Thursday, May 28, 2009

शत प्रतिशत से अधिक संभावना और प्रॉबेबिलिटी

पिछली पोस्ट पर कमेन्ट:

 ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey said... इस लेख से हण्डरेड परसेण्ट से ज्यादा सहमत हैं हम।
वैसे शत प्रतिशत से अधिक की संम्भावना प्रॉबेबिलिटी में कैसे व्यक्त होती है?!

पहले तो इस टिपण्णी को बस पढ़ लेता हूँ, पहली लाइन पढ़ कर प्रसन्न: बिलकुल सही कह रहे हैं आप... ऐसे ही डेढ़ सौ, दो सौ परसेंट की सहमती जताते रहिये. हमारी किस्मत ! या पोस्ट की सफलता या फिर दोनों का मेल... जो भी हो पर यकीनन रूप से सौ प्रतिशत से अधिक सहमति हो सकती है. अगर विचार मिले तो होने ही चाहिए. ऐसी टिपण्णी के लिए ज्ञान भैया को कोटिशः धन्यवाद ।

अब अगली लाइन: 'शत प्रतिशत से अधिक की संम्भावना प्रॉबेबिलिटी में कैसे व्यक्त होती है?!' अब प्रॉबेबिलिटी को याद करके इस सवाल का जवाब देने का मन नहीं हुआ. अब सीधी सी बात है... प्रसन्नता को कम करने वाले सिद्धांत की काहे व्याख्या की जाय ! अरे मैं तो कहता हूँ… गणित के ऐसे सिद्धांतों को दरकिनार किया जा सकता है जो मानवीय आनंद पर सवाल खड़े करें ! :)

खैर अब सवाल उठा है तो सोचना तो पड़ेगा ही... दरअसल बात ऐसी है कि १०० प्रतिशत से अधिक प्रॉबेबिलिटी जैसी कोई चीज ही नहीं होती.

प्रॉबेबिलिटी या प्रायिकता में पहली ही मान्यता होती है: असंभव के लिए ० और निश्चित के लिए १ प्रॉबेबिलिटी. अब ऋणात्मक या १ से ज्यादा प्रॉबेबिलिटी जैसी कोई चीज ही नहीं होती.

- ऋणात्मक प्रॉबेबिलिटी का मतलब हुआ असंभव से भी असंभव !

- १ से ज्यादा प्रॉबेबिलिटी का मतलब निश्चित से भी ज्यादा निश्चित !

गणित की नजर में ये दोनों ही विरोधाभास हैं.

जैसे आज बारिश होने की सम्भावना ० है मतलब आज बारिश होना असंभव है. अब कोई कहता है कि कल बारिश होने की सम्भावना ० से भी कम है. (बोलचाल की भाषा में हम कह सकते हैं इसका मतलब ये है कि कल बारिश होने की सम्भावना आज से कम है.) पर गणित ये नहीं मानता अगर कल बारिश होने की संभावना आज से कम है तो आज बारिश होने की सम्भावना ० हो ही नहीं सकती ! क्योंकि असंभव से कठिन भला क्या हो सकता है?! पूर्ण से अधिक पूर्ण भला क्या हो सकता है और शून्य से अधिक शून्य !  फिर विरोधाभास आ जाएगा. ठीक वैसे ही १०० प्रतिशत से अधिक या १ से अधिक प्रॉबेबिलिटी से भी विरोधाभास हो जाएगा. कहने का मतलब ये कि प्रॉबेबिलिटी हमेशा ० से १ के बीच में ही होगी. वैसे प्रॉबेबिलिटी में सबसे पहले घटना परिभाषित की जाती है जिसकी प्रॉबेबिलिटी निकालनी है. भौतिकी (या विज्ञान की अन्य शाखाओं में) में अगर किसी घटना की प्रॉबेबिलिटी १ से ज्यादा आ जाती है. तो इसका मतलब होता है कि सिद्धांत मान्य नहीं रह जाता. जैसे स्कैटरिंग (हिंदी में क्या कहेंगे?) में, अगर किसी बीम के १०० कणों के स्कैटर होने की प्रॉबेबिलिटी १ से ज्यादा आ जाती है तो इसका मतलब होता है: ये सिद्धांत ही गलत है. कुछ तो गड़बड़ है क्योंकि इसका मतलब ये हो जाता है कि बीम में जितने कण थे उससे ज्यादा स्कैटर हो जायेंगे ! इसे ऐकिकता के नियम का उल्लंघन कहा जाता है.

