जिसकी पूरी जिंदगी ही बीस साल की हो उसके जीवन पर बहुत कुछ कहने को क्या होगा? लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनकी जिंदगी के एक दिन पर ग्रन्थ लिख दिए जाते हैं फिर बीस साल तो बहुत होते हैं ! ऐसी ही एक शख्सियत थे एवारिस्ट गैल्वा !
गाँव के मुखिया, आजादी के दीवाने और बुद्धिजीवी पिता तथा बिना तर्क धर्म को ना मानने वाली धार्मिक माँ के पुत्र गैल्वा का जन्म २५ अक्टूबर १८११ को फ़्रांस में हुआ था. गाँव के मुखिया के रूप में गैल्वा के पिता गाँव वालों को हमेशा पादरियों से बचाते थे. इस कारण पादरियों से हमेशा ही उनकी अनबन रही॰ १२ साल की उम्र तक इस बालक के दिन बहुत अच्छे गुजरे॰ उसकी पढाई घर पर ही हुई इस दौरान कभी-कभी वो अपने पिता के भाषण भी लिखा करता. प्रारंभिक शिक्षा अपनी माँ से ही मिली और इसका बालक पर गहरा असर पड़ा. घर के वातावरण ने भी उसे तार्किक और निरंकुशता का विरोधी बनाया॰
१२ साल की उम्र में पेरिस के प्रतिष्ठित लाइसी-लुई-ले-ग्रांड स्कूल में दाखिले के साथ ही गैल्वा के बुरे दिनों की शुरुआत हो गयी. लाइसी-ले-ग्रांड एक विद्यालय से अधिक जेल था. कठोर अनुसाशन और एक खास तरीके से ही पढाई करने के रूढ़िवादी तरीके वाले इस विद्यालय में कोई भी गैल्वा की प्रतिभा को कभी समझ ही नहीं पाया. ये समय फ़्रांस की राजनीति में भी उथल पुथल का युग था और राजनीति में भाग लेने के कारण समय-समय पर विद्यालय से बच्चे निकाले जाते रहे पर गैल्वा का ये दुर्भाग्य ही था कि उसका नाम ऐसी किसी सूची में कभी नहीं आ पाया. और वो विद्यालय में उपेक्षित होता रहा।
लाइसी-ले-ग्रांड में मुख्य रूप से ग्रीक और लैटिन पढाए जाते थे. इन विषयों में अच्छा नहीं कर पाने के कारण गैल्वा को नीचे की कक्षा में भेज दिया गया. इसी दौरान बोरियत से दूर होने के लिए गैल्वा ने गणित पढ़ना चालु किया. उस समय गणित सिर्फ एक वैकल्पिक विषय के रूप में पढाया जाता था और उसे अहमियत नहीं दी जाती थी. इन्हीं दिनों गैल्वा के हाथ लिजेंद्रे की लिखी ज्यामिति की किताब लग गयी. ये किताब पढ़ने-पढाने में साधारणतया दो साल लगते थे और केवल प्रशिक्षित गणितज्ञ ही इस किताब को पढते थे. एक महान गणितज्ञ द्वारा लिखी गयी यह मौलिक गणित की किताब थी. पर उस बालक ने कुछ ही दिनों में उस पुस्तक को निपटा डाला ! उन्हीं दिनों उसके हाथ में एक बीजगणित की पाठ्यपुस्तक भी लगी पर गैल्वा ने ये कहते हुए उसे नहीं पढ़ा कि उस पुस्तक में ‘सिरजनहार का स्पर्श’ (क्रिएटर'स टच) वाली बात नहीं है. यह एक पाठ्य पुस्तक थी ज्यामिती की उस किताब की तरह एक विद्वान का लिखा मौलिक ग्रंथ नहीं था॰ बाद में लाग्रंजे और एबेल के बीजगणितीय विश्लेषण की किताबों को गैल्वा ने पढ़ा. १४ वर्ष का यह बालक गणितीय उस्तादों की बातों में स्वाध्याय से ही निपुण हो गया. उसे एहसास भी हो गया कि वो खुद भी उन उस्तादों की तरह ही मौलिक सोच रखता है !
गैल्वा ने गणित कभी कागज-कलम लेकर नहीं पढ़ा. वो हमेशा सबकुछ अपने दिमाग में ही करता और इस कारण वो हमेशा एक औसत विद्यार्थी ही बना रहा. बहुत सी चीजें उसके लिए जाहिर सी बात होती थी और वो उन्हें कभी लिखता नहीं था. कक्षा में कभी ध्यान नहीं देकर अपनी ही सोच में खोया रहने वाला गैल्वा गुस्सैल किस्म का बालक भी था॰ जब उसकी बातों को लोग नहीं समझते तो उसका गुस्सा और क्षोभ और बढ़ता गया. उसके शिक्षक बुरे नहीं थे पर गैल्वा जैसे विद्यार्थी को समझ पाने के लिए मुर्ख थे ! गैल्वा अपने आप पर गर्वित होता और सोचता कि मैं महान गणितज्ञों के बराबर हूँ. पर उसके शिक्षक उसके आकलन में हमेशा ही टिपण्णी करते कि ‘यह विद्यार्थी अजीब (स्ट्रेंज) है’ ! कुछ ने जरूर कहा कि इसमें गणितीय कौशल है.
