Monday, October 27, 2008

दिवाली पर गणितीय रंगोली !

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ! गणित की रंगोली और गणित के ही पटाखों के साथ...

पहले कुछ रंगोली:

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इन खुबसूरत रंगोलियों को किसी कलाकार ने नहीं बनाया है. ये गणित के कुछ फलन हैं जिन्हें कंप्यूटर की मदद से बनाया गया है. इन चित्रों को फ्रैक्टल कहते हैं. ये क्या होते हैं और कैसे बनते हैं... ये जानते हैं दिवाली के बाद. अभी आप इतना ही जानिए ये पूर्ण रूप से गणित के सूत्र ही हैं और कुछ नहीं... ये कैनवास पर बने गई किसी कलाकार की कल्पना नहीं गणितज्ञों के दिमाग की उपज है.

और फिर जाते-जाते एक फ्रैक्टल पटाखा:

fractal

सारे फ्रैक्टल केओसप्रो से बनाए गए हैं.

~Abhishek Ojha~

Friday, October 24, 2008

इश्क से गिरे, गणित पे अटके ...

फर्मैट के अन्तिम प्रमेय की श्रृंखला में कई बातें आई थी... अब इतने लंबे समय तक अगर कोई सवाल अनसुलझा रहे तो कहानियाँ तो होगी ही। कई सारे पुरस्कार भी रखे गए थे...

एक ऐसा ही पुरस्कार रखा था जर्मनी के डॉक्टर उद्योगपति पॉल फ्रेडरिक वोल्फ्केल (Paul Friedrich Wolfskehl) ने। यूँ तो पेशे से डॉक्टर थे पर एक बीमारी की वजह से ये पेशा छोड़ना पड़ा। और फिर गणित में रूचि हो गई... पर इन्होने अपनी कमाई के एक बड़े हिस्से को फर्मैट के अन्तिम प्रमेय पर पुरस्कार देने की जो घोषणा की उसके पीछे गणित में उपजी रूचि से ज्यादा इश्क का हाथ था।

कहते हैं की वोल्फ्केल को इश्क में धोखा मिला (जो की अक्सर मिलता है...) और फिर वो ऐसे टूटे की उन्होंने आत्महत्या की सोंची (अक्सर हो न हो ये भी होता ही है)।

पर इसी बीच वो पुस्तकालय चले गए और गणित की एक किताब में खो गए... उन्हें फर्मैट के अन्तिम प्रमेय पर लिखे गए क्युम्मर (Kummer) के एक पेपर में ऐसा लगा कि कुछ गड़बड़ है। दरअसल इस पेपर में क्युम्मर ने कौशी (Cauchy) के काम में गलती निकाली थी, जिससे यह साबित हुआ था कि कौशी का प्रूफ़ ग़लत है. वोल्फ्केल को लगा कि क्युम्मर ही ग़लत है और कौशी अभी भी सही है... हालाँकि उनको जो लगा वो बात तो नहीं थी पर इसमें वो ऐसे उलझे कि आत्महत्या का विचार ही त्याग दियाऔर चूँकि ये सारे पेपर फर्मैट के अन्तिम प्रमेय से सम्बंधित थे तो उन्हें लगा की कहीं न कहीं उनकी जान बचाने में इस प्रमेय का भी हाथ हैं।

अब उनकी प्रेमिका कौन थी ये तो कोई नहीं जानता पर ये कहानी उस प्रेमिका का नाम लिए बिना कई किताबों में छपी... और कारण भले थोड़े अलग हो पर कहानी ऐसी ही होती है... कुछ लोग ऐसा कारण भी देते हैं: उन्हें अपनी प्रेमिका की बेवफाई के बाद फिर से दुबारा प्यार नहीं हो पाया और वो नहीं चाहते थे की उनके बाद ये पैसा उनकी बीवी को मिले ! और पुराना प्यार भुलाने में प्रमेय ने मदद तो की ही थी... तो अगर पैसे कहीं लगाना ही है तो इसी काम में क्यों नहीं ! और इस तरह उन्होंने अपनी कमाई के १ लाख मार्क (आज के १० लाख पौंड) उस आदमी को देने की घोषणा कर दी जो पहली बार इस प्रमेय को सही या ग़लत साबित करेगा।

उनकी मृत्यु के करीब ९० साल बाद अंततः ये पुरस्कार एंड्र्यू वाइल्स को १९९७ में दिया गया। इतिहास में एक बार दिए गए इस पुरस्कार के बारे में और जानकारी के लिए यहाँ जाकर पढ़ें.

फर्मैट की श्रृंखला के अन्य लेख:
१. गणित के महानतम सवाल का रोचक इतिहास (बातें गणित की... भाग VII)
२. एक अनसुलझे सवाल से मिली मदद (बातें गणित की... भाग VIII)
३. सात साल में बना १००० पन्नों का हल (बातें गणित की... भाग IX)
४. एंड्र्यू वाइल्स, फील्ड्स मेडल और एक महिला गणितज्ञ (बातें गणित की... भाग X)
५. एक महिला गणितज्ञ के गणित प्रेम की दुखद कहानी ! (बातें गणित की... भाग XI)

गणित द्बारा जान बचाने वाली एक और कहानी:
गणित ने बचाई जान (बातें गणित की भाग... IV)

~Abhishek Ojha~