जो भी हो आप हमारे पोस्ट और विचार से हजारों-लाखो प्रतिशत सहमत हो सकते हैं. हर जगह सिद्धांत नहीं लगाए जाते. वैसे भी जहाँ दिल की बात हो दिमाग की क्या जरुरत ? :)

आइंस्टाइन बाबा भी कह गए: ‘How on earth are you ever going to explain in terms of chemistry and physics so important a biological phenomenon as first love?’  वो गणित कहना भूल गए लेकिन वैसे भी बिना गणित केमिस्ट्री भले दो कदम चल ले फिजिक्स तो हिल नहीं पायेगा. तो प्यार की ही तरह बाकी मानवीय भावनाओं के लिए भी विज्ञान के सिद्धांतो की जरुरत नहीं !

~Abhishek Ojha~

नोट: खतरों वाली श्रृंखला जारी रहेगी.

28 comments:

  1. ज्यादा कुछ समझ नहीं आया आज भाई....बाइलोजी के स्टुडेंट जो ठहरे ...

    हाँ सहमती को सहमति कर लेना ....स्पेलिंग मिस्टेक हो गयी है जल्दबाजी में

    ReplyDelete
  2. आपकी बात से 100 प्रतिशत सहमति।

    ReplyDelete
  3. डॉ साहब के उलट हमें तो मजा आया... सांख्यिकी के स्टुडेंट है..

    ReplyDelete
  4. @डॉ. अनुराग: धन्यवाद डॉक्टर साब. सही कर दिया.

    ReplyDelete
  5. वैसे भी जहाँ दिल की बात हो दिमाग की क्या जरुरत ? :)

    ये समझ में आ गयी .ओर न्यूटन बाबा की आखिरी बात भी....

    ReplyDelete
  6. अरे बहुत दिनो बाद आया, लेकिन शायद भारत मै गर्मी बहुत ज्यादा है, इस लिये इस कमबखत गर्मी की वजह से कुछ भी समझ नही पाया.
    राम राम जी की

    ReplyDelete
  7. दिल की बात में दिमाग की क्या जरूरत बस इतना ही समझा इस पोस्ट से :) पर सच में पढ़ के समझने की कोशिश बहुत की है ईमानदारी से कह रहे हैं :)

    ReplyDelete
  8. यह क्या - प्रॉबेबिलिटी को समझाने को आइंस्टीन का कोटेशन?!
    मैं तो सोचता था कि कोई जबरदस्त मल्टीवैरियेबिल फंक्शन झड़ेगा इसे समझाने को!

    ReplyDelete
  9. अभिषेक जी आपकी पोस्‍ट में डॉ अनुराग का शॉट और आपकी भूल सुधार सबसे रोचक वाकया रहा। कभी अपनी पोस्‍ट पर इस वार्ता की चर्चा करूंगा। :)

    और हां सौ परसेंट।

    ReplyDelete
  10. @ज्ञानदत्त पाण्डेय | Gyandutt Pandey: मल्टीवैरियेबिल फंक्शन और मेजर थियोरी भी लगा लें तो अंत में तो वही आएगा...
    - Contradiction
    - Hence proved :)

    वैसे इस पोस्ट में आइंस्टीन के कोटेशन समेत आखिरी दो पैराग्राफ न हो... तो आप जैसे गिने चुने लोगों को छोड़कर कौन आएगा ऐसी पोस्ट पढने :)

    ReplyDelete
  11. मुझे गणित विषयों से नैसर्गिक अलेर्जी है मगर ताज्जुब है जब आप समझाते हैं तो हंड्रेड वन परसेंट समझ में आ जता है !