१६ वर्ष की आयु में उसने एक सवाल पर काम किया और एक गलत कल्पना की वजह से उसे लगा कि उसने उस सवाल को हल कर लिया है जिसे हल ही नहीं किया जा सकता. तब उसके शिक्षक वर्निअर ने उसे सलाह दी कि वो गणित व्यवस्थित तरीके से करे. लेकिन गैल्वा का ये तरीका आता ही नहीं था ! उसने फैसला किया कि वो इकोल पोलिटेक्निक में नामांकन लेगा जहां उसके प्रतिभा की सही पहचान होगी. इकोल पोलिटेक्नीक फ़्रांस में उस समय गणित का सर्वश्रेष्ठ केन्द्र था. पर वो प्रवेश परीक्षा में फेल हो गया. वहाँ भी शिक्षक उसके कौशल को समझ नहीं पाए. कुछ वर्षों बाद नोवेल्स ऐनल्ज डे मैथेमेटिक्स में टेरक्वेम ने इस घटना को याद करते हुए लिखा कि ‘उस दिन एक निम्न कोटि के परीक्षक ने एक उच्च कोटि के परीक्षार्थी को अस्वीकार किया था’.
१७ साल की अवस्था में गैल्वा का परिचय उच्च गणित के शिक्षक लुईस-पौल-एमिले-रिचर्ड नामक से हुआ. जिन्होंने पहली बार गैल्वा की प्रतिभा को थोडा बहुत समझा और उन्होंने कहा कि ये छात्र ‘फ़्रांस का एबेल है और इसका नाम इकोल पोलिटेक्निक में बिना किसी परीक्षा के लिखा जाना चाहिए’ ! उन्होंने गैल्वा को अपने विषय में प्रथम स्थान दिया और टिपण्णी में लिखा कि यह लड़का अपने बाकी सभी साथीयों से अधिक मेधावी है और उच्च गणित की समझ रखता है. गैल्वा ने इस प्रोत्साहन के बाद अपना पहला शोधपत्र १८२९ में छपने के लिए भेजा... अभी उसकी उम्र १८ वर्ष नहीं हुई थी. और और जीवन के २ वर्ष ही बचे थे। दुर्भाग्यवश उन दो वर्षों में भी केवल ट्रेजडी ही बची थी।
महान गणितज्ञ कौशी उस समय फ़्रांस में गणित के एक स्तंभ की तरह थे. उस समय के सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ ! दुर्भाग्य ही है कि उन्होंने एबेल और गैल्वा दोनों को ही नजरअंदाज किया. उन तक पंहुचा गैल्वा का शोधपत्र कहीं खो गया... शायद उनके कचरे के डब्बे में ! विद्यालय उसी तरह गैल्वा को उपेक्षित करता रहा और कमजोर-असामान्य विद्यार्थी होने की सजा देता रहा.
गैल्वा ने एक बार फिर इकोल पोलिटेक्निक में प्रवेश लेने की कोशिश की और फिर से उसे असफलता ही हाथ लगी. अपने दिमाग में ही गणित हल करने वाले गैल्वा को ब्लैकबोर्ड, चाक और डस्टर का कोई उपयोग नहीं दिखा और ना ही वो सवालों का जवाब उस तरीके से दे पाया जैसा परीक्षक सुनना चाहता था. साक्षात्कार के बीच में ही एक बार फिर अपने आपको उपेक्षित होता और इकोल पोलिटेक्निक में पढ़ने की अपने जीवन की सबसे बड़ी आशा को विफल होता देख गैल्वा ने डस्टर का उपयोग आखिरकार किया और उसे चलाकर परीक्षक को दे मारा !
(जारी)
रोचक जीवन वृत्तान्त।
ReplyDeleteबढि़या है।
ReplyDeleteक्यों होती आयी हैं प्रतिभा एके साथ ऐसी ज्यादतियां ?
ReplyDeleteगैल्वा पर क्या बीती उत्सुकता रहेगी
ऐसी कई प्रतिभायें होती है जो समय पर उचित ध्यान न देने से असमय दम तोड़ देती है और ऐसी घटनाओं के केन्द्र मे होता है उस क्षेत्र के मान्य विशेषज्ञों का अहम तथा इन प्रतिभाओं का लीक से हटकर चलना!
ReplyDeleteअगली किश्त में गैल्वा की गणितीय प्रतिभा के नमूनों से भी कृपया परिचित कराएं.
ReplyDeleteमैंने जब पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा था तो कहना चाहता था की आपने गैल्वा पर क्यूँ नहीं लिखा अब तक।
ReplyDeleteआप सचमुच अनूठे पहलू/लोग उठाते हैं यहाँ।
बड़ी ही संवेदनशील और भावनात्मक वृत्तान्त है ये ।
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