Friday, March 8, 2013

... do what you must, come what may. (भाग 2)

(पिछले भाग से जारी)

सोनिया, व्लादिमीर और अनिउता पहले विएना गए पर एक तो विएना महंगा बहुत था और दूसरे सोनिया को वहाँ के विश्वविद्यालयों के गणित का स्तर भी पसंद नहीं आया। अनिउता वहाँ से फ़्रांस चली गयी जहां उसने बाद में राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सेदारी निभाई। सोनिया और व्लादिमीर कुछ दिनों बाद इंग्लैंड चले गए। व्लादिमीर जीवाश्मिकी का छात्र था वहाँ उसे चार्ल्स डार्विन और थॉमस हक्सले के साथ काम करने का मौका मिला। सोनिया यहाँ लेखिका जॉर्ज ईलियट के संपर्क में आई। पर उसका सपना पूरा हुआ जब वो जर्मनी गयी जहां उसे हिडेलबर्ग विश्वविद्यालय में गणित और भौतिकी के व्याख्यानों में बैठने की अनुमति मिल गयी। यहाँ सोनिया की ख़्वाहिश थी रॉबर्ट बुंसेन (बुंसेन बर्नर वाले) के मार्गदर्शन में पढ़ने की। रोबर्ट बुंसेन औरतों की पढ़ाई के सख्त खिलाफ थे। उन्होने कह रखा था की कोई भी महिला उनकी प्रयोगशाला में काम नहीं कर सकती। पर सोनिया कोवलेव्सकी पहली महिला थी जिसे उन्होने अपने प्रयोगशाला में काम करने की अनुमति दी।

सोनिया इसके बाद विख्यात गणितज्ञ कार्ल विस्ट्रास के मार्गदर्शन की आस में बर्लिन गयी। विस्ट्रास के लिए भी किसी महिला का गणितज्ञ होना असहज था। सोनिया को टालने के लिए उन्होने कुछ कठिनतम प्रश्न हल दे दिया इस शर्त के साथ कि अगर सोनिया ने उन प्रश्नो को हल किया तो वो उसे मार्गदर्शन देने को सहमत हों जाएँगे। कुछ दिनों बाद सोनिया ने जिस प्रभावी तरीके से  उन प्रश्नों पर किया गया अपना काम विस्ट्रास को दिखाया तो विस्ट्रास ने निजी मार्ग दर्शन देना स्वीकार कर लिया। ये सोनिया के गणितीय अध्ययन के सबसे अच्छे दिन रहे। 1874 में 24 वर्ष की अवस्था में सोनिया ने  पर्शियल डिफ़ेरेन्शियल समीकरण, शनि के वलय और एलिप्टिक इंटीग्रल पर तीन शोधपत्र गोटिंगेन विश्वविद्यालय में डोक्ट्रेट की उपाधि के लिए प्रस्तुत किया। विस्ट्रास के सहयोग और पत्रों की गुणवत्ता को देखते हुए बिन कक्षाओं में गए और बिना किसी परीक्षा के गोटिंगेन विश्वविद्यालय ने सोनिया को डोक्ट्रेट की उपाधि प्रदान की।  ये उपाधि प्राप्त करने वाली वो यूरोप की पहली महिला थी।

इनमें से पर्शियल डिफ़ेरेन्शियल समीकरण पर किये गये उनके काम का एक हिस्सा अब कौशी-कोवलेव्सकी थियोरम के नाम से जाना जाता है।

महिला होने कि वजह से विस्ट्रास की मदद के बावजूद सोनिया को कहीं अध्यापन का काम नहीं मिल पाया। गरीबी और फिर शेयर धांधली के आरोप के भय से व्लादिमीर की आत्म हत्या जैसे बुरे दिनों का अंत 1884 में हुआ जब सोनिया को स्वीडन के स्टॉकहोम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की नौकरी मिली। यहाँ सोनिया को बहुत से पुरस्कार और सम्मान भी मिले। 1888 में सोनिया ने "द प्रॉबलम ऑफ द रोटेशन ऑफ अ सॉलिड बॉडी अबाउट अ फ़िक्स्ड पॉइंट" के नाम से एक शोधपत्र पेरिस अकादमी ऑफ साइंस में पृक्स बोरडीन पुरस्कार के लिए जमा किया। ये पुरस्कार गणित में मौलिक काम के लिए दिया जाना वाला सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता था। इस पत्र में वर्णित एक सिद्धान्त को अब कोवलेव्सकी टॉप के नाम से जाना जाता है।

पुरस्कार में कोई भेदभाव न हो इसलिए अकादमी ने पूरी तरह से बेनामी पत्र मंगाए थे। हर पत्र पर एक पहचान के लिए कुछ पंक्तियाँ लिखनी थी। और साथ ही एक अलग सील किए गए लिफाफे में अपना नाम और वही पंक्ति लिखनी थी। उस साल ये पुरस्कार सोनिया कोवलेव्सकी को मिला... उन्होने अपने पत्र पर ये पंक्तियाँ लिखी थी -

"Say what you know,
Do what you must,
Come what may."

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~Abhishek Ojha~

(Mathematicians are people, too और थोड़ी इधर उधर से पढ़ी गयी जानकारी पर आधारित)

5 comments:

  1. रोचक वृत्तान्त, गणितीय विकास उतना गणितीय भी नहीं होता है।

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  2. was she Sonia Kovalevskaya or Sofia Kovalevskaya ?

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  3. Sophia was her name but book Mathematicians are people, too gives Sonya. From Wiki - She herself used Sophie Kowalevski (or occasionally Kowalevsky), for her academic publications. After moving to Sweden, she called herself Sonya.

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  4. मैं तो खेत में बगुले उड़ाता सा लग रहा हूं...

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