    ReplyDelete
  12. हम तो डॉक्टर अनुराग से भी गहरे गढ्ढे से चिल्ला चिल्ला कर सहमत हो जाते हैं. कामर्स लिए थे न!! :)

    ReplyDelete
  13. सहमत हूँ जैसी टिप्पणी चलेगी क्या? :-)

    ReplyDelete
  14. इस पोस्ट की 20 से ज्यादा कमेन्ट पाने को प्रोबबिलिटी क्या होगी?

    हिंदी में प्रेरक कथाओं, प्रसंगों, और रोचक संस्मरणों का एकमात्र ब्लौग http://hindizen.com

    ReplyDelete
  15. हम आप से सहमत हैं। आनंद आया, लेकिन प्रतिशत नहीं बताएंगे। चक्कर पड़ता है।

    ReplyDelete
  16. आपकी बात से हन्ड्रेड वन परसेंट सहमत! दिल का मामला है।

    ReplyDelete
  17. इस पोस्ट की २० से अधिक टिप्पणियां पाने की प्रायिकता १०१% है।

    ReplyDelete
  18. यह बात भी दिल से कह रहे हैं। कोई एतराज?

    ReplyDelete
  19. जो लोग बाइलोजी और कामर्स की आड़ में न समझने की बात कर रहे हैं उनको समझना चाहिये कि इसमें गणित है ही कहां?

    ReplyDelete
  20. दिल की बात है सो समझ में आनी चाहिये है कि नहीं?

    ReplyDelete
  21. येल्लो हो गयीं न बीस से अधिक टिप्पणियां! हम कह रहे थे न!इस पोस्ट की २० से अधिक टिप्पणियां पाने की प्रायिकता १०१% है।

    ReplyDelete
  22. हमें भी गिना जाए सहमत होने वालों में

    ReplyDelete
  23. आपका यह लेख अच्छा लगा!
    आप तो बहुत अच्छे शिक्षक हैं!
    एक टिप्पणी के बहाने
    आपने प्रायिकता के पाठ को
    बहुत सरल और रोचक ढंग से समझा दिया!

    ReplyDelete
  24. aise to hindi blogs par yatr tatr sarvatr aisi baate milti rehti hai jisse bada anand aata hai...lekin yahaan kuch aisa mile jise dekhke na sirf main deewana ho jaata hoon,balki ye ek sukhad ashchary sa thaa....aur aapne sach em aaj sochne pe majboor kar diyaa....bas probability pe aaj jo dil me aaye bayaa kartaa jaata hooon :)

    mujhe nahi pata aaj tak kabhi kisi ne ye sawaal kyon nai kiya,par mujhe sach me lagta hai ki jis tarah 100 se adhik pratishat hotaa hai,vaise hi ek se zyaada probability ho sakti hai...ganit ke pandito ne kahaa ki agar koi baat tay hai to uski probability 1 hogi,isliye usse zyaada probability nahi hogi,par shayad is baat me thodi chedchad ki gunjaaish hai!!

    probability me experiment karne waala ek sample space define karta hai,jisme wo saari baate hoti hai jo us prayog ka nateeja ho saktii hai...ab maan lijiye jo nateeja hai wo kisi tarah is sample space se badaa ho jaaye to hum ise ek se zyada probabilty keh sakte hai...jaise sahmati jataane ki baat chali thi...agar aap apne hisaab se kehte hai ki aapne is lekh me 20(lets say) baate bataayee hai aur agar koi 100% sehmat hai to wo in beeso baat ko maanta hai...ab agar main kahoon ki aapke lekh me 21 baato se sehmat hoon(mujhe possible cases aapke sample space se zyada dikhta hai to 100% se zyada sahmati hogii...halanki isko probability ke roop me dekhna itna saral nahi hai,par shayad main jo bol raha hoon wo itna galat nahi hai(fir mujhe ashchary hota hai ki kabi aisi baat uthi kyo nahi!!)

