Monday, May 5, 2008

एक प्रेरक प्रसंग, वी.पी. मेनन के जीवन से... !

कुछ बातें की शुरुआत आज एक प्रेरक प्रसंग से... ये प्रसंग Freedom at Midnight नामक पुस्तक (मेरी पसंदीदा पुस्तकों में से एक) से ली गई है. प्रसंग मेरी डायरी में लिखा पड़ा मिल गया. पहले उस व्यक्ति के बारे में थोडी चर्चा हो जाए जिनके बारे में ये बातें लिखी गई हैं.

वी. पी. मेनन
भारतीय प्रसासनिक सेवा के एक प्रतिष्ठित अधिकारी थे. भारतीय सिविल सेवा में एक कलर्क की तरह अपने कैरियर आरंभ करने वाले मेनन ब्रिटिश भारतीय गवर्नर जनरल के वैधानिक सलाहकार के पद (उस समय का भारतीय प्रसासनिक सेवा का उच्चतम पद) तक पहुचे. और जब अंतरिम सरकार विफल रही तो मेनन ने ही भारत विभाजन का सलाह दिया था. भारत के विभाजन और फिर रियासतो के एकीकरण में मेनन की अहम् भूमिका रही. सरदार पटेल के सहयोगी के रूप में भी वो याद किए जाते हैं... हैदराबाद, जूनागढ़ या फिर कश्मीर सबकी कहानी में मेनन का नाम जरूर आता है. पटेल के कहने पर ही उन्होंने भारत-विभाजन, राज्यों के एकीकरण और सत्ता हस्तांतरण पर पुस्तकें लिखी. भारत की आजादी के बाद प्रसासनिक सेवा के अधिकारियों को नेता और मंत्री अच्छी नज़रों से नहीं देखते थे. उनके मन में कहीं न कहीं ये बात बैठी होती थी कि ये अंग्रेजो के लिए काम करते थे... यहाँ तक कि नेहरूजी भी इन नौकरशाहों से दूरी बनाये रखते थे. शायद यही कारण था कि मेनन ने सरदार पटेल कि मृत्यु के बाद अवकाश ले लिया.

अब बात उस प्रसंग का (हिन्दी अनुवाद)...

१९४७ में मेनन जो एक हिंदू थे, जब दिल्ली पहुचे तो उन्होंने पाया कि जो भी पैसा वो साथ लाये थे सब चोरी हो चुका है. उन्होंने एक वृद्ध सिख से १५ रुपयों की मदद मांगी. उस सिख ने मेनन को पैसे दिए और जब मेनन ने पैसे लौटने के लिए उस सिख से उसका पता पूछा तो उसने कहा : "नहीं मैं तुमसे पैसे वापस नहीं लूँगा, इस प्रकार जब तक तुम जीवित रहोगे तब तक तुम हर उस इमानदार व्यक्ति कि मदद करते रहोगे जो तुमसे मदद मांगेगा" इस घटना के करीब ३० साल बाद, और मेनन की मृत्यु के बस सप्ताह पहले एक भिखारी मेनन के बंगलोर स्थित आवास पर आया. मेनन ने अपनी बेटी से अपना बटुआ मंगाया और १५ रुपये निकाल कर उस भिखारी को दिए... वो अभी भी उस कर्ज को चुका रहे थे.

ये प्रसंग शायद आपको कुछ ख़ास ना लगे पर मुझे बहुत पसंद है क्योंकि कुछ ऐसी ही घटना मेरे साथ भी घट चुकी है, जिसकी एक चर्चा मैंने अपने पोस्ट वो लोग ही कुछ और होते हैं ... (भाग II) में की थी।


~Abhishek Ojha~

P.S: विकिपेडिया और Freedom at Midnight से साभार