले ! और पुराना प्यार भुलाने में प्रमेय ने मदद तो की ही थी... तो अगर पैसे कहीं लगाना ही है तो इसी काम में क्यों नहीं ! और इस तरह उन्होंने अपनी कमाई के १ लाख मार्क (आज के १० लाख पौंड) उस आदमी को देने की घोषणा कर दी जो पहली बार इस प्रमेय को सही या ग़लत साबित करेगा।

उनकी मृत्यु के करीब ९० साल बाद अंततः ये पुरस्कार एंड्र्यू वाइल्स को १९९७ में दिया गया। इतिहास में एक बार दिए गए इस पुरस्कार के बारे में और जानकारी के लिए यहाँ जाकर पढ़ें.

फर्मैट की श्रृंखला के अन्य लेख:
१. गणित के महानतम सवाल का रोचक इतिहास (बातें गणित की... भाग VII)
२. एक अनसुलझे सवाल से मिली मदद (बातें गणित की... भाग VIII)
३. सात साल में बना १००० पन्नों का हल (बातें गणित की... भाग IX)
४. एंड्र्यू वाइल्स, फील्ड्स मेडल और एक महिला गणितज्ञ (बातें गणित की... भाग X)
५. एक महिला गणितज्ञ के गणित प्रेम की दुखद कहानी ! (बातें गणित की... भाग XI)

गणित द्बारा जान बचाने वाली एक और कहानी:
गणित ने बचाई जान (बातें गणित की भाग... IV)

~Abhishek Ojha~

12 comments:

  1. इश्क में ही ऐसे अजूबे करने की ताकत है। :)

    बढ़िया पोस्ट।

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  2. गणित ने न जाने कितने लोगों की जान बचाई होगी। लेकिन इस से जान छुड़ा कर भागने वालों की भी कमी नहीं है।

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  3. प्रेमिका, प्रेयसी और प्रमेय कितना मिलताजुलता सा है ना.

    लेकिन दिनेशजी ने भी बड़ी सही बात कही है,

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  4. ह्म्म , सोच रहे हैं कि यह अजूबा इश्क का था या पैसे का !! जो भी रहा हो , अच्छी लगी पोस्ट ।

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  5. पहले इस पुरस्कार का पता होता तो क्या बात होती! हमने तो जवानी नॉन-मेथेमेटिकल चीजों में बरबाद कर दी! :)

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  6. सच्ची कहूं.. मजा नहीं आया.. लगा जैसे ही पढना शुरू किया वैसे ही खत्म हो गया.. वैसे था बहुत बढिया.. क्या करें लालच हो आया था थोड़ा और पढने की.. :)

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  7. इश्क तो इश्क है अब वह किस रूप रंग में आए कौन जाने ..

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  8. क्या बात है कमाल की पोस्ट.. ऐसी जानकारी देने के लिए तो आपको भी पुरस्कार मिलना चाहिए

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  9. इश्क ओर गणित ....डरते डरते आये .तुम बार बार गणित लिखते हो..दिल धड़क जाता है...इस बार कतुहल हुआ की लगता है अभिषेक अपना कोई किस्सा सुनायेगे ...जो बकलम ख़ुद में छूट गया हो..पर हाय रे...

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  10. भाई बहुत ही सुन्दर लेख लिखा आप ने इस के बारे , थोडा ओर बताते अच्छा था , जेसे यह एक अमीर यहुदी परिवार से था आदि आदि...
    धन्यवाद

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  11. बस ऐसी बातेँ होतीँ रहेँ
    और गणित की ( not :)
    और प्रीति की ( Yes :)
    बातेँ सुनेँ..
    और क्या चाहिये !!
    परिवार के सभी के सँग दीपावली का त्योहार खुशी खुशी मनाओ यही शुभकाँक्षा है
    स्नेह सहित -
    - लावण्या

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  12. बहुत खूब जानकारी है. आभार.

    हम तो इश्क मेँ सफल होकर भी अगर वो प्रमेय वाला पन्ना पा जाते, तो उसमें उलझने की बजाय आत्महत्या करना ज्यादा पसंद करते. :)

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