    ReplyDelete
  25. ek aur baat...ek jagah jahaan par 1 se zyada probabilty dikh sakti hai wo ha jab koi nayaa avishkaar hota hai...ahaan aapka poorv nirdharit sample space us case ki baat nahi kar sakta jiska ab tak avishkaar hi na huaa ho....

    maan lijiye ek prayog hai jisme hume pata hai ki 4 gases nikalti hai,aur shayad hum use maapne ki koshish kar rahe hai...yahan sample space 4 ka hai,aur is prayog me gar naye gas ka avishkaar ho jaae aur 5 gases baahar aati dekhi jaaye to reusult ka space sample space se badaa ho jaayega.....

    ek abar fir kahoonga...mujhe mazaa aa gayaa...is lekh ka aabhar..shayd is par kabhi likhoon main bhi kuchh...tab aapko aamantrrit karoonga blog pe...aaiyeqaa :)

    ReplyDelete
  26. @Pyaasa Sajal:

    सरजी आपने जो कहा वो ठीक है. लेकिन गणित पूर्ण तर्क पर आधारित है. और इसमें व्यवहारिकता का कोई स्थान ही नहीं. जब बात चली है तो हमारी एक पोस्ट और झेलिये :).
    http://kuchh-baatein.blogspot.com/2008/06/ii.html

    और आपके उदहारण में जैसे आप कहते हैं कि २१ सहमतियाँ दिख गयी. तो फिर इसका मतलब ये हुआ कि सैम्पल स्पेस ही गलत परिभाषित था ! २१ सहमतियाँ तभी हो सकती हैं जब २१ सहमतियाँ एक्सिस्ट करे. अगर पहले नहीं पता था इसका मतलब बस ये निकलता है कि सैम्पल स्पेस का सेट ही गलत परिभाषित था. और निकाली गयी प्रॉबेबिलिटी गलत हुई.

    वैसे ही गैसों के निकलने वाले प्रयोग में भी. देखिये प्रॉबेबिलिटी को परिभाषित करने के पहले एक गणितीय रूप से परिभाषित सैम्पल स्पेस चाहिए. अब इस केस में निकलने वाले सारे संभव गैस अगर ४ ही थे तो जैसे ही पांचवी गैस का अविष्कार हुआ सैम्पल स्पेस का सेट ही अपरिभाषित हो गया. क्योंकि निकलने वाले संभव गैस ४ नहीं है ! तो प्रॉबेबिलिटी निकालने के पहले सैम्पल स्पेस को ठीक करना पड़ेगा !
    गणित के सिद्धांत कुछ मुलभुत अवधारणओं पर आधारित होते हैं. और फिर तार्किक रूप से उनका विस्तार. और जब तक इन सभी को फोलो किया जाय विरोधाभास कि स्थिति नहीं आती.

    वैसे आपकी वाली बात मेरे दिमाग में भी आई थी तो गणितज्ञों के दिमाग में नहीं आई हो ऐसा संभव नहीं लगता. आपकी टिपण्णी इस पोस्ट की सफलता है. आपके पोस्ट का इंतजार रहेगा.

    ReplyDelete
  27. haan ji kisi bhi theorem ko prove karne ke liye koi axiom to leni hi hogi....probability 1 se adhik nahi hogii,ye theorem hai,iske peeche jo axioms hai uske baare me aapne sahi bataaya hai aur mere savaalo ka javaab bhi thik diyaa....

    vaise yahaan par kuchh hadd tak maine conventions par hi do mat jataayaa tha...yun kahiye ki koi aiom hi mujhe apoorn sa lagaa tha,jisse is theorem me kamee si lag rahee thi :)

    ganit ke maamle me hamesha vidrohi svabhaav ka rahaa hoon,isliye yahaan wahaan log tez to samajhte they par number achhe nahi aate they :)

    aapka shukriyaa ki aapne meri aisi hi ek naadani ko itna tavajjo diyaa

    ReplyDelete
  28. इतना पढ़ाने के बाद भी अरविन्द जी १०१ प्रतिशत सहमत हो गये। यानि जिसकी गुन्जाइश ही नहीं है वहाँ तक चले गये। इसे समझने के लिए दर्शन की क्लास लगानी पड़ेगी। ब्रह्म को समझना पड़ेगा जिसका न कोई आदि है न अन्त। इन सहमतियों के पीछे उसी का हाथ लगता है :)

    ReplyDelete